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ग्राउण्ड रिपोर्ट : संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों और उससे सम्बन्धित मामले की हकीकत

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‘झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान’ द्वारा 6 सितम्बर 2024 को एक तथ्यान्वेषण रिपोर्ट – ‘संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ और उससे सम्बन्धित मामले : मिथक बनाम तथ्य’ जारी किया है. हम यहां उनकी पूरी रिपोर्ट को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि पाठकों को गंभीरता से चीजों को समझने में मदद मिल सके और भाजपा द्वारा इसे साम्प्रदायिक और बंगलादेशी घुसपैठियों जैसे अलंकारों के जरिए जिस तरह साम्प्रदायिक रंगत देने की कोशिश किया है, उसका भंडाफोड़ हो सके.
इसके अलावा इस रिपोर्ट के संदर्भ में अधिक जानकारी के लिए तथ्यान्वेषण दल के सदस्यों का लिस्ट, उनके फोन नं. के साथ जारी किया गया है, ताकि उनसे संपर्क कर सके. हम यहां उनके इस लिस्ट को भी प्रकाशित कर रहे हैं – अजय एक्का (7061986559), अफज़ल अनीस (9234982712), दिनेश मुर्य (7250803266), एलिना होरे (6201324960), एमेलिया हंसदा (8235017836), फौज़ान आलम (9631556360), सेरी हंसदा (7858852022), मुज़फ्फर हुसैन (6202241352), नंदिता भट्टाचार्य (7717704533), प्रियशीला बेसरा (7717704533), ग्रवीर पीटर (9430367949), सिराज दत्ता (9939819763), टॉम कावला (7632034579
– सम्पादक
तथ्यान्वेषण रिपोर्ट : संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ और उससे सम्बन्धित मामले
तथ्यान्वेषण रिपोर्ट : संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ और उससे सम्बन्धित मामले (तस्वीरों में – जांच टीम की पड़ताल)

पिछले कई महीनों से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगातार यह बोल रही है कि संथाल परगना में आदिवासियों की संख्या कम होती जा रही है क्योंकि बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये (मुसलमान) बस रहे हैं. भाजपा के नेता बोल रहे है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण झारखंड बनने के बाद संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 16% कम हुई है. सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में बयान दिया कि 2000 में संधाल परगना में आदिवासी 36% थे और अब 26% हैं और इसके जिम्मेवार बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं.

हाल की एक प्रेस वार्ता में अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य आशा लकड़ा ने कहा कि डेमोग्राफी में 30-40% बदलाव हो गया है. भाजपा का कहना है कि बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं और आदिवासियों की ज़मीन लूट रहे हैं. वे लव जिहाद और लैंड जिहाद कर रहे हैं. पिछले कुछ महीने में संधाल परगना, खास करके पाकुड़, में विभिन्न समुदायों के बीच कई हिंसा की घटनाएं हुई हैं, जैसे गायब॒थान, गोपीनाथपुर, तारानगर-इलामी आदि गावों में. भाजपा यह प्रसारित कर रही है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा इन घटनाओं को अंजाम दिया गया है.

झारखंड जनाधिकार महासभा और लोकतंत्र बचाओ अभियान का एक तथ्यान्वेषण दल बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को समझने और इन सभी मामलों की जमीनी सच्चाई को समझने के लिए 22-23 अगस्त 2024 को पाकुड़ व साहेबगंज गया था. दल के कुछ सदस्य इसके पहले भी कई दिनों तक इन मामलों को स्थानीय स्तर पर फॉलो कर रहे थे. दल में झारखंड के विभिन्न जिलों व विभिन्न समुदायों के सदस्य थे.

तथ्यान्वेषण के दौरान दल ने पीड़ितों, आरोपियों, दोनों पक्षों के ग्रामीणों, ग्राम प्रधानों व स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात की. साथ ही, मामलों में दर्ज प्राथमिकियों व संबंधित दस्तावेजों का अध्ययन किया गया. 1901 से अब तक की जनगणना के आंकड़ों, संबंधित सेन्सस रिपोर्ट, गज़ेटियर व क्षेत्र के डेमोग्राफी से जुड़े शोध पत्रों का अध्ययन व आंकलन भी किया गया. दल प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारी से नहीं मिल पाया. दल ने उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक को मिलने के लिए मैसेज किया था लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया. तथ्यान्वेषणदल द्वारा पाए गए तथ्य व आंकलन निम्न विषयसूची अनुसार दिए गए हैं.

  1. गायबथान मामला
  2. केकेएम कॉलेज छात्रावास में छात्रों पर हिंसा
  3. तारानगर-इलामी मामला
  4. कुलापहाड़ी-जुगीगरिया मामला
  5. आदिवासी महिला जन प्रतिनिधियों का बांग्लादेशी घुसपैठियों से शादी
  6. गोपीनाथपुर मामला
  7. डंगरापाड़ा मामला
  8. तथ्यों व आंकड़ों के आधार पर पूरी परिस्थिति पर दल का निष्कर्ष
  9. झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान की राज्य सरकार से मांग

1. गायबथान मामला

19 जुलाई 2024 को भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी व पार्टी के अन्य नेताओं ने ट्रिटर पर एक विडियो डाल कर बोला कि पाकुड़ के महेशपुर प्रखंड के गायबथान गांव में बांग्लादेशी घुसपैठी लैंड जिहाद करके आदिवासी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं. यह प्रसारित किया गया कि 18 जुलाई को बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा परमेश्वर हेम्ब्रम की ज़मीन से उनकी झोपडी तोड़ दी गयी और मारपीट की गई. इसके बाद भाजपा के विभिन्न राज्य व राष्ट्रीय-स्तरीय नेता इस मामले को प्रसारित करके इन बातों को दोहराते रहे. तथ्यान्वेषण दल गायबथान गया और उसने वहां के ग्राम प्रधान, संबंधित आदिवासी व मुसलमान परिवारों व अन्य ग्रामीणों से बात की. घटना निम्न है –

1.1 घटना

गायबथान गांव में चार टोले हैं, जिनमें आदिवासी, मुसलमान और हिंदू समुदाय रहते हैं. आदिवासी परिवारों की जनसंख्या गांव में अन्य समुदायों से ज्यादा है. खास मुसलमान टोला, जहां घटना घटी, में लगभग 100 मुसलमान परिवार रहते हैं और 4 आदिवासी परिवार रहते हैं.

विवादित ज़मीन पर परमेश्वर हेम्ब्रम और सफरुद्दीन अंसारी के बीच विवाद कई दशकों से चल रहा था. ग्राम प्रधान व सफरुद्दीन अंसारी के अनुसार सफरुद्दीन अंसारी के पिता ने बहुत साल पहले (1997 से भी पहले) दान-पत्र व आपसी लेन-देन से परमेश्वर हेम्ब्रम से ज़मीन खरीदी थी. पर परमेश्वर के अनुसार ऐसा नहीं हुआ था और इसका कोई कागज़ी प्रमाण नहीं है. सफरुद्दीन अंसारी का परिवार भी क्षेत्र का खतियानी परिवार है.

विवादित ज़मीन लम्बे समय से खाली पड़ी हुई थी. परमेश्वर हेम्ब्रम के बेटे बाबूजी हेम्ब्रम और अन्य रिश्तेदारों ने ज़मीन पर घर बनाने का निर्णय किया. सफरुद्दीन अंसारी ने इसका विरोध किया, यह बोल कर कि उनके पिता ने ज़मीन खरीद ली थी. मामला न्यायलय में गया और 2015 में न्यायलय ने परमेश्वर हेम्ब्रम के पक्ष में निर्णय दिया एवं अंचल अधिकारी को आदेश दिया कि ज़मीन का मालिकाना और दखल परमेश्वर को दिया जाए. लेकिन 2022 तक इस पर किसी प्रकार की प्रशासनिक कार्यवाई नहीं हुई.

2022 में फिर से परमेश्वर ने घर बनाने का निर्णय लिया. इस सम्बन्ध में ग्राम प्रधान ने ग्राम सभा की बैठक बुलाई जिसमें दोनों पक्षों को भी बुलाया गया. इस बैठक में न्यायालय के आदेश पर चर्चा हुई. आदेश की प्रति में जमाबंदी नंबर गलत लिखा हुआ था. ग्राम प्रधान ने सफरुद्दीन को ही बोला, उस गलती को ठीक करवा लेने. इसके बाद मामला ठंढे बस्ते में चला गया.

2024 में परमेश्वर लकड़ी खरीद लिया घर बनाने के लिए. सफरुद्दीन ने ग्राम प्रधान को फिर से सूचित किया. ग्राम प्रधान ने दोनों पक्षों को कहा कि गांव की बैठक बुलाने में समय लगेगा और अगली बैठक से पहले किसी प्रकार की कार्यवाई नहीं करने. लेकिन इसके दो दिनों बाद ही परमेश्वर ने घर बनाना शुरू कर दिया. परमेश्वर के अनुसार ग्राम प्रधान ने सफरुद्दीन से पैसे उधार लिए है और इसलिए उसके पक्ष में ही रहता है और चाहता था कि उसे ही ज़मीन मिले.

18 जुलाई को सफरुद्दीन अपने रिश्तेदारों के साथ सीधा ज़मीन पर पहुंच कर काम को रोका. परमेश्वर के अनुसार 10 लोग लाठी, डंडे के साथ आये थे. फिर दोनों पक्षों में मारपीट हुई और निर्माणाधीन घर को तोड़ दिया गया. दोनों पक्षों को चोट लगी. संथालों को ज़्यादा चोट लगी. इसके बाद वे स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र गयें जहां से दुमका अस्पताल में रेफ़र कर दिया गया.

1.2 घटना के बाद की कार्यवाई

घटना के बाद दोनों पक्षों द्वारा थाने में एक-दूसरे के विरुद्ध मारपीट के लिए प्राथमिकी दर्ज करवाई गयी है. अभी तक तीन मुसलमानों की गिरफ़्तारी हो चुकी है. घटना के बाद और राजनैतिक हल्ला-हंगामे के बाद अंचल अधिकारी ने विवादित ज़मीन के पास की ज़मीन, जिस पर भी सफरुद्दीन का घर था और जो उनके परिवार ने परमेश्वर से बहुत साल पहले खरीदा था व जिसपर विवाद नहीं है, उस पर बने घर को तोड़ दिया.

