नवमीत नव
चीनी और जापानी बौद्ध धर्म में एक देवता है जिसका नाम है – ‘महेश्वर’. बौद्ध परम्परा के अनुसार काश्यप बुद्ध को शहद का प्याला देने के पुरस्कारस्वरुप इन्हें देवता की पदवी मिली है. यह तीनों लोकों के स्वामी हैं. एक अन्य बौद्ध कथा के अनुसार यह अवलोकितेश्वर बुद्ध की भोहों से पैदा हुए हैं (गौरमतलब है कि एक हिंदू[1] पौराणिक कथा के अनुसार रूद्र यानी शिव का जन्म भी ब्रह्मा की भोहों से हुआ था).
एक अन्य बौद्ध कथा के अनुसार इनकी पत्नी, जिनका नाम उमा था, ने 3000 बच्चों को जन्म दिया था। उनमें से 1500 बुरे थे, जिनके नेता को विनायक कहा जाता था और 1500 अच्छे कर्म करने वाले थे जिनके नेता को सेनानायक कहा जाता था।
आपको पता ही होगा कि हिन्दू परम्परा के अनुसार शिव (महेश्वर) और पार्वती (उमा) के दो पुत्र थे. एक का नाम था विनायक यानि गणेश और दूसरे का नाम था कार्तिकेय यानि स्कन्द. स्कन्द देवताओं के सेनानायक थे.
एक अन्य बौद्ध परम्परा के अनुसार सेनानायक असल में अवलोकितेश्वर बुद्ध के अवतार थे. इन्होंने अपने भाई यानि बुरे विनायक को अच्छे रास्ते यानि बुद्ध के रास्ते पर लाने के लिए स्त्री रूप में दोबारा जन्म लिया था और उससे शादी करके उसको शांत कर दिया था.
जापानी में विनायक का नाम शोतेन या कांगितेन है. यह एक हाथी के चेहरे वाले देवता हैं जोकि विघ्न कारक भी हैं और विघ्नहर्ता भी. हिन्दू परम्परा में गणेश सिर्फ विघ्नहर्ता हैं, हालांकि एक कम प्रचलित प्राचीन हिन्दू कथा के अनुसार विघ्नों को पैदा करने वाले चार राक्षस होते थे, जिनको संयुक्त रूप से विनायक कहा जाता था.
इनके जन्म की जापान और चीन के बौद्ध सम्प्रदायों में भिन्न भिन्न कहानियां प्रचलित हैं. ज्यादातर में यह महेश्वर और उमा के पुत्र (कहीं कहीं पुत्री भी) बताए जाते हैं.
खैर, मैं तो ये कह रहा था कि हिन्दू और बौद्ध परम्पराएं एक दूसरे से बहुत मिलती जुलती हैं और यह भी कि दोनों ही धर्मों को अलग अलग समय में राज्याश्रय भी मिला है. दोनों परंपराओं का उद्भव और विकास भारत में ही एकसाथ हुआ है. ठीक है दोनों के बीच टकराव भी रहे हैं लेकिन दोनों में समानताएं भी बहुत हैं. जोकि लाजमी भी था.
हालांकि कुछ लोगों का मत है कि बौद्ध धर्म वैज्ञानिक धर्म है, लेकिन भारत सहित विभिन्न देशों की बौद्ध परंपराएं इस दावे का समर्थन नहीं करती. धर्म वैज्ञानिक नहीं होता. धर्म धर्म है और विज्ञान विज्ञान है. इनमें अंतर रखना जरूरी है. गौतम बुद्ध का दर्शन अपने समय में काफ़ी प्रगतिशील था लेकिन कालांतर में बौद्ध धर्म में जो भी अंधविश्वास व पौराणिक कथाएं पैदा हुईं, वे भी अवश्यंभावी थी.
दूसरी बात मिथक हवा में पैदा नहीं होते. जब मानव प्रकृति व इसकी कार्य प्रणाली को नहीं समझता था तो वह कल्पना शक्ति के सहारे इसपर विजय प्राप्त करने की कोशिश करता था. बकौल कार्ल मार्क्स, ‘तमाम पौराणिक कथाएं कल्पना में तथा कल्पना के सहारे प्रकृति की शक्तियों पर काबू पाती हैं, उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करती हैं और उन्हें साकार बनाती हैं; इसलिए मानव जैसे ही प्रकृति की शक्तियों पर काबू पाता है, वैसे ही पौराणिक कथाओं का लोप हो जाता है.’
आज के आधुनिक युग में मानव काफ़ी हद्द तक प्रकृति को समझने की कोशिश कर रहा है. प्राकृतिक घटनाओं की वैज्ञानिक व्याख्या कर रहा है. तो सवाल ये है कि अब पौराणिक कथाओं का लोप क्यों नहीं हो रहा है ? पूंजीवाद के युग में बाजार व मुनाफा महत्वपूर्ण होता है. धर्म, धार्मिक कथाओं व त्यौहारों का एक बहुत बड़ा बाजार है, जो मुनाफा पैदा करता है. दूसरी बात ये कि शोषण से पीड़ित जनता को धर्म नशे की तरह एक झूठी दिलासा व राहत प्रदान करता है इसलिये धर्म का नशा घटने की बजाय बढ़ रहा है.
- ब्राह्मण धर्म का परिवर्तित नाम हिन्दू धर्म है- सम्पादक
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