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भारत की जनताना सरकार को कुचलने के लिए अमित शाह का हत्या अभियान

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भारत में दो सत्ता मौजूद है और दोनों का ही अपना-अपना संविधान है. पहली सत्ता भारत सरकार है, जिसका मुखिया (प्रधानमंत्री) वर्तमान में नरेन्द्र मोदी है. दूसरी सत्ता जनताना सरकार है, जिसका वर्तमान में राष्ट्रपति महामहिम कॉ. सुजाता हैं. नरेन्द्र मोदी की सरकार मौजूदा संविधान को भी हटाकर ब्राह्मणवादी ‘मनुस्मृति’ लागू करने पर आतुर है. वहीं जनताना सरकार का अपना समाजवादी संविधान है, जो कार्ल मार्क्स के विश्व प्रसिद्ध कृति ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ पर आधारित है.

मालूम हो कि लेनिन के नेतृत्व में रुस की जनता ने बोल्शेविक पार्टी का गठन किया और सन् 1917 में बोल्शेविक क्रांति कर अपने देश में समाजवादी व्यवस्था कायम कर मनुष्यों की मूलभूत समस्या – रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य – समेत तमाम समस्याओं को खत्म कर दिया अथवा खत्म करने के मार्ग पर चल दिया. इन समस्याओं में चोरी, हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार, वेश्यावृत्ति, भीख मांगने जैसी बुराइयों को जड़ से समाप्त कर दिया.

इससे प्रेरित होकर दुनिया भर की जनता अपने अपने देशों में क्रांति की मशालें लेकर चल दिया. लाखों, करोड़ों लोगों ने मानवता को बचाने और सुन्दर भविष्य की ओर ले जाने के मार्ग पर अपनी बहुमूल्य जानें कुर्बान कर दिया. तत्पश्चात, चीन समेत लगभग आधी दुनिया में समाजवादी झंडा लहराने लगा और मनुष्यों की बुनियादी समस्याओं को दूर करने लगा.

लेकिन इससे हताश सदियों से मनुष्यों के शोषण पर जीने वाले बुरे तत्वों – जमींदार, सामंत, पूंजीपतियों समेत मानवता विरोधी ताकतों – ने उन देशों के लोगों के बीच मौजूद बुरे शरीफजादों की मदद से पहले 1956 में रुस (जो बाद में सोवियत संघ नाम से प्रसिद्ध हुआ था) को ध्वस्त कर दिया और फिर बाद में महान चीनी गणराज्य को भी 1976 के बाद अपने शोषणकारी गिरोह में शामिल कर लिया. इस प्रकार दुनिया भर में मानवता के भविष्य को षड्यंत्रों और अन्य तरीकों से ध्वस्त कर दिया.

आज जब आप इस लेख को पढ़ रहे हैं तब दुनिया के किसी भी हिस्से में समाजवादी व्यवस्था कायम नहीं है, लेकिन दुनिया के तकरीबन हर देश में वहां की जनता इस शोषणकारी व्यवस्था के विरुद्ध हथियार उठाकर अपने अपने तरीकों से लड़ रही है और वहां वहां के शोषणकारी सत्ता उन विद्रोहों को खून में डुबोकर कर कुचलने का प्रयास कर रही है. इसी कड़ी में हमारा महान देश भारत भी है, जहां के कम्युनिस्ट क्रांतिकारी विद्रोह को चोरों और पॉकेटमारों की सत्ता खून में डुबोकर कुचल रही है.

हमारे देश भारत में पहली बार कम्युनिस्ट क्रांतिकारी विद्रोह सन् 1967 में हुआ था, जिसने पहली बार सत्ता पर कब्जा करने का सटीक रणनीति प्रस्तुत किया था, जो बाद में नक्सलबाड़ी विद्रोह के नाम पर प्रसिद्ध हुआ. लेकिन भारत की लुटेरी सत्ता ने तकरीबन 20 हजार बंगाली युवाओं की क्रूर हत्या कर इसे खत्म करने का प्रयास किया. तत्कालिक नुकसान के बाद यह विद्रोह समूचे भारत में फैल गया और माओवादी आंदोलन के रुप में लुटेरा सत्ता के सामने चुनौती और भारत की मेहनतकश जनता के सामने मजबूत विकल्प प्रस्तुत किया.

