अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं
एक एक कर.
मेरी पसलियां तीन रुपयों में.
मेरे प्रवाहमान उरोज
उसके दानवी यौनिकता/पाशविक कामुकता के लिए.
मेरी योनि मेरे अस्तित्व के बदले.
मेरे पैर दो रुपए में.
मेरी गठियाग्रस्त अस्थियां
पचास रुपए में.
मेरी जबान बिनमोल.
मेरा दिमाग़ एक रुपए में
और मेरा दिल अन–बिका रह गया.
किसी को एक हृदय नहीं चाहिए.
सभी को मांसल और अस्थियुक्त बदन की आस है.
- मौमिता आलम
अनुवाद : ख़ाकसार तुषार
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