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जीवन – मृत्यु

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हरेक रोज़
हज़ारों मरेंगे
हज़ारों चितायें जलेंगी
हज़ारों बेघरों को
आश्रय देगी श्मशान भूमि
जलती हुई चिताओं के पास लेट कर
कफ़न ओढ़ कर
खुले आसमान से बरसते
ठंढ के क़हर से बचने के लिए
स्वर्णिम मौक़ा मिलेगा

ज़िंदगी हर हाल में
मौत से ज़्यादा क़ीमती है

ये अलग बात है कि
जीवन और मृत्यु का
रेल की दो पटरियों सा
समानांतर हो जाना
अब कोई व्यतिक्रम नहीं है

चिता के समानांतर लेटा हुआ आदमी भी
उतना ही आदमी है
जितना कि हम सब
जो अपने अपने विश्वासों
और सुख सुविधाओं की जलती हुई
चिता के समानांतर लेटे हुए
ले रहें हैं उनसे जीने की ऊर्जा

मृत्यु से जीवन की ऊर्जा लेने वाले
औघड़ हैं हम
हमसे कोई उम्मीद नहीं है
हमें खुद से भी नहीं है
सिवा इसके कि
प्रकारांतर में एक दिन
विज्ञान के नियमों के विरुध्द
एक दूसरे से लिपट जाएँगी
दो समानांतर रेखाएं
और भोजन, प्रजनन और
उत्सर्जन के क्यूबिक आर्ट को
मिल जाएगा उसका सटीक मानी

  • सुब्रतो चटर्जी
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