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परमाणु बवंडर के मुहाने पर दुनिया और पुतिन का भारत यात्रा

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‘जेलेंस्की ने एक करोड़ यूक्रेनी नागरिकों के जीवन को बर्बाद कर दिया है, जिसमें मृतक बच्चे, महिलाएं, नागरिक व सैनिक हैं तथा लाखों शरणार्थी व शिविरों में रह रहे लोग शामिल हैं. जेलेंस्की यूक्रेन में बचे खुचे लोगों को खत्म कर देना चाहता है.’

– जी.डी.बख्शी (सेवानिवृत्त मेजर जनरल व अंतराष्ट्रीय रक्षा मामलों के जानकार)

एक टीवी चैनल पर बोलते हुए पूर्व मेजर जनरल जी.डी. बख्शी ने यहां तक कहा कि ‘युद्ध में आपातकाल लागू है इसलिए यूक्रेन में राष्ट्रपति चुनाव नहीं हो पा रहे हैं. जेलेंस्की इस समय कार्यकारी राष्ट्रपति हैं. लेकिन जेलेंस्की इस पद हमेशा बने रहने के लिए युद्ध की आड़ लिए बैठा है. पुतिन की एक टेस्टिंग मिसाइल से जेलेंस्की टीवी चैनलों के आगे गिड़गिड़ा रहा है.

‘इसे समझ नहीं आ रहा है कि तीन साल से इन्होंने रूस को नीचा दिखाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी है. इन्हें पता ही नहीं चल रहा है कि रूस पर दो हजार प्रतिबन्धों का क्या हुआ. क्यूबाई युद्ध के दरमियान अमरीकी मिसाइल गिराने से तब तीसरे विश्व युद्ध के कयास लगाए गए थे, उसके बाद इस जेलेंस्की ने ये तीसरे विश्व युद्ध का खतरा पैदा कर दिया है.’

चाइना न्यूज एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक पिछले 6 दिनों में रूस यूक्रेन युद्ध परमाणु महाविभीषका के सबसे नजदीक जा पहुंचा है, जिसमें 18,673 यूक्रेनी सैनिकों की मौत हो गई है और 11600 सैनिक बुरी तरह घायल हो गए हैं. रूस के कीव पर कथित ICBM मिसाइल ठोकने के बाद नाटो देशों में भगदड़ मची हुई है.

पेंटागन ने एक बार फिर कहा है कि अमरीका, रूस के साथ युद्ध नहीं करेगा. उधर रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी न्यूक्लियर डाक्ट्राइन में बदलाव के बाद जो तेवर दिखाए हैं, उससे वार्सव, बर्लिन, लंदन के सामान्य नागरिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. चूंकि पुतिन जो कहते हैं उसमें वो रद्दोबदल बिल्कुल नहीं करते हैं इसलिए अमेरिका सहित पश्चिमी देश अपने अपने सैन्य व्यवस्थाओं को सुरक्षा देने में लग गए हैं.

एक और महत्वपूर्ण जानकारी ये कि बाइडेन यूक्रेन को परमाणु बम थमाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि पेंटागन ने इसे कोरी कल्पना कहा है. रूसी आक्रमकता से नेतन्याहू ब्रिगेड भी बैकफुट पर आ गई है, जिसका फायदा हिजबुल्ला ने बीते दो दिन पहले शुक्रवार शाम को इजरायल पर 23 मिसाइलें दागकर उठाया. सभी मिसाइलें टारगेट पर गिरी हैं. इजरायल का आयरन डोम अब उत्तर कोरिया, रूसी मिसाइलों के आगे पूरी तरह ध्वस्त कर हो चुका है.

हमास ने शनिवार सुबह साढ़े पांच बजे गाजा फिलिस्तीनी बार्डर पर 43 इजरायली सैनिकों को बंधक बना लिया है, उनसे गाजा में इजरायली हथियारों की नई खेप छिपाने के कई जगहों की लोकेशन हासिल कर वहां हमला बोल दिया है. जिसमें 13 इजरायली सैनिकों को मार दिया गया है और भारी मात्रा में गोला बारूद हड़प लिया है.

