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1857 विद्रोह का नायक नहीं, खलनायक था मंगल पांडे

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1857 विद्रोह का नायक नहीं, खलनायक था मंगल पांडे
1857 विद्रोह का नायक नहीं, खलनायक था मंगल पांडे (तस्वीर में बांये – मंगल पांडे, दांये – माता दीन भंगी)

आज फेसबुक पर मैंने एक पोस्ट देखी, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगल पांड़े की मूर्ति के सामने नतमस्तक हैं और उन्होंने इस पोस्ट के साथ लिखा, ‘देश के महान स्वतंत्रता सेनानी और पराक्रमी योद्धा मंगल पांड़े को उनकी जयंती पर शत-शत नमन.’ यानी प्रधानमंत्री की पोस्ट से यह साफ हो गया कि मंगल पांड़े का जन्म दिन है और वो उनके सामने नतमस्तक होकर उन्हें नमन कर रहे हैं और महान क्रांतिकारी योद्धा बता रही हैं.

आप सब को स्कूल में, कॉलेज में, किताबों में यह पढ़ाया गया होगा कि मंगल पांड़े भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1857 की क्रांति की चिंगारी को भड़काया. मेरठ की छावनी में वो तैनात थे और उन्होंने कैसे अंग्रेज अफसरों को गोली मार दी, जिसके बाद वो विद्रोह पूरे देश में फैल गया और 1857 की क्रांति आजादी का पहला स्वतंत्रता संग्राम लडा गया. ये इतिहास हमको पढ़ाया जाता है.

लेकिन आज मैं मंगल पांड़े से जुड़ी हुई कुछ ऐसी बाते आपको बताने वाला हूं, जिससे आपको पता चल जाएगा कि मंगल पांड़े उतने बड़े हीरो नहीं थे, जितना कि उनको पेश किया जाता है. और क्यों उनको सवर्ण होने का फायदा मिला, एक ब्राह्मण होने का फायदा मिला और इतिहासकारों ने उनको महान घोषित कर दिया. जबकि असल माइनों में उन्होंने महानता का कोई काम किया ही नहीं था.

सबसे पहले शुरुआत मंगल पांड़े के उस घटना से जिसको विद्रोह कहा जाता है, उसका जिक्र करते हैं. आपको ये बताया जाता है कि उन्होंने अंग्रेज अफसरों को गोली मार दी और फिर आजादी की चिंगारी भड़क उठी, लडाई हुई लेकिन उसके पीछे कहानी क्या है ?वो कहानी यह है कि अंग्रेज अफसरों के जो कारतूस थे, जिनको मूंह से फाड़ा जाता था चलाने से पहले, उसमें गाएं और सूअर की चर्बी लगा दी थी और जब यह बात मंगल पांड़े को पता चली तो वो भड़क गए. और वो इतने ज़्यादा भड़के, इतना गुस्सा उन्हें आया कि उन्होंने अपनी बंदूक उठाए और अंग्रेज जो अफसर सैनिक थे उनके उपर चला दी.

अब यहां आप एक दिलचस्प बात समझ लीजये. उनको जब पता चला कि इन कारतूसों में जो चर्बी है, ये गाएं और सूअर की चर्बी लगाई हुई है, उनका धर्म भ्रष्ट होता है क्योंकि गायों को वो लोग नहीं खाते. हिंदू हैं, ब्राह्मण हैं, गाएं को नहीं खाते. तो जब वह मूंह से उसको फाडेंगे तो उससे उनका धर्म भ्रष्ट होगा. तो जब उस व्यक्ति को ये बात पता चली तब उसने बंदूक उठाई.

यानी, उसने इस बात के लिए बंदूक नहीं उठाई थी कि वो भारत को आजाद कराना चाहते थे. आजादी की लड़ाई या स्वतंत्रता उनका मकसद नहीं था. बल्कि उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने के कारण उसने बंदूग उठाई थी. ये एक स्थापित तथ्य है, ये फैक्ट जो किताबों में भी पढ़ाये जाता है कि सुअर और गाय की चर्बी थी इसलिए उसने विद्रोह किया.

अब यहां देखे कि उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी. आज आप देखते हैं कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के नाम पर किस तरह से जनेऊ लीला चल रही है. वैसा ही काम उस समय हुआ. उन्हें पता चला कि उसमें गाएं की चर्बी है तो उनकी धार्मिक भावनाओं, हिंदू धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची और उन्होंने विद्रोह कर दिया और अंग्रेज अफसरों के खिलाफ बंदूक उठा ली.

