हेमंत कुमार झा
इधर हाल के दो वक्तव्य काबिलेगौर हैं. हालांकि, प्रत्यक्ष तौर पर उनमें आपसी कोई संबंध नहीं दिखता, लेकिन व्यापक नजरिये से देखें तो ये दोनों वक्तव्य एक ही उद्देश्य को मजबूती देते हैं.
पहला, अभी कल या परसों यूपी के योगी महाराज ने अयोध्या में रामजी की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम के दौरान उवाचा, ‘बंटे तो हमारी बहन बेटियां खामियाजा भुगतेंगी.’
दूसरा, दो चार दिन पहले लार्सन एन टुब्रो के सीईओ का वक्तव्य था, ‘ कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए. अगर मैं कर्मचारियों से रविवार के दिन भी काम ले सकूं तो मुझे खुशी होगी.’
योगी के वक्तव्य की पृष्ठभूमि में माननीय मोदी जी का वह ऐतिहासिक वक्तव्य है जो उन्होंने झारखंड चुनाव के दौरान दिया था, ‘वे आपकी बेटियां छीन ले जाएंगे.’ लार्सन एंड टुब्रो वाले के वक्तव्य की पृष्ठभूमि में इन्फोसिस के मालिक नारायणमूर्ति के वक्तव्य की अनुगूंज थी, ‘कर्मचारियों को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए.’
मोदी-योगी के वक्तव्यों से लोगों को प्रेरणा मिलती है कि ‘हमें भाजपा को वोट देकर अपने धर्म की रक्षा करनी है.‘ लार्सन टुब्रो वाले उस हाकिम और इन्फोसिस के उस मालिक के वक्तव्यों के पीछे मेहनतकश जनता को उनका संदेश है, ‘अधिक से अधिक काम करके और कम से कम वेतन लेकर हमें देश की प्रोडक्टिविटी बढ़ानी है.‘ यानी, एक सामान्य आदमी धर्म भी बचाए और देश की प्रोडक्टिविटी भी बढ़ाए. बदले में उसे क्या मिलेगा ?
क्या मिलेगा इस सवाल का जवाब हमें इस तथ्य से मिलता है, ‘पिछले पंद्रह वर्षों में इस देश के कॉरपोरेट समुदाय का मुनाफा चार गुना बढ़ा है जबकि लोअर मिडिल क्लास की आमदनी का ग्राफ इस दौरान रेंगता रह गया. लोअर मिडिल क्लास का तो रेंगता ही रहा, बड़ी संख्या में मिडिल क्लास के लोग इस दौरान आर्थिक रूप से गिर कर लोअर मिडिल क्लास की जमात में शामिल हो गए.
दुनिया भर की रिसर्च एजेंसियां बता रही हैं कि बीते 10-12 साल में भारत में मिडिल क्लास की संख्या सिकुड़ती गई है और वे पहले के मुकाबले गरीब हो गए हैं. क्योंकि, देश की जीडीपी की वृद्धि और कॉरपोरेट के मुनाफे के अनुपात में उनकी आमदनी में वृद्धि बहुत बहुत थोड़ी है और बढ़ती महंगाई ने उन पर दोहरी मार अलग से लगाई है.
कुछ महीने पहले मैंने एक विख्यात और सम्मानित पत्रिका के लिए रिसर्च आर्टिकल लिखा था. इसके लिए आंकड़े और प्रामाणिक तथ्य जुटाने के लिए खासी मेहनत भी की थी. इस दौरान अनेक तथ्यों को जानकर मैं सन्न और अचंभित सा रह गया था कि हमारा देश किस गलत दिशा में जा रहा है, हमारी पीढ़ी अपने बच्चों की पीढ़ी के लिए कितने गहरे और भयानक गड्ढे खोद रही है.
उस आर्टिकल का सार संक्षेप यह है कि भारत में कंपनियां अपने मंझोले और निचले दर्जे के कर्मचारियों की विशाल संख्या को बेहद कम वेतन देती हैं, उनसे कस कर काम लेती हैं और अपने मुनाफे का साम्राज्य दिन दूनी रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ाती जा रही हैं. कंपनियां अपने करोड़ों कर्मचारियों से काम तो प्रति दिन दस बारह घंटे लेती हैं लेकिन इतना भी वेतन नहीं देती कि वे अपने परिवार की न्यूनतम जरूरतों को पूरी कर सकें.