जब संथाल परिवार के सदस्य दुमका अस्पताल में भर्ती थे, तब बाबूजी हेम्ब्रम दुमका कॉलेज के आदिवासी छात्र संघ के नेताओं, जो भाजपा से जुड़े हैं, के संपर्क में आयें. इसके बाद भाजपा के अनेक प्रमुख राज्य-स्तरीय व केंद्रीय नेता गायबथान गए और मामले को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किये. भाजपा नेताओं द्वारा पीड़ित परिवार को आर्थिक सहयोग किया गया है.

अस्पताल में झामुमो के स्थानीय नेता गए थे और पीड़ित परिवार को आर्थिक सहयोग करना चाहा, लेकिन परिवार ने मना कर दिया. घटना के बाद भाजपा मुसलमान टोला समेत पूरे गांव में रैली निकालना चाहती थी लेकिन ग्राम प्रधान ने मना कर दिया. कुछ दिनों बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसी गांव में मईयां सम्मान योजना का जन कार्यक्रम रखा, जिसमें बड़ी संख्या में लोग भाग लिए.

1.3 आंकलन – स्थानीय ज़मीन विवाद को सांप्रदायिक रंग देना

इस मामले के पीड़ित परमेश्वर हेम्ब्रम व उनके परिवार के सदस्यों ने अपनी पूरी बात में एक बार भी बांग्लादेशी मुसलमान या घुसपैठी का ज़िक्र नहीं किया. जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके गांव में बांग्लादेशी घुसपैठिये बस रहे हैं, तो उन्होंने साफ़ कहा कि ऐसी बात नहीं है. जो भी मुसलमान हैं, भारतीय हैं और इस क्षेत्र के हैं और कुछ झारखंड के अन्य क्षेत्रों व बंगाल से आये हुए हैं. सफरुद्दीन व अन्य मुसलामानों ने भी कहा कि सारे मुसलमान परिवार या तो यहीं के जमाबंदी रैयत हैं या आसपास से आ कर बसे हैं. दोनों पक्षों ने कहा कि आदिवासियों ने दान-पत्र व आपसी लेन-देन से मुसलमानों को ज़मीन बेची है.

भाजपा के नेता इस स्थानीय ज़मीन विवाद को लगातार बांग्लादेशी घुसपैठी से जोड़ के सांप्रदायिक रंग देने का कोशिश की.

2. केकेएम कॉलेज छात्रावास में छात्रों पर हिंसा

गायबथान में एक आदिवासी परिवार के साथ हुई हिंसा व ज़मीन विवाद के विरुद्ध 27 जुलाई 2024 को पाकुड़ में आदिवासी छात्र संघ द्वारा रैली की जानी थी. इसके पहले ही 26 जुलाई 2024 की रात को कॉलेज के छात्रावास में छात्रों के साथ व्यापक हिंसा हुई. छात्रों का आरोप है कि 26 जुलाई की रात में पुलिस ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें 27 जुलाई को गायबथान में आदिवासी की भूमि पर कब्ज़ा करने के मुद्दे के विरुद्ध होने वाली रैली को नहीं करने को बोला गया. पुलिस का कहना है कि शाम को किसी अन्य मामले में गए दो पुलिस वालों को छात्रों द्वारा पीटा गया.

इस पूरे मसले को भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठी आरोप के साथ जोड़ दिया है और 27 जुलाई से लगातार कॉलेज के छात्रों को गोलबंद करने की कोशिश करने लगी.

हिंसा के कारण और उसके बाद हुई कार्यवाई को समझने के लिए तथ्यान्वेषण दल 22 अगस्त को छात्रावास जा कर छात्रों से मिला और बात की. इसके पहले दल के कई सदस्य कुछ छात्रों से व्यक्तिगत स्तर पर मिले थे. मामले का तथ्य निम्न है –

2.1 घटना

27 जुलाई को आदिवासी छात्र संघ द्वारा गायबथान मामले में विरोध रैली का कार्यक्रम तय था. इसके लिए छात्रों ने एसडीओ से अनुमति भी ली थी. स्थानीय प्रशासन द्वारा अनुमति भी दी गयी थी.

26 जुलाई को शाम 6 बजे के आसपास कई छात्र छात्रावास के बाहर मैदान में खुले में बैठे हुए थे. एक छात्र छात्रावास कैंपस के गेट के पास फ़ोन पर बात कर रहा था. एक बोलेरो आया जिसमें एएसआई नागेन्द्र कुमार और दो पुलिस कर्मी थे.

वे फ़ोन पर बात कर रहे लड़के को बोले कि वे एक लड़की को ढूंढ रहे हैं जिसका अपहरण हुआ है. पुलिस के अनुसार लड़की के फ़ोन का सिग्नल उसी क्षेत्र में दिख रहा था. फ़ोन वाले लड़के ने बोला कि उसे नहीं पता और अगर मोबाइल सिग्नल दिख रहा है तो पुलिस जाकर खोजे. छात्रों के अनुसार छात्र द्वारा ऐसे जवाब देने के बाद उसके फ़ोन को पुलिस वाले छीनने लगे. छात्र के साथ धक्का-मुक्की हो गयी और पुलिस वाले उसे गाड़ी के अन्दर बैठाने की कोशिश करने लगे. इतने में जो छात्र छात्रावास के बाहर बैठे थे, वे भी पहुंच गए और बाता-बाती हो गयी. पुलिस के अनुसार छात्रों ने मिलकर पुलिस की पिटाई की. छात्रों का कहना है कि उन्होंने पिटाई नहीं की थी, लेकिन झगडा किया था. इसके बाद तीनों पुलिस वापिस चले गए.

फिर रात 12:30 बजे के आसपास लगभग 100-150 पुलिस लाठी-चार्ज करने की तैयारी के साथ (चितकबरा ड्रेस, हेलमेट, शील्ड और डंडों के साथ) चारों छात्रावासों में घुसे और पिटाई करने लगे. छात्रों के अनुसार चितकबरा ड्रेस वालों के साथ कुछ सिविल ड्रेस में भी थे. बहुत छात्र सो रहे थे. कुछ को सोते हुए ही पीटा गया. कई छात्र छात्रावास की बाउंड्री कूद के भाग गए. पुलिस ने लगभग 15-20 मिनट तक पिटाई की.

जब तथ्यान्वेषण दल ने छात्रों से पूछा कि पुलिस वाले पिटाई करते वक्‍त क्या बोल रहे थे, तो सबने कहा कि पुलिस गाली-गलौज कर रहे थे और बोल रहे थे – ‘राजनीति करेगा’, ‘रैली करेगा’. 1-2 लड़कों ने बोला कि रैली नहीं करने बोला गया. लेकिन वो खुद छात्रावास में हिंसा के दौरान नहीं थे और अन्य छात्रों से सुने थे. इस दौरान किसी ने भी यह नहीं कहा कि ‘बांग्लादेशी घुसपैठी भगाने वाली रैली मत करो. ये किसी भी छात्र ने आत्मविश्वास के साथ नहीं बोला कि उसने किसी पुलिस को सुना रैली करने से मना करते हुए. पुलिस की हिंसा में 11 छात्रों को गंभीर चोट लगी व अन्य कुछ छात्रों को भी हलकी चोट लगी. छात्रों ने यह भी आरोप लगाया कि रात को ही डीएसपी और एसपी को फ़ोन किया गया था, लेकिन वे कॉल नहीं उठाये.

छात्रों ने दल को कहा कि चारों छात्रावासों में लगभग 300 छात्र थे. अनेक छात्र अगले दिन रैली के लिए आकर रुके हुए थे. तथ्यांवेषण दल को यह नहीं पता चला कि रैली के लिए जो बाहर से आये थे, वे छात्र थे या अन्य युवा. जब छात्रों से पूछा गया कि हिंसा के बाद कौन-कौन सी राजनैतिक पार्टी और नेता मिलने आए है, तो उन्होंने कहा कि सबसे पहले लोबिन हेम्ब्रम आये, फिर भाजपा के नेता और काफी बाद में झामुमो के हेमलाल मुर्मू, वरीय प्रशासनिक और पुलिस पदाधिकारी भी उनसे मिलने आये.

पुलिस द्वारा की गई हिंसा के विरुद्ध छात्रों ने 27 जुलाई 2024 को पाकुड़ नगर थाने में आवेदन देकर 150 की संख्या में आये पुलिस वर्दी में पाकुड़ पुलिस और गुंडों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने की मांग किए. छात्रों ने तथ्यान्वेषण दल के समक्ष अहम सवाल किया है कि बिना प्रिंसिपल, कल्याण विभाग के पदाधिकारी व हॉस्टल इंचार्ज से अनुमति लिए, पुलिस कैसे छात्रावास में घुस गयी और हिंसा की.

2.2 पुलिस व प्रशासनिक कार्यवाई

पुलिस द्वारा इस मामले में तीन प्राथमिकियां दर्ज की गयी हैं. पहली प्राथमिकी 26 जुलाई की रात 1:30 बजे पुलिस अपर निरीक्षक नागेन्द्र कुमार द्वारा 50-60 अज्ञात छात्रों के विरुद्ध दर्ज करवाई गयी (कांड सं 779/24 दिनांक 26/07/2024 थाना – नगर). उनका आरोप है कि रात 10 बजे वे अपहरण हुए व्यक्ति के मोबाइल लोकेशन के अनुसार छात्रावास पहुंचकर सामान्य पूछताछ कर रहे थे जिसके विरुद्ध 50-60 छात्र तीनों पुलिस कर्मियों की पिटाई किये, जिसमें उन्हें चोट आई.

दूसरी प्राथमिकी कॉलेज में रात में हुई हिंसा के विषय में पुलिस अपर निरीक्षक अभिषेक गुप्ता की शिकायत पर छात्रावास में पुलिस बल के साथ गाली-गलौज, मार-पीट करने के लिए जिम्मेवार 100 अज्ञात लोगों के विरुद्ध 27 जुलाई 2024 की सुबह 3 बजे दर्ज की गयी है (कांड सं 180/24 दिनांक 27/07/2024 थाना – नगर). पुलिस का कहना है कि पुलिस वालों को छात्रावास में चोट आई.