अब सवाल यहां सबसे जरूरी दो सवाल है कि जब तक उनको ये नहीं पता था कि इसमें गाएं और सुअर की चर्बी लगी है तब तक वह अपनी हथियार का, अपनी बंदूग का इस्तेमाल किस के खिलाफ कर रहे थे ? कब उनको ये पता चला कि इसमें गाएं और सुअर की चर्बी है ? किसने उन्हें बताया ? ये सवाल दो बहुत जरूरी हो जाते हैं.

तो पहले सवाल का जवाब यह है कि जब तक उनको ये बात नहीं पता थी कि इसमें गाएं और सुर की चर्बी है तब तक वो अंग्रेज अफसरों के ऑर्डर को मान रहे थे. और अंग्रेज अफसर किस तरह से भारत के लोग के खिलाफ थे, अंग्रेज के खिलाफ विद्रोह करने वाले जो लोग थे उन पर कितनी ज्यातियां करते थे, गोलियां चलवाते थे. जो भी ऑर्डर अंग्रेज अफसर देते थे, मंगल पांडे बिना हिचकिचाहट, बिना किसी जवाब को तलाशने की कोशिश किये, बिना किसी आपत्ति के अपनी बंदुक उठाते थे और अंग्रेजों के एक हुक्म पर वो उन लोगों पर गोलिया चलाते थे, जो अंग्रेजी हुकुमत का विरोध कर रहे थे.

ये वो अपनी पूरी सैन्य सेवा के दौरान करते आ रहे थे क्योंकि वे सैनिक थे तो अंग्रेज जो बोलते थे, वही काम वो करते थे. उन्होंने कभी इस बात को लेकर विद्रोह नहीं किया कि हमारे अपने देशवासियों के उपर गोली चलाई जा रही है, उनको मारा जा रहा है, इसकी रोकथाम होनी चाहिए. इस पर हमें विद्रोह करना चाहिए, हमें अंग्रेजों से बदला लेना चाहिए या कम से कम ये अंग्रेजों की सैनिक की नौकरी छोड़ देनी चाहिए. उन्होंने ऐसा नहीं किया और वो अंग्रेजों की एक हुकम पर अपनी बंदूक उठाते थे और भारत के ही लोगों पर गोलियां चला रहे थे.

यानी, उन्हें पहले आजादी का ख्याल नहीं आया था. उनको ख्याल तब आया जब उनकी हिन्दू धार्मिक भावना को ठेस पहुंची. कारतूस में चर्बी होने का उन्हें पता चला. किसने बताया, इस पर भी एक बहुत दिलचस्प कहानी है, जो की सवर्ण इतिहासकारों ने लंबे वक्त तक छुपाए रखी.

मातादीन भंगी का नाम शायद आप में से कुछ लोगों ने सुना हो. मेरठ छावनी में वो आये थे और कॉलकाता में जहां पर ये कारतूस बनाये जाते थे, वहां काम करते थे. जब वो मेरठ छावनी में आये थे, डिलिवरी करने के लिए जो हथियार थे और उनसे जुड़े हुए कुछ कामकाज के लिए वो यहां पर आये थे. तब वहां पर माता दिन भंगी अपना काम करते हुए बहुत थक गए थे. परेशान थे गर्मी में.

उन्होंने, मंगल पांडे जो साथ में कहीं कुछ और काम कर रहे थे, उनके पास में मटका रखा हुआ था. उन्होंने उनसे कहा कि आप मुझे पानी दे दीजिये लोटा भर के, तो मंगल पांडे ने अपने ब्राह्मण होने के घमंड के कारण, सवर्ण होने के घमंड के कारण माता दीन भंगी को डांट दिया. उनको अपशब्द कहे, अपमानित किया और कहा कि ‘तू भंगी है मैं ब्राह्मण हूं, मैं कैसे तुझे पानी पिला सकता हूं. तुझे शर्म नहीं आती. तू नीच जात का है.’ ये बात माता दीन भंगी को मंगल पांडे ने कही जो की उसी मेरठ छावनी में काम कर रहे थे.