मेहनतकश जनता के सामने इसने पहली बार ‘जनताना सरकार’ की ठोस अवधारणा प्रस्तुत किया और अपने प्रभाव इलाके में इसको सचमुच में स्थापित भी किया और जनता के सामने सचमुच का एक समाजवादी सरकार बनाकर उसके समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया. देश भर में व्याप्त स्त्री विरोधी हिंसा खासकर बलात्कार को नियंत्रित किया. आज भारत सरकार जहां शिक्षा का निजीकरण का मंहगी और जनविरोधी शिक्षा बांट रही है तो वहीं लाखों सरकारी स्कूलों को बंद कर रही है, जबकि जनताना सरकार अपने प्रभाव इलाकों में निःशुल्क शिक्षा हेतु स्कूलों का निर्माण कर रही है.

भारत की यह लुटेरों की सरकार लोगों के घरों पर बुलडोजर चला रही है, जबकि जनताना सरकार लोगों के घरों का निर्माण कर रही है, सड़कें बनवा रही है, सौर ऊर्जा संचालित बिजली व अन्य कृषि यंत्रों को उपलब्ध करवा रही है. भारत सरकार जहां कॉरपोरेट घरानों के लिए जंगलों के लाखों पेड़ों को काट कर गिरा रही है और उसमें रहने वाले लोगों को उसके जमीनों से खदेड़ रही है तो वहीं जनताना सरकार जंगलों, उसके संसाधनों और उसके निवासियों की सुरक्षा हेतु नये नये कदम उठा रही है.

भारत सरकार की अदालतें कॉरपोरेट घरानों का पंचायत बन गया है और देश के निवासियों के लिए शोषण का औजार बन गई है तो वहीं, जनताना सरकार अपनी अदालतें बना कर जनता के बीच न्याय की एक से बढ़कर एक मिसालें रख रही है. अर्थात, भारत सरकार की ही तरह ‘जनताना सरकार’ का अपना मंत्रालय, विभाग, अदालतें व सैन्य महकमा है, जो उसके संविधान को लागू कर रही है और जनता की समस्याओं को दूर कर रही है.

इससे बौखलाई भारत सरकार, जिसकी विश्वसनीयता हर दिन घट रही है, वह जनताना सरकार को ध्वस्त करने के लिए लाखों की तादाद में अपने भाड़े के लठैतों – सेना-पुलिस – को झोंक दिया है. जनताना सरकार के सैन्य ताकत और उसके नेताओं की हत्या करने का विशाल अभियान चला दिया है.

इतना ही नहीं, भारत सरकार के अपराधी गृहमंत्री अमित शाह, जिसे इसी सरकार का न्यायालय ने हत्यारा मानते हुए तड़ीपार घोषित किया था, ने 31 मार्च, 2026 तक ‘जनताना सरकार’ और उसके सैन्य व राजनीतिक ईकाई ‘सीपीआई (माओवादी)’ को देश से खत्म करने का ऐलान किया है और इसके साथ ही लोकलुभावन जुमला भी पेश किया है, जिसका वास्तविक चेहरा यह देश पिछले दस सालों से रोज देख रहा है.

अंग्रेजी वेबसाइट ‘फोर्स’ ने अमित शाह के इस लोकलुभावन जुमलों को कुछ इस तरह समेटा है. यह वेबसाइट बताता है कि अमित शाह ने छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्यों में वामपंथी उग्रवाद की स्थिति की समीक्षा की. 24 अगस्त को रायपुर, छत्तीसगढ़ की अपनी यात्रा के दौरान, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) पर एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की. इसके अलावा, उनके एजेंडे में छत्तीसगढ़ और अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के बीच समन्वय और सुरक्षा बलों की क्षमता निर्माण का आकलन करना था.

बैठक में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन, इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के निदेशक और  सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और आईटीबीपी के महानिदेशक उपस्थित थे. बैठक में आंध्र प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलंगाना के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक भी शामिल हुए.

बैठक को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ अभियान निर्णायक चरण में है. उन्होंने दोहराया कि सरकार मार्च 2026 से पहले देश से नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है. उनके मुताबिक, इसके खिलाफ अभियान की शुरुआत में जो गति और तीव्रता थी, उससे दोगुनी गति और तीव्रता के साथ ‘दो साल और काम करने की जरूरत है.’ ‘नक्सलवाद, तभी इस समस्या को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है.’

विकास, अभियोजन और संचालन तीनों मोर्चों पर एक रणनीति के साथ वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ सफल लड़ाई लड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को श्रेय देते हुए शाह ने कहा कि समस्या अब काफी हद तक कम हो गई है और छत्तीसगढ़ के कुछ इलाके तक ही सीमित है. वह राज्य सरकार की प्रशंसा खुलकर किये.

