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अंधभक्तों के साथ एक रात का सफर

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अंधभक्तों के साथ एक रात का सफर

कई दिनों से लगातार ट्रेन में सफर कर रहा हूं. रात में अपनी सीट पर बैठा था तो दो लड़के स्टेशन पर चढे. फिर उनमें से एक लड़का पूछा, ‘भैया कहां जा रहे हैं ?’ मैंने हंसते हुए कहा, ‘जहां ट्रेन लेकर चली जाय’. फिर वो भी हंसने लगा. फिर धीरे-धीरे उसने मुझसे बात करना शुरू किया.

उसने बताया कि ‘मैं तैयारी कर रहा हूं नौकरी की लेकिन बेरोजगारी इतनी बढ़ गयी है कि नौकरी मिलना मुश्किल हो गया, कम्पटीशन हो गया है.’ फिर बातचीत होने लगी.

फिर अगले स्टेशन पर ट्रेन रूकी तो एक पतला सा लड़का भगवा गमछा गले में लपेटे हुए पीछे की ओर बैग टांगें आया और मुझे बोला, ‘भैया थोड़ा दीजिए बैठने के लिए’. मैंंने सीट पर से पांव हटा लिया, वो बैठ गया और हम दोनों की बातें वो भी सुनने लगा.

फिर अगले स्टेशन पर 25-30 की संख्या में नौजवान लड़के चढ़े. कुछ को जगह मिली और बाकी लोग खड़े थे, वे भी हम लोगों की बातें सुनने लगे. एक घंटे के आस-पास वो लोग चुपचाप सुन रहे थे, जिससे मेरी बात हो रही थी. वो लड़का कहा, ‘बेरोजगारी, मंहगाई, शिक्षा को बेहतर बनाने के इन समस्याओं को छोड़कर हम हिन्दू-मुस्लिम में परेशान है’. मैंंने कहा, ‘हां आपकी बात सही है’. फिर उसने कहा कि ‘आतंकवाद भी एक समस्या है, जिसमें कुछ मुसलमानों का भी हाथ है’. तब मैंंने कहा कि ‘हां ये तो है लेकिन सारे मुसलमान आतकंवादी नहीं होते और इस देश के योगदान में मुसलमानों का भी योगदान है.’

फिर उन 25-30 लड़कों में से एक ने कहा कि ‘हरामखोर कहीं का. कौन-सा मुसलमान तुझे आतंकवादी नहीं लगता, सब कटुवें, मुल्ले साले एक है और तु बड़ा उनके पक्ष में बोल रहा है. साला तु क्या जानेगा, तेरे जैसे लोग रहेंगे तो जल्द भारत भी पाकिस्तान बन जाएगा और तु तो साला मीडिया के दलाल पत्रकार खबिश कुमार की मां की चु#%&%@ और देशद्रोही कन्हैया कुमार की मां की &%$#@#&##% की तरह बातें कर रहा है’ और तमाम गालियां देने लगा. फिर उनमें से एक ने कहा ‘मार साले को. बहुत गुंडा बन रहा है ?’

और फिर जिस लङके को मैंने बैठनें को जगह दिया था, जो भगवा रंग का गमछा लपेटा था, उसने भी कहा ‘हां सही है, गुंडा बन रहा है, मारो’ और फिर जिसने गाली दिया था उसने मुझ पर हाथ छोड़ा. फिर मैं एकाएक उसका हाथ पकड़ लिया और न जाने मुझे क्या हुआ मैं एकाएक बहुत जोर से चिल्लाया, ‘क्या चाहते हो तुम ? तुम्हारी समस्या क्या है ?’

मैं इतना जोर से चिल्लाया कि बोगी में सो रहे सारे लोग लगभग जग गए. ऊपर से सो रहे एक आदमी ने कहा ‘क्या हुआ ?’ फिर जिसका हाथ मैंंने पकड़ा था वो मुझे पीछे कि ओर धक्का दे दिया, मैं अपनी सीट पर गिर पड़ा और ट्रेन से स्टेशन से पहले ही वह कुद गया. गाड़ी बहुत धीमी हो चुकी थी. फिर एक ने कहा ‘हर-हर मोदी’, तो उसके साथ सारें लड़के एक साथ बोले ‘घर-घर चो&$#, हर-हर महादेव’ और मुझे भद्दी-भद्दी गालियां देने लगे.’ मुझे लगा था कि शायद स्टेशन है, तभी गाड़ी धीमी हुई है और अब रूक गयी, लेकिन वहां स्टेशन नहीं था, किसी नें जंजीर से रोकी थी.’

फिर मैंने 100 नम्बर डायल करना चाहा लेकिन नेटवर्क नहीं था. मैं पुरी तरह भयभीत था. फिर भी मैंंने बहुत हिम्मत से पूछा उस भगवे लगाए वाले लड़के से जिसने भी उन लङको के साथ में कहा था कि ‘हां, गुंडा बन रहा.’ मैंने कहा, ‘भैया आप भी उनके साथ मिलकर मुझे मारना चाहते थे. मैंने किसी को व्यक्तिगत रूप से कुछ कहा तो नहीं.’ वो शर्म से सर झुका लिया. मैंंने कहा, ‘जवाब दो.’ सारे यात्री शायद झगड़े की वजह से जग गए थे और सब मेरी बातें सुन रहे थे. मैंंने कहा, ‘जवाब दो, तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो ?’

वो बोला, ‘मुझे माफ कर दीजिए, मैं अपना संतुलन खो बैठा था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करने जा रहा था.’ फिर बोला, ‘न जानें क्यों अगर कोई मुसलमानों की बात करता है तो मुझे गुस्सा आता है, जलन होता है.’

