काले धन की लहर पर सवार भाजपा की मोदी सरकार पूरी तरह फर्जी निकली. 2014 के लोकसभा के चुनाव में देश की सत्ता पर विराजमान मोदी सरकार देश की हर समस्या को लेकर विफल साबित हुई है. महिलाओं की आम समस्याओं से लेकर विदेश में जमा हुये काले धन तक के तमाम मुद्दों पर विफल मोदी सरकार जब अपनी विफलताओं का ठिकरा देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और कांग्रेस पर फोड़ते हैं तब यही लगता है कि एक देश का एक गैर-जिम्मेदार व्यक्ति बोल रहा है. कहना नहीं होगा कि सत्ता पाने के एक साल तक हनीमून दिवस मनाने और पूरे साढ़े चार साल तक देश की जनता के पैसों से विदेशों में सैर-सपाटे करने के बाद देश खुद को एक भयानक दलदल में पा रही है, तो इसका पूरा श्रेय गैर-जिम्मेदार प्रधानमंत्री मोदी और उसके मातृसंगठन आरएसएस को ही जाता है.
देश को एक भयानक झंझावात में धकेल चुके मोदी ने देश की किसी भी समस्याओं को लिए अपने चरि-परिचित अंदाज में नेहरू-इंदिरा-कांग्रेस को जिम्मेदार बताने से बाज नहीं आ रहे हैं. इससे भी भयानक तथ्य जो उभर कर सामने आ रहे हैं वह है संविधान को ही गलत बताना और उसके रद्दी की टोकरी में फेंक डालने की अपनी मुहिम को व्याख्यायित करना. निःसंदेह हर देश का संविधान काल के एक विशेष अंतराल में लिखा जाता है जब देश पूरी तरह संक्रमण स्थिति में होता है. जनता आन्दोलित रहती है और जननेता एक नई व्यवस्था की नींव डाल रहे होते हैं, जिसे जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त होता है. इस दरमियान जननेता इतने ईमानदार और भविष्य के प्रति इतने आश्वस्त होते हैं कि वे अपने बनाये इस संविधान में ऐसे रास्ते छोड़ जाते हैं जिससे अगली पीढ़ी इसमें न्यायोचित विकास कर सके. परन्तु वे अगली पीढ़ी के प्रति इतने ज्यादा आश्वस्त हो जाते हैं कि वे यह नहीं समझ पाते हैं कि जिस दुश्मनों को वे पीछे धकेल दिये होते हैं और गद्दारों की जिस फसलों को नस्तेनाबूद कर चुके होते हैं, वह फसल फिर से हरी हो सकती है और वह उनके कुर्बानियों पर अपने महल सजाने लग सकती है.
वक्त का पहिया पीछे चलने लगता है. देश और उसकी जनता फिर से पुराने समय में पहुंच जाती है, जो उस वक्त के दौर से भी ज्यादा भयानक साबित होने लगता है. आज हमारे देश की वस्तुस्थिति बिल्कुल ही इसी मोड़ पर आ खड़ी हुई है, जब देश की आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों के खून से सने हाथ वाले गद्दारों की नई फसलें लहलहा उठी है और देश की सत्ता पर काबिज होकर देश की जनता को ही अपना दुश्मन मान चुकी है. 2014 में देश की सत्ता पर काबिज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पीछे घुमते वक्त के पहिया का प्रतिनिधी है, जिसका उद्देश्य देश में एक बार फिर देश की विशाल जनता को जमींदार, दलाल पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों की गुलामी में धकेल देना है और उसके खून पर जमींदारों, दलाल पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों का विशालकाया महल खड़ा करना है.
देश में आज माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी की नई फसलें पककर तैयार खड़ी है, जो देश की जनता का धन लूटकर से विदेशों में गुलछर्रें उड़ा रही है. एक वक्त था जब बड़े से बड़े डकैतों के लिए भी बैंक को लूटना मुश्किल माना जाता था और वह उसका सपना होता था. अपनी जान हथेली पर रखकर बैंकों से कुछ लाख रूपये चुराने वाले डकैतों को समाज में दहशत की नजर से देखा जाता है परन्तु आज हजारों-लाखों करोड़ रूपये बैंकों से बड़े ही आराम से चुरा कर विदेशों में ऐशोराम की जिन्दगी जी रहे लोगों पर डाकुओं की वह पुरानी पीढ़ी जरूर रश्क कर रही होगीद और अपने भाग्य पर रो रही होंगी.
स्विटजरलैंड में काले धन की जमाखोरी पर हाय-तौबा मचाने वाली भाजपा का रोना-धोना मगरमच्छी आंसू साबित हुआ है. नोटबंदी के नाम पर कालेधन वालों के खिलाफ कार्रवाई की वजह से स्विटजरलैंड में कालेधन वालों की सम्पत्ति में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हो गई है. बेटी-बचाओं के नारों पर कोहराम मचाने वाले भाजपा के नेता, कार्यकर्त्ता यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी भी देश में बलात्कारियों और हत्यारों का सबसे बड़ा संरक्षक साबित हो गया है. बेरोजगारों और मंहगाई के नाम पर सड़कों पर आये दिन धरना देने वाले भाजपा के लिए आज बेरोजगारी और मंहगाई कोई मसला ही नहीं रह गया है बल्कि बेरोजगारी और मंहगाई को वरदान बताया जा रहा है. किसानों की आत्महत्या एक मजाक की वस्तु बन कर रह गई है.
प्रधानमंत्री मोदी अपनी नाकामियों को स्वीकार करने के बजाय देश की जनता को भ्रमित करने के लिए नये शिगुफे छोड़ रहे हैं. गड़े मुर्दे उखाड़ कर देश की जनता का ध्यान उसकी मूल समस्याओं से भटकाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए वह देश की जनता का लाखों करोड़ रूपया मुख्यधारा की मीडिया पर पानी की तरह से बहा रहा है, ताकि यह जरखरीद मीडिया देश की जनता का ध्यान उसकी अपनी समस्या से हटा कर दूसरी दिशा में भटका सके. इसके लिए वह नये-नये मुद्दे की तालाश में अपना और देश की जनता का वक्त जाया कर रहा है. गौ-रक्षा, गो-हत्या, गोबर, औरंगजेब, पाकिस्तान, सर्जिकिल स्ट्राईक, हिन्दु-मुस्लिम, योग, आपातकाल आदि जैसे गैर-जरूरी और फर्जी मुद्दों पर बहस कर और करा रहा है, जिसका जनता की मौजूदा समस्या से कोई लेना-देना नहीं है.
ऐसे में यह सवाल समीचीन हो गया है कि क्या 2014 में देश की 31 प्रतिशत जनता ने एक गद्दार का चयन कर अपना प्रधानमंत्री बना लिया था ? क्या देश की जनता ने हमारे स्वतंत्रता-सेनानियों के भरोसे को तोड़ा है ? क्या हमारे स्वतंत्रता-सेनानी हम पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर लिये थे, जिस पर हम खड़े न उतर सके ? अगर इन सवालों का जवाब ‘हां’ में है, तो हालात बेहद गंभीर है.
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