Home ब्लॉग माओवादियों के एक साधारण प्लाटून सदस्य के साथ साक्षात्कार

माओवादियों के एक साधारण प्लाटून सदस्य के साथ साक्षात्कार

19 second read
0
0
168
माओवादियों के एक साधारण प्लाटून सदस्य के साथ साक्षात्कार
माओवादियों के एक साधारण प्लाटून सदस्य के साथ साक्षात्कार (प्रतीकात्मक तस्वीर)

मैं अपनी बात कहने के बजाय यहां एक साक्षात्कार के साथ आपका परिचय कराना चाहूंगा. यह साक्षात्कार लेने का मौका मुझे महज संयोग से प्राप्त हुआ था. यह साक्षात्कार पलामू जिले के विश्रामपुर थाना क्षेत्र में मौजूद एक क्रांतिकारी पार्टी सीपीआई (माओवादी) के एक प्लाटून सदस्य रवि से लिया था. जब साक्षात्कार लिया गया था तब सीपीआई (माओवादी) का गठन नहीं हुआ था. तब वह पार्टी सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्सवार के नाम से जानी जाती थी.

रवि, जिनके साथ साक्षात्कार लेने का मुझे मौका मिला था, प्लाटून में कार्यरत एक सामान्य सदस्य थे, जिनसे बात करने पर हमें कई चीजों से अवगत होने का मौका मिला. घने जंगलों व पहाड़ों के बीच पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक चल रही थी और यह प्लाटून की सुरक्षा प्रहरी की कड़ी चौकसी के बीच हो रही थी. काफी आग्रह के बाद ये सदस्य रवि बात करने के लिए राजी हुए थे.

यह साक्षात्कार वर्ष 2003 के पूर्वाद्ध में लिया गया था. तब से अब तक परिवर्तन की बयार तेज गति से बही है. सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्सवार और एमसीसी एकताबद्ध होकर एक नई पार्टी सीपीआई (माओवादी) का निर्माण कर लिया है. तब से उनकी शक्ति और भी बढ़ी है. सीपीआई (माओवादी) के हजारों समर्पित योद्धाओं ने पुलिस के साथ मुठभेड़ या फर्जी मुठभेड़ों में अपनी शहादतें दी है. प्लाटून से आगे बढ़कर कंपनी का निर्माण किया है. पीएलजीए का निर्माण किया है, जो पीएलए बनने की दिशा में उठाया गया एक जहीन कदम है. पेश है रवि के साथ बातचीत का एक अंश –

मैं – आपका नाम क्या है ?

रवि – रवि या और भी कुछ कह सकते हैं.

मैं – आपका गांव कहां है ?

रवि – छ…, जहां विश्वनाथ जी का घर है. (विश्वनाथ, स्वभाविक तौर पर यह नाम भी पार्टी के द्वारा ही दिया गया होगा, बहरहाल, विश्वनाथ जी इस प्लाटून के कमांडर थे. यहां एक चीज जो काफी गौर करने वाली है कि हरेक सदस्य अपने सहकर्मियों के नाम के साथ ‘जी’ सम्बोधन का प्रयोग करते हैं).

मैं – आप पार्टी के सम्पर्क में कैसे आये ?

रवि – गांव में वे लोग आते-जाते रहते हैं. पहले हम एमसीसी में आये थे. (एमसीसी, मौजूदा सीपीआई (माओवादी) के पूर्व संगठनों में से एक था).

मैं – आप एमसीसी में कब गये ?

रवि – करीब डेढ़ साल पहले.

मैं – एमसीसी में कैसे जाना हुआ ?

रवि – पहले वही लोग आये थे. संदीप जी जो कमांडर थे, उन्हीं के सम्पर्क में आये थे. वहीं साथ हो लिये. वे राज्य सदस्य जैसे थे, जैसे कि हमारे सुधीर जी हैं (सुधीर जी उस वक्त सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्सवार के बिहार-झारखंड राज्य कमिटी सदस्य थे).

मैं – फिर आप एमसीसी से क्यों निकल गये ?

रवि – …. (यह जवाब आज के समय में प्रसांगिक नहीं रह गया है)

मैं – क्या, जैसे ?

रवि – …. (यह जवाब आज के समय में प्रसांगिक नहीं रह गया है)

मैं – वहां आप कितनी बार काउन्टर किये थे ?

रवि – दस-बारह बार.

मैं – कहां-कहां ?

रवि – …. उतना याद नहीं रहता है.

मैं – फिर आप इसमें ( सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्सवार) कैसे आये ?

रवि – … (यह जवाब आज के समय में प्रसांगिक नहीं रह गया है)

मैं – आपके पिताजी क्या करते हैं ?

रवि – वे डेथ कर गये थे. सात-आठ साल हो गया.

मैं – आपके घर में और कौन-कौन हैं ?

