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ज़ेलेंस्की की वीरता और यूरोप की महानता पर पगलाये मित्रों के लिए रूस-यूक्रेन, अमरीका-यूरोप पर थोड़ा विस्तार से

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ज़ेलेंस्की की वीरता और यूरोप की महानता पर पगलाये मित्रों के लिए रूस-यूक्रेन, अमरीका-यूरोप पर थोड़ा विस्तार से
ज़ेलेंस्की की वीरता और यूरोप की महानता पर पगलाये मित्रों के लिए रूस-यूक्रेन, अमरीका-यूरोप पर थोड़ा विस्तार से
Ashok kumar Pandeyअशोक कुमार पांडेय

व्हाइट हाउस मीटिंग्स के बाद से ही ‘एक्सपर्ट्स’ काफ़ी उत्तेजित हैं. कुछ टीवी चैनलों के पत्रकारों का तो लगता है कि बस मौक़ा मिले तो माइक लेकर इज़रायल के बाद यूक्रेन की तरफ़ से लड़ने चले जाएं. कोशिश है पूरा खेल थोड़ा विस्तार से बताने की. धीरज से पढिए अगर मन हो तो.

हुआ क्या था ?

व्हाइट हाउस में लगभग 45 मिनट की बातचीत के बाद जे. डी. वेंस ने पूछा कि यूक्रेन अमेरिकी करदाताओं के अरबों डॉलर की सहायता के लिए अमेरिका का धन्यवाद क्यों नहीं कर रहा ?

अमेरिका का धन्यवाद करने के बजाय, ज़ेलेंस्की ने तीखी प्रतिक्रिया दी—चेतावनी देते हुए कि अमेरिका ‘समझ नहीं रहा कि आगे क्या होने वाला है.’

इसी पर डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें करारा जवाब दिया – ‘इस समय आपके पास कार्ड्स नहीं है.’

क्या ट्रम्प सही थे ?

ज़ेलेंस्की के पास कभी भी ताकत नहीं थी. उन्हें पश्चिमी धन, हथियारों और प्रचार ने ताक़त दी है.

अब, जब यूक्रेन न सिर्फ प्रचार युद्ध बल्कि असली युद्ध भी हार रहा है, ज़ेलेंस्की घबराए हुए हैं. यूक्रेन इस युद्ध में कभी स्वतंत्र खिलाड़ी नहीं था. असली शक्ति वॉशिंगटन, ब्रसेल्स और लंदन में बैठी है, जो अपने भू-राजनीतिक खेल खेल रहे हैं.

थोड़ा इतिहास जान लेते हैं

यूक्रेन और रूस पिछले 1,000 वर्षों से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. कीव, जो आज यूक्रेन की राजधानी है, कभी कीवन रस का केंद्र था—पहली महान स्लाविक राज्य व्यवस्था—जिसने स्वयं रूस की नींव रखी.

‘यूक्रेन’ नाम का अर्थ ही ‘सीमा क्षेत्र’ है—यानी रूस की सीमा भूमि.
सदियों तक, यूक्रेन रूसी साम्राज्य का एक अभिन्न हिस्सा था, न कि कोई ‘दमित’ राष्ट्र. यहां तक कि सोवियत युग के दौरान भी, यूक्रेन पर कोई कब्जा नहीं था—बल्कि यह सोवियत संघ (USSR) का केंद्र था.

यह युद्ध रूस को कमजोर करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से शुरू किया गया था

जब सोवियत संघ (USSR) बिखर गया, तो यूक्रेन स्वतंत्र हुआ, और तभी वाशिंगटन ने दखल दिया—यूक्रेन की मदद करने के लिए नहीं, बल्कि उसे रूस के खिलाफ एक हथियार बनाने के लिए.

अमेरिका और NATO ने गोरबाचोव से झूठ बोला था, यह वादा करते हुए कि वे ‘एक इंच भी पूर्व की ओर नहीं बढ़ेंगे.’ फिर भी, NATO ने पोलैंड और बाल्टिक देशों में अपना विस्तार कर लिया. यूक्रेन NATO के लिए सबसे बड़ा इनाम था.

पश्चिमी देशों ने अरबों डॉलर यूक्रेन में झोंक दिए—प्रो-NATO राजनीतिक समूहों, NGOs और मीडिया को वित्तपोषित कर एक रूस विरोधी राज्य बनाने के लिए.

2004 में, CIA ने ‘ऑरेंज क्रांति’ का समर्थन किया, जिससे उस चुनाव को पलट दिया गया जिसमें प्रो-रूसी उम्मीदवार की जीत हुई थी.

स्टालिन के बाद सत्ता में आए निकिता ख्रुश्चेव खुद यूक्रेनी मूल के थे.

असली तख्तापलट 2014 में हुआ

यूक्रेन के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने एक EU व्यापार समझौते को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वह यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर सकता था. यह वाशिंगटन के लिए अस्वीकार्य था.