उधर उत्तर कोरिया राष्ट्रपति किम जोंग उन ने एक बार फिर कहा है कि वो ईरान व हिजबुल्ला को हथियारों की मदद जारी रखेंगे. रूस में कोरियाई सैनिकों की मौजूदगी पर किम ने कहा कि हमारे सैनिक रूस में युद्ध लड़ने नहीं बल्कि एक रुटेशनल सैन्य विजिट का हिस्सा बनकर वहां गये हैं और यह हर तीन साल में रूस-उत्तर कोरियाई सैनिकों की एक सामान्य सैन्य प्रशिक्षण शिविर कार्यक्रमों का हिस्सा है.

पुतिन की भारत यात्रा और परमाणु हमले की तैयारी

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) ने पुतिन की गिरफ्तारी पर वारंट जारी किया हुआ है यानि कि पुतिन अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं के दरमियान गिरफ्तार किए जा सकते हैं. हालांकि गिरफ्तारी का यह दबाव भारत पर नहीं है क्योंकि भारत ने कोई संधि ‘रोम नियमावली’ में हस्ताक्षर नहीं किए हैं इसलिए आईसीसी भारत को पुतिन की गिरफ्तारी के लिए नहीं कह सकता है.

फरवरी 2022 के बाद से यूरोपीय देशों व उनके व्यापारिक संघों ने रूस पर अब तक 16,500 से ज्यादा प्रतिबंध लगाये हैं, बावजूद रूस दुनिया की सबसे बड़ी इकनॉमी बनकर उभरा है और अगले 50 सालों तक नाटो देशों के साथ युद्ध करते रहने की ताकत रखने का दम भरता है. बीते दो दिन पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूसी सैन्य ठिकानों पर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमला किया है इन मिसाइलों से मार करने की परमिशन लेने के लिए जेलेंस्की दर्जनों बार बाइडेन की चौखट पर नाक रगड़ चुके हैं.

राजनीतिक संन्यास के लिए तैयार बाइडेन ने जाते-जाते जेलेंस्की को लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों का इस्तेमाल करने की छूट दे दी है. उधर रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी अपनी परमाणु शक्ति इस्तेमाल करने वाली नियमावली में बदलाव कर ये जता दिया है कि यूक्रेन के साथ साथ उसके मुख्य मददगार देशों की भी शामत नजदीक आ रही है. वैसे भी अमरीका व यूरोपीय देश रूस का टस से मस न होने से बेहद खौफजदा व आत्म कुंठित हैं.

पुतिन के नाटो संगठन के समानांतर ब्रिक्स व अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को खड़ा करने की कोशिशों से अमरीका, ब्रिटेन जैसे देशों के होश फाख्ता हैं लेकिन वो पुतिन का कुछ बिगाड़ नहीं सकते हैं. बहरहाल, अमरीका व नाटो देश पुतिन के सब्र के बांध पर बहुत छेद कर चुके हैं, इन तीन सालों के युद्ध में पुतिन ने जहां एक ओर रूस को वास्तविक महाशक्ति होने की पहचान दिलाई वहीं दूसरी ओर जेलेंस्की की नाटो सदस्यता लेने की जिद से तबाह कर यूक्रेन सहित अमरीका व नाटो मुल्कों की पूरी अर्थव्यवस्था का सत्यानाश कर दिया.

रूस-यूक्रेन युद्ध अब परमाणु महाविभीषिका के मुहाने पर जा खड़ा हुआ है. अमरीका पुतिन को परमाणु हमले की पहल के लिए उकसा रहा है लेकिन पुतिन पिछले साल ही कह चुके हैं- ‘हम परमाणु बम का इस्तेमाल नहीं करने जा रहे हैं लेकिन हम पश्चिमी शत्रु देशों को रूसी संप्रभुता पर इसका इस्तेमाल करने के लिए एक पल का भी कोई मौका नहीं देंगे.’

