केन्द्र में हिन्दुत्ववादी दक्षिणपंथी फासीवादी मोदी सत्ता ने दण्डकारण्य में जनताना सरकार के ख़िलाफ़ भीषण युद्ध छेड़ दिया है. यही कारण है कि दण्डकारण्य आज भारत का सबसे युद्ध ग्रस्त क्षेत्र बन गया है, जहां दो सत्ता के बीच जमकर भिड़ंत हो रही है और इस भीषण युद्ध में लोगों की खून बह रही है.
ये दो सत्ता है भारत की फासीवादी मोदी सत्ता जो दण्डकारण्य के आदिवासियों को खदेड़़कर उनके प्राकृतिक संसाधनों – जल, जंगल, जमीन – को लूटकर कॉरपोरेट घरानों के हाथों में सौंप देने के लिए कृतसंकल्पित है और आये दिन लोगों का खून बहा रहा है. तो वही दूसरी सत्ता है माओवादियों के ‘जनताना सरकार’ की सत्ता, जो आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों समेत उनके जमीन, आबरू को बचाने के लिए कृतसंकल्पित है, और अपनी शहादतें दे रहे हैं. इसी जिच में यह भीषण लड़ाई जारी है.
भारत की फासीवादी मोदी सत्ता देश भर में खून की होली खेल रहा है. देश भर के किसानों, मजदूरों, युवाओं, औरतों के साथ आये दिन दुष्कर्मों को अंजाम दे रहा है. इन सभी दुष्कर्मों के खिलाफ अगर कोई मजबूती से खड़ा है तो वह माओवादी ही है. यह माओवादी ही वह ताकत है जो देश भर के तमाम उत्पीडित ताकतों में असीम साहस का संचार कर रहा है.
बहरहाल, देश की जनता को लुटने और बचाने वाले के बीच के भीषण युद्ध का केन्द्र दण्डकारण्य बन गया है. खबर के अनुसार पुलिसिया मुखबिरों के खबर के बाद माओवादियों के गुरिल्लों को घेरने हजारों की फौज लेकर पुलिसिया गिरोह जा पहुंचा और भीषण लड़ाई चली. इस लड़ाई के बाद जो एक चीज नजर आया वह था अहले सुबह औने-पौने गिरता पड़ता भागता पुलिसिया गिरोह, जो अपने साथ लेकर आया था 12 शहीद गुरिल्लों का शव और लज्जा और झूठ का नक़ाब.
और इस झूठ से नक़ाब उठाया है माओवादियों के द्वारा जारी प्रेस नोट में. 18 जनवरी को जारी यह प्रेस नोट भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी ) का दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी के सचिव गंगा ने जारी किया है. इस प्रेस नोट में माओवादी बताते है – बीजापुर जिला उसूर थाना अंतर्गत 6 जनवरी को पुजारी कांकेर गांव में हुए सरकारी हत्याकांड और निहत्थे गांव वालों के ऊपर मिसाइल से हमले का विरोध करो. और कामरेड दामोदर (एससीएम), हुंगी (पीपीसीएम), देवे (पीपीसीएम), जोगा (पीपीसीएम), नरसिंह राव (पीपीसीएम) और भाकपा माओवादी के हमारे अन्य साथी अमर रहें.
‘पिछले दिनों बीजापुर जिले के पुजारी कांकेर क्षेत्र में राज्य और केंद्र की फासीवादी सरकार और सुरक्षा बलों ने ‘ऑपरेशन’ के नाम पर क्रूर और अमानवीय दमनकारी अभियान चलाया. इस अभियान का असली उद्देश्य पूंजीवादी राज्यसत्ता के इशारे पर बस्तर की प्राकृतिक संपदाओं की लूट सुनिश्चित करना और आदिवासियों को उनकी जमीन-जंगल से उजाड़ना है.
’इस अभियान में हमारे संगठन ने 8 बहादुर साथियों को खो दिया. इन वीरों ने अंतिम सांस तक पूंजीवादी लूट और शोषण के खिलाफ संघर्ष किया. विशेष रूप से कामरेड बड़े चोखा राव (दामोदर दादा) ने बहादुरी का प्रदर्शन किया और लड़ते हुए शहीद हो गए. उनकी मृत्यु से संगठन को अपूरणीय क्षति हुई है, लेकिन उनकी क्रांतिकारी विरासत हजारों नए साथियों को प्रेरित करेगी.
’हमारी जवाबी कार्यवाही में फ़ोर्स के लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा, जिसमें उनके 5 लोग मारे गए और कई दर्जन गंभीर रूप से घायल हुए. फ़ोर्स ने अपनी असफलता छिपाने के लिए निर्दोष ग्रामीणों पर अत्याचार किया. कई मासूम ग्रामीणों को जबरन जंगलों से खींचकर ले जाया गया और उनको मारा पीटा. कई ग्रामीणों को नक्सली बता कर फ़ोर्स वाले अपने साथ भी ले गए हैं. यहां तक कि अपनी नाकामी छुपाने के लिए मोटरसाइकिलों और ट्रैक्टरों को आग लगा दिया.
’इस ‘ऑपरेशन’ में 5000 से अधिक हिंदुत्ववादी फासीवादी सैनिक दंतेवाड़ा उप महानिरीक्षक कमलोशन कश्यप और बीजापुर एसपी जितेंद्र यादव के नेतृत्व में, अत्याधुनिक हथियारों से लैस होकर, हमारे साथियों के खिलाफ उतरे. लेकिन हमारी क्रांतिकारी ताकतों ने उन्हें कड़ा जवाब दिया.
’बस्तर अब देश का सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्र बन चुका है, जहां सरकार प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए आदिवासियों के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए है. इस तथाकथित ‘नक्सल उन्मूलन’ अभियान के तहत आदिवासी समुदायों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है.
‘हम सभी प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और जनसंगठनों से अपील करते हैं कि वे इन अमानवीय अत्याचारों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करें. यह समय अन्याय के खिलाफ खड़े होने का है. शोषण के खिलाफ संघर्ष जिंदाबाद ! क्रांतिकारी अविवादन…’.
माओवादियों और पुलिसिया गुंडों के बीच जारी इस मुठभेड़ में जहां माओवादियों के 18 गुरिल्ले शहीद हुए हैं, वहीं 5 पुलिसिया गुंडे भी मारा गया और दर्जनों घायल हुआ है. यही कारण है कि पुलिसिया गुंडे सुबह मूंह अंधेरे भाग खड़ा हुआ और अपने गुंडों की मौत पर जुवान सिल लिया. उसको अपने 5 गुंडों के मरने और दर्जनों गुंडों के घायल होने की बात कबूलने का साहस भी नहीं है.
आखिर सच कबूलने के लिए भी सच के साथ होना जरूरी होता है. झूठ की किश्ती पर सवार होने वाले भाड़े के गुंडों में सच कबूलने का साहस भी नहीं हो सकता. माओवादी अपने 18 गुरिल्लों की शहादत को कबूलता ही इसलिए है क्योंकि वह सच के साथ खड़ा है और अपने शहीदों का सम्मान करना जानता है. क्योंकि वे देश के मेहनतकश अवाम की आज़ादी की क़ीमत चुका रहे हैं, जो सिक्कों से नहीं खून से दी जाती है.
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