Home लघुकथा अपना-अपना भालू

अपना-अपना भालू

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एक बार एक वैज्ञानिक जंगल में किसी काम से जा रहा था. तभी उसने ‘सोनू आर्या’ नामक एक शख्स को एक गुफा के बाहर धूप-अगरबत्ती करते हुए देखा. कौतूहल में आकर वैज्ञानिक ने इसका कारण पूछा तो सोनू आर्या ने जवाब दिया – ‘इस गुफा में एक पवित्र भालू रहता है, जिसकी हम पूजा करते हैं.’

वैज्ञानिक – ‘आपने कभी भालू को देखा है ?’

सोनू आर्या – ‘देखा तो किसी नहीं है, पर हमारा विश्वास है कि पवित्र भालू इसी गुफा में रहता है और एक न एक दिन जरूर बाहर आ कर दर्शन देगा.’

वैज्ञानिक – ‘भालू कब से इस गुफा में है ?’

सोनू आर्या – ‘भालू अजन्मा है, अर्थात चिरकाल से ही इस गुफा में विद्यमान है. हमारा गुफा में जाना मना है. आपमें श्रद्धा होगी तो भालू अपने आप बाहर आ कर दर्शन देगा.’

वैज्ञानिक ने अपनी गुद्दी खुजाते हुए एक मशवरा दिया – ‘एक काम करते हैं, ड्रोन में कैमरा लगा कर गुफा में भेज देते हैं. भालू अंदर होगा तो कैमरा में कैप्चर हो जाएगा.’

सोनू आर्या – ‘ओह, मैं बताना भूल गया. भालू अदृश्य है, वह कैमरा पर नहीं दिखेगा.’

वैज्ञानिक – ‘एक काम करते हैं, गुफा में आटा बिखेर देते हैं. भालू चलेगा तो पैरों के निशान बन जाएंगे.’

सोनू आर्या – ‘ऐसा संभव नहीं, भालू जमीन पर चलता नहीं है, बल्कि हवा में उड़ता है.’

वैज्ञानिक – ‘इंफ्रारेड सेंसर या साउंड डिटेक्टर गुफा में भेज देते हैं. भालू की हीट या साउंड तो कम से कम डिटेक्ट हो जाएगा.’

सोनू आर्या – ‘सॉरी सर, भालू किसी अभौतिक पदार्थ से बना है. वह गंधहीन, स्वादहीन, तेजहीन, अश्रव्य और किसी भी भौतिक विधि से अग्राह्य है.’

अब वैज्ञानिक अपना सर खुजाने लगा – ‘भाई सोनू, मुझे तो ऐसा कोई तरीका प्रतीत नहीं होता, जिससे मैं साबित कर सकूं कि इस गुफा में भालू का अस्तित्व है.’

सोनू आर्या (मुस्कुरा कर) – ‘तो आप यह भी तो साबित नहीं कर सकते कि गुफा में भालू नहीं है.’

वैज्ञानिक भी मुस्कुरा कर बोला – ‘अबे ढोलकी के ! साक्ष्य का अभाव स्वयं एक साक्ष्य नहीं होता. किसी भी दावे को किसी भी तर्क से सिद्ध नहीं कर पाने का अर्थ दावे की असिद्धि ही होता है. और वैसे भी, दुनिया में असंभव दावा करने वालों की कमी नहीं और हर दावे के परीक्षण में समय व्यर्थ नहीं किया जा सकता. साक्ष्य उपलब्ध कराना भी दावा करने वाले का ही दायित्व होता है.’

‘अगर आपके पास अपने दावे के पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं है तो इस स्थिति में – एक उड़ने वाला, अजन्मा, अभौतिक, अश्रव्य, रंगहीन, स्वादहीन, गंधहीन, तेजहीन, अदृश्य, अग्राह्य भालू अगर कहीं हो सकता है, तो सिर्फ और सिर्फ आपके दिमाग में.’

यह कह कर वैज्ञानिक अपने रास्ते चला गया और संसार की भलाई हेतु नित नयी खोजें और अनुसंधान करने में लगा हुआ है.

सोनू आर्या वहीं जमे हैं – गुफा के सामने – इस उम्मीद में कि भालू एक दिन दर्शन देगा. वैसे संसार में ऐसी कई गुफाएं हैं. किसी के सामने सोनू बैठा है, तो किसी के सामने जोजेफ, तो किसी के सामने अब्दुल. सब अपना-अपना भालू ढूंढ रहे हैं. सोनू आर्या अकेला नहीं है.

क्या लगता है आपको ? कभी मिल पायेगा भालू ?

  • विजय सिंह ठकुराय

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