रवि – दो भाई, दो बहन और मां है बस. दोनों बहन की शादी हो गई है. मैं बड़ा भाई हूं. एक छोटा भाई मात्र 12-13 साल का है. छठी कक्षा में पढ़ता है.मैं भी छठी कक्षा तक ही पढ़ सका हूं. छोटे भाई को अभी 15 दिन पहले पुलिस ने केश में फंसा दिया है. जिस कारण अभी वह जेल में है. उस गांव में एक मर्डर हुआ था. जिसका मर्डर हुआ था, वह भी मेरे भाई का नाम नहीं बताया. अब जैसे आप लोगों के गांव में होता है किसी के साथ जमीन का झगड़ा बगैरह. उसी में शक के आधार पर छह आदमी पर पुलिस ने केश कर दिया है, जिसमें से चार अभी जेल में है. एक आठ साल का है, एक दस साल का है. मेरा भाई 13 साल का है. भला ये बच्चे लोग किसी का हत्या कर सकते हैं ?

मैं – आप छह तक ही क्यों पढ़ाई कर सके ? आगे क्यों नहीं पढ़ पाये ?

रवि – पिताजी डेथ कर गये थे. घर की स्थिति खराब हो गई थी.

मैं – तब घर का खर्च वगैरह कैसे चलता है ?

रवि – हमारे पास जितना जमीन है, सबको बटाईदारी लगाया हुआ है, जिससे आधा मिल जाता है. उसका देख-रेख मां करती है.

मैं – शहर से सटा हुआ है आपका गांव ?

रवि – नहीं.

मैं – जब आप पार्टी में आये तो आपको अजीब नहीं लगता था ?

रवि – हमारे यहां के और भी लोग यहां (प्लाटून में) रहते हैं. वे यहां के रहन-सहन आदि के बारे में बतलाते थे. और फिर जनता में तो प्रभाव पड़ता ही है. उससे मालूम हुआ. यहां दो पार्टी काम कर रही है – पीपुल्स वार और एमसीसी. दोनों का ही अच्छा / बुरा प्रभाव पड़ता है. यहां व्यक्तिगत कुछ भी नहीं होता है. सब कुछ सामूहिक होता है. हमें तो देख ही रहे है, जिससे प्रेरणा पाकर अन्य लोग भी आते हैं. हम चले जायेंगे तो दूसरे साथी आयेंगे. यह क्रम जारी रखेंगे.

आज संगठन में जो रायफल (हथियार वगैरह) हैं, उसके खातिर कितने ही कामरेड शहीद हो गये हैं. आज हम उनके विरासत को थामे हुए हैं. कल हम शहीद हो जायेंगे तो फिर नये लोग आयेंगे हमारे रायफल को थामने. जो लड़ाई जारी है, उसे आगे भी जारी रखना है. गांव-गांव में संगठन बढ़ाना है. लोगों को जागृत करना है. सरकार (शासक वर्ग) हमारे खिलाफ तरह-तरह का लालच देकर दलाल (मुखबिर) पैदा कर रही है. हमलोग (हमारी पार्टी) ऐसी कार्यनीति अपनायेंगे कि सरकार की ऐसी घटिया नीति को धक्का दें, ताकि लोग दलाल मत बने. अपने हक-अधिकार को समझें. इसके लिए कुछ तो करना ही होगा.

मैं – किसी तरह की कार्यनीति आपलोग अपनायेंगे ?

रवि – लोगों के बीच में संगठन बनाना तथा जनता को जागृत करना होगा. जनता की समस्याओं को हल करना होगा. लोग थाना क्यों जायें ? उसे हजार-दो हजार रूपया घूस नहीं देना पड़ेगा. उसे उचित फैसला मिलेगा. किसी को व्यक्तिगत नहीं देखा जायेगा. फिर हमारा फौज बढ़ेगा. आज हमारे पास प्लाटून है, फिर कंपनी बनेगा, बटालियन बनेगा. इसी तरह नियमित सेना पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी या जनमुक्ति सेना) बनेगा. जहां-जहां संगठन नहीं है, वहां-वहां संगठन बनेगा. सारा भारत उठ खड़ा हो जायेगा.

मैं – प्लाटून, कंपनी, बटालियन व नियमित सेना पीएलए बनाने का फायदा क्या होगा ?

रवि – इससे फायदा यह होगा कि जैसे किसान खेती करते हैं, बीज डालते हैं और अन्न उगाते हैं, परन्तु जब इसे बाजार में बेचने ले जाते हैं तो धान (उपज) हमारा होता है, परन्तु उसका दाम आप (दलाल, पूंजीपति वगैरह) लगाते हैं. उस पर हमारा कोई अधिकार नहीं रहता है. मजदूर बेरोजगार होते जा रहे हैं. उन्हें काम ही नहीं मिल रहा है. काम मिल भी जाये तो मजदूरी बहुत ही कम मिलता है. इसे हम दूर सकेंगे. इसे हम लड़कर ले सकेंगे. बेहतर जिन्दगी के स्वप्न को साकार कर सकेंगे.

मैं – पार्टी यहां तकरीबन बीस वर्षों से कार्य कर रही है, उससे आम जनता को कितना फायदा हो पाया है ?

