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खुदाई

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खुदाई
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जुलूस निकलने के बाद गली में सन्नाटा था. पत्थरों से पूरी गली पट गयी थी. पत्थर खून से सने थे.

कोई देखता तो यही कहता कि वे खून के आंसू रो रहे हैं !

सदियों बाद एक नई सभ्यता का विकास हुआ. ठीक उसी जगह खुदाई हुई.

खनन में रोटी के कोई अवशेष न मिले. न कोई किताब मिली, और न ही कोई डिग्री; मगर जब खुदाई थोड़ी और गहरी की गई तो नये मानव के आश्चर्य का ठिकाना न रहा ! उसे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ.

उन पत्थरों के नीचे उसे एक कुर्सी मिली !

कुर्सी काठ की नहीं अस्थियों की बनी हुई थी ! और कमाल की बात यह कि वह कुर्सी बिल्कुल नई-सी दीखती थी !

  • अनूप मणि त्रिपाठी

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