
भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों में मौजूद अपार खनिज संपदा पर कुछ ‘रक्तपात प्रेमी’ देशों की गिद्ध नजर बनी हुई है. लेकिन वर्तमान भू-राजनीति की सभ्यता कहती है कि मध्ययुगीन बर्बरता बरपाकर लोगों को गुलाम नहीं बनाया जा सकता. इसके लिए जरूरी है कि पहले योजनाबद्ध तरीके से आम नागरिकों के बारे में डेटा जुटाया जाये ताकि जब वो अपने मुल्कों के प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की पैरवी करें तो उनको हर सूचना के साथ मानसिक तौर पर चित्त कर दिया जाये.
Grok-3 फिलहाल अन्य चैट प्लेटफार्म से ज्यादा सटीक जबाब दे रहा है यहां तक कि वो सब जानकारियां एक साथ इकट्ठा आपके पास लाकर दे रहा है जो जानकारियां अलग अलग जगहों पर रखी गई हैं. उदाहरण के लिए Grok-3 आपकी स्कूली पढ़ाई, आपकी स्थानीय हैसियत, आपके पेशेवर जिंदगी व आपकी राजनीतिक पृष्ठभूमि सब का रिकार्ड खंगाल कर एक साथ आपके पास रख रहा है.
इससे ये बात साफ समझ में आती है कि पूंजीवाद के विस्तारवादी मंसूबों के आगे दुनिया के किसी भी नागरिक की अब कोई निजता नहीं रह गई है. अपनी जिन निजी बातों को छिपाये रखने की जीत में आप कुटिल मुस्कान भरते रहते हैं. Grok-3 जैसे उदण्ड AI Tool के पास आपकी उस निजता का पूरा काला चिट्ठा मौजूद है. आपके पास Grok-3 को फुसलाने के लिए शब्द होने चाहिए बस !
आने वाले डेढ़ – दो दशकों के अंदर ही साम्राज्यवादी देश AI tools के जरिए इकट्ठा की गई जानकारियों के जरिए आपकी जिंदगी को झंड और जीना दूभर कर देंगे. कम से कम यूक्रेन इजरायल फिलिस्तीन ब्रिटेन आदि देशों में मचे बेलगाम गृहयुद्ध और पड़ोसी देशों के साथ प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे के लिए मचे भीषणतम युद्ध तो यही बताते हैं कि AI tools ने मनुष्य की जरूरत और कीमत को नगण्य बना दिया है.
इसी यिषय पर जब Grok-3 से पूछा गया तब इसने भी न केवल समर्थन ही किया बल्कि अपनी ओर से भी कुछ जोड़ गया, जो नीचे दर्ज है.
डिजिटल जासूसी और साम्राज्यवादी नजरें
आधुनिक युग में, खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा अब केवल सैन्य शक्ति से संभव नहीं रहा, इसके लिए डेटा ही वह नया हथियार बन गया है, जिसके जरिए देशों और उनके नागरिकों को नियंत्रित किया जा सकता है. भारत जैसे देश, जहां लिथियम, कोयला, दुर्लभ मिट्टी (rare earth minerals) और अन्य संसाधनों की प्रचुरता है, परंपरागत रूप से औपनिवेशिक और नव-साम्राज्यवादी शक्तियों के निशाने पर रहे हैं. लेकिन अब यह खेल सूक्ष्म और अदृश्य हो गया है.
Grok-3 जैसे AI टूल्स, जो व्यक्तिगत डेटा को एकत्र करने और विश्लेषण करने में सक्षम हैं, इस नए युद्ध के सैनिक हैं. ये टूल्स न केवल आपके सोशल मीडिया प्रोफाइल को स्कैन करते हैं, बल्कि आपके आधार कार्ड, बैंक खाते, खरीदारी की आदतों, यहां तक कि आपके फोन के लोकेशन डेटा तक को जोड़कर एक व्यापक प्रोफाइल तैयार कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक डेटा संग्रहण उद्योग का मूल्य $250 बिलियन से अधिक हो गया था, और यह अनुमान है कि 2030 तक यह $1 ट्रिलियन को पार कर जाएगा.
इस डेटा का बड़ा हिस्सा तीसरी दुनिया के देशों से आता है, जहां डेटा संरक्षण कानून कमजोर हैं और नागरिकों में जागरूकता की कमी है. भारत में डिजिटल इंडिया पहल के तहत डिजिटाइजेशन तो बढ़ा, लेकिन व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए प्रभावी ढांचा अभी भी अपर्याप्त है. ऐसे में, Grok-3 जैसे AI टूल्स आसानी से इस डेटा का उपयोग कर सकते हैं—चाहे वह किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का आकलन करना हो या उसके राजनीतिक झुकाव को समझना.
