प्रतीकात्मक तस्वीर
आज सुबह जब मैं पार्क में टहलने गया तो वहां मुझे अजीब नजारा देखने को मिला. एक तरफ बाबा राम देव के स्थानीय कैंप के तहत रोजाना योग करने वाले लोग तिरंगे ड्रेस में बैठकर स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे जिसमें ज्यादातर महिलाएं शामिल थीं. उसी के ठीक बगल पार्क के ही हिस्से में भगवा ध्वज गाड़ा गया था. ये वही ध्वज था जहां रोजाना आरएसएस के लोग अपनी शाखा लगाते हैं लेकिन ये ध्वज आज भी उसी तरह से वहां फहर रहा था. मेरे पास मोबाइल नहीं था लिहाजा मैं उसकी तस्वीर नहीं ले सकता था लेकिन मैंने दोनों कार्यक्रमों की तस्वीर लेने की कोशिश की. इसके तहत पार्क में ही घूम रहे एक बच्चे से उसे लेने और फिर ह्वाट्सएप कर देने की गुजारिश की. बच्चा तस्वीर लेने भी गया लेकिन संघ के गणवेशधारियों ने उसे लेने से मना कर दिया. जब उससे पूछा गया कि क्यों लेना चाहते हो तो उसने मेरी तरफ इशारा कर दिया.
कुछ देर बाद मैंने उस बच्चे से मोबाइल लेकर एक दूसरी तरफ से दोनों आयोजनों की तस्वीरें लीं और उन्हें ह्वाट्सएप कर देने के लिए कहा लेकिन पता नहीं क्या वजह रही कोई डर या फिर कोई और दूसरी वजह से उसने उन तस्वीरों को नहीं भेजा.
बहरहाल आज के दिन जब पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा है और देश भर में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया जा रहा है. तिरंगा फहराने के बाद अभी लाल किले से पीएम मोदी का भाषण होने जा रहा है. तब ऐसे मौके पर एक संगठन का जो खुद को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी कहता है, ये भगवा प्रेम कई सवाल खड़े करता है. क्या वो खुद को इस देश का नागरिक नहीं मानते ? या फिर बाकी नागरिकों से ऊपर हैं ? या उन्हें तिरंगे के प्रति अपने राष्ट्रप्रेम को जाहिर करने की जरूरत नहीं है ? या सचमुच में उन्हें तिरंगे से कोई लेना देना नहीं है ? और उसे अभी भी तिरस्कार की नजर से देखते हैं ? देश भर में मचे बवाल और कोर्ट के आदेश के बाद संघ ने भले ही अपने हेडक्वार्टर पर तिरंगा फहराना स्वीकार कर लिया हो लेकिन अभी तक उसकी शाखाओं में पुरानी परंपरा जारी है और उसे जानबूझ कर बनाए रखा गया है.
दरअसल आजादी के बाद जब तिरंगे को राष्ट्रध्वज के तौर पर स्वीकार करने की बात आयी तो संघ और हिंदू परिवारी संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया था. उन्होंने इसे तीन रंगों वाला होने के नाते अशुभ करार दिया था और कहा था कि हिंदू कभी भी इसको दिल से स्वीकार नहीं कर पाएंगे. यही वजह है कि संघ ने कभी भी तिरंगे को अपना झंडा माना ही नहीं. आज के दौर में तिरंगा बीजेपी और संघ के लिए राष्ट्रीय उन्माद खड़ा करने का साधन जरूर बन गया है लेकिन उनके दिलों में आज भी भगवा के प्रति ही असली प्रेम है और उसी को वो सर्वप्रमुख ध्वज मानते हैं.
दरअसल उनके लिए ये एक रणनीति का मामला है, जिसमें बाद में भगवा ध्वज से तिरंगे को विस्थापित कर दिया जाना है. संयोग से उसी योगा कार्यक्रम में एक महिला ने भगवा झंडे की महत्ता को भी ऱेखांकित कर दिया. उसका कहना था कि आरएसएस भगवा झंडे को अपना गुरू मानता है. ये सनातन झंडा है. लिहाजा उसे कभी नहीं खत्म किया जा सकता है. उसका कहना था कि गुरू की कृपा रहेगी तभी तो सारी चीजें ठीक होंगी. ये उस भगवा ध्वज को जायज ठहराने की अपने तरह का तर्क और कोशिश है.
लेकिन एक विधान, दो संविधान का नारा देने वाली और जम्मू-कश्मीर की भारत के साथ संवैधानिक व्यवस्था का विरोध करने वाली बीजेपी और संघ को अपने इस दोहरे चरित्र के बारे में जरूर लोगों को बताना चाहिए. आज 15 अगस्त को अगर वो तिरंगे की जगह भगवाध्वज फहरा रहे हैं तो ये क्या साबित कर रहा है ? इसमें जरूर उनको इस बात को बताना होगा कि वो किस झंडे को तरजीह देते हैं. इस बात में कोई शक नहीं कि अलग-अलग संगठनों और पार्टियों का अपना कोई प्रतीक या झंडा हो सकता है लेकिन जब बारी तिरंगे की आएगी तो सब उसके नीचे होंगे. लेकिन यहां क्या भगवाध्वज का स्थान तिरंगे से नीचे है ? और अगर ऐसा है तो फिर 15 अगस्त को भी संघ के लोगों की तरफ से उसे वो सम्मान क्यों नहीं मिल रहा है ? आज भी वो अपने भगवाध्वज को ही क्यों फहरा रहे हैं ?
- महेन्द्र मिश्र
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