Home गेस्ट ब्लॉग साधु-सन्यासियों से क्यों घबराता है आरएसएस

साधु-सन्यासियों से क्यों घबराता है आरएसएस

12 second read
Comments Off on साधु-सन्यासियों से क्यों घबराता है आरएसएस
0
778

[ हिन्दुत्ववादी संगठनों का, जो अपने आप को हिन्दू धर्म के ठेकेदार के रूप में प्रस्तुत करते हैं, को हिन्दू धर्म के सिद्धांतों या भावना से क्या लेना देना है ? बल्कि कई मायनों में, जैसे हिंसा को गौरवान्वित कर, तो ये हिन्दू धर्म की छवि को बिगाड़ने का काम कर रहे हैं. हिन्दू के नाम पर भड़काये जा रहे हिंसा की यह आग मुसलमानों के खिलाफ शुरू किया गया. फिर इसकी लपटें बढ़कर दलितों और महिलाओं को जलाने लगा. अब इसकी लपटें बढ़कर हिन्दुओं के ही साधुओं और सन्यासियों को लपेट रहा है. इसी मुद्दों पर विश्लेषण कर रहे हैं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय ]

साधु-सन्यासियों से क्यों घबराता है आरएसएस

86 वर्षीय स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद गंगा संरक्षण हेतु एक अधिनियम बनाने की मांग को लेकर 22 जून 2018 से हरिद्वार में अनशन पर बैठे. केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास व गंगा संरक्षण मंत्रालय की तरफ से कोई भी स्वामी सानंद से मिलने नहीं आया. हरिद्वार के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में स्वामी सानंद को भर्ती करने के महीने भर बाद भी उनका अनशन जारी रहा.

गंगोत्री से उत्तरकाशी के 175 किलोमीेटर की लम्बाई में भागीरथी नदी की अविरलता बनी रही, इसके लिए इन्होंने पहला अनशन 2008 में किया. इनके अनशन की वजह से सरकार ने 380 मेगावाट की भैरोंघाटी व 480 मेगावाट की पाला-मनेरी जल विद्युत परियोजनाएं रद्द की. 2009 में जब इन्हें महसूस हुआ कि सरकार वादा खिलाफी कर रही है तो इन्होंने पुनः अनशन शुरू किया व लोहारीनाग-पाला परियोजना को भी रुकवाया.

2011 में सन्यासी बनने से पहले स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद प्रोफेसर गुरू दास अग्रवाल के रूप में जाने जाते थे. वे भारतीय प्रोद्यौगिकी संस्थान, कानपुर में अध्यापन व शोध कार्य कर चुके हैं व केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य-सचिव रह चुके हैं.

उनका मानना है कि जैसे पहले गंगा एक्शन प्लान के अंतर्गत अरबों रूपए खर्च करने के बावजूद गंगा की स्थिति में कोई सुधार नहीं बल्कि बिगाड़ ही हुआ है, उसी तरह राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण व 2020 तक स्वच्छ गंगा मिशन के तहत भी अरबों रूपए खर्च हो जाएंगे और हमारे सामने पछताने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं बचेगा. नरेन्द्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद जोर-शोर से ’नमामि गंगे’ परियोजना शुरू करने के बाद अभी तक जमीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं हुआ है.

2011 में देहरादून में एक 35 वर्षीय स्वामी निगमानंद ने गंगा में अवैध खनन को रोकने की मांग को लेकर अपने अनशन के 115 वें दिन हिमालयन अस्पताल में दम तोड़ दिया था. उस समय उत्तराखण्ड में भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्तारूढ़ थी. शक यह है कि संघ परिवार के नजदीक माने जाने वाले एक खनन माफिया की मिलीभगत से स्वामी निगमानंद को हरिद्वार जिला अस्पताल में अनशन के दौरान जहर का इंजेक्शन लगवा दिया गया. अन्यथा इतने लम्बे अनशन के दौरान सरकार की ओर से कोई वार्ता के लिए क्यों नहीं गया ?

अब 79 वर्षीय स्वामी अग्निवेश पर झारखण्ड में भारतीय जनता युवा मोर्चा व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने हमला किया, जिसमें लात-घूसों से पिटाई के साथ गालियां भी दी गई. स्वामी अग्निवेश आर्य समाज को मानने वाले हैं जिसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने चार वेदों से लिए गए सिद्धांतों के आधार पर की थी.

आर्य समाज के मूल दस सिद्धांतों में सत्य को स्वीकार करना व असत्य को अस्वीकार करना, सही व गलत पर विचार कर सभी कर्मों को धर्म के आधार पर तय करना, हमारा उद्देश्य सभी की भौतिक, अध्यात्मिक व सामाजिक भलाई होना, हमारा व्यवहार प्रेम व न्याय पर आधारित होना व ज्ञान को बढ़ावा देना और अज्ञान को दूर करना बताए गए हैं.

स्वामी अग्निवेश ने अपने जीवन में हमेशा अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया है. बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने, सती प्रथा के खिलाफ दिल्ली से देवराला 18 दिनों की पदयात्रा, दलितों को लेकर उदयपुर के नाथद्वारा मंदिर में प्रवेश हेतु आंदोलन, भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान चलाने, शराबबंदी के लिए आंदोलन करने से लेकर सर्व धर्म सम्भाव व विश्व संसद जैसे विचारों को लेकर सृजनात्मक योगदान भी दिया है.