हालांकि छात्रों की ओर से 27 जुलाई को ही शिकायत दी गई थी, लेकिन उनकी शिकायत पर 28 जुलाई को प्राथमिकी दर्ज की गयी (कांड सं 48/24 दिनांक 28/07/2024 थाना – नगर). छात्रों ने शिकायत में पाकुड़ पुलिस के विरुद्ध शिकायत की थी लेकिन प्राथमिकी में आरोपी में पाकुड़ पुलिस का ज़िक्र नहीं है और केवल 150 अज्ञात व्यक्तियों का ज़िक्र है.

अभी तक इस मामले में दोनों पुलिस अपर निरीक्षकों को ससपेंड करके लाइन हाजिर किया गया है.

2.3 आंकलन – छात्रों पर पुलिसिया दमन व राजनैतिक हस्तक्षेप

जब छात्रों से तथ्यांवेशन दल ने पूछा कि गायबथान का मामला क्या था, तो उन्होंने सही तथ्यों को रखते हुए कहा कि एक मुसलमान परिवार द्वारा आदिवासी ज़मीन पर दखल करने की कोशिश की गयी और इसका विरोध करने पर मुसलमानों द्वारा आदिवासियों परिवार को पीटा गया. छात्रों ने बांग्लादेशी घुसपैठी का एक बार भी ज़िक्र नहीं किया.

जब उनसे पूछा गया कि उनकी जानकारी में उनके गांव-क्षेत्र में कोई भी बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं, तो उन्होंने कहा कि नहीं है. सब तो इधर के ही हैं. जब उनसे पूछा गया कि किन बांग्लादेशी घुसपैठिये का विरोध वो लोग किये 27 जुलाई की रैली में, वे बोलें कि सोशल मीडिया में देखे सुने थे.

छात्रों के शिकायत आवेदन के आरोप में लिखा है कि पुलिस ने पिटाई के साथ उनको यह भी धमकी दी कि कैसे ‘बांग्लादेशी घुसपैठ मुसलमान का विरोध करेगा’. जब छात्रों से ये पूछा गया तो तथ्यान्वेषण दल को किसी छात्र ने यह नहीं बोला है कि वे खुद ये कहते हुए सुने हैं, तो शिकायत आवेदन में ‘बांग्लादेशी घुसपैठ मुसलमान’ का ज़िक्र कैसे जुड़ा, इस पर किसी छात्र के पास स्पष्ट जवाब नहीं था.

पूरे घटनाक्रम से कुछ बातें साफ़ हैं. तीन पुलिस, जो पहले छात्रावास पहुंचे थे, उनके साथ छात्रों का झगड़ा हुआ. छात्रों ने उन्हें पीटा या नहीं, ये स्पष्ट नहीं है. लेकिन यह साफ़ है कि अच्छी संख्या में पुलिस रात में पहुंच कर कानून को तोड़ते हुए छात्रों पर हिंसा की है. पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज होने के घटनाक्रम से भी साफ़ है कि पुलिस ने अपने को बचाने के लिए पहले ही छात्रावास की घटना में अपने को पीड़ित बताकर प्राथमिकी दर्ज कर दी. छात्रों के आवेदन पर सबसे आखिरी में प्राथमिकी दर्ज की लेकिन ‘आरोपी’ में पाकुड़ पुलिस के बजाय केवल अज्ञात व्यक्ति का ज़िक्र है.

पुलिस ने छात्रावास में घुस कर कार्यवाई करने से पहले सम्बंधित प्रिंसिपल, पदाधिकारी आदि से अनुमति भी नहीं ली.

तथ्यान्वेषण दल का यह भी मानना है कि राज्य सरकार व सत्तारूढ़ी दलों की ओर से इस पुलिसिया हिंसा के विरुद्ध त्वरित कार्यवाई नहीं की गयी. तथ्यान्वेषण दल का यह मानना है कि छात्रों और भाजपा का यह आरोप कि 27 जुलाई की रैली को रोकने के लिए ऐसी हिंसा की गयी, यह बेबुनियाद है. छात्रों के शिकायत आवेदन को लिखने की शैली और हिंसा के बाद भाजपा की सक्रियता से यह प्रतीत होता है कि पुलिसिया दमन के इस मामले को भाजपा के ‘बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठी’ के सांप्रदायिक मुद्दे से जोड़ने की कोशिश की गयी है.

तथ्यान्वेषण दल को छात्रों ने कॉलेज में शिक्षा की दयनीय स्थिति के विषय में भी बताया. शिक्षकों के अधिकांश पद रिक्त हैं. ज़्यादातर विषयों में न के बराबर क्लास होते हैं. छात्र खास सब्जेक्ट में एडमिशन लेते हैं, लेकिन पूरा साल बिना क्लास का निकाल देते हैं क्योंकि 1) शिक्षक नहीं हैं, अथवा 2) शिक्षक क्लास नहीं लेते हैं. दुःख की बात है कि केकेएम कॉलेज घटना की चर्चा में इस मुख्य बिंदु, जिसपर बच्चों का भविष्य निर्भर है, पर कोई बात ही नहीं हो रही है.

3. तारानगर-इलामी मामला

भाजपा के नेताओं (निशिकांत दुबे, बाबूलाल मरांडी आदि) द्वारा 19 जुलाई 2024 को सोशल मीडिया पर कहा गया कि पाकुड़ के महेशपुर के तारानगर-इलामी गांव में बांग्लादेशी घुसपैठियों (मुसलमानों) ने हिन्दुओं पर हमला किया एवं वे डर से भाग गए. उन्होंने यह भी कहा कि इसके पहले एक मुसलमान लड़के द्वारा एक हिंदू नाबालिक लड़की का वीडियो बनाकर ब्लैकमेल किया जा रहा था जिसका हिन्दुओं द्वारा विरोध करने पर हमला किया गया.

तथ्यान्वेषण दल ने संबंधित लड़के के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों व गांव के अन्य मुसलमानों एवं हिंदू टोले के हिन्दुओं से इस मामले को लेकर विस्तृत बात किया. तथ्य निम्न हैं –

3.1 घटना

18 जुलाई 2024 को तारानगर के हिंदू टोले (उल्लुपाड़ा) के कुछ लोग झूंड में दोपहर के 2-2:30 बजे इलामी पहुंचे और 17 वर्षीय मुशरफ़ शेख (जो अपनी नानी के घर में था) के साथ गाली-गलौज और मारपीट करने लगे. नानी ने जब कारण पूछा तो उसे भी मारने का डर दिखाया गया. इसके बाद मुशरफ़ को हिंदू समुदाय के लोग अपने टोला ले गए. इलामी के किसी ने भी उन्हें रोका नहीं.

उस पर आरोप लगाया कि उसने फ़ेसबुक पर उपलब्ध उल्लुपाड़ा के एक नाबालिक लड़की के रील पर अपने फ़ोटो को जोड़ते हुए सोशल मीडिया पर सार्वजनिक किया था. उल्लुपाड़ा की कई महिलाओं का कहना था कि उन्होंने विडियो/रील देखा तो नहीं था लेकिन ऐसी खबर फैली थी कि मुशरफ़ ने लड़की को गर्भवती दिखाकर और अपने फ़ोटो को जोड़कर विडियो शेयर किया था. इलामी और नवादा गांव में मुशरफ़ के परिवार के सदस्य व अन्य ग्रामीणों ने कहा कि लड़की के रिश्तेदार ने उसके एक विडियो को फेसबुक में डाला था जिसमें अशरफ ने अपना फ़ोटो जोड़ के रील बनाकर फेसबुक पर डाल दिया था.

तथ्यान्वेषण दल ने इस विडियो को देखा. लड़की के विडियो से ऐसा प्रतीत होता है कि उसके किसी दोस्त/रिश्तेदार ने बनाया है एवं ऐसा विडियो जो आजकल युवाओं द्वारा अपने को केन्द्रित कर बनाए जा रहे रील्स की तरह ही है. मुशरफ़ ने तथाकथित एडिट करके विडियो के आखिरी में अपना फ़ोटो डाल दिया था जिसमें उसके और लड़की के चेहरे पर एक heart इमोजिकॉन बना हुआ है. दोनों पक्षों के लोगों ने कहा कि दोनों नाबालिक लड़के व लड़की में पहले से पहचान/दोस्ती नहीं थी. तथ्यान्वेषण दल को विडियो/फ़ोटो में ऐसा कुछ नहीं दिखा जिस तरह की अफ़वाह फ़ैल रही थी.

मुशरफ़ को उल्लुपाड़ा ले जाकर बिजली पोल से बांध दिया गया और बेरहमी से पीटा गया. मुशरफ़ की मां अंगूरा बीबी और पिता मोहम्मद शेख पास के पंचायत नवादा में रहते हैं. मुशरफ़ के बारे में जैसे ही उन्हें पता चला, उसकी मां इलामी के लिए निकल गयी और पिता नवादा मुखिया हज़रत बेलाल अंसारी को सूचित करने चले गए. मुखिया ने पुलिस को सूचित किया.

अंगूरा बीबी पहले इलामी पहुंची और फिर उल्लुपाड़ा पहुंची और पीटने वालों के समक्ष गिड़गिड़ाने लगी कि उनके बेटे को नहीं पीटा जाए. उनके अनुसार उन्हें भी लात-मुक्को से पीटा गया जब वे अपने बेटे को बचाने गयी. वे पीटने वालों के पैर भी पड़ी लेकिन किसी ने नहीं सुना. उन दोनों को लड़की के रिश्तेदार समेत हिंदू समुदाय के 7 लोगों के द्वारा पीटा जा रहा था. चारों तरफ़ अनेक महिलाएं भी खड़ी थी. भीड़ में खीचातानी और धक्का के कारण अंगूरा बीबी के कपड़े भी फट गए. तथ्यान्वेषण दल को अंगूरा बीबी ने अपने फटे कपड़े दिखाए. सर पर चोट लगने के कारण वे बेहोश हो गयी थीं. पीटते समय उन्हें गाली दी जा रही थी और कहा जा रहा था, ‘सब मुसलमानों को ख़तम कर देंगे.’ इस दौरान उन्हें तलवारों से भी डराया जा रहा था.

