
नवमीत नव
यह बात है 73 ईसा पूर्व की. रोम के कैपुआ शहर में स्पार्टाकस के नेतृत्व में रोमन गणराज्य के गुलामों ने विद्रोह कर दिया, जो जल्द ही लड़ाई और फिर व्यापक युद्ध में बदल गया. इस दौरान हुई घटनाओं को तीसरा दास युद्ध कहा जाता है. रोमन गणराज्य के कर्ताधर्ता यानी दास स्वामी वर्ग ने अपना पूरा जोर लगाकर इस विद्रोह को कुचल दिया. इस महान युद्ध में स्पार्टाकस व उसके साथी गुलाम योद्धाओं की हार भले ही हो गयी थी लेकिन गुलामों के इस सुप्रसिद्ध विद्रोह ने रोमन गणराज्य की चूलें हिला दी थी.
इसके बाद काफ़ी वर्ष की राजनीतिक उथल पुथल के रहे. फिर 49 ईसा पूर्व के बाद रोमन सेनापति जूलियस सीजर रोमन गणराज्य का सर्वेसर्वा बन गया. जूलियस सीजर के बाद उसके दामाद ऑगस्टस ने आधिकारिक तौर पर सम्राट की उपाधि ग्रहण की और अब रोमन गणराज्य बन गया रोमन साम्राज्य. इसके बाद के सम्राटों ने ‘सीजर’ की उपाधि धारण करना शुरू कर दिया और बाद में यह उपाधि रोमन सम्राट का पर्याय बन गयी.
बाद में यूरोप के विभिन्न शासकों ने यह उपाधि ग्रहण की. हालांकि विभिन्न भाषाओं में इसका अपभ्रंश होने लगा था. जैसे जर्मन सम्राट अपने आपको ‘कैसर’ कहने लगा था और रूसी सम्राट अपने आपको ‘जार’ कहने लगा था. यहां तक कि 1857 के संग्राम के बाद जब इंग्लैंड की रानी ने खुद को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया तो उसने ‘कैसर ए हिन्द’ की उपाधि धारण की थी.
बहरहाल 1860 के दशक में, जबकि रूस पर जार अलेग्जेंडर द्वितीय का शासन था, एक सुधारवादी आंदोलन शुरू हुआ जिसका नाम था नरोदनिक आंदोलन. यह आंदोलन जारशाही को खत्म करना चाहता था और किसानों को जनता की नेतृत्वकारी शक्ति मानता था. इनका मानना था कि जमीन पर किसानों का अधिकार होना चाहिये. जारशाही की जगह किसानों के कम्युनों का शासन होना चाहिये. लेकिन इनको जनता में, और यहां तक कि किसानों में भी, कुछ खास आधार नहीं मिला.
फिर 1870 के दशक में इससे एक अधिक रेडिकल धड़ा अलग हो गया जिसका नाम था नरोदन्या वोल्या. यह ग्रुप हिंसक गतिविधियों में विश्वास रखता था. तो भाई लोगों ने कई असफल प्रयासों के बाद 1881 में जार अलेग्जेंडर द्वितीय की हत्या कर दी. इसके बाद इस ग्रुप के बहुत से नेताओं को मृत्युदंड दे दिया गया और बहुत से दूसरे क्रान्तिकारियों को साइबेरिया निर्वासित कर दिया गया.
इन्हीं में से एक क्रांतिकारी थीं वेरा फिंगर. इन्हें साइबेरिया की कारा पीनल कॉलोनी में निर्वासित किया गया था. यह कॉलोनी एक जीता जागता नर्क थी जिसको विशेषतौर पर क्रांतिकारी बंदियों को तोड़ने के लिये डिज़ाइन किया गया था. लेकिन पता है वेरा फिंगर ने क्या किया ? उन्होंने इसे एक भूमिगत अकादमी में तब्दील कर दिया.
