
मनीष आज़ाद
कल ‘बेस्ट डॉक्यूमेंट्री’ का ऑस्कर अवार्ड प्राप्त करते हुए ‘No Other Land’ के फिलिस्तीनी सह निर्देशक Basel Adra ने कहा- ‘’दो माह पहले ही मैं बाप बना हूँ और मैं नहीं चाहता कि बड़ी होकर मेरी बेटी भी उसी स्थिति में रहे जिसमे मैं रह रहा हूँ, यानी सेटलर यहूदियों की हिंसा, घर को कभी भी बुलडोज किये जाने और जबरदस्ती बेदखल किये जाने के भय के बीच रहना.’’
जब Basel Adra महज 15 साल के थे, तभी से उन्होंने हाथ के कैमरे से अपने एक्टिविस्ट पिता की गिरफ्तारी और ‘वेस्ट बैंक’ स्थित अपने गाँव को इजरायली सेना द्वारा उजाड़ने को शूट कर रहे हैं. इस दौरान कई बार उनका कैमरा भी टूटा.
बाद में उनकी दोस्ती एक इजरायली पत्रकार Yuval Abraham से हुई और दोनों ने उन्हीं ‘रफ फुटेज’ के आधार पर यह शानदार फिल्म बनायी. अवार्ड लेते हुए Yuval Abraham ने भी बहुत महत्वपूर्ण बात कही- ’जब मैं बासेल की तरफ देखता हूँ तो मुझे उसमे अपना भाई दिखता है. लेकिन हम समान नहीं है. मैं नागरिक कानून के तहत एक स्वतंत्र व्यक्ति हूँ, लेकिन बासेल इजरायली सैन्य शासन के अन्दर रहने पर मजबूर हैं, जो जिंदगियों को तबाह कर रहा है. फिलिस्तीनियों की अपनी जिंदगी उनके हाथ में नहीं है.
2019 से 23 के दौरान हाथ के साधारण कैमरे से फिल्मायी गयी यह फिल्म वास्तव में ‘फिल्म’ नहीं है, बल्कि बासेल जैसे हजारों, लाखों उन फिलिस्तीनियों की जिंदगी है जो ‘जर्क’ लेते हिलते डुलते और कभी अचानक बंद हो जाने वाले इस कैमरे की ही तरह है. क्योकि यहाँ फिल्मकार किसी और की नहीं बल्कि अपनी कहानी सुना रहा है. और यह कहानी ‘कहानी’ भी नहीं है, बल्कि आपकी आँखों के सामने रोज ब रोज घट रहा है, जिसमे दुःख, क्षोभ, गुस्सा, निराशा, आशा और सपने सब कुछ है. लेकिन किसी कहानी की तरह इसमे कोई तारतम्य नहीं है, ठीक फिलिस्तीनियों की रोज ब रोज की जिंदगी की तरह.
कुछ दृश्य फिल्म को बेहद खास बना देते है. हालाँकि ये सभी वे दृश्य हैं जो अचानक यूं ही कैमरे में कैद हो जाते हैं. इजरायली सेना द्वारा एक फिलिस्तीनी का घर गिराने के बाद उनकी एक मुर्गी भी मलबे में फंस जाती है और माँ-बच्चे मिलकर उसे निकलने का प्रयास करते हैं.
इस दौरान इजरायली पत्रकार Yuval Abraham अक्सर बासेल के साथ इजरायली सैनिकों के साथ बहस करते नज़र आते हैं और साथ के फिलिस्तीनी लोग आश्चर्य करते हैं कि फिलिस्तीनियों की लड़ाई में एक इजरायली साथ क्यों दे रहा है. Yuval Abraham कहते हैं कि यही भविष्य है और यही आशा है.
इस जैसी फिल्मों का यह असर होता है कि यह दमन और शोषण को ‘न्यू नार्मल’ बनाए जाने से इंकार कर देती है और पुराने सवालों पर पड़ी राख को फूंककर सवाल को ज्वलंत बना देती है.
इस फिल्म का लिंक मैंने कमेन्ट बॉक्स में डाला है. अगर यह बैन हो चुका होगा तो फिलहाल आपको इस शानदार और जीवंत फिल्म के लिए इंतज़ार करना होगा.
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