नतीजा, नौकरी में हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद भी उनका परिवार गरीबी रेखा से नीचे ही रह जाता है और सरकार के फ्री राशन की लाइन में लग कर, अन्य सरकारी सहायता प्राप्त कर किसी तरह जीवन को ढोता है. उनको फ्री राशन और अन्य सहायता देने के लिए सरकार मिडिल क्लास पर टैक्स पर टैक्स थोपती जाती है, बढ़ाती जाती है. नतीजा, इस देश के लोअर मिडिल ही नहीं, मिडिल क्लास की भी आर्थिक हालत खस्ताहाल हो चुकी है और अरबपतियों की पौ बारह है.
देश की प्रोडक्टिविटी…बोले तो, कॉरपोरेट का मुनाफा बढ़ाने के लिए ये धूर्त्त सीईओ और कंपनी मालिक सप्ताह में 70 घंटे, 90 घंटे काम करने की बातें करते हैं और इस देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री उन काम करने वालों का आह्वान करते हैं कि अपने धर्म की रक्षा के लिए खड़े हो जाओ, नवउदारवाद की अवैध संतानों की नग्न और बेरहम मुनाफाखोरी, निर्लज्ज ऐश को प्रोत्साहन और संरक्षण देने वाली हमारी सरकारों को समर्थन दो, हमारी पार्टी को वोट दो.
तमाम आंकड़े बताते हैं कि मिडिल क्लास पर जिस दौरान टैक्स का बोझ बढ़ाया गया, उसी दौरान कॉरपोरेट टैक्स में आनुपातिक रूप से कमी की गई. ये धूर्त्त सीईओ और कंपनी मालिक और राजनीतिक विमर्श की गरिमा को गर्त में गिराने वाले ये मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री…तमाम एक ही प्लेटफॉर्म पर खड़े हैं. मेहनतकश समुदाय के श्रम की निर्मम लूट, तरह तरह के टैक्स लाद कर, बढ़ा कर उनकी आर्थिक लूट और ऊपर से देश की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने और धर्म की ध्वजा को लहराने की जिम्मेदारी भी.
यही इनका अपनी तरह का राष्ट्रवाद है, जहां देश और धर्म और राजनीति आपस में ऐसे गड्ड मड्ड हो जाते हैं कि सर्वत्र अजीब सा विरोधाभासी कुहासा छा जाता है. राजनीतिक विमर्श को इतना पतित बनाने के लिए योगी और मोदी याद किए जाएंगे और इतिहास उनके इन वक्तव्यों को रेखांकित करेगा। इतिहास उन बेरहम मुनाफाखोरों के दौर को भी रेखांकित करेगा जो काम के घंटों को लेकर सदियों तक चले संघर्ष और विमर्श को सिर के बल खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं.
हमारी बहनें, हमारी बेटियों को असल खतरा मुनाफा के उन बेरहम सौदागरों से है जो मातृत्व अवकाश देने के बदले उन्हें नौकरी से ही निकाल दे रहे हैं क्योंकि गर्भवती अवस्था में वे उतना काम करने लायक नहीं रह जाती, जो ‘देश की प्रोडक्टिविटी, बोले तो उनका मुनाफा‘ बढ़ाने में सहायक हों, जो हमारी निर्धन श्रमिक बहन बेटियों से फैक्ट्रियों, शॉपिंग मॉल्स आदि में अनथक श्रम करवाती हैं और उन्हें इतना भी वेतन नहीं देती कि वे बाल बच्चों के साथ ठीक से जी सकें.
कॉरपोरेट प्रभुओं के ये दोनों वक्तव्य और मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री के ये दोनों वक्तव्य एक दूसरे के स्वार्थ और हित को मजबूती देते हैं और आम मेहनतकश जनता को कमजोर करते हैं. इन अंधेरों और अंधेरगर्दियों के खिलाफ आवाजें तो उठेंगी, आज नहीं तो कल. आप करोड़ों लोगों को देश और धर्म बचाने के नाम पर अनंत काल तक दिग्भ्रमित नहीं कर सकते. इतिहास करवटें लेता है और चीजे बदलती हैं.
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