उनके अनुसार, छत्तीसगढ़ सरकार ने पिछले सात महीनों में बहुत बेहतर काम किया है, इस दौरान अधिकतम संख्या में नक्सली आतंकवादियों को मार गिराया गया है, अधिकतम ने आत्मसमर्पण किया है और अधिकतम को गिरफ्तार किया गया है. उन्होंने यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने सरकारी योजनाओं को शत-प्रतिशत संतुष्ट करने का अभियान शुरू किया है और इसके साथ ही बस्तर ओलंपिक, पैरालंपिक, स्थानीय कला, संस्कृति और खाद्यों के प्रति सम्मान बढ़ाने का काम किया है.

संयोग से, पिछले कुछ महीनों में मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया पर कई रिपोर्ट और वीडियो सामने आए हैं, जिसमें बताया गया है कि स्कूली बच्चों सहित कई निर्दोष आदिवासियों को मार दिया गया है और उन्हें माओवादी करार दिया गया है. आंकड़ों में जोड़ने के लिए आदिवासी पुरुषों को माओवादियों के रूप में प्रताड़ित करने और ‘आत्मसमर्पण’ करने के लिए मजबूर करने की भी खबरें हैं.

गृह मंत्री की समीक्षा बैठक में वापस आते हैं. शाह ने कहा कि वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ अभियान को और अधिक गति देने के लिए, नक्सल प्रभावित राज्यों के सभी पुलिस महानिदेशकों को नक्सल विरोधी अभियानों में लगी अपनी टीमों के साथ साप्ताहिक बैठकें करके एक कार्य योजना तैयार करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मुख्य सचिवों को हर पखवाड़े नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से संबंधित विकास कार्यों की समीक्षा बैठक भी करनी चाहिए. जब तक नक्सली अभियानों की लगातार निगरानी नहीं की जाएगी, ‘हम वांछित परिणाम हासिल नहीं कर पाएंगे,’

उन्होंने कहा कि लड़ाई केवल वैचारिक नहीं है, बल्कि सुदूर क्षेत्रों तक विकास पहुंचाने की भी है. उन्होंने कहा, ‘एलडब्ल्यूई के विचारों को फैलाने वाले लोग आदिवासी भाइयों और बहनों और पूरे समुदाय को भावनात्मक रूप से गुमराह करते हैं.’ उन्होंने कहा कि केवल उन माओवादी उग्रवादियों को दंडित किया जाना चाहिए, जो ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं जहां से वापसी संभव नहीं है. दूसरों को भी समर्पण के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

पुलिस प्रमुखों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्त कार्य बल (जेटीएफ) के पास हर राज्य में अनुभवी और उपयुक्त बल उपलब्ध होने चाहिए क्योंकि नक्सल विरोधी अभियानों के लिए एक विशिष्ट प्रकार के कौशल की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा, ‘इसमें केवल उन्हीं अधिकारियों को तैनात किया जाना चाहिए जो इसके लिए उपयुक्त हों और क्षेत्र की जानकारी रखते हों… पुलिस महानिदेशकों को स्वयं समीक्षा करनी चाहिए और संयुक्त कार्य बल में तदनुसार बदलाव करना चाहिए.’ इसके अलावा, राज्यों की विशेष जांच एजेंसी (एसआईए) को एनआईए की तरह ही जांच और अभियोजन के लिए तैयार और प्रशिक्षित करने की जरूरत है.

हालांकि, उनके अनुसार, अंतरराज्यीय मामलों को जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया जाना चाहिए, क्योंकि वामपंथी उग्रवाद के वित्तपोषण, हथियारों की आपूर्ति और उनके निर्माण को रोकने के लिए यह आवश्यक है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) मामलों में अभियोजन को बेहतर ढंग से तैयार करने के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) के माध्यम से समन्वय पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.

बाद में मीडिया से बात करते हुए शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने लोगों में वामपंथी विचारधारा के बजाय विकास के प्रति विश्वास पैदा करने का काम किया है. शाह ने वामपंथी उग्रवाद को देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए इसमें शामिल युवाओं से हिंसा छोड़कर विकास के महायज्ञ में शामिल होने का आह्वान किया.

उन्होंने बताया कि 2022 में, चार दशकों में पहली बार, वामपंथी उग्रवाद के कारण होने वाली मौतों की संख्या 100 से कम हो गई है. जबकि 2010 में मौतों की सबसे अधिक संख्या 1,005 दर्ज की गई थी, 2023 में यह संख्या कम हो गई 138. 2017 में गठित सीआरपीएफ की ‘बस्तरिया बटालियन’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सभी 400 जवान बस्तर क्षेत्र से थे, ऐसे क्षेत्रों से जैसे दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर.

इससे पहले, 7 अगस्त को, राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि भारत सरकार ने 2015 में वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना को मंजूरी दी थी. इसमें सुरक्षा से जुड़ी एक बहु-आयामी रणनीति की परिकल्पना की गई है. संबंधित उपाय, विकास हस्तक्षेप, स्थानीय समुदायों के अधिकारों और हकदारियों को सुनिश्चित करना आदि.

