भारत की सत्ता पर काबिज मोदी सरकार ने ‘आपदा को अवसर’ में बदलने का नारा क्या दिया, सरकार के तमाम अंग ‘आपदा’ को भुनाने में लग गया. जहां आपदा नहीं है, वहां भी आपदा को पैदा कर दिया. यूं तो भारत सरकार के तमाम अंग सुप्रीम कोर्ट से लेकर सीबीआई, पुलिस, ईडी के कारनामे आये दिन खबरों की सुर्खियां बनाते ही हैं, इन दिनों इस कड़ी में एनआईए का नाम सुर्खियों में है. ये वही एनआईए जिसे ‘देशविरोधी गतिविधियों’ को रोकने का ठेका दिया हुआ है.
मामला बिहार के गया जिले का है. जहां रिश्वत की रकम जदयू के पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी के बेटे से मांगी गई थी. डीएसपी अजय प्रताप सिंह ने रिश्वत की कुल रकम 2.5 करोड़ रुपये तय की थी. गया शहर के एपी कॉलोनी स्थित जदयू के पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी के घर पर पिछले 19 सितंबर को एनआईए की टीम ने छापेमारी की थी. छापेमारी के दौरान 4.3 करोड़ रुपये नगद और कई हथियार बरामद किये गए थे. एनआईए पटना शाखा के डीएसपी अजय प्रताप सिंह के नेतृत्व में छापेमारी की गई थी. डीएसपी के द्वारा नक्सली मामले में फंसाने की धमकी देकर 2.5 करोड़ रुपये रिश्वत की मांग की गई थी.
रमैया कंस्ट्रक्शन के मालिक रॉकी यादव ने एनआईए के डीएसपी अजय प्रताप सिंह कर खिलाफ रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था. इसकी शिकायत सीबीआई से की थी. जांच में इस शिकायत की पुष्टि होने के बाद सीबीआई की टीम ने गया से डीएसपी के दो एजेंट को रिश्वत के 20 लाख रुपये के साथ गुरुवार को देर रात गिरफ्तार किया. वहीं, पटना से एनआईए के डीएसपी अजय प्रताप सिंह को गिरफ्तार किया है. सीबीआई के द्वारा डीएसपी के घर सहित यूपी तक के रिश्तेदारों के घरों पर भी छापेमारी की गई.
जदयू के पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी के पीए रविंद्र यादव ने एनआईए छापेमारी के पीछे किसी राजद के कद्दावर नेता के होने की आशंका जताई है. नक्सल गतिविधि में फंसाने और रॉकी यादव को राहत देने के नाम पर 2.5 करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी गई थी. इसी के तहत रिश्वत की पहली किस्त 20 लाख रुपये लेने डीएसपी के 2 एजेंट को गया से सीबीआई की टीम ने गिरफ्तार किया हैं. सीबीआई की टीम में 6 एसपी और 4 डीएसपी रैंक के अधिकारी शामिल थे.
अब आते हैं इन भ्रष्ट एनआईए अधिकारियों के हत्थे चढ़े वे लोग जिन्हें ‘आपदा’ (नक्सली गतिविधियों में फंसाने का डर) में फंसा कर उगाही करने और उगाही न होने पर जेल में बंद करने का कुकर्म कर रहा है. मनीष आजाद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखते हैं कि ‘एनआईए (NIA) के जिस DSP अजय प्रताप सिंह को सीबीआई ने 20 लाख की घूस लेते रंगे हाथ पकड़ा है, वह कॉमरेड रितेश विद्यार्थी के भाई कॉमरेड रोहित (जो अभी बिहार के ‘मोतिहारी’ जेल में हैं) के केस का आईओ (IO) है. इसी केस में मेरा भी नाम है. अब आप खुद सोचिए कि ये घूसखोर ऑफिसर किस तरह लोगों को फंसाते होंगे और फर्जी केस बनाते होंगे. और उससे बड़ी बात तो यह है कि इन घूसखोरों के हाथों में देश की तथाकथित राष्ट्रीय सुरक्षा है.’
यही नहीं, इन्हीं एनआईए के भ्रष्ट लोगों ने पटना में एक दूध व्यापारी राजेश सिन्हा को नक्सली गतिविधियों में शामिल होने का तगमा पहना कर पहले तो आधे दर्जन बार उसके घर पर छापामारी किया, फिर उठाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया. अब यह पूरी तरह संभव है कि यह माना जा सकता है कि लेन-देन में असफल होने पर एनआईए ने उन्हें जेल में डाल दिया है. खबर लिखे जाने तक वे दूध व्यापारी जेल में हैं और उनके परिजनों से पूछने पर भयाक्रांत परिजन मूंह खोलने के लिए तैयार नहीं हैं.
