लैटरल एंट्री माने मनुवाद की स्थापना. मनुस्मृति की वापसी हो रही है. अभी वक्त है संभल जाओ – जगदीश्वर चतुर्वेदी
भारत में ब्राह्मणवाद का सबसे संगठित स्वरूप आरएसएस, जो संघ के संक्षिप्त रूप में कुख्यात है. और उसी कुख्यात संघ का ऐजेंट है नरेन्द्र मोदी. यानी ब्राह्मणवाद का सबसे कुख्यात चेहरा है नरेन्द्र मोदी, जो भारत के प्रधानमंत्री बने हुए हैं. विभिन्न रिपोर्टों के माध्यम से कहा जाता है कि नरेन्द्र मोदी अपनी दूसरी और तीसरी कार्यकाल भी ‘लैटरल एंट्री’ के माध्यम से ही किया है. यानी, छल-कपट, फरेब, हिंसा और सबसे बढ़कर भारत की संवैधानिक पदों पर अपने जैसे ही ब्राह्मणवादी संघियों को बिठाकर, जिसमें भारत की सुप्रीम कोर्ट के जज, चुनाव आयोग के सदस्यों, पुलिसिया विभाग में आईएएस, आईपीएस वगैरह वगैरह हैं.
लैटरल एंट्री क्या है इसे आर. पी. विशाल इस तरह बताते हैं – अभी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई थी, जिसमें सेबी प्रमुख माधवी पुरी बुच पर आरोप थे कि उन्होंने अदानी के शेयर को फायदा पहुंचाया है. मीडिया ने भले ही मामले को बहुत अधिक तवज्जो नहीं दी हो लेकिन जानने के लिए इतना काफी है कि माधवी बुच को मोदी सरकार ने लैटरल एंट्री के माध्यम से ही 2022 को सेबी का प्रमुख बनाया था. लैटरल एंट्री अर्थात बिना परीक्षा दिए ही ज्वाइंट सेक्रेट्री, सेक्रेट्री और डायरेक्टर बनाए जाते हैं, जिसकी शुरूआत मोदी सरकार ने 2018 में की थी.
इस प्रक्रिया के तहत केवल 7 से 10 वर्षों का कॉरपोरेट एक्सपीरियंस ही काफी है, इन पदों को हासिल करने के लिए. इसका काफ़ी विरोध भी हुआ था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अब मोदी सरकार ने लैटरल एंट्री से भर्तियों हेतु नया विज्ञापन निकाला है. इसमें आरक्षण के कोई मानक भी तय नहीं है. जाहिर है मोदी सरकार ने ऐसा इसीलिए किया होगा ताकि अब बहस आरक्षण होने और नहीं होने पर होगी जबकि एंट्री बेझिझक होती रहेगी.
प्राइवेट क्षेत्र में प्रतिनिधित्व ये देंगे नहीं और सरकारी में लेटरल एंट्री बताएंगे. यह उन युवाओं के साथ भी बड़ा धोखा है जो सालों से सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में यह भी निश्चित है कि कोई भी व्यक्ति उन लोगों के ऊपर भी शासन करेगा जो मेहनत से अपने पदों पर पहुंचे हैं. अचानक उनके बॉस बिठाए जाएंगे और मनमानी के आसार और अधिक बढ़ेंगे. अंदर खाने सब चलेगा. लेकिन विरोध करेंगे भी कौन ? आधी आबादी तो मोदीमय हुई पड़ी है.
हम मेरिट की बात करते हैं. इंजीनियर और डॉक्टर पर आरक्षण के विरोधी बन जाते हैं लेकिन मैनेजमेंट कोटे से कितनी सीटें भरी जाती है, इस पर कभी विमर्श तक नहीं होता है. यह वो लोग होते हैं जो बिना अंक हासिल किए केवल पैसों से सीट पाते हैं. यह व्यवस्था जहां सुधारनी चाहिए थी, मोदी गवर्नमेंट ने इस व्यवस्था को और बिगाड़ने तथा उद्योगपति एवं अमीरों के लिए रास्ते और आसान कर दिए जबकि गरीब, मेहनती और ईमानदारों को दरकिनार करने का अंदर खाने खुलकर काम हो रहा है और बाहरी रूप से पक्ष में केवल भाषणबाजी होती है.
राहुल गांधी बताते हैं कि नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं. केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है. मैंने हमेशा कहा है कि टॉप ब्यूरोक्रेसी समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाय लेटरल एंट्री द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से और दूर किया जा रहा है.