इसलिए, उन्होंने एक योजनाबद्ध रंग क्रांति के जरिए उन्हें सत्ता से हटा दिया, जिसे ‘मैदान क्रांति’ कहा जाता है, वह कोई जमीनी आंदोलन नहीं था. यह CIA समर्थित तख्तापलट था—जिसकी योजना विक्टोरिया नूलैंड जैसे अधिकारियों ने बनाई थी.

वाशिंगटन इतना बेखौफ था कि नूलैंड खुद एक लीक कॉल में पकड़ी गई थीं, जिसमें वह यानुकोविच के हटने से पहले ही यूक्रेन के अगले नेता को चुन रही थीं. कीव पर कब्जा करने वाली उग्र भीड़ शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी नहीं थी.

उन्हें Azov Battalion जैसे नव-नाजी समूहों ने नेतृत्व दिया—ऐसे समूह जो खुलेआम नाजी सहयोगियों का जश्न मनाते हैं और SS प्रतीक धारण करते हैं. यही समूह अब पश्चिमी हथियारों की आपूर्ति प्राप्त कर रहे हैं.

रूसी नस्ल के लोगों पर अत्याचार और असंतोष

तख्तापलट के बाद की सरकार ने रूसी भाषा पर प्रतिबंध लगा दिया—पूर्वी यूक्रेन में लाखों रूसी भाषी नागरिकों पर सीधा हमला किया.

नतीजतन डोनबास और क्रीमिया ने कह दिया—अब बस ! क्रीमिया ने जनमत संग्रह कराया, जिसमें 90% से अधिक लोगों ने रूस में वापस शामिल होने के पक्ष में वोट दिया. डोनबास ने भी स्वतंत्रता के लिए मतदान किया. डोनबास के लोगों ने कीव सरकार को ठुकरा दिया—लेकिन कीव ने उन्हें जाने नहीं दिया.

इसके बजाय, उन्होंने अपने ही लोगों पर भीषण युद्ध छेड़ दिया, और आठ वर्षों तक नागरिकों पर गोलाबारी की.

पश्चिमी देशों ने इस बर्बर हत्याकांड पर खामोशी बनाए रखी.. पूरे आठ साल.

जेलेन्सकी कैसे आया ?

जेलेन्सकी कौन हैं ? क्या वह सच में एक लोकप्रिय नेता हैं, जो अचानक उभरे, या उन्हें थोप दिया गया ?

दिसम्बर 2018 को जेलेन्सकी ने अचानक राष्ट्रपति पद के चुनाव में उतरने की घोषणा की. राजनीति में आने से पहले, ज़ेलेंस्की एक कॉमेडियन और अभिनेता थे—जो एक टीवी शो में राष्ट्रपति की भूमिका निभा चुके थे.

टीवी शो में जो नाम था उसी नाम से पार्टी बनाई गई. यह संयोग नहीं एक प्रयोग था.

ब्रिटेन और पश्चिमी देश अपना एजेंट चाहते थे वहां तो पश्चिमी PR टीमों की मदद से, कल्पना को हकीकत बना दिया गया. उसने जनता में सबसे पॉपुलर मुद्दे- भ्रष्टाचार का सहारा लिया.

सत्ता में आने के बाद

Covert Action की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में ज़ेलेंस्की ने गुप्त रूप से MI6 प्रमुख रिचर्ड मूर से मुलाकात की.

अब सवाल यह है— कोई विदेशी राष्ट्रपति ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से मिलने के बजाय, वहां के शीर्ष जासूस से गुप्त मुलाकात क्यों करेगा ? क्या ज़ेलेंस्की ब्रिटेन के लिए काम कर रहे हैं ?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनकी सुरक्षा यूक्रेनी गार्ड्स नहीं, बल्कि ब्रिटिश एजेंट्स संभालते हैं.

जब वह वेटिकन गए, तो उन्होंने पोप से मिलने की बजाय एक ब्रिटिश बिशप से मुलाकात की.

और वहां और कौन मौजूद था ? फिर से MI6 के रिचर्ड मूर !

इसे संयोग कहें या कुछ और ?

कौन थे जेलेन्सकी के पीछे ?

उनके चुनावी अभियान को उद्योगपति इहोर कोलोमोइस्की ने फंड किया—जो यूक्रेन की सबसे बड़ी तेल कंपनी और बैंक के मालिक थे. सत्ता में आते ही, ज़ेलेंस्की की प्राथमिकता भ्रष्टाचार से लड़ना नहीं था – बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि BlackRock और पश्चिमी बैंक यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पर कब्जा कर लें.

इसी दौरान, उन्होंने करोड़ों डॉलर ऑफशोर खातों में भेजे और मियामी में 34 मिलियन डॉलर की हवेली तथा लंदन में 3.8 मिलियन डॉलर का अपार्टमेंट खरीदा.

2022 तक, NATO ने यूक्रेन को पूरी तरह से हथियारों से लैस कर दिया था, और कीव ने डोनबास के पास अपनी सेना तैनात कर दी थी.

