बैंकिंग उद्योग में कर्मचारियों की सबसे बड़ी यूनियन एआईबीइए, सरकार के हालिया फैसले से हताश होकर मीडिया में भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है. प्रेस नोट जारी करते हुए ऑल इंडिया रीजनल रूरल बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन के सहायक महासचिव मिथुन कुमार ने यह बात कही.
गौरतलब है कि बैंकिंग उद्योग की दो यूनियनों ने पिछले दिनों बैंकिंग सचिव से मुलाकात करते हुए ग्रामीण बैंकों का प्रायोजक बैंकों में विलय करने की मांग उठाई थी, जिसके विरोध में संगठन ‘अरेबिया’ ने ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की मजबूती के लिए ‘एक राज्य एक ग्रामीण बैंक’ बनाने का सुझाव सरकार को दिया. नई सरकार बनने के बाद अरेबिया नेताओं ने वित्तमंत्री सहित सभी केंद्रीय मंत्री व तमाम सांसदों से मुलाकात करते हुए राज्य ग्रामीण बैंक के लिए ज्ञापन भी सौंपा था.
अरेबिया के पदाधिकारी कॉ. मिथुन कुमार ने एआईबीईए समर्थित ग्रामीण बैंक यूनियन के पदाधिकारी तथा उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक के एक रिटायर्ड अधिकारी के हालिया मीडिया बयान पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि राज्य स्तरीय ग्रामीण बैंक बनाने के पीछे सरकार की मंशा पूरे प्रदेश की ग्रामीण व गरीब जनता को निर्बाध तरीके से बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराना है, न कि आईपीओ लाकर बाजार से पूंजी इकठ्ठा करना.
उन्होंने कहा कि ग्रामीण बैंकों के पास ग्रामीण ऋण वितरण के लिए पर्याप्त पूंजी है. उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीण बैंकों का प्रायोजक बैंक में विलय की मांग उठाने वालों को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि यदि नेशनलाइज बैंकों का आपस में मर्जर ‘मर्डर’ है तो ग्रामीण बैंकों का मर्जर अच्छा कैसे है ?
उन्होंने इस प्रकार की यूनियनों से अपील की है कि वे ग्रामीण बैंकों के प्रति अपनी इर्ष्यालु भावना से ऊपर उठकर देश से गरीबी के समूल उन्मूलन के लिए राज्य स्तरीय ग्रामीण बैंक और इनके नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना की पहल करें अन्यथा ग्रामीण बैंकों में उनका कमजोर अस्तित्व भी नहीं बचेगा.
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ‘एक राज्य, एक ग्रामीण बैंक’ नीति के अंतर्गत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) को एकीकृत करने की योजना बना रहा है. सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की दक्षता में सुधार लाना और प्रायोजक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्धा को रोकना है.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘एक राज्य, एक ग्रामीण बैंक नीति पर विचार किया जा रहा है और इस पर काम चल रहा है. हमारा लक्ष्य क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या को मौजूदा 43 से घटाकर करीब 30 (जो अब 28 रह जायेगी) करने की है.’
अधिकारी ने बताया कि इसके परिणामस्वरूप प्रदर्शन के आधार पर एक राज्य के भीतर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का एक प्रायोजक बैंक में विलय किया जाएगा. इससे प्रत्येक राज्य में एक प्रायोजक बैंक होगा जो उस राज्य के अन्य ग्रामीण बैंकों की परिसंपत्तियों को अपने में मिलाएगा.
अधिकारी ने कहा, ‘ग्रामीण बैंकों की संख्या नहीं बल्कि गुणवत्ता बहुत महत्त्वपूर्ण है. प्रौद्योगिकी को उन्नत बनाने और मोबाइल बैंकिंग की उपलब्धता बढ़ाने की भी जरूरत है. एक राज्य, एक ग्रामीण बैंक नीति से इसमें मदद मिलेगी और उनके बीच अनावश्यक प्रतिस्पर्धा भी कम होगी.’ इस बारे में जानकारी के लिए ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ ने वित्त मंत्रालय को ई-मेल भेजा, मगर कोई जवाब नहीं आया.