इस बात के जवाब में माता दीन भंगी ने जो की अपना काम कर रहे थे, उन्होंने कहा कि – ‘तु मुझसे तो भेदभाव करता है, तु मुझे नीच समझता है, तू मुझे भंगी जाति का समझ रहे हो, मुझे पानी भी नहीं पिला सकते लेकिन ये तुम्हारा धर्म ये तुम्हारी श्रेष्ठा तब कहां चली जाती है जब तुम अपने मूंह से वो कारतूस फाडते हो, जिसमें सूअर और गाएं की चर्बी लगी हुई है. यानी कि तुम गाएं के मांस को अपने मुंह से फाड़ रहे हो. तब तुम्हारा ये धर्म भ्रष्ट क्यों नहीं होता ? तब तुम्हारी ये श्रेष्ठता खत्म क्यों नहीं होती ? मुझसे तो तुम भेदभाव कर रहे हो…’.

जब माता दिन भंगी ने ये बात मंगल पांडे को कही, उनको इस बात का जवाब मिला और जाति भेदभाव का जो माता दिन भंगी ने इस तरह से शब्दों में उनको जवाब दिया. वो सच्चाई बताई, तब जाकर मंगल पांडे को ये पता चला कि जिस कारतूस को वो अपने मुंह से फाड़ते हैं, असल में उसमें गाय और सुअर की चर्बी भी लगी हुई है. और यही वो पल था जब जो मंगल पांडे को उनकी ब्राह्मण भावनायें आहत हुई. उनकी हिंदू धार्मिक भावनायें आहत हुई और उन्होंने कहा कि वो परेशान हो गए कि ये क्या हो रहा है. उससे पहले उनको ये बात मालुम नहीं थी, जब तक माता दीन भंगी ने उनको नहीं बताया था.

यही वो पल था जब वो थोड़ा परेशान हुए और अपनी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर, अपने धर्म पर आ जाने पर, उनकी अपनी जो  मान्यताएं हैं, उस पर जब सवाल उठाया गया तब वो परेशान हुए और अंत में उन्होंने अपनी बंदूक उठाई और अपने जो अंग्रेज अफसर थे, सैनिक थे, उनके उपर गोलियां चलाई थी.

यह बात साबित है, ये तथ्य है, ये फेक्ट है और ये हम से छुपा ली जाती है कि उनको ये बात किस ने बताई थी. इसलिए मंगल पांडे ने जब बंदूक उठाई, जब विद्रोह किया तो वह भारत माता, जिसे राष्ट्रवादी भारत माता कहते हैं, उसको आजाद कराने के लिए नहीं था, कि उनको आजादी प्यारी थी या देश को आजाद कराना चाहते थे, अंग्रेजों को मार कर वो बदला लेना चाहते थे, ऐसी उनकी मानसिकता या उनकी सोच नहीं थी बल्कि उनकी धार्मिक भावनाओं पर ठेस पहुंचने के कारण उन्होंने बंदूक उठाई थी.

आज भी आप देखते हैं बहुत सारे लोग धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के नाम पर किस तरह से भारत में माहौल बना रहे हैं, क्या क्या काम कर रहे हैं, वो हम सब जानते हैं, आप भी अच्छे से जानते हैं. तो मंगल पांड़े ने अपनी धार्मिक भावनाओं की वज़ह से बंदूक उठाई थी, ना कि भारत को अजाद कराने में. इसलिए उनको स्वतंत्रता संग्राम का सेनानी कहना गलत बात है. भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी कहना गलत बात है.

1857 की क्रांति में उनका इस तरह से कोई आजाद कराने के लिए योगदान नहीं है बल्कि अपनी धार्मिक भावनाओं की वज़ह से उन्होंने विद्रोह किया था. हथियार उठाए थे. उससे पहले जब उनका ये बात मालूम नहीं था तब वो उस बंदुक का इस्तेमाल किस के खिलाफ कर रहे थे, ये सवाल खड़ा होता है. भारत के उन्हीं लोगों के खिलाफ अंग्रेजों के हुकुम पर वो अपनी बंदुक का इस्तेमाल कर रहे थे, जो भारत में अंग्रेजी हुकूमत के साम्राज्य का विरोध कर रहे थे. यानि वो अपने ही भारतवासियों, अपने ही देशवासियों के खिलाफ लड रहे थे. तब उन्हें आजादी का ख्याल नहीं आया था. तब उन्हें विद्रोह का ख्याल नहीं आया था. ये बात हम लोगों को समझनी चाहिए.

