भारत की राजनीति जितनी उलझी हुई है, कालेधन के साथ यहां के राजनीतिज्ञों व राजनीतिक दलों का सम्बन्ध उतना ही उलझा हुआ है. भारत का कोई भी राजनीतिक दल और कोई भी नेता बिना कालेधन के सहारे अपनी सियासी विजय गाथा लिख ही नहीं सकता. यही वजह है कि कोई भी दल जब सत्ता में आता है तो कालाधन उसके शीर्ष सूची में होता है. हलांकि हमाम में सभी नंगे हैं पर अपनी कमीज साफ बताने के फेर में हर कोई इसमें उलझा रहता है. अभी जो आंकड़े आये हैं उस हिसाब से स्विस बैंकों में कालेधन में 50 प्रतिशत की वृद्धि आई है. इस पर उठ रहे सवालों के जवाब में वित्तमंत्री पीयूष गोयल का घिसा-पिटा जवाब है, ‘जनवरी, 2018 से 31 दिसम्बर, 2019 तक उन्हें स्विस बैंक के लेन-देनप का आंकड़ा उपलब्ध हो जायेगा.’
भारत में चुनाव जीतने का बीज मंत्र स्विस बैंक में है, जिसका रिश्ता कालेधन से जुड़ता है. वर्ष, 2014 में भाजपा ने प्रचार पर 463 करोड़ और कांग्रेस ने 346 करोड़ रूपये खर्च किये थे जबकि प्रचार के अलावा पूरे चुनाव में भाजपा का खर्चा तकरीबन 781 करोड़ रूपये और कांग्रेस का 571 करोड़ रूपये के आसपास था. अगले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों और निर्वाचन आयोग सबके खर्चों को जोड़ दिया जाए तो एक खरब से अधिक रूपया खर्च होगा. चुनाव में बेहिसाब खर्च करनेवाला रूपया कोई अपनी ईमानदारी से अर्जित कर नहीं ला सकता. स्विस बैंक इन्हीं दिनों काम में आता है.
तकरीबन 30 साल पहले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इसी स्विस बैंक का इस्तेमाल कर पछाड़ा था. 1989 ई. में विश्वनाथ प्रताप सिंह बोफोर्स तोप की खरीद में किये गये घोटाले के मुद्दे के साथ जनता के सामने आये थे. उन्होंने दावा किया था कि बोफोर्स तोप खरीद में इतना बड़ा घोटाला हुआ है कि दलालों की विदाई में 64 करोड़ रूपये दिये गये हैं. ये रूपये राजीव गांधी और उनके रिश्तेदारों के हाथ लगे.
अपने भाषण के क्रम में विश्वनाथ प्रताप सिंह अपने कुर्ते की बगलवाली जेब से एक कागज निकालकर दिखाते थे और कहते थे कि इसमें 64 करोड़ रूपये की दलाली लेनेवालों के नाम दर्ज हैं. सरकार बनते ही इस घोटाले का सच सबके सामने रखूंगा और सबों को सजा दिलवाऊंगा. स्विस बैंक के इस बीजमंत्र से वे सरकार बनाने में कामयाब भी हो गये. उनकी सरकार 11 महीने चली भी किन्तु इस दरम्यान न तो स्विस बैंक से कोई कागज आया और न ही किसी पर मुकदमा चला.
इसके ठीक 25 वर्ष बाद 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने में भी स्विस बैंक का बीजमंत्र काम आया. चुनाव प्रचार के दौरान वे जोर देकर कहते थे कि उनकी सरकार स्विस बैंक में जमा कालाधन वापस लायेगी. कालाधन जमा करने वालों के नाम का खुलासा भी करेगी. इतना ही नहीं वे हिसाब लगाकर कहते थे कि कालेधन को लाकर प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख रूपया जमा करेंगे. इस बूते उन्होंने बहुमत से अपनी सरकार बनाई. सुप्रीम कोर्ट ने 627 खाताधारकों के नाम साझा करने के लिए कालेधन की जांच करनेवाली एसआईटी टीम को आदेश दिये गये, पर आजतक कोई प्रगति नहीं हुई. बाद में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने साफ किया कि वह तो चुनावी जुमला था. स्विटजरलैंड के सेन्ट्रल बैंक के मुताबिक सभी विदेशी ग्राहकों का पैसा वर्ष 2017 में 3 फीसदी से बढ़कर 1046 लाख करोड़ स्विस फ्रैंक हो गया जबकि भारतीय के जमा धन में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है. यह बढ़कर 1.01 अरब स्विस फ्रैंक यानी 7 हजार करोड़ रूपये हो गया है.
देश में 2019 में होनेवाले चुनाव में एक बार फिर स्विस बैंक का बीजमंत्र बोतल के जिन्न की मानिंद निकलकर बाहर आ गया है. कालाधन भेजनेवाले देशों में चीन, रूस, मैक्सिको, भारत और मलेशिया है. इनमें चीन शीर्ष पर और मलेशिया निचले पायदान पर है. एक आंकड़े के मुताबिक पिछले 10 सालों में विकासशील देशों से बाहर जाने वाला कालाधन इन देशों को मिलनेवाली आर्थिक मदद तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भी ज्यादा है. कालाधन वालों के लिए स्विटरलैंड सबसे मुफीद जगह है क्योंकि बीते 300 सालों में स्विटरलैंड खातों की गोपनीयता का पालन कर रहा है. यदि वहां के बैंकर अपने ग्राहक से जुड़ी जानकारी किसी को देते हैं तो वह अपराध होता है.
भारत में कालाधन चुनावी मुद्दा भले बनता हो परन्तु उसके बिना चुनाव प्रचार भी संभव नहीं है. इस हकीकत से चुनावी जंग फतह करने की चाहत रखनेवाली हर पार्टी वाकिफ है इसलिए चुनाव के दौरान यह मुद्दा तो बनता है पर सत्ता संभालते ही हर दल के लिए यह जुमला बन जाता है. जनता बेचारी ठगा से मुंह लेकर रह जाती है. किसी भी दल के चाल-चरित्र में कोई फर्क नहीं होता है. सभी दल लूट, छूट, भोग और शोषण पर टिकी वर्तमान सत्ता-व्यवस्था के पोषक हैं. उपाय तो आम जन के पास है. वर्तमान व्यवस्था को धता बताते हुए नई समाजवादी व्यवस्था के निर्माण का हमसफर बनकर. फिलहाल तो यह देखना दिलचस्प होगा कि अगले लोकसभा चुनाव में यह बीज मंत्र किसका ढाल और किसका हथियार बनता है.
- संजय श्याम
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