जब उल्लुपाड़ा के ग्रामीणों से पूछा गया कि उन्होंने इस पिटाई को रोका क्‍यों नहीं, तो उनके पास कुछ स्पष्ट जवाब नहीं था. किसी ने कहा कि वे घटना स्थल पर नहीं थे तो किसी ने कहा कि वे जब तक पहुंचे तब तक पिटाई हो चुकी थी तो किसी ने कहा कि लड़की का गलत विडियो बनाकर फ़ैलाने के लिए उसकी पिटाई हुई.

घटना स्थल पर पुलिस आने के बाद लड़के को शाम 6 बजे थाने ले गए और उसके मां को सोनाजोड़ी सदर अस्पताल में भर्ती किया गया. दोनों पक्ष के लोग भी थाना गए. लड़के का भी इलाज हुआ और फिर पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

थाने में बात हुई कि अगले दिन सुबह 10 बजे थाने में आपसी-सहमति से मामले को सुलझाया जायेगा. इसी आश्वासन पर मुसलमान पक्ष द्वारा शिकायत दर्ज नहीं की गयी. लड़के की मां रात-भर अस्पताल में थी. नवादा मुखिया ने तथ्यान्वेषण दल को कहा कि उन लोगों की कोशिश थी मामला बढ़ के सांप्रदायिक न बन जाए.

इसी दौरान मुसलमानों के बीच सोशल मीडिया में खबर फ़ैल गयी कि महिला की पिटाई से पेट का टांका टूटने के कारण मौत हो गयी. हालांकि अंगूरा बीबी ने तथ्यान्वेषण दल को बताया कि घटना के दौरान उसके पेट में कोई टांका नहीं लगा हुआ था और पांच साल पहले उनका सेजरियन ऑपरेशन हुआ था. सोशल मीडिया में ऐसी खबर फैलने के कारण अगले दिन सुबह होते ही कई गांव के मुसलमान युवा उल्लुपाड़ा के लिए निकल पड़े.

अगले दिन सुबह इलामी के बाज़ार में उल्लुपाड़ा के एक ग्रामीण पहुंचे थे अपने सब्जी/मछली को बेचने. इलामी के एक युवक ने उसे एक थप्पड़ मार के भगा दिया और कहा कि मुसलामानों की पिटाई करने के बाद उसे हिम्मत कैसे हुई कि इधर आकर अपना सामान बेच रहा है. इसके बाद इलामी के युवा अचानक उल्लुपाड़ा की ओर जाने लगे.

तारानगर-इलामी के मुसलामानों के अनुसार अंगूरा बीबी की मौत की गलत खबर फैलने के कारण 19 जुलाई 2024 को सुबह 6 -7 बजे आसपास के गांवों से सैंकड़ों मुसलमान युवा उल्लुपाड़ा में मारपीट करने पहुंच गए. इलामी और नवादा के अनेक ग्रामीणों ने तथ्यान्वेषण दल को कहा कि समुदाय में इस प्रकार की कार्यवाई का कोई प्लान नहीं था और वे भी इस कार्यवाई से आश्चर्यचकित हुए थे.

तारानगर में भीड़ ने कई घरों के टाली को तोड़ा व खिड़की/दरवाज़ा को क्षति पहुंचाई, एक दुकान (गुमटी) को तोड़ा, कुछ लोगों से मारपीट की, पुलिस की जीप के साथ तोड़-फोड़ की आदि. हिंदू समुदाय के ग्रामीणों के अनुसार भीड़ में सैंकड़ों की संख्या में युवा थे. वे गाली भी दे रहे थे. अनेक ग्रामीण डर से अपने घरों के अन्दर थे और खिड़की से देख रहे थे.

दोनों समुदायों के ग्रामीणों ने तथ्यान्वेषण दल को कहा कि भीड़ में तारानगर, इलामी, नवादा, रहसपुर आदि के युवा थे. उल्लुपाड़ा के ग्रामीण लगातार तथ्यान्वेषण दल को बोल रहे थे कि एक ख़ास परिवार ने जो भी किया, उसके लिए सभी पर इस तरह से हिंसा क्यों की गई. पुलिस को सूचना मिलते ही वह उल्लुपाड़ा और आसपास के गांव पहुंची. मामले को शांत करने में पुलिस व स्थानीय जन प्रतिनिधियों ने भूमिका निभाई,

तथ्यान्वेषण के दौरान दल उल्लूपाड़ा के अनेक ग्रामीणों से मिला जो हिंसा की घटना के बाद अपने घरों को छोड़ के आसपास के गांवों/शहरों में अपने रिश्तेदारों के घर चले गए थे. लगभग एक सप्ताह तक अनेक हिंदू परिवार बाहर ही रहे. फिर धीरे-धीरे वापिस आना शुरू किया. दल जिस दिन गांव पहुंचा, उस दिन तक भी कई ग्रामीण वापिस नहीं आये थे. टोले के ग्रामीणों ने कहा कि वे बहुत डर गए थे क्योंकि इस तरह की घटना पहले कभी नहीं हुई थी.

ग्रामीणों व स्थानीय मीडिया के अनुसार मुशरफ़ की पिटाई व 19 जुलाई की हिंसा के मामलों में तीन प्राथमिकियां दर्ज की गयी हैं –

  • उल्लुपाड़ा में की गई हिंसा के लिए 40 नामजद और 300 अज्ञात लोगों के विरुद्ध कांड सं 158/24 दिनांक 19/07/2024 मुफस्सिल थाना, पाकुड़
  • मुशरफ़ शेख व उसकी मां की पिटाई के लिए उल्लुपाड़ा के 7 नामज़द आरोपियों के विरुद्ध कांड सं 159/24 दिनांक 19/07/2024 थाना मुफस्सिल, एवं
  • नाबालिक लड़की की मां द्वारा मुशरफ़, उसके मां-पिता समेत 5 नामजद और 500-800 अज्ञात लोगों के विरुद्ध कांड सं 160/24.

पिटाई के लिए तीन हिंदू व्यक्तियों को एवं भीड़ द्वारा हिंसा के लिए 11 मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया है. कई मुसलमान ग्रामीणों ने यह भी कहा कि निर्दोष मुसलमानों को भी गिरफ्तार किया गया है जो घटना स्थल पर उपस्थित भी नहीं थे. हिंसा के तुरंत बाद गांव में पुलिस बलों का अस्थायी कैंप स्थापित किया गया था जो अभी भी है.

इलामी व नवादा पंचायतों के मुखिया व अन्य मुसलमान प्रतिनिधियों ने कहा कि उनके द्वारा 2-3 बार दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों के बीच शान्ति और समझौता स्थापित करने के लिए बैठकों का आयोजन किया गया था ताकि हिंदू समुदाय अपने घर वापिस आये. अब अनेक ग्रामीण वापिस आ गए हैं. लेकिन उल्लुपाड़ा के आरोपी परिवार व रिश्तेदार वापिस नहीं आये हैं. वापिस न आने का कारण प्राथमिकी में नाम दर्ज होना भी हो सकता है.

3.2 आंकलन – भाजपा के सांप्रदायिक दावे बनाम सच्चाई

तारानगर व इलामी के दोनों पक्षों के ग्रामीणों व जन प्रतिनिधियों ने स्पष्ट कहा कि इस घटना में बांग्लादेशी घुसपैठी का कोई मामला नहीं था. उल्लुपाड़ा के निवासी भाजपा मंडल अध्यक्ष से जब पूछा गया कि उनके गांव या आसपास में उनकी जानकारी में कोई भी बांग्लादेशी घुसपैठिये है या नहीं, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनके गांव या क्षेत्र में कोई भी बांग्लादेशी घुसपैठिये नहीं है. जो भी मुसलमान या हिंदू हैं, वे अनेकों दशकों से यही के निवासी हैं या कुछ पास के राज्यों से आ कर बसे हैं. भाजपा ने उल्लूपाड़ा में हुई हिंसा को तो उछाला लेकिन इसके पहले हुए मुसलमान लड़के की पिटाई पर चुप्पी साधी रही.

तारानगर-इलामी मुसलमान बहुल क्षेत्र है. यहां कम-से-कम 5000 मुसलमान वोटर हैं और 300-350 हिंदू वोटर हैं.

उल्लुपाड़ा में लगभग 50 हिंदू घर हैं और आसपास के सभी घर (कम-से-कम 1000-2000 घर) मुसलमानों के हैं. ये सभी हिंदू व मुसलमान अनेकों दशकों से इस क्षेत्र में रह रहे हैं और यह क्षेत्र SPTA के अनुसार transferable एरिया है. दोनों पक्षों के जितने ग्रामीणों से तथ्यान्वेषण दल ने बात की, सबने कहा कि आज तक कभी भी किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक हिंसा की घटना नहीं हुई है. मुसलमान व हिंदू अपने-अपने धर्मो, संस्कृति व कार्यक्रमों को मनाते हैं. एक-दूसरे के पर्व में भाग लेते हैं. एक साथ उठना-बैठना, खाना-पीना होता है. हिन्दुओं ने यह भी कहा कि बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा कभी भी उनके किसी धार्मिक अनुष्ठान व संस्कृति में हस्तक्षेप नहीं किया गया है. इसलिए इस बार की घटना सबके लिए बिलकुल नई थी.

दैनिक जागरण की खबर, जिसे भाजपा के निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया में उठाकर सांप्रदायिक आरोप लगाया था, के अनुसार गांव के सभी 40 हिंदू घर के लोग गांव छोड़ के भाग गए थे. कई घर के लोग गांव छोड़ दिए थे लेकिन संख्या 40 से कम थी. इसके बाद मुसलमान समुदाय के प्रतिनिधियों और जन प्रतिनिधियों द्वारा लगातार कोशिश की जा रही थी कि उनका डर ख़तम हो और वे वापिस आएं.