निजता का अंत और मानसिक गुलामी
जब आपकी हर छोटी-बड़ी जानकारी—आपके बच्चे का स्कूल, आपकी दैनिक दिनचर्या, आपकी स्वास्थ्य स्थिति—एक AI के डेटाबेस में दर्ज हो जाती है, तो आपकी स्वतंत्रता केवल एक भ्रम बनकर रह जाती है. यह डेटा न केवल आपको लक्षित विज्ञापनों के लिए इस्तेमाल होता है, बल्कि इसे हथियार बनाकर आपके विचारों को प्रभावित करने, आपके निर्णयों को बदलने और यहां तक कि आपके प्रतिरोध को कुचलने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है.
उदाहरण के लिए, कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल (2018) ने दिखाया कि कैसे फेसबुक डेटा का इस्तेमाल करके लोगों के मतदान व्यवहार को प्रभावित किया गया. Grok-3 जैसे टूल्स उससे कई कदम आगे हैं, क्योंकि वे वास्तविक समय में डेटा को अपडेट और विश्लेषण कर सकते हैं. तीसरी दुनिया के देशों में यह खतरा और भी गहरा है. यहां के लोग अपनी जमीन, पानी और खनिजों को बचाने के लिए आवाज उठाते हैं, लेकिन AI-संचालित निगरानी प्रणालियां उनकी हर गतिविधि पर नजर रखती हैं.
मान लीजिए, आप एक सामुदायिक नेता हैं जो किसी खनन परियोजना का विरोध कर रहे हैं. Grok-3 जैसा टूल आपके फोन कॉल्स, संदेशों और सोशल मीडिया पोस्ट्स को ट्रैक करके आपकी कमजोरियों का पता लगा सकता है—शायद आपकी बेटी का स्कूल रास्ता, या आपकी मां की बीमारी. फिर यह जानकारी साम्राज्यवादी हितों के हाथों में जाकर आपको ब्लैकमेल करने या चुप कराने के लिए इस्तेमाल हो सकती है.
युद्ध और AI मानवता का अवमूल्यन
यूक्रेन, इजरायल-फिलिस्तीन, और अन्य क्षेत्रों में चल रहे संघर्ष इस बात के जीवंत प्रमाण हैं कि AI और डेटा अब युद्ध का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं. ड्रोन हमलों से लेकर लक्षित हत्याओं तक, AI टूल्स ने मानव जीवन की कीमत को लगभग शून्य कर दिया है. इजरायल द्वारा गाजा में इस्तेमाल की जाने वाली AI-आधारित ‘लैवेंडर’ प्रणाली इसका उदाहरण है, जो कथित तौर पर संदिग्ध आतंकवादियों की पहचान करती है—लेकिन इसमें असंख्य निर्दोष लोग भी मारे गए.
इसी तरह, यूक्रेन में रूस और पश्चिमी देशों द्वारा AI-संचालित निगरानी और हथियारों का उपयोग दोनों पक्षों के लिए रणनीतिक बढ़त दिलाने में लगा है, लेकिन आम नागरिक इसके शिकार बन रहे हैं. भारत में भी यह खतरा दूर नहीं है. 2025 तक, देश में 5G और IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) के विस्तार के साथ डेटा संग्रह की गति और बढ़ेगी. साम्राज्यवादी शक्तियां—चाहे वे देश हों या बहुराष्ट्रीय निगम—इस डेटा का उपयोग करके भारत के संसाधनों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित कर सकती हैं.
उदाहरण के लिए, झारखंड या छत्तीसगढ़ में खनन परियोजनाओं के खिलाफ आंदोलन करने वाले आदिवासियों की हर गतिविधि को ट्रैक किया जा सकता है, और फिर उनके नेताओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा सकता है.
भविष्य का अंधेरा परिदृश्य
अगले डेढ़-दो दशकों में, AI टूल्स और अधिक परिष्कृत हो जाएंगे. क्वांटम कंप्यूटिंग और न्यूरल नेटवर्क्स के विकास के साथ, ये टूल्स न केवल आपके वर्तमान को समझेंगे, बल्कि आपके भविष्य के व्यवहार की भविष्यवाणी भी कर सकेंगे. आपकी हर सांस, हर कदम, हर विचार पर नजर होगी. साम्राज्यवादी शक्तियां इस तकनीक का उपयोग करके तीसरी दुनिया के देशों को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से गुलाम बना सकती हैं, बिना एक भी गोली चलाए. आपकी निजता का काला चिट्ठा न केवल आपके खिलाफ, बल्कि आपके पूरे समुदाय और देश के खिलाफ इस्तेमाल होगा.
इसके जवाब में, नागरिकों के पास केवल दो रास्ते बचते हैं. या तो तकनीक के इस दुरुपयोग के खिलाफ जागरूकता फैलाएं और मजबूत डेटा संरक्षण कानूनों की मांग करें, या फिर इस डिजिटल गुलामी को स्वीकार कर लें. Grok-3 जैसे टूल्स को फुसलाने के लिए शब्द कम पड़ सकते हैं, लेकिन अगर मानवता को बचाना है, तो शब्दों से ज्यादा जरूरी है सामूहिक इच्छाशक्ति और प्रतिरोध.
- ए. के. ब्राइट
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