जन-गण-मन अधिनायक जय हे
जय हे, जय हे, जय-जय हे
जय-जय, जय-जय, जय-जय, जय
जय-जय, जय-जय, जय-जय, जय
है-है, है-है, है-है-है
हें-हें, हें-हें, हें-हें-हें
हा-हा, ही-ही, हू-हू है
हे-है, हो-हौ, हं-हः है
हो-हो, हो-हो, हो-हो है
याहू-याहू, याहू-याहू, याहू है
चाहे मुझे कोई जंगली कहे.
– विष्णु नागर
विष्णु नागर ने हर साल ढर्रे से मनाये जाने वाले तथाकथित आजादी के नाम पर गाये जाने वाले राष्ट्रीय गीत की धज्जियां उकेर दिया है. इसके साथ उन्होंने साफ कर दिया है देश की विशाल आबादी के शोषणकारी हत्यारी राजसत्ता का स्वरुप.
आज जब देश की राजधानी के सड़कों पर देश के संविधान को जलाया जा रहा है और संविधान के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लग रहे हों और शासक उसे पकड़ तक न पाई हो, जबकि उसके पूरे विडियो रिकार्डिंग मौजूद है, तब यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि देश का इस संविधान को शासक भाजपा सरकार द्वारा कभी भी खत्म किया जा सकता है और मनुस्मृति को देश का संविधान घोषित किया जा सकता है.
देश को एक बार फिर मनुस्मृति की भयावहता को ढ़ोना पड़ सकता है, यही भाजपा के मोदी सरकार का स्पष्ट संदेश है. समूचे देश में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यक मुसलमानों सहित महिलाओं पर ढ़ाये जा रहे बर्बरता का प्रतीक बन गया है नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार.
बाबा नागार्जुन की कविता
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है ?
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है ?
सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है,
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है,
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है,
कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है,
जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला,
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है,
उसी की जनवरी छब्बीस,
उसी का पंद्रह अगस्त है !
बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्त है,
कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है,
कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्त है,
खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा,
मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्त है,
सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्त है,
उसकी है जनवरी, उसी का अगस्त है !
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है,
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है,
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है,
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है,
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है,
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो,
मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है !
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो,
मजदूर की छाती में कै ठो हाड़ है !
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो,
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है !
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो,
बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है !
देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो,
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है !
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है,
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है,
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है,
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है,
महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है,
गरीबों की बस्ती में उखाड़ है, पछाड़ है,
धत तेरी, धत तेरी, कुच्छो नहीं! कुच्छो नहीं,
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है,
ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं,
पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है,
कुच्छो नहीं, कुच्छो नहीं,
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है,
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है !!!!
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है !!!!
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है !!!!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है,
मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्त है,
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है ।
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