फैक्ट फाइंडिंग टीम मुखिया बेलाल के गांव में एक हिन्दू महिला निवासी, बन्दना शाहा से मिली. उन्होंने बताया कि गांव में सभी घर मुसलमानों के हैं और केवल 4 घर हिंदू के हैं. हिंदू घरों का गांव के बाकी मुस्लिम परिवारों से अच्छे रिश्ते हैं. उन्हें कभी असुरक्षित नहीं लगा. मुखिया बेलाल को जब तारानगर में मुस्लिम समुदाय द्वारा हिन्दू समुदाय के लोगों पर दंगा की बात पता चली तो अपने गांव के इन 4 हिन्दू परिवारों की सुरक्षा में लड़कों को तैनात कर दिए और इनके यहां सब ठीक रहा.

हिंसा की घटना के बाद दोनों पक्षों द्वारा सक्रिय कोशिश हो रही है कि पहले की तरह सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल फिर से बन सके.

4. कुलापहाड़ी-जुगीगरिया मामला

29 जुलाई 2024 को 27 वर्षीय समीउल शेख (कुलापहाड़ी गांव, थाना – पाकुड़) अपने गांव से दिन में निकला था काम के लिए. वह शाम को नहीं लौटा. अगले दिन 30 जुलाई को उसके घर वालों को सूचना मिली कि समीउल गांव के पास ही खदान के बगल में पड़ा है केवल एक गमछा लपेट के. उसे घर लाया गया और वह ‘अब्बा, अब्बा’ बोलकर गुज़र गया. उसके घर वालों ने आसपास पूछ-ताछ की तो पता चला कि पास के सटे हुए आदिवासी-बहुल गांव जुगीगरिया के कुछ युवा मिलकर 29 जुलाई की शाम को समीउल शेख को पीट-पीट के मार दिए और खदान के पास फेंक दिए.

तथ्यान्वेषण दल ने दो उद्देश्य से इस मामले की जांच की – भीड़ द्वारा मारने का कारण और आदिवासी-मुसलमान समुदायों के बीच आपसी रिश्ते को समझने की कोशिश.

4.1 घटना

तथ्यान्वेषण दल कुलापहाड़ी गांव जाकर समीउल शेख के परिजनों और अन्य ग्रामीणों से बात की. समीउल मज़दूरी करता था और गाड़ियों में खलासी का काम करता था. उसकी पत्नी पांच महीने की गर्भवती है. समीउल के परिजनों के अनुसार घटनाक्रम निम्न था –

29 जुलाई 2024 को वह घर से सुबह निकला था. परिजनों और ग्रामीणों के अनुसार वो रात 10 बजे को पास के आदिवासी बहुल जुगीगरिया गांव में आदिवासियों के साथ जुआ खेल रहा था. उसके साथ 2-3 और मुसलमान लड़के थे जो पहले ही निकल गए थे. समीउल जुए में 30,000 रु. जीता था. रात 10 बजे के आसपास जुआ खेल रहे आदिवासियों ने उसका पैसा और मोबाइल लूट लिया और उसे मिलकर रौड, डंडे के साथ बहुत पीटा.

पीटने के बाद उसे खदान के पास फेक दिया गया था. सुबह कुलापहाड़ी के लोगों को समीउल वहीं पड़ा हुआ मिला था, बिना कपड़ो के, केवल एक गमछे में. उसके शरीर पर डंडे और चाकू के निशान थे. उसे गांव लाया गया. वो ‘अब्बा, अब्बा’ बोलते हुए गुज़र गया. इस मामले में पुलिस ने 7 आदिवासियों के विरुद्ध नामजद प्राथमिकी सं. 168/24 दिनांक 30/07/2024 थाना – मुफस्सिल दर्ज किया है. अभी तक तीन की गिरफ़्तारी हुई है – 1.सूरज मरांडी (उम्र 13-14 साल), 2. बाबु धान मुर्मू (उम्र 30-35 साल) और 3. अनिल हेम्ब्रोम (उम्र 20-22 साल).

जुगीगरिया के आदिवासियों ने तथ्यान्वेषण दल को थोड़ा अलग घटनाक्रम बताया. उन्होंने कहा कि उस दिन पास में हाट बाजार लगा था. देर रात तक लोगों का आना-जाना था. समीउल शेख रात के लगभग 9-9:30 बजे सो रही करमेला मरांडी पति बाबूधान मुर्मू के घर में घुसा था मोबाइल चोरी करने. इस दौरान करमेला जाग गयी और शोर मचाई. गांव के आदिवासी इकट्ठा हो गए और समीउल को पीटने लगे. रात में हाट बाजार से लौट रहे लोग भी चोर-चोर सुनकर पीटने लगे. पिटाई के बाद उसे छोड़ दिया गया क्योंकि वो पास के गांव का लड़का था. इसके बाद वो खदान के रास्ते अपने गांव की तरफ़ निकल पड़ा.

जुगीगरिया के ग्रामीणों के अनुसार उन्हें अगले दिन सुबह 10-बजे के आसपास पता चल कि समीउल की मौत हो गयी. आदिवासियों ने जुए की बात को एक सिरे से खारिज कर दिए. तीन लोगों को पुलिस पकड़ के ले गयी है. गांव में डर का माहौल है. जिनकी गिरफ़्तारी हुई है, उनके परिजनों को क़ानूनी प्रक्रिया की जानकारी नहीं है. ग्रामीणों का यह भी कहना है कि गिरफ्तार किये गए लोग पीटने में शामिल नहीं थे. उन्होंने यह भी कहा कि गांव में पहले भी मोबाइल, मोटरसाइकिल आदि चोरी हुई है, लेकिन कभी चोर पकड़ाया नहीं था. इस बार पकड़ाया है. उन्होंने जानकारी दी कि समीउल से उसके गांव वाले भी परेशान रहते थे. उसके ऊपर गांव ने चोरी के लिए जुर्माना भी लगाया था. हालांकि ऐसी कोई बात तथ्यान्वेषण दल को समीउल के गांव के ग्रामीण नहीं बोलें.

4.2 आंकलन – सामाजिक परिस्थिति व विवाद

कुलापहाड़ी में लगभग 450 घर हैं जिनमें 400 मुसलमानों के हैं व अन्य दलितों के. जुगीगरिया में लगभग 80 आदिवासी घर हैं एवं लगभग 200 मुसलमान घर हैं. ये क्षेत्र STPA अनुसार transferable है लेकिन यहां पिछले 2-3 दशकों में अनेक मुसलमान व कुछ हिंदू गैर-आदिवासी बस गए हैं. जुगीगरिया के आदिवासियों ने कहा कि उन्होंने आर्थिक समस्याओं के कारण स्वेच्छा से अपने क्षेत्र के अनेक ज़मीन दान-पत्र व्यवस्था व आपसी लेन-देन के तहत मुसलमानों और हिंदू परिवारों को बेच दिया है. कुलापहाड़ी और जुगीगरिया में मुसलमानों और आदिवासियों से जब पूछा गया कि उनके गांव या क्षेत्र में कोई बांग्लादेशी बस गए हैं या नहीं, तो दोनों पक्षों ने कहा कि गांव या क्षेत्र में कोई बांग्लादेशी घुसपैठ नहीं है. जो ज़मीन लेकर बसे हैं, वे आसपास के गांवों या क्षेत्रों के ही हैं.

जब दोनों पक्षों से पूछा गया कि क्या इस घटना के पीछे किसी प्रकार का ज़मीन विवाद या धार्मिक मुद्दा कारण था, तो दोनों पक्षों ने एक सिरे से ख़ारिज किया. दोनों पक्ष के ग्रामीणों ने साफ़ कहा कि इस घटना का धर्म से कुछ लेना-देना नहीं था. स्पष्ट रूप से चोरी का मसला था. दोनों पक्षों ने यह भी कहा कि आदिवासियों और मुसलमानों में किसी प्रकार का सांप्रदायिक विवाद का इतिहास नहीं है. दोनों समुदाय अपने-अपने धर्मों, संस्कृति व कार्यक्रमों को मनाते हैं. एक-दुसरे के पर्व में भी भाग लेते हैं. यह भी बात सामने आई कि मुसलमानों की ज़मीन पर आदिवासी मजदूरी करते हैं.

हालांकि जब आदिवासियों से पूछा गया कि उन्होंने हाल के बांग्लादेशी घुसपैठिये संबंधित हल्ला-हंगामा के बारे में सुना है कि नहीं, तो उन्होंने कहा कि सुना है. जब उनसे पूछा गया कि उनकी जानकारी में कहीं भी कोई बांग्लादेशी घुसपैठिये मिला है या नहीं, तो उन्होंने कहा कि आजतक कहीं सुने तो नहीं हैं लेकिन हाल में किसी और क्षेत्र का मामला सोशल मीडिया में दिखा है और इसको लेकर लोगों के बीच सवाल बनने लगे हैं.

वहीं मुसलमान पक्ष ने कहा कि इस घटना के बाद आदिवासी भीड़ करके थाना का घेराव करने गए थे. इस दौरान उन्होंने मुसलमानों द्वारा ज़मीन लूटने की बात कही थी जबकि सभी ज़मीन दान-पत्र और आपसी समझौते से लिए गए हैं. जब तथ्यान्वेषण दल ने पूछा कि उनमें से किसी ने जुगीगरिया के आदिवासियों को ऐसे बोलते सुना है कि नहीं, तो उन्होंने कहा कि नहीं सुना है लेकिन सोशल मीडिया में सुना है.

5. आदिवासी महिला जन प्रतिनिधियों की बांग्लादेशी घुसपैठियों से शादी का दावा

17 जुलाई 2024 को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने ट्विटर पर एक सूची साझा की जिसका शीर्षक था ‘यह है षड्यंत्र‘ एवं जिसमें संथाल परगना क्षेत्र के 10 आदिवासी महिला जन प्रतिनिधियों और उनके मुसलमान पति के नाम का विवरण था. फिर यह सूची सोशल मीडिया पर प्रसारित होने लगी यह कहते हुए कि बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं ज़मीन लूटने के लिए.

28 जुलाई को अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य व भाजपा नेता आशा लकड़ा ने रांची में प्रेस वार्ता कर इस सूची को जारी किया और कहा कि रोहिंग्या मुसलमान व बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं को फंसा रहे हैं. इस दौरान एक और सूची सोशल मीडिया में प्रसारित होने लगी जिसमें संथाल परगना के कई वैसे आदिवासी महिला जन प्रतिनिधियों के नाम थे जिन्होंने हिन्दुओं से शादी की है. यही सवाल झामुमो द्वारा उठाया गया कि आदिवासी महिलाएं हिन्दुओं से भी शादी कर रही हैं.