उन्होंने क्रांतिकारी पैम्फ्लेट्स, मार्क्स और डार्विन की पुस्तकें व अन्य साहित्य की तस्करी करनी शुरू कर दी. पुस्तकों की हस्तलिखित प्रतिलिपियां बनानी शुरू कर दी. इस तरह की गतिविधियां दूसरे कैंपों में भी शुरू हो गयी और साइबेरिया का निर्वासन क्रांतिकारियों के लिये ट्रेनिंग अकादमी बन गया. निर्वासन में ही लेनिन ने ‘रूस में पूंजीवाद का विकास’ लिखी थी. स्तालिन सात बार साइबेरिया से फरार हुए और क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होते रहे.
1904 में याक़ूत्स्क में कैद 200 कैदियों ने क्रांतिकारी गीत गाते हुए जबरी श्रम के खिलाफ विद्रोह कर दिया और -50 डिग्री सेल्शियस के तापमान में सर ऊंचा करके खड़े हो गये थे. सजा के तौर पर इनमें से 33 की हत्या कर दी गयी लेकिन इनके बलिदान की कहानी फैलती चली गयी.
त्रात्स्की लिखते हैं कि ‘साइबेरिया सिर्फ एक कैद नहीं थी. यह एक क्रांतिकारी अकादमी थी.’ फिर आया 1917 का ऐतिहासिक वर्ष जब इन तपे हुए रूसी क्रांतिकारियों के नेतृत्व में जनता ने अक्टूबर क्रांति को अंजाम दिया और मजदूरों के राज यानी सोवियत संघ की स्थापना की. वेरा फिंगर लिखती हैं, ‘उन्होंने भले ही हमारे शरीरों को निर्वासित कर दिया था, लेकिन हमारे विचार स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहे थे.’
दमित शोषित जनता आदिकाल से ही शोषण के विरुद्ध विद्रोह करती रही है. कभी स्पार्टाकस और उसके साथी गुलामों के रूप में तो कभी पेरिस कम्यून के मजदूरों के रूप में तो कभी रूस के लेनिन व बोल्शेविकों के नेतृत्व में.
लेकिन नवमीत, तुम आज इतिहासकार क्यों बने हुए हो ?
बस यूं ही मैंने सोचा आज इतिहास पर बात कर लेते हैं.
तो मानव उद्विकास की कहानी का क्या रहा जिसका तुमने प्रॉमिस किया था ?
वहीं आ रहा हूं. हुआ यूं कि 2008 में साइबेरिया में एक और घटना घटी. दक्षिणी साइबेरिया की अल्ताई पर्वत श्रृंखला की फुट हिल्स में एक गुफा, जिसे डेनिसोवा गुफा कहा जाता है, में एक युवा पुरातत्व विज्ञानी को एक हड्डी का टुकड़ा मिला. यह किसी युवा लड़की की कनिष्ठा अंगुली का टुकड़ा था. इसकी डेटिंग की गयी तो पता चला कि यह 40 से 50 हजार वर्ष पुराना था.
वैज्ञानिकों का मानना था कि यह किसी नियंडरथल मानव का अवशेष था. लेकिन समस्या यह थी कि इस एक टुकड़े के अलावा और कोई फॉसिल नहीं मिला था तो पक्के तौर पर यह पता करना मुश्किल था कि यह नियंडरथल का ही था या आधुनिक मानव का ?
आधुनिक मानव यानी होमो सेपियंस यानी हम लोग इस धरती पर सबसे पहले अफ्रीका में 3 लाख साल पहले दिखाई दिए थे. नियंडरथल मानव 4 लाख साल पहले धरती पर आये थे और यूरोप व एशिया के अधिकतर भूभाग में फैले हुए थे.
लगभग 70 हजार साल पहले आधुनिक मानवों ने अफ्रीका से एशिया की धरती पर कदम रखा था. आज से 30 हजार साल पहले नियंडरथल मानव विलुप्त हो गए. तो इसका मतलब यह हुआ कि लगभग 40 हजार साल तक होमो सेपियंस और नियंडरथल मानव एक साथ यूरोप और एशिया में विचरण कर रहे थे.
