महाराष्ट्र के बदलापुर यौन उत्पीड़न कांड के खिलाफ आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर एक्शन, 300 लोगों पर FIR, 40 गिरफ्तार. पता करो बंगाल में आंदोलन कर रहे कितने गिरफ्तार हुए ? मोदी के शासन में महाराष्ट्र में आंदोलन कर रहे लोगों का दमन हो रहा है. ये लोग दो बच्चियों के साथ हुए दुष्कर्म का विरोध कर रहे हैं. महाराष्ट्र बदलापुर में दो लड़कियों के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया है.
मोदी-शिंदे सरकार का रवैय्या निंदनीय है. लड़कियों के अभिभावक को 11 घंटे तक एफआईआर दर्ज कराने के लिए बिठाए रखा गया. जनता आंदोलन पर उतर आई तो उसकी पुलिस के ज़रिए पिटाई करायी गयी. कलकत्ते में विशाल जुलूस रोज़ निकल रहे हैं. पुलिस कहीं पर आंदोलनकारियों को नहीं रोक रही है. यह है महाराष्ट्र (सरकार) और बंगाल (सरकार) का अंतर – जगदीश्वर चतुर्वेदी
सुब्रतो चटर्जी
बहुत सारे मित्रों के अनुरोध पर कलकत्ता के आर जी कर अस्पताल के रेप और हत्या पर कुछ लिखने का मन कर रहा है. चूंकि इस भयंकर घटना के बारे मेरे पास कोई फ़र्स्ट हैंड जानकारी नहीं है, इसलिए हो सकता है कि मेरे निष्कर्ष सत्य से कुछ अलग हों.
मृतक की ऑटोप्सी रिपोर्ट आ गई है, जिसमें गैंग रेप के कोई निशान नहीं मिले हैं. रेप और हत्या के स्थान को अच्छी तरह से sanitise कर दिया गया है, ताकि जुर्म के निशान मिट जाएं.
प्रिंसिपल ने इस्तीफ़ा दे दिया है और इस घटना के विरोध में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों रैलियाँ निकाल रहे हैं. गोदी मीडिया से लेकर समानांतर मीडिया में लगातार ख़बरें चलाईं जा रही हैं. जो असल काम है, वह नहीं हो रहा है; हत्यारे की पहचान और उसकी गिरफ़्तारी. मतलब धुंआ ज़्यादा, रोशनी कम.
इसी बीच, बिहार, उत्तराखंड और यूपी से और भी ज़्यादा भयानक रेप और हत्या की ख़बरें आ रही हैं, जिनपर कोई ख़ास चर्चा इसलिए नहीं हो रही है क्योंकि उन राज्यों में रामराज्य है.
मैंने कई बार पहले भी लिखा है कि चुनिंदा संवेदनाओं (selective sensitivity) के समय में हम जी रहे हैं. मीडिया का इसमें बड़ा योगदान है, क्योंकि जो दिखता है, वो बिकता है. दिखता वही है जो किसी दल विशेष के राजनीतिक स्वार्थ की सेवा करता है. जिनको मणिपुर नहीं दिखता, उनको कलकत्ता दिख जाता है वग़ैरह वग़ैरह.
दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है स्थान की महत्वा. महानगर में क्राईम अविश्वसनीय बना दिया गया है और गांव देहात में इस तरह के अपराधों के होने को स्वाभाविक मान लिया गया है. भारत कई स्तरों पर अलग-अलग तरह से खुद को अभिव्यक्त कर रहा है.
तीसरा पक्ष है victim का class. अगर विक्टिम उच्च वर्ग या मध्यम वर्ग से आती है तो हम एक दूसरे स्तर पर रिएक्ट करते हैं और अगर वह निम्न वर्ग से आती है तो हमारी रोष की सीमाएं नियंत्रित हो जातीं हैं.
इस बिन्दु पर मीडिया को दोष देना काफ़ी नहीं है, यह हमारी वर्ग चेतना से जुड़ी हुई बात है. इसलिए उन्नाव की पीड़ीता जैसों के प्रति हमारा नज़रिया और कलकत्ता के लेडी डॉक्टर के प्रति हमारे नज़रिए में फ़र्क़ है. यह नज़रिया दिल्ली रेप कांड की निर्भया के बारे में प्रखर मीडिया की मेहरबानी से हो जाती है.
मुंबई की नर्स की कहानी याद है ? उसे रेप करने के बाद ज़िंदा छोड़ दिया गया था तीस सालों तक तिल तिल कर मरने के लिए ? उत्तराखंड की रेप पीड़ीता तो मुस्लिम होने के नाते हमारी संवेदनाओं की हक़दार वैसे भी नहीं है. रेपिस्ट और हत्यारों को माला पहनाकर स्वागत करने वाले देश में और आसिफ़ा के रेपिस्ट और हत्यारों के देश में ऐसा होना स्वाभाविक ही है.
जहां तक मुझे जानकारी है कि कलकत्ता की लेडी डॉक्टर आर जी कर अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार की परतें खोलने के काफ़ी क़रीब आ गई थी, इसलिए उसकी हत्या कर दी गई. विदित हो कि आर जी कर अस्पताल में विगत 22 साल में 7 डॉक्टरों की असमय मौत हो चुकी है, जिसमें कुछ की हत्या की गई थी तो कुछ ने आत्महत्या कर लिया था. सीबीआई को इस दिशा में भी जांच करनी चाहिए. मीडिया और मास ट्रायल में निर्दोष ही फंसते हैं.
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