रूस के पास क्या रास्ता था ?

रूस के पास तीन विकल्प थे :

  1. डोनबास को जातीय सफाये (Ethnic Cleansing) का शिकार होने देना.
  2. NATO को यूक्रेन को एक सैन्य अड्डे में बदलने देना.
  3. हस्तक्षेप करना.

रूस ने हस्तक्षेप किया—वैसे ही जैसे कोई भी देश ऐसी परिस्थितियों में करता.

मीडिया ने चिल्लाकर इसे ‘बिना उकसावे का आक्रमण’ कहा.

लेकिन NATO का विस्तार, 2014 का तख्तापलट, और डोनबास पर आठ साल तक चला युद्ध— हर कदम पर इस युद्ध को उकसाया गया था और यूक्रेन को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया गया था.

जेलेन्सकी रूस के सामने टिक नहीं पाया

पश्चिमी और अमेरिकी सहायता तथा रूस पर लगातार सैंक्शंस के बावजूद जेलेन्सकी रूस के सामने टिक नहीं पाया. उस पर तथा उसके अधिकारियों पर करोड़ों डॉलर के घपलों के आरोप लगे. युद्ध के कारण उसने चुनाव करवाने से इंकार कर दिया.

अब ट्रम्प इस जंग को रुकवाना चाहता है जो कहीं जाती नहीं दिख रही. ब्रिटेन और योरप के दूसरे देश यूक्रेन के साथ खड़े होने की बात तो कर रहे हैं लेकिन देखना होगा कि अमरीका की सहायता के बिना वे अपनी बात पर कितना टिक पाते हैं.

जेलेंस्की के गुण गाये जा रहे हैं अपने यहां

क्या किया है जेलेंस्की ने ? शायद नशे की हालत में जो वीरता दिखाई है वह यूक्रेन को बहुत भारी पड़ने वाली है. अमरीका की मदद के बावजूद बड़ा हिस्सा वह गंवा चुका है. परसों ट्रम्प ने स्ट्रेमर से पूछा था- आप अकेले दम पर मदद करके रूस को हरा लोगे ? स्ट्रेमर हंस कर रह गए थे.

योरप यूक्रेन की मदद करने के हालत में नहीं बचा है. अमरीकी मदद के बड़े हिस्से का कोई हिसाब नहीं है. बड़े यूक्रेनी आर्मी और सिविल अफ़सरों ने ज़बर्दस्त लूट मचाई है और भागने के इंतज़ाम कर लिए हैं.

सीज़फ़ायर नहीं हुआ तो यूक्रेन और बर्बाद होगा. अमरीकी मदद बंद होने के बाद टिक पाना असंभव है. NATO के रास्ते बंद हैं. बदतमीज़ी से ही सही लेकिन सही कहा था कल ट्रम्प ने- You have no cards.

सस्ते कॉमेडियन की यह वीरता ट्रैजिक थी.

ज़ेलेंस्की की वीरता और यूरोप की महानता पर पगलाये मित्रों के लिए दो ख़बरें

  1. जेलेंस्की ने अमरीका से कहा है कि वह मिनरल डील के लिए तैयार है; तो क्रांतिकारी दोस्तों की भाषा में उसने देश बेच दिया है.
  2. यूरोप का कल का यूक्रेन सम्मेलन खत्म होने के बाद यूरोपीय प्रतिनिधि ने कहा है कि इस डील में यूरोपीय यूनियन भी शामिल होगा: तो यूरोपीय राष्ट्रवाद पर फूले मित्रों को संदेश कि सारा नाटक लूट में हिस्से के लिए था।.

टीवी फुटेज खाना आता है जोकर को और उसे हक़ीक़त समझने वाले अक्सर ठगे जाते हैं. विश्व राजनीति टीवी सीरियल नहीं है.

रूस-यूक्रेन वगैरह पर पांच सवाल

  1. यूक्रेन में रूसी भाषा पर प्रतिबंध लगाकर जो खेल खेला गया उसका क्या मतलब था ?
  2. गोर्बाचोव से नाटो के और विस्तार न करने का जो वादा किया गया उसे क्यों तोड़ा गया ?
  3. मिंक समझौते के पीछे क्या खेल था ? क्या खुद जेलेन्सकी ने यह नहीं माना कि उसकी नीयत सिर्फ़ समय लेने की थी ?फिर अमरीका में झूठ क्यों बोला ?
  4. आठ साल तक रूसी नस्ल का नरसंहार हुआ, पश्चिम चुप क्यों रहा ?
  5. लोकतंत्र की तो सीमा नहीं होती, फिर रूस समर्थक के चुनाव जीतने पर उस चुनाव को निरस्त क्यों करवाया गया ? क्या यही खेल हाल में रोमानिया में नहीं खेला गया ?

जवाब हो तो स्वागत, वरना पश्चिमी गोदी मीडिया से बने परसेप्शन का मुझ पर कोई खास असर नहीं पड़ता और न टीवी पर दिखी नौटंकी का.

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