Home गेस्ट ब्लॉग सभ्यताएं आइसोलेशन में विकासोन्मुख नहीं होती

सभ्यताएं आइसोलेशन में विकासोन्मुख नहीं होती

8 second read
0
0
168
सभ्यताएं आइसोलेशन में विकासोन्मुख नहीं होती
सभ्यताएं आइसोलेशन में विकासोन्मुख नहीं होती

बाबर का जन्म जहां हुआ, वो जगह अब उज्बेकिस्तान में है. वह इलाका, फगराना कहलाता है. बाबर मंगोलों की 11 वी पीढ़ी का था, और मां तैमूर की 9 वीं पीढ़ी से. वे अपनी मंगोल विरासत पसन्द नही करते थे. खुद को तैमूरी कहते. मुगल शब्द उनके लिए गाली था, जो बाद के दौर में चिपक गया.

पिता मारा गया, तब बाबर महज 10 साल का था. दुश्मन उसे खोजते रहे. बचते बचाते, वह फगराना का राजा बनता है और वक्त आने पर समरकंद पर धावा बोलता है. समरकंद- मध्य एशिया की गोल्डन सिटी. बल्ख, बुखारा, समरकंद सिल्क रुट के शहर थे. मिक्स कल्चर, मिक्स आर्किटेक्चर, मिक्स्ड फ़ूड- सभ्यताओं के बीच आदान प्रदान से समृद्ध

कभी, इन शहरों के नाम गूगल करें. मस्जिदों, बाजारों के वीडियो देखें. 13-14वी शताब्दी से बने ये भवन, शानदार, भव्य. ताजमहल से कम नहीं. आज ताशकंद बुखारा, समरकंद, एक प्रमुख टूरिज्म सर्किट है.

बाबर ने दो बार समरकंद जीता और हारा. फिर दक्षिण की ओर रुख किया. अफगनिस्तान जीता. फिर उसे भारत पर आक्रमण का आमंत्रण मिला. यह आमंत्रण किसका था- खोजना आपका काम. भारत में वह महज 4 साल जिया. इन चार साल उसने ब्रिलिएंट मिलिट्री जीतें हासिल की.

हर दिन का रिकार्ड रखता. लिखता, पढ़ता, कवितायें करता. उज्बेकिस्तान में उसकी मूर्ति लगी है. हाथ में किताब है, धनुष बाण नहीं. उसका बेटा, हुमायूं लाइब्रेरी की सीढ़ियों से गिरकर मरा. भारतीय इतिहास में कोई और राजा बताइये, जिसके महल में लाइब्रेरी थी ? रनिवास थे, हरम थे, बाग थे, शीशे के कमरे थे- लाइब्रेरी न थी.

अकबर अनपढ़ था पर ज्ञान की प्यास थी. उसने जो प्रशासनिक सुधार किए, वह ज्ञान और ज्ञानियों के सम्मान के कारण हुए. सुलहकुल, इबादतखाना, दीन ए इलाही. अकबर के स्प्रिचुअल साइड के लक्षण है. इस दौर में मुगलिया सल्तनत बनती है.

पर जहांगीर अय्याश है, शाहजहां नालायक. औरंगजेब की धर्मांधता उसके अच्छे गुणों पर हावी है. सल्तनत इतनी व्यक्ति केंद्रित कर देता है, की उसके बाद साम्राज्य बिखरता है. जो परवर्ती मुगल- जो नालायक, डरपोक, अय्याश, मूर्ख औऱ अक्षम थे, सम्हाल नहीं पाते. क्षत्रप उन पर हावी हो जाते हैं. मराठे जैसी ब्रोकन फोर्स भी उन्हें काबू कर लेती है.

लब्बोलुआब यह कि अकबर के बाद ज्ञान विज्ञान, शिक्षा में कोई नयापन नहीं होना, मुगलों को हर स्किल में पीछे कर देता है. पराभव की नींव रखता है. दसवीं सदी में ठीक यही हिन्दुओं के पराभव का कारण था. शिक्षा, विज्ञान सिर्फ हवाई थे.

आप ज्योतिष देखते रहे, गोबर में साइंस खोजते रहे. दुनिया कम्पोजिट बो बना रही थी. कैटपुल्ट, स्लिंग, मजबूत जिरहबख्तर, तलवारें बना रही थी. यह मेटलर्जी का विकास था. तो जब दुनिया बारूद, तोप, बंदूक यूज कर रही थी, हम हजार साल पुरानी तीर भाले की तकनीक लेकर लड़ने गए. दोष जयचंद को देते रहे.

आज भी वही हाल है. हर बात हमको वेदों में लिखी मिलती है. एटॉमिक बम से लेकर, इंटरनेट तक. जबकि उसमें फिलॉसफी, देवताओं को प्रसन्न करने के मंत्र, जुआ शराब की बुराई और कुछ क्रूड अपुष्ट हिस्ट्री के सिवा कुछ है नहीं. वीडियो देखिए, दो कौड़ी के पत्रकार डिजिटल दौर में मुगलों को गरिया रहा है.

जिंदगी में अपने शहर के दरोगापारा से आगे नहीं गया. बता रहा है कि बाबर आदिम युग से आया था. अरे, खाने को नहीं था उसके पास…अपनी लंच डिनर की टेबल देखिए. तुअर की दाल, चावल, गेहूं की रोटी, आलू की सब्जी, समोसा, जलेबी…कौन सी इंडियन है. जौ-तिल से आप पितृ तर्पण इसलिए कर रहे हैं, कि मन्त्र लिखे जाने के समय चावल-दाल का पता नहीं था किसी को.

प्रभु श्रीराम या पांडवों ने आलू भुजिया नहीं चखी थी क्योंकि वह तो यहां पुर्तगाली 16वीं सदी में लाये थे. जलेबी, समोसा ईरानी डिश है. देवी देवता, माइथोलॉजिकल स्टोरीज ग्रीक हैं, ईरानी हैं. ऋग्वेद के पहला श्लोक अग्नि को समर्पित है. ईरानी पारसियों वाली पवित्र अग्नि…

मुझे अपने धर्म को नीचा नहीं दिखाना. फारस, मध्य एशिया, मुगलों को ऊंचा नहीं दिखाना. गयी बीती बातें, इसमें शर्म क्या- गर्व क्या ? सभ्यताएं आइसोलेशन में विकासोन्मुख नहीं होती. कल्चरल लेन देन से समृद्ध होती है. हमारी हिस्ट्री, कल्चर अगर इतनी डाइवर्स है, तो मिक्सिंग की वजह से. तो इसे जबरन एकरूप बनाने की हनक क्यों ? इस डाइवर्सिटी को सेलिब्रेट करें. हमने दुनिया से सीखा, और दुनिया को सिखाया है, इसी से समृद्ध हुए. इस समृद्धि पर थूकना बन्द हो.

दिमाग में बिठा लें. हम सबसे बेहतर नहीं. कई मामलों में दूसरे और कुछ मामलों में हम उनसे बेहतर थे. सत्य यही है. जीवन स्वीकारने, और सहेजने से सुंदर बनता है. स्क्रीन पर कब्जा करके बैठे कूपमण्डूको से बचें. सरेआम लानत दें औऱ अपनी बहुआयामी सभ्यता का जश्न मनायें.

  • मनीष सिंह

Read Also –

जाति और धर्म के समाज में प्रगतिशीलता एक गहरी सुरंग में फंसा है
आस्था नंगी होकर सड़कों पर क्यूं घूम रही है ?
ऐतिहासिक ‘सभ्यताएं’ हिंसा, जोर-जबर और औरतों के दमन पर टिकी थी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…