सुरक्षा के मोर्चे पर, सरकार केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की बटालियन, प्रशिक्षण, राज्य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए धन, उपकरण और सुविधाएं प्रदान करके वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्य सरकारों की सहायता करती है. हथियार, ख़ुफ़िया जानकारी साझा करना, गढ़वाले पुलिस स्टेशनों का निर्माण इत्यादि.

विकास के मोर्चे पर, सरकार ने सड़क नेटवर्क के विस्तार, दूरसंचार कनेक्टिविटी में सुधार, कौशल और वित्तीय समावेशन पर विशेष जोर देने के साथ कई विशिष्ट पहल की हैं. उनके अनुसार, पिछले 10 वर्षों में विशेष बुनियादी ढांचा योजना (एसआईएस), सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) और विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए) योजनाओं के तहत वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों की क्षमता निर्माण के लिए 6,908 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं.

इसके अलावा, वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा शिविरों में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को संबोधित करने और हेलीकॉप्टरों के लिए केंद्रीय एजेंसियों को वामपंथी उग्रवाद प्रबंधन (ACALWEM) योजना के लिए केंद्रीय एजेंसियों की सहायता के तहत 1,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं.

पिछले 10 वर्षों में किए गए कुछ विकासात्मक उपायों में शामिल हैं :

  1. सड़क नेटवर्क के विस्तार के लिए 14,395 किमी सड़कों का निर्माण किया गया है, जिनमें से 11,474 किमी का निर्माण पिछले 10 वर्षों में किया गया है.
  2. दूरसंचार कनेक्टिविटी में सुधार के लिए वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में 5,139 टावर लगाए गए हैं.
  3. वित्तीय समावेशन के लिए, 30 सबसे अधिक वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में 1,007 बैंक शाखाएं और 937 एटीएम और वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में 5,731 नए डाकघर खोले गए हैं.
  4. कौशल विकास के लिए, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में 46 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) और 49 कौशल विकास केंद्र (एसडीसी) क्रियाशील बनाए गए हैं.
  5. वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के आदिवासी ब्लॉकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में 130 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (ईएमआरएस) क्रियाशील किए गए हैं.

परिणामस्वरूप, हिंसा के स्तर में 73 प्रतिशत की कमी आई है. नागरिकों और सुरक्षा बलों की मौतों की संख्या में 86 प्रतिशत की कमी आई है. 2024 में 30 जून तक वामपंथी उग्रवाद से जुड़ी घटनाओं में 32 फीसदी की कमी आई है.

वामपंथी हिंसा का भौगोलिक प्रसार भी काफी हद तक कम हो गया है – 2013 में 10 राज्यों में 126 जिलों से घटकर 2024 में नौ राज्यों में केवल 38 जिलों तक रह गया है. वामपंथी हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या 2010 में 96 जिलों में 465 से घटकर 2023 में 42 जिलों में 171 हो गई है.

वेबसाइट द्वारा दी गई जानकारी यहां समाप्त होती है. इसमें बताया गया ‘वामपंथी उग्रवाद’, ‘जनताना सरकार’ के लिए संबोधित था. अपराधी मानसिकता वाले इस अमित शाह को लगता है कि जनताना सरकार का अस्तित्व का पैमाना ‘हिंसा’ के द्वारा मापा जाता है, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है. जनताना सरकार अपने अन्य तमाम रुपों में मौजूद है, जिसमें समाजविरोधी ताकतों के खिलाफ की जाने वाली हिंसा एक मात्र रुप है.

चूंकि देश के अंदर तमाम अपराधी तत्वों, लुटेरों, बलात्कारियों की हिफाजत और सुरक्षा मौजूदा भारत सरकार अपने वेतनभोगी पुलिसिया गुंडों के जरिए करता है, इसलिए उसके खिलाफ समाज की हिफाजत के लिए जनताना सरकार की सैन्य टुकड़ियों (पीएलजीए) की मौजूदगी जरूरी है, जिसमें जनता अपने बहादुर बेटों को हर दिन भर्ती के लिए भेजती है. जिसे खत्म करना इस अपराधी सरकार और उसके भारे के गुंडों के लिए असंभव है. भले ही एक क्षेत्र में कुछ समय के लिए वह पीछे हट जाये लेकिन इतिहास गवाह है वह अपनी जीत के लिए मौजूद जरूर रहेगी. जनताना सरकार की सत्ता मौजूदा लुटेरों की सत्ता का स्थान जरूर लेगी.

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