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…ये दोगलाई कैसे एक्सेप्ट करूं ?

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...ये दोगलाई कैसे एक्सेप्ट करूं ?
…ये दोगलाई कैसे एक्सेप्ट करूं ?

इंदिरा गांधी एक दिन सुबह उठी. उन्हें सपने में सावरकर आये थे. उनका मन श्रद्धा से भरा हुआ था. तुरन्त कलम उठाई, और सावरकर को ‘रिमार्केबल सन ऑफ इंडिया’ लिखकर उनके ‘डेयरिंग डिफायन्स’ की प्रसंशा की. और पत्र को संघियों के पास भेज दिया. ताकि सनद रहे, और जहां कहीं सावरकर को उनके कायराना और क्रिमिनल कामों के लिए बेईज्जत किया जा रहा हो, वहां इंदिरा गांधी द्वारा दिया बहादुरी का यह सर्टिफिकेट दिखा कर, माफिवीर की फ़टी हुई इज्जत सिली जा सके.

परंतु मैं इसे नहीं मानता. पहली बात तो यह है कि इंदिरा सर्टिफिकेट देने वाली कौन ?? मैं इंदिरा गांधी को महान नहीं मानता, इसके कई कारण है, जैसे –

  1. इंदिरा के डैडी मुसलमान थे. इंदिरा गांधी स्वयं भी धर्म बदलकर मैमूना बेगम बन गयी थी. वो बाबर की कब्र पर फूल चढ़ाती थी, और सिखों पर बेमतलब मनोरंजन हेतु अत्याचार करती थी. एग्जेक्टली औरँगजेब स्टाईल में…और तो और, उनके पति फिरोज का नाम भी मुसलमानी है. और मुझ जैसे शुद्ध सनातनी व्यक्ति के किसी मुसलमान औरत का सर्टीफिकेट फुलटूक इनवैलिड है.
  2. इंदिरा गांधी ने 90 हजार पाकिस्तानी कैदियों के बदले कश्मीर नहीं लिया, और जो सेना ने जीता, वह समझौते के मेज पर हार गई. याने कुल मिलाकर वह नासमझ महिला थी. ऐसे नामसझ के द्वारा किसी कायर को दिए वीरता सर्टिफिकेट की वैल्यू दो कौड़ी की नहीं.
  3. इंदिरा ने इमरजेंसी लगाई थी. वह तानाशाह थी. सत्ता बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी और महाराष्ट्र में 1980 में इलेक्शन होने थे तो चुनाव में बेनिफिट मिल सकता है, सोचकर मराठियों को खुश करने के कुछ लिख बोल दिया, तो उसकी वैल्यू मोदी जी के 15 लाख के चेक के बराबर है. बोले तो जीरो बैलेंस पे बाउंस…

तो व्हाट्सप का स्टूडेंट होने के नाते मैं न इंदिरा गांधी की इज्जत करता, न उनके द्वारा इज्जत किये गए किसी नक्काल माफी मंगुआ वीर की लेकिन एक और कारण है, उनके लिए, जो व्हाट्सप पर यकीन नहीं करते, और वामपन्थी बुद्धिजीवी किस्म के लोग हैं. तो भईया, अंग्रेजी पढ़े बुद्धिजीवी ध्यान से पत्र पढ़ें, शुरू होता है –

आई एम इन रिसिप्ट ऑफ योर लेटर…याने कोई पत्र आया है, जिसके जवाब में यह पत्र लिखा गया है. बुद्धिजीवी हो, तो नीचे एड्रेस पढ़कर समझ में आ जायेगा कि यह पत्र सावरकर स्मृति संस्थान के सचिव ने भेजा था, अब उन्हें उत्तर लिखा गया है.

पत्र का मजमून बताता है कि सचिव साहब ने, इंदिरा गांधी को सावरकर जन्मशती समारोह में आने का आग्रह करते हुए तिथि डेट की सूचना दी होगी. अब पीएम को बुला रहे हैं, तो बतौर मुख्य अतिथि की बुला रहे होंगे. और यह पत्र उसका उत्तर है, जिसमें वे शामिल होने से साफ इनकार कर रही हैं. हां, वे ‘भक्क बे’ की जगह सॉफ्ट वर्ड्स यूज कर रही है.

लिखती हैं कि आपका पत्र मिला. महान बहादुर रिमार्केबल पुत्र सावरकर बड़े सेनानी थे. उनके बड्डे सेलिब्रेशन का आपका प्लान बढ़िया से सक्सेस हो. मेरी शुभकामनाएं. (मने मैं नहीं आने वाली). अव इस समझ के साथ पत्र पढिये. पूरा कॉन्टेस्ट समझ आ जायेगा.

सन 2008 के आसपास बिहार में बड़ी बाढ़ आई थी. हम युवा थे, तब बड़े सम्वेदनशील थे. तो आधा दर्जन मित्रों के साथ, ट्रक भर राहत सामग्री लेकर लेकर गए. सुपौल जिले के भूड़ा नाम के गांव में शिविर लगाया. दस दिन सेवा दी वापस आकर बिहार के गवर्नर आर. एल. भाटिया को अपने काम की जानकारी भेजी, और कुछ फ़ोटो.

राज्यपाल महोदय का अंग्रेजी में जवाब आया. इतनी भूरी भूरी प्रशंसा थी कि पढ़कर लगा कि मेरे से बड़ा आदमी तो कोई हइये नहीं है, और राजगपाल महोदय मेरे पर्सनली कर्जदार हैं. पर मैं फुदकने नहीं लगा. जानता हूं कि वह हाई ऑफिस है. यह उस पद की विनम्रता है, अजर सुंदर अंग्रेजी भाषा है. जो किसी अच्छे ड्राफ्ट करने वाले अफसर ने जवाब में लिखकर दिया, राज्यपाल महोदय ने साइन कर दिया. कल को कोई चोरी चकारी में धर लिया जाऊं, तो वह पत्र मेरे चरित्र का सर्टिफिकेट नहीं बन जाता.

तो एक तरफ इंदिरा को बेईमान, तानाशाह, मूर्ख और मुसलमान भी बताएं, और उन्हें ऑफिस द्वारा ड्राफ्ट किये गये किसी पत्र के शब्द उठाकर उसे सावरकर की वीरता का प्रमाण भी बताएं…ये दोगलाई कैसे एक्सेप्ट करूं.

तो साहब, मैं इंदिरा सम्बन्धी, आईटी सेल के तमाम व्हाट्सप पर ही यकीन करता हूं, और इसलिए इंदिरा गांधी की महानता, इंदिरा के पत्र, उनकी सावरकर के ऊपर बनवाई गई डाक्यूमेंट्री और छपाये गए 60 पैसे वाले डाक टिकट, सब रिजेक्ट करता हूं.

  • मनीष सिंह

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