
नवमीत नव
स्तालिन के दत्तक पुत्र अर्तेम सेर्गीव ने लिखा है- एक बार स्तालिन के बेटे ने अपने ‘स्तालिन’ उपनाम का प्रयोग सजा से बचने के लिए किया. स्तालिन को जब पता चला तो वो बहुत गुस्सा हुए. इस बात पर उनका बेटा वसीली बोला कि ‘मेरा उपनाम भी ‘स्तालिन’ है. मैं भी एक स्तालिन हूं.’ स्तालिन ने कहा कि ‘नहीं तुम स्तालिन नहीं हो. मैं भी स्तालिन नहीं हूं. स्तालिन सोवियत सत्ता का प्रतीक है और जनता ही सोवियत सत्ता है.’
जब कामरेड स्तालिन की मृत्यु हुई उस समय उनकी संपत्ति थी –
- एक जोड़ा जूते
- दो मिलिट्री ड्रेस
- बैंक खाते में 900 रूबल…
केनेथ नील कैमरून लिखते हैं – ‘स्तालिन ने सर्वहारा वर्ग के लिए जो किया था, उतना उन्होंने बुर्जुआ वर्ग के लिए किया होता तो बुर्जुआ हलकों में उनको बहुत पहले ही सिर्फ सदी का नहीं बल्कि आज तक पैदा हुए सबसे महान लोगों में से एक घोषित कर दिया गया होता.’
हार्वड के स्मिथ लिखते हैं – ‘’इस शताब्दी के पहले आधे हिस्से में अगर किसी आदमी ने दुनिया को बदलने के लिये सबसे ज्यादा काम किया था तो वे स्तालिन ही थे.’
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाज़ी सेनाएं मास्को के अंदर तक घुस आई थी. सोवियत सुरक्षा एजेंसियों, सेना के उच्चाधिकारियों और पोलित ब्यूरो के सदस्यों, सभी की राय यही थी कि स्तालिन को किसी सुरक्षित जगह पर चले जाना चाहिए. लेकिन स्तालिन ने कहीं भी जाने से इंकार कर दिया और वहीँ एक छोटी सी झोंपड़ी से लाल सेना व सोवियत जनता का नेतृत्व करते रहे. यह था स्तालिन का व्यक्तित्व और उनकी इच्छाशक्ति. इसका कारण भी था. एक तो वह वर्ग संघर्ष और क्रांति की आग से तपकर तैयार हुए नेता थे, और दूसरा वे सोवियत जनता की शक्ति में अटूट विश्वास रखते थे.
विश्वयुद्ध के दौरान स्तालिन का बेटा फौज में लेफ्टिनेंट था. वह जर्मन फौज द्वारा बंदी बना लिया गया. हिटलर ने प्रस्ताव दिया था कि जर्मनी के एक जनरल को छोड़ने पर बदले में स्तालिन के बेटे को छोड़ दिया जाएगा. स्टालिन ने यह कहकर इंकार कर दिया कि ‘एक सामान्य-से लेफ्टिनेंट के बदले नाजी फौज के किसी जनरल को नहीं छोड़ा जा सकता.’
एक बार स्तालिन की बेटी स्वेतलाना के लिए एक अच्छे फ्लैट की व्यवस्था की गई थी तो ये सुनकर स्तालिन बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने कहा, ‘क्या वह केंद्रीय कमेटी की सदस्य है या पोलित ब्यूरो की सदस्य है कि उसके लिए अलग इंतजाम होगा ? जहां सब रहेंगे, वहीं वह भी रहेगी.’
स्तालिन के बॉडीगार्ड ने एक इंटरव्यू में बताया था कि विश्वयुद्ध में विजय के बाद सोवियत संघ की सर्वोच्च सोवियत ने स्तालिन को ‘सोवियत संघ का नायक’ सम्मान देने की घोषणा की. स्तालिन ने यह कहते हुए यह अवार्ड लेने से मना कर दिया कि वे नायक नहीं हैं. नायक है सोवियत संघ की लाल सेना और सोवियत संघ की जनता जिसने इस युद्ध को असंख्य कुर्बानियां देकर जीता है. हालांकि अपनी मृत्यु के बाद वे उनको नहीं रोक पाये और उनको मरणोपरान्त यह अवार्ड दिया गया.