रवि – जनता को काफी फायदा हुआ है. पहले आम जनता का कोई इज्जत नहीं रहता था. जमींदार जो है, वह हमारी पत्नी के साथ पहली रात गुजारता था. पार्टी के रहने से यह चीज रूका. चोरी, चकारी, छेड़खनी, बलात्कार होता था, यह सब रूका. दसियों नौकरानी को रखकर उसके साथ अय्याशी करता था. हमारी मां-बहनों के साथ आये दिन दुर्व्यवहार करता था. हम उसके सामने बैठ नहीं सकते थे. हमें पार्टी के आने के बाद यह अधिकार मिला.

खटिया पर बैठ जाते तो हमें रूल से मारता था. इसी तरह हम पर तरह-तरह का शोषण (सूदखोरी वगैरह) करता था. पार्टी आने से यह सब खत्म हो गया. जमींदार को मारकर भगा दिया गया. हमारे जमीन को (चारो ओर की जमीन दिखाते हुए) लूट लिया था, जिसे हम पार्टी के कारण वापस छिन पाये हैं. अब इस पर खेती कर पा रहे हैं.

फॉरेस्ट विभाग वाले हमारे जंगल पर अधिकार जमाये हुए था. जलावन के लिए भी लकड़ी काटने पर हम पर केश कर देता था. आज वे जंगल आने का साहस नहीं कर पाता. क्यों नहीं आ पाता है ? सिर्फ पार्टी के कारण. पार्टी के डर से यह सरकार कांप रही है. बोलने का अधिकार मिल गया है. बस में पहले चढ़कर बैठने पर कोई जमींदार का बच्चा भी होता तो सीट से उठा देता था. अब वह उसका अधिकार नहीं है. यह कैसे हुआ ? पार्टी के प्रभाव के ही कारण न !

पहले गरीब लोग फूल पेंट पहनकर नहीं चल सकते थे. चश्मा, गाड़ी, घोड़ा, साईकिल पर नहीं घूम सकते थे. आज घूम रहे हैं. यह सब पार्टी की देन है. पहले इतनी कम मजदूरी मिलती थी कि उसी में सटपट, पढ़ते-लिखते कहां से ? अब यहां गांव-गांव में स्कूल है. बच्चे पढ़ने जाते हैं. अब कोई बंधन नहीं है. पहले जबरदस्ती काम करवाया जाता था, मजदूरी भी काफी कम था. परन्तु, अब ऐसा नहीं है. आज 40 रूपया हुआ, फिर 60 रूपया हुआ. यह सब कैसे हुआ ? पार्टी के ही कारण न !

आप लोगों के साथ बतियाने में पहले दस बार सोचते थे, परन्तु, आज बतिया रहे हैं. साथ-साथ बैठे हुए हैं. यह सब पार्टी के कारण ही हुआ है. पार्टी में बहुत खूबी है. जैसे-जैसे हमारी पार्टी बढ़ती जायेगी, हम तमाम अधिकार, जो भी जनता को चाहिए, हासिल करते जायेंगे.

मैं – क्या आपको लगता है कि पार्टी, पुलिस और सरकार के साथ छिड़ी जंग में जीत जायेगी ?

रवि – एक न एक दिन अवश्य जीतेंगे. देश के तमाम मेहनतकश आम जनता को, जो 90 करोड़ है, को हम गोलबन्द करेंगे और इस अर्द्ध-सामंती, अर्द्ध-औपनिवेशिक राजसत्ता को उखाड़ फेंक देंगे. नई रोशनी में देश को आगे ले जायेंगे.

इस बातचीत के बाद भी मुझे उनसे कई सवालों पर बात करनी थी, लेकिन कमांडर की ओर से संतरी ड्यूटी का आदेश आ जाने के कारण वे फौरन अपनी ड्यूटी की ओर चले गये. लेकिन उनकी बातचीत कई सवालों को जन्म दे गया. उनके बातचीत से एक चीज का साफ पता चलता है कि माओवादी पार्टी अपने साधारण से साधारण सदस्य का भी राजनीतिक मान उंचा करने के लिए अध्ययन, पढ़ाई, बहसों को नियमित चलाते होंगे, जिस कारण वे अपनी ही जिन्दगी से और पार्टी की सीखाई बातों से वे खुद को दुनिया के तमाम मेहनतकश आवाम से जोड़ लेते हैं.

Read Also –

जब यॉन मिर्डल ने सीपीआई (माओवादी) के महासचिव गणपति का साक्षात्कार लिया
बीजापुर में आदिवासियों के शांतिपूर्ण आन्दोलन पर पुलिसिया हमला पर मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी से साक्षात्कार
केन्द्रीय माओवादी नेता ‘किसान’ का साक्षात्कार
माओवादी कौन हैं और वह क्यों लड़ रहे हैं ? क्या है उनकी जीत की गारंटी ?

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

रिचर्ड तृतीय, ट्यूडर मिथक, और सामंतवाद से पूंजीवाद तक संक्रमण

‘एक घोड़ा, एक घोड़ा !!! एक घोड़े के बदले मेरा राज्य ! विलियम शेक्सपियर, रिचर्ड तृतीय…