दूसरी एक और बात बड़ा इंटरस्टिंग है. मंगल पांड़े के बारे में कि किस तरह से इतियासकारों ने उनको महान स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणा बता दिया कि उनकी वज़ह से वो चिंगारी भड़की. सैनिक विद्रोह हुआ, फिर पूरे देश में विद्रोह फैल गया. यहां पर भी एक तथ्य आप से छुपाया जाता है बहुत एंटरस्टिंग तरीके से कि उस समय 1857 की क्रान्ति के शुरुआत में पूरे देश में जो भी अंग्रेजी हुकुमत से नाराज लोग थे, जो राजे रजवाडे थे, मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर जो आखिरी बादशाह थे, उनकी अगुवाई में सब लोग आम सहमति बना रहे थे. गुप चुप तरीके से मीटिंग कर रहे थे और ये कहा जा रहा था कि हम आने वाले दिनों में, मई के महीने में हम विद्रोह करेंगे. पहले प्लानिंग कर रहे थे.

लोग ट्रेनिंग कर रहे थे, हथियार जमा कर रहे थे, अपनी रणनीति बना रहे थे और ये पूरी प्लानिंग थी कि हमें फलाने दिन को, आने वाले दिनों में विद्रोह करना है. वो देश भर में बड़ा आंदोलन होगा. बड़ा विद्रोह होगा, जिसको अंग्रेज समभल ही नहीं पाएंगे. इतने बड़े पैमाने पर विद्रोह करेंगे उसकी पूरी प्लानिंग चल रही थी. लेकिन उससे पहले ही आपको मालूम है 10 मई 1857 को मंगल पांडे ने अपने जो सैनिक थे, जो अंग्रेज अफसर थे, उनको गोली मार दी और उसके बाद विद्रोह सैनिक विद्रोह के तौर पर भड़का और फिर देश के अलग अलग हिस्सों में जो आंंदोलन की पहले से तैयारी हो रही थी, जहां जहां पर भी लोग इकट्ठा थे, हथियार जमा हो रहे थे, अंग्रेज सतर्क हो गए. क्योंकि मेरठ में घटना मंगल पांडे ने कर दी. उसके बाद से जगह जगह पर छापेमारी हुई, लोगों को गिरफ्तार किया गया. बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार किया गया. जो भी विद्रोही थे, उनको बहुत निर्दयता से कुचला गया.

तो एक तरीके से मंगल पांडे ने बाकी जो लोग थे, उनकी प्लानिंग को फेल कर दिया था क्योंकि उस समय से पहले ही उन्होंने गोली मार दी थी, जिससे अंग्रेजों को संभलने का मौका मिल गया और उन्होंने आंदोलन को बहुत बुरी तरह से कुचल दिया. जबकि पूरे देश में अलग अलग जगह पर लोग तैयारी कर रहे थे कि हमें एक बड़ा विद्रोह, क्रांतिकारी विद्रोह करना है, जिसको अंग्रेज संभाल नहीं पाएंगे. क्योंकि पूरे देश में जब एकसाथ आवाज़े उठेंगे, विद्रोह उठेंगे, गोलियां चलेंगे तो अंग्रेज कैसे संभालेंगे ?

तो मंगल पांडे के उपर ये भी दोष है कि उन्होंने उनकी प्लानिंग को खराब कर दिया. जो बाकी स्वतंत्रता सेनानी या राजे रजवाडे जो लोग थे, जो भी उस समय लडने के लिए काबिल थे, वो लोग अंग्रेजों के खिलाफ लडना चाह रहे थे, उनकी प्लानिंग को भी मंगल पांडे ने खराब कर दिया और उसकी सजा बहुत सारे लोगों को मिली. कितने लोगों की जानें गई. बहादुर शाह जफर भी गिरफ़तार हुए. बाकी लोगों को भी गिरफ्तार किया गया, कितने लोगों को सूली पर चढ़ा दिया गया. 1857 का जो विद्रोह फेल हुआ उसकी जिम्मेदारी भी मंगल पांड़े की बनती है क्योंकि उन्होंने समय से पहले गोली चला दी थी, अपनी धार्मिक भावनाओं की वज़ह से और बाकी लोग तैयारी कर रहे थे. उन्होंने अंग्रेजों को समभलने का मौका दिया.

