Home गेस्ट ब्लॉग निपूतों के गैंग को आपके बच्चे चाहिए…

निपूतों के गैंग को आपके बच्चे चाहिए…

2 second read
0
0
124
निपूतों के गैंग को आपके बच्चे चाहिए...
निपूतों के गैंग को आपके बच्चे चाहिए…

मोहन भागवत का कहना है कि तीन बच्चे पैदा करने की जरूरत है, वरना समाज खतरे में आ जायेगा. हां, खतरे तो बहुतेरे हैं इस समाज पर. बेरोजगारी, घटती डिस्पोजेबल इनकम, महंगी रोटी दाल, दवा, कपड़े, घर और कर्ज. लेकिन सबसे बड़ा खतरा इस समाज पर कोई है, तो वो मि. भागवत का संगठन है जिसने ऑक्टोपस की तरह, समाज का गला चौतरफा दबा रखा है.

यानी, प्रशासन, राजनीति, संस्कृति की कोमलता, उसकी पवित्रता नष्ट करने वाला, जिस चीज को छुए, उसे भस्म कर देने वाला. युवा, आबाल वृद्ध के मानस में जहर भरने वाला हजार मुख का दैत्य, भागवत जिसके शीर्षमुख हैं. विश्वास नही ! आसपास देखिए. हर वो चीज जिस पर दस साल पहले आपको सामान्य भरोसा था, आज कैसा देखते हैं उसे ??

टीवी अखबार ?? जज ज्यूडिशियरी?? पुलिस प्रशासन ?? यूपीएससी, पीएससी?? नीट आईआईटी रिजल्ट? सर्वे?? एग्जिट पोल?? ठेके? ट्रेनों की समय सारणी?? शिक्षकों, सेलेब्रिटियों की सीख?? मामाजी का फारवर्ड??अपना भविष्य?? पढ़ा गया इतिहास?? एनसीईआरटी की किताब? चुनाव आयोग?सुप्रीम कोर्ट? बड़े बड़े जज?? कौन सी चीज है, जो अधोगामी,पथभ्रष्ट नहीं हो गयी.

दस साल पहले आप इनके निर्णयों और काम और भरोसा करते थे, आज इनमे से किस पर भरोसा है ? दूसरों की छोड़िए, क्या खुद पर भरोसा है ?? तब हमें संविधान, और अपने जनता होने की ताकत भरोसा था. मोमबत्ती लेकर बैठे पांच हजार लोग सरकार हिला लेते थे.

जंतर मंतर पर 10 दिन तख्ती लेकर बैठा शख्स भी सत्ता के कंगूरों तक अपनी बात पहुंचा लेता था. सत्ता लचीली थी, झुकती थी. ज्ञापन लेती थी. कम से कम सुनवाई का उपक्रम करती थी. समाधान का आश्वासन तो देती थी.

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्पीकर, तमाम संवैधानिक पद, उस पर बैठे लोग, हर व्यक्ति.. या कहिये संस्थान पर एक भरोसा था कि कोई एक गलत करे, तो दूसरा बाधा बनेगा. तब उचित और अनुचित में संघर्ष होगा. कोई न कोई सत्य को अपहेल्ड करेगा. आज क्या हाल है इस विश्वास का ?

साफ पता है कि सरकार झूठ बोलती है, नकली आंकड़े देती है, प्रोपगंडा करती हैं, ठगती है. लालच देती, अतथ्य से कन्फ्यूज करती हैं. बेईमानी, छल, हेकड़ी से काम करती है. पकड़ी जाती है, तो विवाद करती है, प्रहार करती है और नजीर पेश करती है.

समाज का श्रेष्ठ वर्ग जो करता दिखता है, दूसरे हिस्से उसकी कॉपी करते हैं. तब ये नाली नीचे तक बहती है. संसद से चौपाल से घर के ड्राइंग रूम तक, विवाद, हेठी, झूठ, डाइवर्जन बह रहा है. वर्कप्लेस, सिनेमा, किताबे, बातें, न्यूज, जहर से अटे पड़े हैं.

फाल्सी, अतथ्य, बेईमानी, ठगी, आपके गिर्द घेरा बनाये हैं. चाहे अनचाहे, समर्थन विरोध में आप इस जहर से लथपथ हैं. इस दौर की सचाई यही है. और यह आरएसएस की देन है.

ये जहर, ये भ्रंश इसकी कुशिक्षा और इसके दूषित डीएनए से सने लोगों की मुख्यधारा पर कब्जे का नतीजा है. एक संगठन जिसने जो फासिज्म को धर्म के चोले में पेश करता है. उसके बूते राजनीति करता है. छिपकर, पीछे रहकर.. बिना दिखे, पर हर जगह दिखकर.

सदा से झूठी फुसफुसाहटों पर अपना विस्तार करता आया है. छल, डबल स्पीक, वादाखिलाफी, भ्रम, भय और षडयंत्र से समाज पर कब्जा, नियंत्रण करता गया है. हमारे दिमाग से खेलता है. रोज झूठ का नया जाल रचता है.

वरना जिन लोगों ने बैन हटाने के लिए राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने कान पकड़ने का लिखित वचन दिया था, आज वह संगठन अपने चेले चपाटियो को सर्वोच्च पदों तक पहुंचाने में कैसे कामयाब है ? वह भी इलेक्टोरल पॉलिटिक्स के रास्ते. सोचिये जरा.

ऐसा नहीं कि गलतियां, बेईमानी पहले न थी. पर हमारी सोच में गलत, कम से कम ‘गलत’ तो होता था. सत्य खुल जाए तो शर्म का, इस्तीफों का, आलोचना का बायस होता था.

पर आज गलत ही सही है. ‘सत्य-मेरे ठेंगे पर’ यही हमारे समाज को इस संगठन का कॉन्ट्रिब्यूशन है. दरअसल आरएसएस ने इस देश को, इसकी संस्कृति को, सर के बल खड़ा कर दिया है.

110 करोड़ के समाज में बड़ा हिस्सा अब दंगाई, गालीबाज, हेकड़ीबाज, मूर्ख, दमनकारी और अंहकारी मानसिकता का शिकार हो चुका है. आरएसएस ने इस देश के यूथ को जॉम्बी बना दिया है.

लेकिन यह अभी नाकाफी है. फौज और बड़ी चाहिए. भूखे, नंगे, लड़ाकुओं, मरजीवड़ों के दस्ते चाहिए. तो भागवत को लगता है कि जो इनकी सुनते हैं, उनकी मानते हैं, उन्हें संख्या बढ़ानी चाहिए.

पागलपन घटा, पागल लोग घटे…तो पागलपन की यह फैक्ट्री खतरे में आ जायेगी. जिन निपूतों को बच्चों की मौतों का कभी फर्क नहीं पड़ता, उन्हें अपनी सनक की अग्नि में झोंकने को आहूति चाहिए. इसलिए, साहबान, कदरदान, मेहरबान…निपूतों के गैंग को आपके बच्चे चाहिए.

  • मनीष सिंह

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

जहां अन्याय है, वहां शांति संभव ही नहीं है !

दो ज़िले हैं. एक ज़िले में बहुत सारे बड़े उद्योग हैं और दूसरे ज़िले में कोई भी बड़ा उद्योग नहीं…