एनआईए के भ्रष्टाचार का यह भांडा भी तभी फूटा जब संबंधित पीड़ित सत्ताधारी दल जदयू के पूर्व एमएलसी का बेटा निकाला. अगर वह भी किसी दूध व्यापारी या रोहित जैसा निकलता तो संभव है यह भांडा भी नहीं फूटता और एनआईए का यह कारोबार अनवरत जारी रहता. न जाने इन एनआईए के कितने ही शिकार ‘नक्सली’ बनकर जेलों में बंद होंगे या दुनिया को ही छोड़ चुके हो. हिमांशु कुमार ने ऐसे ही कुछ लोगों का उदाहरण दिया है जो जेलों में बंद हैं. वे लिखते हैं कि ऐसे ही लोगों में से ‘सात सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नवी मुंबई के तलोजा जेल में उपवास शुरू कर दिया है.’
हिमांशु कुमार अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखते हैं कि इन सात अनशनकारी सामाजिक कार्यकर्ताओं में ‘नागपुर हाई कोर्ट के वकील सुरेंद्र गाडलिंग, विद्रोही पत्रिका के संपादक सुधीर धवले, दलित अधिकार एवं सांस्कृतिक कर्मी रमेश गायचोर और सागर गोरखे, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तथा कैदियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले रौना विल्सन और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हैनी बाबू, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता महेश राउत शामिल हैं. इन सभी को 6 साल पहले बनाए गए एक फर्जी मामले में जेल में डाल दिया गया था.
‘इस मामले में कुल 16 सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया था, जिसमें से फादर स्टैन स्वामी की मृत्यु हो गई तथा बाकी सामाजिक कार्यकर्ता जमानत पर बाहर आ गए हैं. आज तक इन लोगों के खिलाफ एनआईए कोर्ट में चार्ज शीट भी फाइल नहीं कर पाई है क्योंकि इन्होंने ना कोई अपराध किया है, ना ही कोई सबूत है. केंद्र सरकार की जांच एजेंसी एनआईए कहती है कि इन्होंने षड्यंत्र बनाया लेकिन सवाल यह है जब कोई अपराध ही नहीं हुआ तो षड्यंत्र किस बात का ?
‘एनआईए के पास कोई जवाब नहीं है इसलिए वह चार्ज शीट भी फाइल नहीं कर पा रही है. इतना ही नहीं अदालत द्वारा आदेश दिए जाने के बावजूद इन सातों को तीन पेशियों पर एनआईए द्वारा कोर्ट में पेश नहीं किया गया है. इसे केंद्र सरकार के मामले को गैर कानूनी तरीकों से लंबा खींचने की हरकत के रूप में देखा जा रहा है. यह पूरा मामला तब बनाया गया जब भीमा कोरेगांव नाम के स्थान पर जहां दलितों की महार सेना ने ब्राह्मणों की पेशवा सेना को युद्ध में हरा दिया था उस वीरता को याद करने के लिए हर साल शौर्य दिवस मनाया जाता है.
‘नरेंद्र मोदी के गुरु साभांजी भिड़े और दूसरे हिंदुत्ववादियों ने दलितों की इस रैली पर हमला किया और सरकार ने उल्टा इन्हीं सामाजिक कार्यकर्ताओं को फर्जी मामला बनाकर जेल में भी डाल दिया. असली बात यह है कि भाजपा और आरएसएस ब्राह्मणों और सवर्णों तथा अमीरों की पार्टी है जो परंपरागत शासक वर्ग माना जाता है. यह लोग भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्रशासन पर कब्जा करके बैठे हुए हैं और इनका यह कब्जा हजारों सालों का है. अगर दलित हिंदुत्व का साथ छोड़ देंगे तो यह सवर्ण सत्ता भरभरा कर गिर जाएगी. इसलिए दलितों के इस आयोजन पर इन हिंदुत्ववादियों ने हमला किया और भाजपा सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया ताकि आगे से कोई भी दलितों को भाजपा और आरएसएस से दूर ले जाने के लिए कोई आयोजन करने की ज़ुर्रत ना कर सके. पूरे देश के समानता और न्याय पसंद लोगों को जेल में बंद इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपना नैतिक समर्थन देना चाहिए.’
एनआईए, सीबीआई, पुलिस, सरकारी माफियाओं के ‘आपदाओं’ को अवसर में बदलने वाले इन सरकारी गुंडों के खिलाफ लोगों को जागरूक होना चाहिए. इसके साथ ही न्यायालय के नाम पर जो भ्रष्टाचार का अंतहीन खेल खेला जा रहा है, उसका भी पर्दाफाश करना चाहिए. और इसके पीड़ितों के समर्थन में नैतिक समर्थन देना इस देश के स्वतंत्र नागरिकों का नैतिक दायित्व भी है.
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