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आमरण अनशन

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अन्न पाणी त्याग
थोड़ा-थोड़ा मरने से
हुक्मरान की संवेदनाएं
लौट आएंगी
मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
मैं हवा में बातें नहीं कर रहा
मैं देख रहा हूं
बस्तर के जंगलों में
छोटे छोटे बच्चों के
हाथों की ऊंगलियां कटते हुए
उनके गले और सिर में गोलियां लगते हुए
धान काटने गये किसानों को
फर्जी मुठभेड़ में मरते हुए
छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर
बुजुर्ग महिलाओं के साथ बलात्कार होते हुए

मैं ये भी देख रहा हूं
धरती के आदिमानव को
खत्म करने के लिए
हुक्मरान ने उतार दी है सेना
अपने मित्रों की हवस शांत करने के लिए
भारत के फेफड़ा कहे जाने वाले
जंगलों को कंक्रीट में बदलने के लिए

जब ये सब कुछ हो रहा है
हम दूर मैदानों में बैठकर
धूप सेंकते हुए ठहाके मारकर हंस रहे थे
हमारी हंसी का ही असर है ये
हुक्मरान संवेदनशीलता से परे
भगवान बन बैठा
क्योंकि हम जंगल की लड़ाई को
मैदानों की लड़ाई से जोड़ने में असफल रहे

अपने जंगलों पहाड़ों के लिए
आदिमानवों ने हथियार उठा लिए
जो उनका चुनाव नहीं मजबूरी है
उन्होंने भूख से
थोड़ा थोड़ा मरने का रास्ता नहीं चुना
क्योंकि वो अपना इतिहास भूले नहीं हैं
और अपने आदर्शों का अपमान
उन्हें बिलकुल बर्दाश्त नहीं है

हम जो ये रास्ता चुन रहे हैं
हुक्मरान को संवेदनशील बनाने के लिए
या तो अपना इतिहास नहीं जानते
और भूल गए हैं अपने आदर्शों की शहादतें
या फिर नहीं जानते
जो हुक्मरान भगवान बन जाते हैं
उन्हें संवेदनशील नहीं बनाया जा सकता
सिर्फ दफनाया जाता है

  • संदीप कुमार
    18-12-2024

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