1990 के दशक में वैज्ञानिकों ने मानव के जेनेटिक कोड को जांचना शुरू किया था. इसके लिए नए नए औजार और नई तकनीकें विकसित हो रही थी. इन्हीं दिनों जर्मनी के म्युनिख विश्वविद्यालय में डॉ. स्वांते पेबो नाम के एक वैज्ञानिक काम कर रहे थे. पेबो इन्हीं औजारों और तकनीकों की मदद से नियंडरथल मानव के जेनेटिक कोड का अध्ययन करने करने लगे. लेकिन ये तकनीकें नियंडरथल मानव के डीएनए को समझने के लिए कारगर सिद्ध नहीं हो रही थीं क्योंकि नियंडरथल का डीएनए पूर्ण अवस्था में मिलता ही नहीं था.
डॉ. पेबो ने माईटोकॉन्ड्रिया (हमारी कोशिकाओं में मौजूद एक विशेष संरचना जिसे कोशिका का पावर हाउस भी कहा जाता है) में मौजूद डीएनए का अध्ययन करने पर ध्यान केंद्रित किया. हालांकि माईटोकॉन्ड्रिया के डीएनए में कोशिका के डीएनए से कम जानकारी होती है लेकिन नियंडरथल के केस में यह कोशिका के डीएनए से ज्यादा अच्छी हालत में मिल रहा था इसलिए सफलता की संभावना ज्यादा हो गई थी.
अपनी नई तकनीक के द्वारा पेबो ने नियंडरथल मानव की एक 40000 हजार साल पुरानी हड्डी के माईटोकॉन्ड्रिया के डीएनए का सीक्वेन्स बनाने में सफलता हासिल कर ली. यह पहला सबूत था जो यह बताता है कि आधुनिक मानव नियंडरथल से जेनेटिक तौर पर भिन्न है, यानि यह एक भिन्न प्रजाति है. 2010 में पेबो और उनकी टीम ने नियंडरथल का पहला जेनेटिक सीक्वेन्स छापा. पेबो की इस खोज ने हमें यह बताया कि आज से आठ लाख साल पहले हमारा यानि होमो सेपियंस और नियंडरथल मानव का एक कॉमन पूर्वज इस धरती पर था.
फिर रूसी वैज्ञानिकों ने डेनिसोवा गुफा में मिली हड्डी के टुकड़े, जिसका जिक्र हमने ऊपर किया है, को जर्मनी में डॉ. पेबो के पास जांच के लिये भेजा. पेबो ने जब अंगुली की इस हड्डी की डीएनए सीक्वेन्सिंग की तो उन्हें कुछ ऐसा मिला जोकि आज तक किसी को नहीं मिला था. इस हड्डी का डीएनए न तो नियंडरथल के डीएनए से मिलता था और न ही आधुनिक मानव के डीएनए से. यह मानव की एक सर्वथा नई प्रजाति थी. इस नई प्रजाति को डेनिसोवा नाम दिया गया. डेनिसोवा और नियंडरथल लगभग 6 लाख साल पहले एक दूसरे से अलग हुए थे.
नवमीत, हमने सुना है कि आधुनिक मानव में नियंडरथल का कुछ डीएनए मिलता है, क्या यह सही है ?
पेबो और उनकी टीम को आधुनिक मानव के डीएनए में नियंडरथल के डीएनए के अंश भी मिले जिससे यह पता चलता है आधुनिक मानव और नियंडरथल मानव के बीच में इंटरब्रीडिंग होती रही है. न केवल नियंडरथल का बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया व ऑस्ट्रेलिया के अबोरिजिनल लोगों में 6% डेनिसोवा मानव के डीएनए के अंश भी मिले हैं, जिससे पता चलता है कि इन समूहों के बीच भी सम्पर्क रहा होगा. तिब्बतियों में डेनिसोवा का एक जीन मिला है जो उन्हें अधिक ऊंचाई पर कम ऑक्सीजन के बावजूद जिन्दा रहने में मदद करता है.