अमरीकी लेखिका व पत्रकार अन्ना लुई स्ट्रांग स्तालिन के बारे में लिखती हैं – ‘फ़िनलैंड की स्वतंत्रता तो बोल्शेविक क्रांति का सीधा तोहफा थी. जब जार का पतन हो गया तो फ़िनलैंड ने स्वतंत्रता की मांग की. तब वह रूसी साम्राज्य का हिस्सा था. केरेंसकी सरकार ने इसे नामंजूर कर दिया. ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका भी तब फ़िनलैंड की स्वतंत्रता के पक्षधर नहीं थे. वे नहीं चाहते थे कि पहले विश्वयुद्ध में उनका मित्र रहा जारशाही साम्राज्य टूट जाए.
बोल्शेविकों के सत्ता संभालते ही राष्ट्रीयताओं से जुड़ी समस्याओं के मंत्री स्तालिन ने इस बात को आगे बढाया कि फ़िनलैंड के अनुरोध को स्वीकार कर लिया जाए. उन्होंने कहा था – ‘फिनिश जनता निश्चित तौर पर स्वतंत्रता की मांग कर रही है इसलिए ‘सर्वहारा का राज्य’ उस मांग को मंजूर किए बिना नहीं रह सकता…’
‘…मैंने ‘मास्को न्यूज़’ नामक अख़बार को संगठित किया था. उसके रूसी संपादक के साथ मैं ऐसे चकरा देने वाले झगड़ों में उलझ गई थी कि इस्तीफा दे देना चाहती थी. रूस छोड़कर ही चली जाना चाहती थी. एक मित्र की सलाह पर मैंने अपनी शिकायत स्टालिन को लिख भेजी. उनके ऑफिस ने मुझे फ़ोन करके बताया कि मैं ‘चली आऊं और इस सम्बन्ध में कुछ जिम्मेदार कामरेडों से बात कर लूं.’
यह बात इतने सहज ढ़ंग से कही गई थी कि जब मैंने खुद को उसी टेबल पर स्तालिन, कगानोविच और वोरोशिलोव के साथ मौजूद पाया तो अवाक रह गई. वे लोग भी वहां उपस्थित थे जिनके खिलाफ मैंने शिकायत की थी. छोटी सी वह पोलिट ब्यूरो पूरे सोवियत संघ की संचालन समिति थी. आज वह मेरी शिकायत पर विचार करने बैठ गई थी. मैं लज्जित हो गई…’.
स्तालिन के नेतृत्व में जब सोवियत संघ ने अपना संविधान बनाया तो क्या हुआ था, पढ़िए – ‘संविधान को पास करने का तरीका बहुत महत्वपूर्ण था. लगभग एक वर्ष तक यह आयोग राज्यों और स्वैछिक समाजों के विभिन्न ऐतिहासिक रूपों का अध्ययन करता रहा, जिनके जरिये विभिन्न काल में लोग साझे लक्ष्यों के लिए संगठित होते रहे थे.
उसके बाद सरकार ने जून 1936 में एक प्रस्तावित मसविदे को तदर्थ रूप से स्वीकार करके जनता के बीच बहस के लिए 6 करोड़ प्रतियां वितरित कीं. इस पर 5,27,000 बैठकों में तीन करोड़ साठ लाख लोगों ने विचार-विमर्श किया. लोगों ने एक लाख चौवन हजार संशोधन सुझाए. निश्चित तौर पर इनमें से काफी में दोहराव था और कई ऐसे थे जो संविधान की बजाय किसी कानून संहिता के ज्यादा अनुकूल थे. फिर भी जनता की इस पहलकदमी से 43 संशोधन सचमुच अपनाये गए.’
स्तालिन को स्तालिन यूं ही नहीं कहा जाता था. रूसी भाषा में इसका मतलब है ‘स्टील का आदमी.’ वह सच में फौलादी इरादों वाले नेता थे. एक पिछड़े हुए भूखे नंगे देश को महाशक्ति में बदलना किसी टटपूंजीये के बस की बात नहीं है. तमाम पूंजीवादी साम्राज्यवादी कुत्साप्रचार के बावजूद आज भी रूस की जनता अपने इस महान नेता को उतना ही प्यार करती है. कुछ समय पहले रूस में हुए एक सर्वे में स्तालिन को आधुनिक समय का सबसे महान रूसी चुना गया है.
Read Also –
स्टालिन : मानवता के महान नेताओं में से एक के 144वें जन्मदिन का जश्न मनाये !
मार्क्सवादी लबादा ओढ़े लोग अवार्ड की आस में सबसे पहले ‘स्टालिन मुर्दाबाद’ बोलते हैं
स्टालिन : अफवाह, धारणाएं और सच
क्या आप सोवियत संघ और स्टालिन की निंदा करते हुए फासीवाद के खिलाफ लड़ सकते हैं ?
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लॉग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]