देश का सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक सर्वाधिक 14 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का प्रायोजक है. इसके बाद पंजाब नैशनल बैंक 9, केनरा बैंक 4, बैंक ऑफ बड़ौदा तथा इंडियन बैंक 3-3, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 2, यूको बैंक, जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूनियन बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र 1-1 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के प्रायोजक हैं.
राज्यों की बात करें तो आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में 3-3 आरआरबी हैं, जबकि बिहार, गुजरात, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना में 2-2 आरआरबी हैं. वित्त वर्ष 2024 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने अभी तक का सर्वाधिक 7,571 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था और उनके सकल गैर-निष्पादित आस्तियों का अनुपात 6.1 फीसदी रहा, जो 10 साल में सबसे कम है.
पिछले महीने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के शीर्ष अधिकारियों की बैठक हुई थी. इसमें प्रायोजक बैंकों को व्यावसायिक प्रदर्शन में सुधार लाने, डिजिटल प्रौद्योगिकी सेवाओं को उन्नत बनाने और एमएसएमई क्लस्टरों में विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया गया था.
आरआरबी से कहा गया था कि समय के साथ प्रासंगिक बने रहने के लिए वे अपनी प्रौद्योगिकी को अपडेट करें. वित्त मंत्री ने कहा कि मोबाइल बैंकिंग जैसी डिजिटल बैंकिंग सेवाएं चुनौतीपूर्ण यातायात संपर्क वाले क्षेत्रों, जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होंगी.
वहीं, अब वित्त मंत्रालय ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के विलय का चौथा चरण शुरू कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप इन बैंकों की संख्या वर्तमान में 43 से घटकर 28 हो सकती है. इस विलय प्रक्रिया के तहत, 15 आरआरबी का अलग-अलग राज्यों में एकीकरण किया जाएगा. वहीं, बिहार में भी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का विलय होगा.
बिहार के उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक का दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक के साथ विलय की प्रक्रिया शुरू हो गई है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने आपसी विलय के लिए राज्य के अधिकतम व्यापार वाले ग्रामीण बैंक में दूसरे ग्रामीण बैंक के विलय और राज्य मुख्यालय में प्रधान कार्यालय रखने का निर्देश दिया है. इसके तहत उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक जो सेंट्रल बैंक द्वारा प्रायोजित है, उसका विलय पंजाब नेशनल बैंक की ओर से प्रायोजित दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक के साथ होगा. इन दोनों बैंकों का विलय करके एक बड़ा ग्रामीण बैंक बनाया जाएगा, जो पूरे राज्य में अपनी सेवाएं देगा.
बता दें कि उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक का मुख्यालय मुजफ्फरपुर में है, जबकि दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक का मुख्यालय पटना में है. विलय के बाद नए बैंक का मुख्यालय पटना में रहेगा. यह सभी 38 जिलों में संचालित होगा.
वित्तीय सेवा विभाग ने बताया कि समेकन के लिए राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के परामर्श से एक खाका तैयार किया गया है, जिससे आरआरबी की संख्या 43 से घटकर 28 हो जाएगी. बता दें कि वित्तीय सेवा विभाग ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के प्रायोजक बैंकों के प्रमुखों से 20 नवंबर तक टिप्पणियां मांगी हैं. केंद्र ने 2004-05 में आरआरबी के संरचनात्मक समेकन की पहल की थी, जिसके परिणामस्वरूप तीन चरणों के विलय के माध्यम से 2020-21 तक ऐसे संस्थानों की संख्या 196 से घटकर 43 रह गई, जो अब घटकर 28 रह जायेगी.
बता दें कि इन बैंकों की स्थापना आरआरबी अधिनियम, 1976 के तहत की गई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, कृषि मजदूरों व कारीगरों को ऋण तथा अन्य सुविधाएं प्रदान करना था. इस अधिनियम में 2015 में संशोधन किया गया, जिसके तहत ऐसे बैंकों को केन्द्र, राज्य और प्रायोजक बैंकों के अलावा अन्य स्रोतों से पूंजी जुटाने की अनुमति दी गई. केंद्र की वर्तमान में आरआरबी में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि 35 प्रतिशत तथा 15 प्रतिशत हिस्सेदारी क्रमशः संबंधित प्रायोजक बैंकों और राज्य सरकारों के पास है.
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