तथ्यान्वेषण दल के सदस्य इसके बाद आशा लकड़ा द्वारा जारी की गई सूची में दर्ज कई महिलाओं व उनके पतियों से मिला. दल दो दिनों में दो पंचायत प्रतिनिधियों – गोपालडीह पंचायत (बरहेट प्रखंड, साहिबगंज) की मुखिया सुनीता टुड़ पति समसुल अंसारी एवं फुलबोंगा पंचायत (बरहेट प्रखंड, साहिबगंज) की पंचायत समिति सदस्य सुनीता हंसदा व उनके पति दिबुधन मरांडी – से मिला और विस्तृत चर्चा की.

सुनीता टुड़ू और शमशुल अंसारी एक ही गांव गोपालडीह के रहने वाले हैं और 14 साल पहले आपसी पसंद से शादी किये थे. किसी प्रकार की कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं थी. शमशुल अंसारी का परिवार अनेक दशकों से इसी गांव का निवासी हैं. शमशुल के पिता की पुरानी खतियानी ज़मीन भी है. शादी के बाद सुनीता शमशुल के पारिवारिक घर में रहने लगी. गोपालडीह में 500 घर हैं, जिसमें 80 मुसलमान घर हैं, 20 हिंदू एवं 300 संथाल घर हैं. सुनीता और शमशुल के अनुसार इस गांव में उनके अलावा दो अन्य आदिवासी महिलाएं हैं जिन्होंने अंतर धार्मिक शादी की हैं. दोनों ने हिंदू पुरुषों के साथ शादी किया है.

मुसलमानों द्वारा ज़मीन लूटने के लिए आदिवासी महिला से शादी करने के आम आरोप पर शमशुल ने कहा कि SPTA कानून में कोई आदिवासी भी आदिवासी ज़मीन नहीं खरीद सकते हैं और महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति का हक़ नहीं है. तो कानून के हिसाब से तो इस आरोप का कोई मतलब नहीं है. लेकिन क्षेत्र में ऐसे अनेक उदहारण है कि गैर-आदिवासी (हिंदू व मुसलमान) दान-पत्र व आपसी लेन-देन से आदिवासी ज़मीन खरीद रहे हैं. इस तरीके से ज़मीन खरीदने के लिए किसी महिला से शादी करने की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने अपने गांव का उदहारण देते हुए यह भी कहा – ‘हिंदू परिवार मुसलमानों से ज़्यादा मात्रा में आदिवासी ज़मीन खरीद रहे हैं.’

शमशुल ने इस पूरे प्रकरण में मीडिया पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि ज़ी न्यूज़ वाले आये थे एवं शमशुल से पंचायत के विकास सम्बंधित बाइट लेकर गए. लेकिन उन्होंने अपने न्यूज़ में बिना बाइट का केवल विडियो फुटेज इस्तेमाल किये एवं इनके व अन्य मुसलमानों के चहरों को दिखाते हुए बांग्लादेशी घुसपैठिये वाले आरोप को चलाया.

सुनीता और शमशुल ने यह भी कहा कि गांव में सांप्रदायिक हिंसा या घटना का इतिहास नहीं है. सभी धर्म व समुदाय के लोग अपने धर्म, पर्व आदि को अपने हिसाब से मनाते हैं.

वहीं दूसरी ओर, फुलबोंगा पंचायत की पंचायत समिति सदस्य सुनीता हंसदा 17 जुलाई को सूची में अपने नाम को देख कर हैरान हो गयीं क्योंकि उनके पति आदिवासी हैं. उन्होंने स्थानीय स्तर पर पता लगाने की कोशिश की कि सूची किसने बनायी है. हालांकि उन्हें यह जानकारी नहीं मिली, लेकिन वे थाना गयी और उनके नाम को बदनाम करने के आरोप पर सूची बनाने और फैलाने के लिए जिम्मेवार व्यक्तियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने के लिए आवेदन दी. न उन्हें आवेदन की रसीद दी गई और न ही आज तक प्राथमिकी दर्ज हुई है. 28 जुलाई 2024 को फिर से आशा लकड़ा ने प्रेस वार्ता कर इस सूची का प्रसार किया और उनके नाम को उछाला.

जब सुनीता हंसदा और उनके पति से पूछा गया कि आसपास में ऐसे अंतर-धार्मिक शादी के उदहारण हैं या नहीं, तो उन्होंने 2-3 मामलों का ज़िक्र किया जिसमें आदिवासी महिलाओं ने खतियानी मुसलामानों से शादी की है. जब सुनीता हंसदा और उनके पति से पूछा गया कि उनके गांव या आसपास के क्षेत्र में कोई बांग्लादेशी घुसपैठिये के विषय में सुने हैं या नहीं, तो उन्होंने कहा कि आजतक ऐसे किसी के बारे में नहीं सुने हैं. उनके पंचायत में मुसलमान तो रहते हैं लेकिन दशकों से वे निवासी हैं. उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू और मुसलमान गैर-आदिवासियों द्वारा आदिवासियों का ज़मीन सहमति से दान-पत्र और आपसी लेन-देन करके खरीदा जा रहा है.

आशा लकड़ा द्वारा जारी की गयी 40 आदिवासी महिलाओं की सूची में से 3 महिलाओं के बारे में गलत जानकारी प्रचारित की गई क्योंकि इनके पति आदिवासी हैं और एक के पति हिंदू है. आशा लकड़ा के आरोप का खोखलापन और सूची की ज़मीनी सच्चाई पत्रकार नोलिना मिंज की विस्तृत रिपोर्ट में भी देखा जा सकता है.

6. गोपीनाथपुर मामला

गोपीनाथपुर गांव करीब 99% हिंदू परिवारों से आबादित है. गोपीनाथपुर के चारों ओर सभी गांव मुस्लिम आबादी वाले हैं. गोपीनाथपुर से एक नहर पार करती है जिसकी दूसरी तरफ़ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले का गांव है. गोपीनाथपुर में पिछले कुछ वर्षों में 7-8 मुसलमान परिवार बसे हैं जो मूलतः बगल के मुर्शिदाबाद के गांव के हैं.

गांव में मुसलमान गरीब हैं और अपने इलाके में बकरे की जगह गाय/बैल की कुर्बानी देते हैं. मवेशी की कुर्बानी के विषय में हिंदू परिवारों को भी पता है और कभी भी इसके सम्बन्ध में कोई विवाद नहीं हुआ था. गोपीनाथपुर गांव में 17-18 जून को बकरीद के समय घटना हुई थी. 17 जून को एक गाय/बैल की कुर्बानी दी जा रही थी जब वह निकल भागा, आधी घायल हालत में. भागता हुआ एक आम बगीचे में चला गया जो एक मुसलमान परिवार का ही है. बगीचे के बगल में हिन्दुओं की बस्ती थी. वहीं बगीचे में घायल मवेशी को पकड़ के मारा गया क्योंकि वापिस ले जाना संभव नहीं था. उस समय बगीचे के पास ही हिंदू बस्ती के कुछ युवा बैठे हुए थे. उन्होंने आपत्ति जताई कि क्यों उनकी बस्ती के पास कुर्बानी दी गयी. इससे विवाद खड़ा हो गया.

17 तारीख को जब यह विवाद हुआ तो उसके बाद पुलिस आ गई वहां पर और तैनात हो गई. लेकिन दूसरे दिन 18 तारीख की सुबह बड़ी तादाद में 250-300 मुसलमान नहर पार कर मुर्शिदाबाद साइड से आ गए, नहर में ज्यादा पानी नहीं था. उन्होंने आकर गोपीनाथपुर की कुछ हिंदू बस्तियों में घर तोड़ दिए, कुछ की छत, कुछ दरवाज़े, दो घर में आग लगा दी. पुलिस इस घटना के समय गांव की दूसरी तरफ़ थी. जब तक पुलिस आई तब तक घटना हो चुकी थी. पुलिस ने गोली चलाई और दूसरी ओर से (यानि मुर्शिदाबाद बंगाल साइड से) जवाब में बमबाजी हुई और पत्थर फेके गए. गोली से पश्चिम बंगाल का एक मुस्लिम लड़का मारा गया और एक पाकुड़ साइड के मुस्लिम लड़के को गोली लगी.

अभी वहां पर काफी सिक्‍योरिटी है – झारखंड पुलिस भी है और पश्चिम बंगाल की पुलिस भी है क्योंकि यह पूरा बॉर्डर इलाका है. नहर में लोग नहाते हैं, कपड़े धोते हैं और उस पानी में मछली भी पकड़ते हैं. अभी वहां पर पुलिस की दो-तीन गाड़ियां हर समय खड़ी रहती है. दो महीने से अभी तक पुलिस वहां पर तैनात है.

यह भी मालूम चला कि पाकुड़ और मुर्शिदाबाद के एसपी की संयुक्त बैठक हुई थी और वहां पर बैठक में कुछ हिंदू परिवार के लोग गये थे और मुस्लिम परिवार के भी. वहां पर कुछ बातचीत की गई थी कि किस प्रकार से सामाजिक तनाव न हो और और सब लोग शांतिपूर्वक रहे.

भाजपा इस मामले को उठाते हुए यह आरोप लगा रही है कि बंगलादेशी घुसपैठिये हिंदू परिवारों पर हमला किये. जब कि हिंसा में पास के मुर्शिदाबाद गांव के लोग शामिल थे. यह मामला दो समुदायों के बीच एक धार्मिक विवाद था जिसको भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठिये के साथ जोड़कर सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ाने की कोशिश की.

7. डंगरापाड़ा मामला

अनुसचित जनजाति आयोग सदस्य आशा लकड़ी ने बांग्लादेशी घुसपैठिये मुद्दे पर पाकुड़ में अपने प्रेस वार्ता के दौरान डंगरापाड़ा गांव में भी घुसपैठियों के होने की बात कही थी. तथ्यान्वेषण दल ज़मीनी स्थिति समझने डंगरापाड़ा गया था. इस गांव में आदिवासी व मुसलमान परिवार रहते हैं. 2018 में बकरीद में कुर्बानी के दौरान एक विवादित घटना हुई थी जिसके बाद पुलिस व ग्रामीणों के बीच हिंसा हुई थी. मुसलमान टोले में दावत खाने आये आदिवासियों को भी पुलिस ने पीटा था. उसके बाद से अभी तक और कोई मामला नहीं हुआ है. ग्रामीणों ने कहा कि गांव में कोई भी बांग्लादेशी घुसपैठी नहीं है. सभी मुसलमान परिवार यहां के निवासी हैं जो दशकों से रह रहे हैं.