मैने कहा, ‘आप बताओ, अब्दुल कलाम, बीर अब्दूल हमीद, अशफाक उल्ला खांं (और भी लोगों का नाम जोड़ते हुए कहा) क्या ये लोग बुरे है ? हमें इनसे नफरत करनी चाहिए ?’ वो सर नीचे किए हुए कहा, ‘नहींं’. फिर मैंने कहा, ‘इतनी नफरत क्यों ?’

फिर उसने बताया, ‘मैं महराजगंज जिला (उत्तर-प्रदेश ) का रहने वाला हूं. सिविल इन्जिनियरिंग का छात्र हूं. जाति से पंडित हूं.’ वो बोला, ‘मेरे कालेज में एक आजमगढ़ के मुस्लिम प्रोफेसर हैंं. उन्होंंने एक दिन क्लास में कहा कि ‘राम मैसेन्जर (दूत ) थे, जो मुझे बहुत बुरा लगा. जी तो किया कि कई थप्पड़ दे दूं लेकिन बहुत कंट्रोल किया. ये बातेंं कई दिनों तक मेरे दिमाग में घुमती रही.’ फिर बोला, ‘न जानें क्योंं 3-4 सालों से मैं बहुत परेशान-सा रह रहा हूं. जल्द ही इस देश पर मुसलमानों का कब्जा हो जाएगा. फिर हम कहां जाएंगें ?’

मैंंने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘ये सब बातें तुमको किसने बताया ?’ तो बोला, ‘इंटरनेट पर सब आता है. मेरे व्हाट्सअप पर कई ग्रुप है जिसमें वीएचपी और भाजपा के लोगो ने मुझे जोड़ा है और जो-जो मुसलमान करना चाहते हैंं वो सब पहले ही आ जाता है नेट पर लेकिन भैया सच पूछिए तो निकलना चाहता हूं इन सब चीजों से. कभी-कभी रात में 3 या 4 बजे सोता हूं’.

मैनें उसके फेसबुक और व्हाट्सअप देखे. तमाम ट्रोल्स, नफरत फैलाने वाले तस्वीर और पोस्ट थे. मुझे समझते देर न लगी कि ये उन्ही सब चीजों का शिकार हो गया है जिन चीजों से हम सब लोग दूर रहने की कोशिश करते है. फिर बोला, ‘भैया निकलु कैसे इन सब चींजों से ? मै शर्मिंदा हूं आपके साथ किए इस हरकत से.’ मैनें कहा, ‘अभी सब चींजे डिलीट करो’. मैने अपने सामनें ही व्हाट्सअप डिलीट करवाया.
फिर मैनें कहा कि ‘हिन्दू धर्म को कोई खतरा नही है. ये राजनितिक लोग हमें हिन्दू-मुस्लिम और दंगाई बनाकर अपना वोट बैंक बनाते है.’

मैनें कहा, ‘तमाम तरह की अफवाहे फैलायी जा रही है सोशल मीडिया पर. हम उसे सच मान ले रहे है. हमें बहुत सर्तक रहने की जरूरत है. आप पढाई पर ध्यान दीजिए. कहीं ऐसा न हो आपके माता-पिता आपको इंन्जीनियर बनाने का सपना देख रहें हो और आप आप एक दंगाई हत्यारें बन कर लौटें. मैने फिर कहा, ‘सोचो एक बार अपने दिमाग से कि कहीं तुम हिन्दुत्व के नाम पर दंगाई हत्यारे तो नही बन रहे हो ?
कहीं तुम देशभक्ति की वेशभुषा में छिपकर आप फर्जी देशभक्त तो नही बन रहें हो ? कहीं आप अपने लक्ष्य से भटकर हत्यारे बन कर लोगों का कत्ल करने की तैयारी तो नही कर रहे हो ? कि धर्म हमसे है, न  कि हम धर्म से.’

इतना सब कुछ कहनें के बाद मेरा गला रूंध गया था. मैं बहुत बेचैन था. फिर कहा, ‘सम्भल जाओ दोस्त, कहीं ऐसा न हो कि तुम जिस रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहें हो, वो गलत है. ये तुम्हें बहुत बाद मे समझ आए और जब तुम वापस लौटो तो शायद बहुत देर हो जाए. कहीं तुम्हारे परिवार, रिश्ते, तुम्हारे चाहने वालों पर कोई कलंक न लगे. हो सके तो अभी से सम्भल जाओ.’ फिर वो मुझसे नजरें नही मिला पा रहा था.

सारे लोग चुप थे. जो शुरू में दो लङके चढे थे ट्रेन में और जो मुझसे बात कर रहे थे, वो भी चुप थे शायद डर की वजह से. वो फिर बोला, ‘भैया माफ कर दो.’ हाथ जोङनें लगा. मैने उसका हाथ पकङ लिया और कहा, ‘इसकी जरूरत नही है, बस इन सबसे दूर रहो और पढाई करो. अच्छे विचार मन में लाओ.’

जब मैं अपने स्टेशन पर उतरा तो यही सारी बातें मेरे दिमाग में घुम रही थी. हमारे नौजवानों के दिमाग में इतना जहर कौन भर रहा है कि इनका दिमाग कुंठीत और संकीर्ण हो चुका है ? कि बिना कुछ सोचे-समझे कुछ भी करने को तैयार है ?

स्टेशन से ज्योहि नीचे उतरा सबसे पहले यही पोस्ट लिख कर डाला. मैं भयभीत हो चुका था. शायद अगर मैं जोर से ना चिल्लाकर उनका बिरोध करता और लोग नही जगते तो शायद मेरे भी साथ कुछ बुरा होता.

गौतम कुमार के साथ घटी घटना – आकांक्षा पटवर्द्धन के वाल से

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