ये भी इतिहासकार हमको उस तरह से नहीं बताते हैं और ये इतिहासकारों के तो उपर हम ये भी दोष लगा सकते हैं क्योंकि उन्होंने 1857 की क्रांति, जिसमें मंगल पांड़े को, सवर्ण हीरो को दिखाया गया कि कैसे वो आजादी के नायक बने ? लेकिन आप देखें कि 30 जुन 1855 को जो संथाल विद्रोह हुआ था, जिसे हूल क्रांति दिवस कहते हैं वहां सिद्धो, कानु, चांद, भैरो और उनकी जो बहनें थी, उन लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ जो सशस्त्र आंदोलन किया था, ज्हारकंड में संथाली लोगों ने बड़े पैमाने पर अंदोलन किया था. 20,000 से ज्यादा संथाली आदिवासी लोग उस विद्रोह में मारे गए थे. उन्होंने सीधी टक्कर अंग्रेजों से ली थी. जो उनके पारम्परिक हथियार थे तीर कमान, उनसे लड़ाई लड़ी थी.

यानी कि 1857 की क्रांति से दो साल पहले 1855 में ही एक बहुत बड़ा अंदोलन हुआ था, अंग्रेजी हुकुमत की चूल हिला दी थी. 20,000 से ज्यादा आदिवासी शहीद हुए. सिधो, कानु, चांद, भैरव को पकड करके इस तरह से मारा गया. वे आजादी के पहले नायक थे, जिन्होंने आजादी के लिए अपना सबसे बड़ा बलिदान दिया. अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. अंग्रेजों से लड़ते हुए वो शहीद हो गये. उनका नाम आपको इतिहास में सुनने को भी नहीं मिलता. उसके बारे में बताया ही नहीं जाता कि वो भी एक कहानी है.

1857 की क्रांति को मंगल पांडे के नाम से ऐसे प्रचारित किया जाता है कि वही एक मात्र ऐसी घटना थी, इतिहास में जिसने भारत में अंग्रेजी हुकुमत को खत्म कर दिया. और फिर 1857 से 1947 को जोड के बताया जाता है कि कैसे वो चिंगारी आजादी में तब्दील हुई. लेकिन इतिहासकार हमें ये नहीं बताते कि कैसे मंगल पांडे ने आजादी के लिए नहीं बल्कि अपनी हिंदू धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने पर हथियार उठाया था. कैसे माता दीन भंगी ने उस राज पर से परदा उठा दिया था, जिसके कारण ये मंगल पांडे ने हथियार उठाया था. उससे पहले वह अपने लोगों के खिलाफ हथियार चला रहे थे.

माता दीन भंगी को भी सजा हुई, उनको मौत की सजा हुई. जो चार्जशीट था, उसमें उनका नाम था. अंग्रेजों ने उनको दोषी पाया था इस बात का कि उन्होंने ये भेद खोल दिया, राज खोल दिया. उनको सजा मिली थी लेकिन माता दीन भंगी का नाम गायब है. 1857 की क्रांति पर मंगल पांडे के चित्र के सामने, मूर्ति के सामने बड़े बड़े लोग नमन कर रहे हैं लेकिन माता दीन भंगी का नाम भी लोग नहीं जानते, उसको प्रचार नहीं किया जाता. सिदो, कानु, चान्द, भैरव जैसे संथाल विद्रोह को नहीं बताया जाता लेकिन इस तरह से घटनाओं को अपने नजरिये से पेश किया जाता है.

हम लोगों को समझने की जरूरत है कि कैसे आजादी की लड़ाई में बहुजन जो लोग थे, उन्होंने अपनी तन, मन, धन से उसमें अपना योगदान दिया, कैसे इस मिट्टी को अपने खुन, पसीने से सींचा लेकिन जब इतिहासकार लोग इतिहास लिख रहे थे, तो कैसे बहुजन नायकों के अदम्य साहस और बलिदान को इग्नोर करके, उसे नजर अंदाज करके सवर्णों को हीरो बना कर पेश कर दिया गया. बहुजनों के इतिहास से मिटा दिया गया. राष्ट्र पिता जोतीबा फूले ऐसे लोगों को कलम कसाई कहते हैं, जो कलम से इस पूरे इतिहास को मिटा देते हैं.

वे लिखते हैं कि वो कलम कसाई और ऐसे कलम कसाईयों ने अपने लोगों को हीरो बनाया, हमारे लोगों को विलन साबित कर दिया, उनको इतिहास से गाएब कर दिया. इसलिए मुझे लगा कि 19 जुलाई, 1827 के दिन जब मंगल पांडे का जन्म दिन था, तो उस पर बात होनी चाहिए. आपको पता होना चाहिए कि हीरो कौन है, हीरो कैसे बनाये जाते हैं, और कैसे बहुजन लोगों को इतिहास के पन्नों से मिटा दिया जाता है.

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