भीमा कोरेगांव की हिंसा के नाम देशभर के मानवाधिकारवादियों, बुद्धिजीवियों की हालिया गिरफ्तारियों ने देश की पुलिस का स्त्री विरोधी ब्राह्मणवादी साम्प्रदायिक चेहरा को बेनकाब कर दिया है, जो यह मानता है कि स्त्रियों और दलितों को मनुष्य का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए. यही कारण है कि भीमा-कोरेगांव की हिंसा में प्रमुख भूमिका निभाने वाले असली गुनाहगार संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे पर एट्रासिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज होने के वावजूद न केवल उसे गिरफ्तारी से बचाया जा रहा है वरन् इस हिंसा की एकमात्र चश्मदीद गवाह लड़की की निर्मम हत्या को पुणे की पुलिस ने आत्महत्या साबित करके उस मुकदमे को ही कमजोर कर दिया है. वहीं दूसरी तरफ स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों के हितों में काम करने वाले देश के गणमान्य मानवाधिकारवादियों और बुद्धिजीवियों को न केवल फर्जी मनगढ़ंत तरीके से गिरफ्तार ही किया जा रहा है, वरन् मौका पाते ही उसे गोलियों से भी उड़ाया जा रहा है. कलबुर्गी, पनसारे, गौरी तो महज एक उदाहरण भर हैं, जो मामले प्रकाश में आ गये हैं, बहुतेरे ऐसे मामले तो सामने ही नहीं आने दिया जाता है.
इन गणमान्य बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी में पुणे पुलिस का विशुद्ध ब्राह्मणवादी चेहरा उभर कर सामने आया है जब देश के प्रसिद्ध मानवाधिकारवादी वरवर राव की पुत्री के यहां छापेमारी करने गई पुलिस ने पूछताछ की. विदित हो कि ब्राह्मण जाति में जन्म लेने वाले वरवर राव की पुत्री ने एक दलित जाति में जन्म लेने वाले के. सत्यनारायण के साथ विवाह की है, जिनके घर की गई छापेमारी में पुलिस के द्वारा पूछे जाने वाले सवाल पुलिस का ब्राह्मणवादी मिजाज को स्पष्ट करता है. पुणे पुलिस ने वरवर राव की पुत्री से कहा, ‘‘आपके पति दलित हैं, इसलिए वो किसी परंपरा का पालन नहीं करते हैं लेकिन आप तो एक ब्राह्मण हैं. फिर आपने कोई गहना या सिंदुर क्यों नहीं लगाया है ? आपने एक पारंपरिक गृहिणी की तरह कपड़े क्यों नहीं पहने हैं ? क्या बेटी को भी पिता की तरह होना जरूरी है ?’’
वहीं पुणे पुलिस वरवर राव के दामाद के. सत्यनारायण से पूछा, ‘‘आपके घर में इतनी किताबें क्यों है ? क्या ये आप सारी किताबें पढ़ते हैं ? आप इतनी किताबें क्यों पढ़ते हैं ? आप मार्क्स और माओ के बारे में किताबें क्यों पढ़ते हैं ? आपके घर में फुले और अम्बेदकर की तस्वीरें हैं लेकिन देवी-देवताओं की क्यों नहीं ?’’
पुलिस के द्वारा पूछे गये उपरोक्त सवाल अनेक सवालों को जन्म देता है. पहला सवाल यह यही उठता है कि आखिर देश के किस संविधान की धारा में यह लिखा है कि किसी स्त्री से इस तरह के सवालों को पूछा जाना चाहिए ? इससे पुलिस का महिला विरोधी चेहरा विदीर्ण हो कर निकलता है. तो वहीं दलितों के घर किताबें होना, उसे पढ़ना भी पुलिस को हजम नहीं हो रहा है. यह ब्राह्मणवादी सरकार और उसकी पुलिस दलितों के पढ़ने को ही अवैध मानती है और उसके शिक्षा-दीक्षा को गैर-जरूरी. असल में पुलिस के द्वारा उठाये गये ये सवाल देश के शासक वर्ग की ही दलीलें हैं, जो देश की विशाल आबादी दलित, आदिवासियों, स्त्रियों को शिक्षित करने के विरूद्ध हैं. यही कारण है कि भाजपा के नेता बुद्धिजीवियों को गोली से उड़ाने का ने केवल समर्थन हीं करते हैं, वरन उनकी हत्या में अगुवाई भी करते हैं.
देश के प्रधानमंत्री मोदी, उसकी मातृसंस्था आरएसएस शिक्षा को छोटे से महज एक खास तबके तक ही सीमित रखना चाह रही है. इसके लिए वह पूरे होशोहवास में दलितों, आदिवासियों, स्त्रियों को शिक्षा से वंचित करने के लिए एक से एक कदम उठा रही है. आरक्षण की समाप्ति, जिसके कारण ये वंचित तबके एक हद तक शिक्षित हुए हैं, को पूरी तरह समाप्त करने के लिए शिक्षण संस्थानों को नियंत्रित कर रहे हैं.
एक शिक्षित नागरिक ही समृद्ध और सशक्त देश का निर्माण कर सकता है, कि न केवल बुनियादी अवधारणा बल्कि संविधान के द्वारा प्रदत्त एक बुनियादी अधिकार के विरूद्ध भाजपा और मोदी सरकार जिस प्रकार आक्रामक रूख अख्तियार किया है, वह देश को एक बार फिर हजार साल पीछे ले जाने की कवायद है, जहां शिक्षा को एक छोटे से तबके की जागीर बना दी जाये और विशाल बहुसंख्यक आबादी को गुलामी की जंजीर में जकड़कर उसका दास बनाया जा सके.
मोदी सरकार और उसके नेतागण देश भर में अवैज्ञानिक विचारों को यों ही नहीं परोसते हैं. कभी डार्विन के सिद्धांत को गलत बताते हुए कहते हैं कि मैंने कभी किसी बंदर को आदमी बनते नहीं देखा है, कि गंदे नाली से निकलने वाले दुर्गंध से चाय बनता है, कि पृथ्वी चपटी है और सूर्य उसका परिक्रमा करता है, आदि-आदि. उनका इसके पीछे एक पूरी सोची-समझी योजना है.
मोदी सरकार इस देश के सामने एक गंभीर बीमारी की तरह है, जिसका समय रहते उचित उपचार नहीं किया गया तो इस देश की विशाल आबादी अशिक्षित, रोगग्रस्त गुलाम होकर दुनिया के पैमाने पर अमानवीयता को धारण कर लेगी. मोदी सरकार, उसकी मातृसंस्था की अवैज्ञानिक अमानवीय धारणा, उसकी भ्रष्ट बर्बर हिंसक ब्राह्मणवादी साम्प्रदायिक पुलिस और उसके अमानवीयता को पूरी तरह बेनकाब करना आज बेहद जरूरी है.
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