8. तथ्यों व आंकड़ों के आधार पर पूरी परिस्थिति पर तथ्यान्वेषण दल का निष्कर्ष

8.1 क्या संथाल परगना में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठिये बस रहे हैं ?

क्षेत्र में बांग्ला-भाषी मुसलमान रहते हैं जो दशकों से यहां के निवासी हैं. इसमें कई के परिवार तो सैकड़ों साल से रह रहे है. 1901 की जनगणना में भी इनकी जनसंख्या दर्ज है. तथ्यान्वेषण के दौरान किसी भी ग्रामीण, चाहे आदिवासी हो, हिंदू हो या मुसलमान, ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के बसने की बात नहीं की. यहां तक कि तारानगर-इलामी में रहने वाले भाजपा के मंडल अध्यक्ष भी बोले कि उनके क्षेत्र में सभी मुसलमान वहीं के निवासी है और कोई बांग्लादेशी घुसपैठी नहीं है. तारानगर-इलामी के मामले में भाजपा के राज्य स्तरीय नेता बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा किये जाने की बात किये थे. दल ने कई गांवों का दौरा किया एवं सभी गांवों में ग्रामीणों, शहर के लोगों, छात्रों, जन प्रतिनिधियों आदि से पूछा कि किसी को आजतक एक भी बांग्लादेशी घुसपैठी की जानकारी है या नहीं. सबने बोला कि नहीं है. जब पूछा गया कि घुसपैठी की बात कहां सुने हैं, सबने कहा कि सोशल मीडिया पर सुने हैं लेकिन आजतक देखे नहीं हैं.

यह भी गौर करने की बात है कि हाल में पाकुड़ समेत संथाल परगना के सभी उपायुकतों ने उच्च न्यायलय में जवाब दिया है कि उन्हें ज़िले में कोई घुसपैठी नहीं मिला. तथ्यान्वेषण से यह भी स्पष्ट है कि गायबथान, तारानगर-इलामी व अन्य हिंसा की घटनाओं में बांग्लादेशी घुसपैठी की बात केवल झूठ के आधार पर सांप्रदायिक राजनीति का हिस्सा है.

वर्तमान में पाकुड़ व साहेबगंज में रहने वाले मुसलमान समुदाय का एक बड़ा हिस्सा शेर्षाबादिया है जो अनेक दशकों से वहां बसे हैं. इसके अलावा झारखंड में बसे व पड़ोसी राज्यों से आये पसमांदा व अन्य समुदाय हैं. इनमें से अनेक जमाबंदी रैयत हैं और अनेक पिछले कुछ दशक में आसपास के ज़िला/राज्य से आकर बसे हैं.

ऐतिहासिक रूप से शेर्षाबादिया मुसलमान समुदाय मुग़ल काल से गंगा के किनारे (राजमहल से वर्तमान बांग्लादेश के राजशाही ज़िला तक) बसे रहे हैं. समय के साथ ये समुदाय बिहार के पूर्णिया, अररिया, कटिहार तक पहुंचा. वर्तमान में यह समुदाय मालदा, मुर्शिदाबाद, संथाल परगना के पाकुड़ व साहिबगंज, बिहार के पूर्णिया, अररिया, कटिहार क्षेत्र में बस रहा है.

उच्च न्यायलय में दर्ज मामले और राजनैतिक दबाव के बीच संथाल परगना के कई जिलों ने फ़ोन नंबर जारी किया है जिसपर बांग्लादेशी घुसपैठी के विषय में प्रशासन को सूचना दी जा सकती है. यह अत्यंत ख़तरनाक है क्योंकि अब सब एक दूसरे को शक की निगाह से देखेंगे और किसी के विरुद्ध बांग्लादेशी घुसपैठिये होने के आरोप पर शिकायत की जा सकती है. वर्तमान परिस्थिति में इससे स्थानीय मुसलमानों को परेशान करने की संभावना से नकारा नहीं जा सकता है. एक तरफ़ घुसपैठियों के बसने का कोई ज़मीनी प्रमाण नहीं है एवं प्रशासन खुद कह रहा है कि क्षेत्र में कोई घुसपैठी नहीं है. वहीं दूसरी ओर ऐसा नंबर जारी करना प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े करता है.

8.2 क्या संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है ?

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार संथाल परगना क्षेत्र में 1951 में 46.8% आदिवासी, 9.44% मुसलमान और 43.5% हिंदू थे. वही 1991 में 33.39% आदिवासी थे और 8.25% मुसलमान. आखिरी जनगणना (2011) के अनुसार क्षेत्र में 28.% आदिवासी थे, 22.73% मुसलमान और 49% हिंदू थे. 1951 से 2011 के बीच हिन्दुओं की आबादी 24 लाख बढ़ी है, मुसलमानों की 13.6 लाख और आदिवासियों की 8.7 लाख.

यह तो स्पष्ट है कि भाजपा द्वारा संसद और मीडिया में पेश किये जा रहे आंकड़े कि झारखंड बनने के बाद बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आदिवासियों की जनसंख्या 10-16% कम हुई है, झूठ है. लेकिन कुल जनसंख्या में आदिवासियों का घटता अनुपात गंभीर विषय है और इसके मूल कारणों को समझने की ज़रूरत है.

आदिवासियों के अनुपात में व्यापक गिरावट 1951 से 1991 के बीच हुई और अभी भी जारी है. सवाल है क्यों ? तीन प्रमुख कारण हैं –

  1. दशकों से आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर अन्य गैर-आदिवासी समूहों से कम है. 1951-1991 के बीच आदिवासियों की जनसंख्या का वार्षिक घाटिय वृद्धि दर 1.42 था, जबकि पूरे झारखंड का 2.03 था. अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी के कारण आदिवासियों का मृत्यु दर अन्य समुदायों से अधिक है,
  2. संथाल परगना समेत पूरे झारखंड में आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में गैर-आदिवासी झारखंड में आते गए और
    बसते गए. संथाल परगना क्षेत्र में झारखंड, बंगाल व बिहार से मुसलमान और हिंदू समुदाय के लोग आकर बसते गए हैं और आदिवासी ज़मीन खरीदते गये हैं.
  3. संधाल परगना समेत पूरे राज्य के आदिवासी दशकों से लाखों की संख्या में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं जिसका सीधा असर उनकी जनसंख्या वृद्धि दर पर पड़ता है. 2001 से 2011 के बीच राज्य के 15-59 वर्ष उम्र के लगभग 50 लाख लोग पलायन किये थे.

क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस परिस्थिति से जुड़ा एक और मुद्दा साझा किया. विभिन्न विभागों व प्रशासनिक पदों पर अधिकांश गैर-आदिवासी, खास कर के हिंदू एवं अन्य राज्य से आये लोग, भरे हुए हैं. ऐसे बहुत लोग कई साल पहले नौकरी करने आये और यहीं बस गए.

8.3 क्या आदिवासियों की ज़मीन लूटी जा रही है ?

तथ्यान्वेंषण से यह तो स्पष्ट है कि क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठी हैं ही नहीं तो आदिवासियों के ज़मीन पर बसने का सवाल ही नहीं होता है. लेकिन यह भी स्पष्ट है कि संधाल परगना टेनेंसी एक्ट का व्यापक उल्लंघन हो रहा है और बड़े पैमाने पर आदिवासी अपनी ज़मीन दान-पत्र व आपसी लेन-देन करके गैर-आदिवासियों, मुसलमान व हिंदू, को बेच रहे हैं.

संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में आदिवासी ज़मीन non-transferable है एवं किसी को (आदिवासी/गैर-आदिवासी) बेच नहीं सकते हैं. इसके बावजूद आदिवासी ज़मीन पर गैर-आदिवासी बस रहे हैं.

संथाल परगना से संटे बंगाल और बिहार में ज़मीन का मूल्य संधाल परगना के non-transferable ज़मीन के अनौपचारिक दाम से कहीं ज्यादा है. क्षेत्र के हर प्रखंड में भी non-transferable ज़मीन का मूल्य transferable ज़मीन के अनौपचारिक मूल्य से कहीं ज़्यादा है. इसलिए पास के राज्यों से एवं उसी प्रखंड/ज़िला के transferable क्षेत्र में रहने वाले गैर-आदिवासी बड़ी संख्या में आदिवासियों की non-transferable ज़मीन खरीद रहे हैं और बस रहे हैं.

आदिवासी पैसे की ज़रूरत में गैर-आदिवासियों को ज़मीन बेच देते हैं. यह भी देखा गया है कि गैर-आदिवासियों की प्रशासन में पहुंच ज्यादा मज़बूत है, जिससे विवाद की स्थिति में अक्सर गैर-आदिवासियों के पक्ष में ही निर्णय होता है.

क्षेत्र में आखिरी सर्वे-सेटलमेंट 1932 में हुआ था. ज़मीन मालिकाना और गांव के मानचित्र को अपडेट करने के लिए 1978 में revisional survey शुरू किया गया था, जो आज तक अपूर्ण है.

अगर संथाल परगना टेनेंसी एक्ट मजबूती से लागू हो और आदिवासी आर्थिक तंगी में ज़मीन बेचने को मजबूर न हो, तो आदिवासियों की ज़मीन न ख़तम होगी और न ही अनुसूचित क्षेत्र में बिना किसी रोक-टोक के गैर-आदिवासी बस पाएंगे.

8.4 क्या आदिवासी महिलाओं से बांग्लादेशी घुसपैठिये ज़मीन लूटने के लिये शादी कर रहे हैं ?