पुतिन के ट्रैप में ट्रम्प

पश्चिमी मीडिया अपनी जानकारियों को लुकते छिपाते कभी कभार नुमाया कर बैठती है लेकिन उन्हें इसका अंदाजा नहीं था कि जो नाटो, फिरकी लेने के अंदाज में जेलेंस्की को साथ देने के चक्कर में ओखल में अपना सिर घुसेड़ बैठा, उस पर पुतिन का मूसल इतना भारी पड़ेगा कि नाटो को जेलेंस्की से पीछा छुड़ाने में अपना वजूद ही गंवाना होगा.

रूसी सेना में शुरू से ही क्यूबाई, वियतनामी, चीनी सेनाओं के गुरिल्ला दस्ते जुड़े हैं. ये गुरिल्ला सैनिक रूस की तरफ से न केवल लड़ रहे हैं बल्कि आधुनिक युद्धों का प्रशिक्षण भी ले रहे हैं. गुरिल्ला सैनिकों का ये इतिहास रहा है कि वो अपनी रणनीतियों व पैंतरेबाजी से कभी भी दुश्मन सेना के आगे हार का सामना नहीं किया है.

गुरिल्ला योद्धाओं को यूं तो किसी न किसी रूप में हर दौर में इस्तेमाल किया जाता रहा है लेकिन वास्तविक शुरुआत महान योद्धा स्पार्टाकस से मानी जाती है. गुरिल्ला योद्धाओं की बुनियादी फितरत ये होती है कि वो युद्ध क्षेत्रों के आसपास सामान्य जनजीवन का हिस्सा प्रतीत होते हैं इसलिए उनकी सटीक पहचान दुश्मन सेना के लिए सिरदर्द बना रहता है.

वियतनाम युद्ध में अमरीका की पीड़ादायक हार देने वाला वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी व नेपाल की राजशाही को धराशाई करने वाली वहां की माओवादी पार्टी ने गुरिल्ला युद्ध की प्रासंगिकता को और अधिक प्रबल बना दिया था. चूंकि गुरिल्ला योद्धाओं को वैचारिक तौर पर तैयार किया जाता है इसलिए पूंजीवादी सैन्य व्यवस्था इन्हें तैयार नहीं कर सकती है. उत्तर कोरिया से रूस पहुंचे हजारों सैनिकों को मूलतः गुरिल्ला युद्ध के लिए ही बुलाया गया है, हालांकि साथ में उन्हें अत्याधुनिक हथियारों से भी बैकअप लेने के गुर सिखाए जा रहे हैं.

खबर ये है कि नाटो देश यूक्रेन के खर्चीले युद्ध से परेशान हो गए हैं क्योंकि पुतिन के बारे में उनका अनुमान है कि पुतिन यूक्रेन फतह के बाद पोलेंड, लिथुआनिया, ब्रिटेन जैसे देशों का भी टेंटुआ दबायेंगे. तब उस घनघोर संकट में उनके पास हथियार कहां से आयेंगे, अगर जेलेंस्की-प्रेम में सब झोंक दिए तो. इसलिए पश्चिमी मीडिया के जरिए एक प्रचार किया जा रहा है कि ट्रम्प के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद युद्ध समाप्त हो जायेंगे, जबकि ट्रम्प का इस पर अभी कोई साफ बयान नहीं आया है.

उधर एलन मस्क भी किंगमेकर का रोल निभाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं लेकिन पुतिन हैं कि एलन मस्क को ज्यादा भाव नहीं दे रहे हैं. पुतिन ने ट्रम्प को मैसेज भेज दिया है कि ‘देखो ट्रम्प, हम यूक्रेन के कब्जाये हिस्से को तो बिल्कुल नहीं छोड़ेंगे. अब तुम ऐसे में युद्ध खत्म करने वाला चेहरा बन जाओ, तुम्हें अंतर्राष्ट्रीय शांति नोबेल पुरस्कार के लिए रूस नामित कर देगा.’ रूस का नामित करने का मतलब जिनपिंग की हामी ही होगी.