स्वामी अग्निवेश के सारे काम न सिर्फ हिन्दू धर्म की सुधारवादी धारा आर्य समाज के सिद्धांतों के अनुरूप है बल्कि मानवता का संदेश लिए हुए भी हैं. एक आदर्श हिन्दू साधू को कैसा होना चाहिए, इसका स्वामी अग्निवेश अच्छा उदाहरण हैंं. उनके कामों के लिए सिर्फ देश के अंदर ही नहीं विदेशों में भी स्वामी जी को सम्मान मिला है. संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके काम को मान्यता दी है. यानी उनकी वजह से हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा बढ़ी ही है खासकर इसलिए भी क्योंकि उनके काम करने का तरीका गांधी के सिद्धांतों से प्रेरित रहा है. उन्होंने वैदिक समाजवाद नामक पुस्तक भी लिखी है.

स्वामी सानंद व अग्निवेश दोनों भगवा वस्त्र धारण करते हैं, सत्य के लिए कोई भी खतरा उठा सकते हैं लेकिन अहिंसा के मार्ग के लिए प्रतिबद्ध हैं, ब्रह्मचारी हैं, शाकाहारी हैं व विद्वान हैं. दोनों ने सुविधाभोगी जीवन का त्याग किया है. प्रो. जी.डी. अग्रवाल ने नौकरी छोड़ी तो स्वामी अग्निवेश ने विधायक व मंत्री पद छोड़ दिया. दोनों की हिन्दू धर्म में पूरी निष्ठा है और उसी से अपने जीवन व कर्म की प्रेरणा प्राप्त करते हैं. स्वामी निगमानंद ने तो कम उम्र में अपना बलिदान ही दे दिया. हिन्दू धर्म के प्रति उनकी आस्था पर भी कोई सवाल नहीं खडा किया जा सकता.

फिर सवाल उठता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा मानने वाले हिन्दुत्वादियों को ये क्यों नहीं पसंद आते ? बल्कि तथाकथित हिन्दुत्वादी इस हिन्दू साधुओं से इतना क्यों घबराते हैं कि उन्हें पूरी तरह से अनदेखा कर देते हैं या इनके खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल करते हैं ? स्वामी निगमानंद की तो व्यवसायिक-आपराधिक तत्वों के इशारे पर हत्या ही कर दी गई.

स्वामी निगमानंद, सानंद व अग्निवेश हिन्दू धर्म के सिद्धांतों को मानने वाले साधू रहे हैं. ये सिर्फ हिन्दू होने का ढोंग कर अपने राजनीतिक या व्यवसायिक लाभ के लिए उसका इस्तेमाल करने वाले लोग नहीं रहे हैं.

स्वामी अग्निवेश व सानंद जैसे साधू मुसलमानों से नफरत नहीं करते, न उनसे घबराते हैं और न ही ऐसे उत्तेजनापूर्ण भाषण देते हैं जिससे कोई भीड़ हिंसा के लिए प्रेरित हो जाए. ये समाज में शांति, सद्भाव चाहने वाले साधू हैं न कि तनाव, द्वेष व भेदभाव को बढ़ावा देने वाले साधू हैं न कि तनाव, द्वेष व भेदभाव को बढ़ावा देने वाले. ये इंसान के जाति, धर्म से उसकी पहचान नहीं करते बल्कि उनके लिए मानवता सर्वोपरि है. अपने विरोधी से भी इनका व्यवहार सौम्य होता है.

गौर से देखा जाए तो हिन्दुत्ववादी संगठनों का, जो अपने आप को हिन्दू धर्म के ठेकेदार के रूप में प्रस्तुत करते हैं, का हिन्दू धर्म के सिद्धांतों या भावना से क्या लेना देना है ? बल्कि कई मायनों में, जैसे हिंसा को गौरवान्वित कर, तो ये हिन्दू धर्म की छवि को बिगाड़ने का काम कर रहे हैं.

व्यापक हिन्दू समाज को तय करना है कि वह स्वामी निगमानंद, सानंद व अग्निवेश जैसे निष्ठावान, कर्मयोगी, आदर्श के प्रतीक साधुओं को अपने धर्म के प्रतिनिधि मानेंगे अथवा गौ रक्षा के नाम पर कानून को अपने हाथ में लेकर मुसलमानों को पीट-पीट कर मार डलने वाले लोगों, उनको संरक्षण देने वाले हिन्दुत्ववादी संगठनों और आरएसएस या भाजपा के शीर्ष नेताओं को ?

Read Also –

लिंचिंग : घृणा की कीचड़ से पैदा हिंसा अपराध नहीं होती ?
धार्मिक नशे की उन्माद में मरता देश
योग दिवस, प्रधानमंत्री और पहाड़

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]
  • हिंदू राष्ट्र में हम कहां ?

    आपके हिंदू राष्ट्र में चमार कहां रहेंगे ? हमारी जूती के नीचे, मरी गायों के पीछे, अकेला में…
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग
Comments are closed.

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…