आदिवासी महिला का बांग्लादेशी घुसपैठी के साथ शादी का एक भी मामला न तथ्यान्वेषण के दौरान मिला और न ही स्थानीय ग्रामीणों को ऐसे किसी मामले की जानकारी है. लेकिन आदिवासी महिलाओं द्वारा हिंदू व मुसलमान से शादी करने के कई उदहारण हैं. यह भी स्पष्ट है कि महिलाओं ने अपनी सहमति और आपसी पसंद से शादी की है. यह गौर करने की बात है कि किसी भी धर्म या समुदाय के व्यक्ति को किसी भी अन्य धर्म या समुदाय के व्यक्ति से शादी करने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार है. हालांकि, ऐसी शादियों से सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था एवं सामूहिकता पर पड़ने वाले असर पर आदिवासी समाज का अपना एक अलग दृष्टिकोण हो सकता है.

SPTA के अनुसार कोई भी आदिवासी (पुरुष या महिला) दूसरे आदिवासी की ज़मीन नही खरीद सकते हैं. संथाल समाज की पारंपरिक व्यवस्था के अनुसार शादी के बाद महिलाओं को परिवार की ज़मीन में हिस्सा नहीं मिलता है. वहीं दूसरी ओर, दान-पत्र और आपसी लेन-देन की अनौपचारिक व्यवस्था में कोई भी गैर-आदिवासी किसी भी आदिवासी (जो ज़मीन बेचना चाहते हैं) की ज़मीन खरीद सकते हैं. इसलिए, ज़मीन खरीदने के लिए किसी आदिवासी महिला से शादी करने की ज़रूरत नहीं है.

यह भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि राजनैतिक दलों द्वारा और लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर महिलाओं की सूची और उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी बातों को प्रसारित करना और राजनैतिक और सार्वजानिक चर्चा का हिस्सा बनाना उनके निजता के अधिकार का व्यापक उल्लंघन है. यह प्रक्रिया ही बहुत पितृसत्तात्मक और महिला विरोधी है.

आदिवासी महिलाएं सामाजिक रूप से सदियों से अपनी पसंद के जीवन साथी चुनने के लिए स्वतंत्र रही हैं और कहीं भी आने जाने और किसी भी काम व्यवसाय को चुनने में भी स्वतंत्र रही हैं और अन्तर सामुदायिक विवाह कोई नई बात नहीं है. पर जिस तरह से भाजपा अभी बंगलादेशी घुसपैठिये द्वारा आदिवासी महिलाओं से शादी कर उनकी जमीन हथियाने की बात उठा रही हैं, यह एक राजनैतिक षड्यंत्र के तहत लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर आदिवासी समाज को भ्रमित और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहे हैं.

8.5 भाजपा की राजनीति

संथाल परगना में हुई घटनाओं में भाजपा की प्रतिक्रिया और बांग्लादेशी घुसपैठिये वाले मसले ने भाजपा के सांप्रदायिक और विभाजनकारी चेहरे को फिर से उजागर कर दिया है.

भाजपा ने पिछले कुछ महीनों की सभी घटनाओं जैसे गायब॒थान, तारानगर-इलामी, गोपीनाथपुर, आदिवासी महिलाओं की शादी आदि में बांग्लादेशी घुसपैठियों (मुसलमान) द्वारा ज़मीन लूटने, महिलाओं को फंसाने, हिन्दुओं पर हिंसा करने आदि का माहौल बनाया. भाजपा ने हर एक मामले को बांग्लादेशी घुसपैठी के साथ जोड़ा है. जबकि तथ्यान्वेषण से यह बात साफ़ है कि किसी भी मामले का बांग्लादेशी घुसपैठिये से कोई रिश्ता नहीं है.

भाजपा बिना तथ्य के और केवल झूठ प्रसारित करके बांग्लादेशी घुसपैठिये के बसने की बात कर रही है. भाजपा देश के मुसलमानों को बांग्लादेशी घुसपैठी बोलकर साम्प्रदायिकता फ़ैलाने की और आदिवासियों व हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच सामाजिक व राजनैतिक दरार पैदा करने की कोशिश कर रही है. उनका उद्देश्य है विधान सभा चुनाव के पहले धर्मिक व सामाजिक ध्रुवीकरण पैदा करना.

सभी घटनाओं में हिंसा व तनाव बढ़ाने में सोशल मीडिया पर फ़ैल रही अफवाहों की बड़ी भूमिका रही है. किसी ने बांग्लादेशी घुसपैठी को आजतक अपने गांव-क्षेत्र में नहीं देखा है, लेकिन भाजपा द्वारा सोशल मीडिया पर इन घटनाओं के साथ बांग्लादेशी घुसपैठी को ऐसे जोड़ के फैलाया जा रहा है कि लोग उसी झूठ में फंस जा रहे हैं. यह भी स्पष्ट है कि कुछ हिंसा की घटनाओं जैसे तारानगर-इलामी के मुख्य कारण में सोशल मीडिया पर गलत खबर फैलना भी है. तो यह जांच का विषय है कि कौन इन अफवाहों को फैला रहा है.

क्षेत्र में आदिवासियों का अनुपात तो घट रहा है. लेकिन इसके मूल कारणों पर चर्चा न करके भाजपा इसका इस्तेमाल कर साम्प्रदायिकता फ़ैलाना चाहती है. रिपोर्ट में चर्चा किये गए मूल मुद्दों पर भाजपा चुप है. साथ ही, भाजपा झारखंड सरकार द्वारा पारित सरना कोड, पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण व खतियान आधारित स्थानीयता नीति पर न केवल चुप्पी साधी हुई है बल्कि इन्हें रोकने की पूरी कोशिश करती रही है. मोदी सरकार जाति जनगणना से भी भाग रही है जिससे समुदायों व विभिन्न जातियों की वर्तमान स्थिति स्पष्ट हो जाएगी.

यह भी सोचने का विषय है कि एक तरफ़ भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर मोदी व रघुवर दास सरकार ने अडानी पावरप्लांट परियोजना के लिए आदिवासियों की ज़मीन का जबरन अधिग्रहण किया था. झारखंड को घाटे में रखकर अडानी को फाएदा पहुंचाने के लिए राज्य की ऊर्जा नीति को बदला और संथाल परगना को अंधेरे में रखकर बांग्लादेश को बिजली भेजी.

8.6 राज्य सरकार की विफ़लता

संथाल परगना में आदिवासियों की सामाजिक-आर्थिक समस्याएं पूर्व की व वर्तमान राज्य सरकार की विफ़लता को दर्शाती है. संधाल परगना समेत राज्य के अन्य क्षेत्रों के मूल मुद्दे जैसे – आदिवासियों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति, गैर-आदिवासियों का SPTA का उल्लंघन कर ज़मीन खरीदना, सरकारी नौकरियों पर गैर-आदिवासियों और अन्य राज्यों के लोगों का कब्ज़ा, अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी के कारण आदिवासियों का अधिक मृत्यु दर आदि – पर सरकार की कार्यवाई निराशाजनक है. क्षेत्र के कॉलेजों की दयनीय स्थिति व आदिवासी छात्रावासों में मूलभूत सुविधाओं की कमी आदिवासियों की शिक्षा के प्रति राज्य सरकार के उदासीन रवैये को दर्शाता है.

9. झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान की राज्य सरकार से मांगें

  • गायबथान, तारानगर-इलामी, गोपीनाथपुर, कुलापहाड़ी व केकेएम कॉलेज घटना में पुलिस दोषियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई करें. किसी भी परिस्थिति में बिना प्रमाण के किसी को महज़ संदेह पर गिरफ्तार नहीं करें. केकेएम कॉलेज के छात्रावास में रात में छात्रों पर हुई हिंसा के लिए दोषी पुलिस पदाधिकारियों व कर्मियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई की जाए.
  • संथाल परगना टेनेंसी एक्ट का कड़ाई से पालन हो. किसी भी परिस्थिति में आदिवासी ज़मीन गैर-आदिवासी को बेचा न जाए. जल्द से जल्द revisional survey को पूरा कर के सर्वे रिपोर्ट जारी की जाए.
  • साहिबगंज व पाकुड़ समेत संथाल परगना के अन्य ज़िला प्रशासन द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठी की जनता द्वारा जानकारी देने के लिए स्थापित फ़ोन व्यवस्था को तुरंत रद्द किया जाए.
  • संथाल परगना समेत राज्य के सभी पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आदिवासियों की आर्थिक स्थिति, कम जनसंख्या वृद्धि दर के कारण, गैर-आदिवासियों का बसना, गैर आदिवासियों का नौकरियों पर कब्ज़ा, आदिवासियों का पलायन आदि पर अध्ययन के लिए राज्य सरकार एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करे. रिपोर्ट में जिन मूल मुद्दों पर चर्चा की गई है, उन पर राज्य सरकार त्वरित कार्यवाई करे.
  • भाजपा व अन्य किसी भी नेता या सामाजिक संस्था द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठिये, लैंड जिहाद, लव जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग, जो विभिन्न घटनाओं को इनके साथ जोड़ने व साम्प्रदायिकता फ़ैलाने के लिए करती है, उनके विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई हो. किसी भी परिस्थिति में समाज के ताने बाने को तोड़ने न दिया जाए.
  • संथाल परगना समेत राज्य के सभी पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में भूमि कानूनों व पांचवी अनुसूची प्रावधानों का कड़ाई से पालन हो. पेसा कानून का नियमावली बनाकर कड़ाई से लागू हो.
  • राज्य में जाति जनगणना जल्द से जल्द करवाई जाए.

फुटनोट

  1. संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (SPTA) में आदिवासी ज़मीन non-transferable है एवं किसी को (आदिवासी/गैर-आदिवासी) भी बेच नहीं सकते हैं. केवल परिवार में ही वंशानुक्रम ट्रांसफर हो सकता है. लेकिन गैर-आदिवासियों को भूमि हस्तांतरण का एक अनौपचारिक और गैर-क़ानूनी तरीका दशकों से स्थापित है. दान-पत्र व आपसी आर्थिक लेन-देन के माध्यम से आदिवासी अपनी ज़मीन गैर-आदिवासी को बेच देते हैं. कागज़/खतियान में आदिवासी के नाम में ही दर्ज रहता है लेकिन वास्तविक मालिकाना और दखल खरीदने वाले का हो जाता है. इस प्रक्रिया को पूर्ण प्रशासनिक स्वीकृति है.

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