इन दो नौजवान ताकतवर देशों की बात भला इस दौर में कौन काट सकता है जो भी देश बीच में टांग अड़ाने की कोशिश करेगा, उसके ऊपर कुछ ही घंटों के बाद रूस-चीन के सुपरसोनिक फाइटर जेट उड़ने लग जायेंगे. ‘अब मरता क्या न करता’ हालत में सबको ट्रम्प को शांति नोबेल पुरस्कार मिलने के लिए ताली तो बजानी ही होगी. इसलिए ट्रम्प अपने ‘चाणक्य एलन मस्क’ के साथ घोर मंत्रणा करने में लगे हैं कि इस जेलेंस्की को कैसे समझाया जाए ! खैर, इस समय यूक्रेन रूस की सीमा पर कुर्स्क जोरदार बैटल फील्ड बना हुआ है.

ये अलग बात है कि पुतिन की दिलचस्पी यूक्रेन की राजधानी कीव पर ज्यादा है. इसलिए कीव में लगातार भारी हमले हो रहे हैं. पिछले तीन दिनों में ही कीव व कुर्स्क में 9 हजार यूक्रेनी सैनिकों की जान चली गई है. ब्रिटेन खुफिया एजेंसी MI-6 ने तो यहां तक कह दिया है कि कुर्स्क पूरी तरह रूस के कब्जे में है. पुतिन वहां पर जबरन युद्ध का माहौल बना रहे हैं ताकि कीव कब्जे में यूक्रेनी सैनिकों की तादाद न बढ़ सके. यानि कि जेलेंस्की को हथियार कम और हिम्मत ज्यादा देकर नाटो अपने को किनारे करने में लगा है, अमरीकी नागरिकों ने वैसे भी ट्रम्प के शांति वादे के नाम वोट किया था.

उधर, इजरायल की हालत तो यूक्रेन से भी बद्तर हो गई है. बर्बादी से खौफजदा नेतन्याहू का गोदी मीडिया पूरी तरह कोमा में चला गया है. इजरायल इस समय चारों तरफ से मिसाइलों की मार झेल रहा है. हिजबुल्ला, हूथी, हमास नये सिरे से ताकतवर हो उठे हैं. नेतन्याहू इस समय बंकर में छिपा है. नेतन्याहू पर लगे घोटालों के आरोप में जब कोर्ट ने हाजिर होने के लिए कहा तो नेतन्याहू ने सुरक्षा की पुख्ता गारंटी न होने का हवाला देकर कोर्ट में हाजिर होने से मना कर दिया है.

खुद इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने नेतन्याहू पर कभी भी जानलेवा हमले की बात कही है. इजरायली सेना के आयरन डोम को चकमा देकर हिजबुल्ला का तो एक ड्रोन नेतन्याहू के हालचाल पूछने एकदम सामने पहुंच गया था और बिना पकड़ में आये वापस भी आ गया. बहरहाल, युद्ध जारी हैं और संभावना जताई जा रही है कि जल्दी शांति बहाली होगी.

आपकी पक्षधरता में बहुत ताकत है

आप सचेतन तौर पर युद्ध का समर्थन करते हैं तो ये आपका मानवतावादी होने पर संदेह पैदा करता है, लेकिन जब युद्ध हो रहे हैं तब आप पक्षधरता जाहिर नहीं करते हैं तो ये आपके मनुष्य होने पर ही संदेह पैदा करता है.

सोचिए कि आप अपने गांव शहर में माता-पिता, बीबी-बच्चों के साथ जीवनयापन कर रहे हैं और इसी बीच आपके इलाके में बम व मिसाइलों से हमला हो जाता है. आपके आसपास कई इमारतें टूट रही हैं. निरीह नागरिकों, बच्चों, औरतों की चीख-पुकार मची हुई है. आप कभी अपने परिवार को देख रहे हैं तो कभी उन चीखों को सुन रहे हैं, मौत का यह तांडव कौन कर रहा इस सबके बारे में जानने की फुर्सत नहीं है और जान भी लें तो खुलेआम कोस भी नहीं सकते…

पक्षधरता जाहिर करें और इस पर बेबाकी से लिखें. हमारे बारे में क्या राय रखते हो, ये तुम्हारा अपना सुन्न हो चुका नजरिया मात्र है. लेकिन हम न ही नेतन्याहू का समर्थन कर सकते हैं और न ही नेतन्याहू के दोस्त जेलेंस्की का.

  • ए. के. ब्राइट

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ROHIT SHARMA

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