तो यह तय बात है कि साइबेरिया की डेनिसोवा गुफा में मिले अवशेष एक बिलकुल ही अलग मानव प्रजाति के थे. एक समय नियंडरथल मानव व आधुनिक मानव के साथ यह प्रजाति भी धरती पर भ्रमण कर रही थी. माना जाता है कि इन तीनों प्रजातियों का एक साझा पूर्वज अफ्रीका में आज से 6-8 लाख साल पहले रहा करता था.
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह साझा पूर्वज होमो हाइडलबर्गेन्सिस था, जिसकी चर्चा हमने पिछली एक आलेख में किया था. किसी समय इसी मानव की अलग-अलग आबादियों से तीनों शाखाएं निकली होंगी और दुनिया के अलग अलग हिस्से में चली गयी होंगी, जो कालांतर में अलग अलग प्रजातियों में विकसित हो गयी होंगी.
डेनिसोवा मानवों के बारे में भी माना जाता है कि ये काफ़ी कुशल औजार निर्माता थे जिनकी मदद से ये शिकार व भोजन संग्रह किया करते थे. इसके अलावा ये अपने लिये आवासों का निर्माण भी करते थे. डेनिसोवा गुफा में नियंडरथल मानव के भी अवशेष मिले हैं. यहां हड्डी से बनी हुई सुई मिली है, मनको से बना हुआ ब्रेसलेट मिला है और पत्थर के औजार मिले हैं.
परन्तु एक और शॉकिंग खोज अभी होनी थी. 2018 में इस गुफा में एक किशोर लड़की की हड्डी का टुकड़ा मिला. इस लड़की को डेनी नाम दिया गया है. डीएनए सीक्वेन्सिंग से पता चला कि इस लड़की की मां नियंडरथल थी और पिता डेनिसोवा. यानी यह नियंडरथल और डेनिसोवा की पहली पीढ़ी की डायरेक्ट हाइब्रिड थी.
इनकी भाषा व कल्चर के बारे में हमारी जानकारी अत्यंत सीमित है. आधुनिक मानव से इनके सम्पर्क के सबूत हमें डीएनए में मिलते हैं, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि इनका कुछ हद्द तक सांस्कृतिक सम्पर्क आधुनिक मानव के साथ जरूर रहा होगा. दोनों प्रजातियों ने सांस्कृतिक तौर पर भी कुछ न कुछ तो एक दूसरे के साथ साझा जरूर किया होगा.
लेकिन कुछ सवाल अभी भी अनसुलझे हैं. जैसे कि ये दिखते कैसे थे ? यह हमें पता नहीं चल पाया है क्योंकि अभी तक इनकी खोपड़ी का कोई फॉसिल नहीं मिला है. इनके फॉसिल तिब्बत और साइबेरिया में पाये गये हैं लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया व ऑस्ट्रेलिया में इनके अवशेष नहीं मिले हैं, सिर्फ यहां की मूल आबादियों में इनके डीएनए के सबूत मिले हैं. ये विलुप्त कैसे हुए इस बारे में भी पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता.
मानव के उद्विकास के इतिहास के बारे में बहुत कुछ हम जानते हैं लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो अभी तक रहस्य की परतों से बाहर नहीं निकला है. लेकिन मानवजाति द्वारा अपने अतीत की खोज व समझ विकसित करने का प्रयास लगातार जारी है. हमारी पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केंद्र नहीं है और न ही मानव प्रकृति से अलग कोई विशेष प्राणी हैं.
हम इस ब्रह्माण्ड व प्रकृति का ही एक विस्तार मात्र हैं लेकिन हम एकमात्र ऐसी प्रजाति हैं, जो प्रकृति को न केवल समझ सकते हैं, बल्कि इसको बदल भी सकते हैं. यही चीज हमें विशेष बनाती है. होमो हाइडलबर्गेन्सिस, डेनिसोवा, नियंडरथल से लेकर स्पार्टाकस, मार्क्स, डार्विन, वेरा फिंगर, लेनिन और पेबो तक हमने प्रकृति, समाज और विज्ञान हर चीज को बदला है और आगे भी बदलते रहेंगे.
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