यह UPSC की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक़ पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है. ‘चंद कॉरपोरेट्स’ के प्रतिनिधि निर्णायक सरकारी पदों पर बैठ कर क्या कारनामे करेंगे, इसका ज्वलंत उदाहरण SEBI है, जहां निजी क्षेत्र से आने वाले को पहली बार चेयरपर्सन बनाया गया. प्रशासनिक ढांचे और सामाजिक न्याय दोनों को चोट पहुंचाने वाले इस देश विरोधी कदम का INDIA मजबूती से विरोध करेगा. ‘IAS का निजीकरण’ आरक्षण खत्म करने की ‘मोदी की गारंटी’ है.
UPSC में लैटरल एंट्री को लेकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के आरोप का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा – लैटरल एंट्री मामले पर कांग्रेस का पाखंड देश के सामने है. वैष्णव ने X पर पोस्ट में लिखा- यह UPA सरकार ही थी, जिसने लैटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट लाया. दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) 2005 में UPA सरकार में ही लाया गया था. इस आयोग की अध्यक्षता वीरप्पा मोइली ने की थी.
UPA सरकार के कार्यकाल की ARC ने सुझाव दिया था कि जिन पदों पर स्पेशल नॉलेज की जरूरत है, वहां विशेषज्ञों की नियुक्ति होनी चाहिए. NDA सरकार ने ARC की इस सिफारिश को लागू करने के लिए ट्रांसपेरेंट तरीका अपनाया है. 𝐔𝐏𝐒𝐂 ने 17 अगस्त को लैटरल एंट्री के जरिए 𝟒𝟓 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की नौकरियां निकाली. ये अब तक की सबसे बड़ी लैटरल भर्ती है. लेटरल भर्ती में कैंडिडेट्स बिना UPSC की परीक्षा दिए रिक्रूट किए जाते हैं. इसमें आरक्षण के नियमों का भी फायदा नहीं मिलता है.
तो जाहिर है लैटरल एंट्री से देश के महत्वपूर्ण पदों पर संघी ऐजेंटों की बहाली के लिए भी भाजपा, कांग्रेसियों को ही जिम्मेदार बता रही है. यानी, किसी भी नैतिक या अनैतिक काम को करने का साहस इस कायर संघी गिरोहों में खुद के बूते करने का साहस नहीं है. इसे सदैव कांग्रेसी ढ़ाल चाहिए. यह संघी गिरोह इतना कायर और मूर्ख है कि अपने मंत्रीमंडल में भी चुनाव से जीते हुए के बजाय निर्मला सीतारमण जैही बाहरी लोगों पर निर्भर करता है और राहुल गांधी जैसे पढ़े लिखों को बाहर का रास्ता दिखाने या अपमानित करने का तरीका ढ़ूंढ़ता रहता है.
छत्तीसगढ़ के पूर्व सीबीआई मजिस्ट्रेट प्रभाकर ग्वाल लेटरल एंट्री के तहत जो केंद्रीय सचिवालय में संयुक्त सचिव, उप सचिव, संचालक आदि आदि अधिकारी बना रहे हैं, जिसमे जरा भी प्रतियोगिता व सबके लिए अवसर नही हैं और हमारे युवा शक्ति को धर्म रक्षा के नाम में बर्बाद किया जा रहा है, जिसके कारण हम हर प्रकार के विश्व प्रतियोगिता से बाहर हो रहे है. ये सब कुल, परिवार, जाति, सम्प्रदाय के अहंकार की पूर्ति के मुख्य कारण से हो रहा हैं, जिसके कारण हम शिक्षा, साहित्य, इतिहास, विज्ञान, उच्च सामाजिक सोच, उच्च राजनीतिक सोच, खेल, रक्षा आदि सभी मामले में पीछे जा रहे हैं और केवल हर क्षेत्र के बर्बादी में आगे बढ़ रहे हैं. हमारे पूर्वजों ने सहकारी, सहयोग व सामुहिक नेतृत्व के कारण इस क्षेत्र को स्वर्ण काल बनाये थे, जब ताला चाबी का आवश्यकता नहीं रह गया था, जिसे लुटेरे ने कालांतर में बर्बाद कर दिये हैं.
और हम आज ये सब जानते हुए भी पुनर्निर्माण के लिए सही काम नहीं कर रहे हैं. लुटेरे लोगों को देखकर, इन लुटेरे लोगों के बहकावे में आकर हम लोग भी लोभ के पूर्ति के लिए दौड़ पड़ रहे हैं. लोभ तो हमेशा मौत व बर्बादी ही लाती हैं और ज्यादा लोभ सम्पूर्ण बर्बादी लाती हैं. यहां गम्भीर चिंतन व जल्दी काम करने का विषय हैं कि हम आज भी 99% उत्पादक होते हुए भी भिखारी बन गए हैं. इसका मुख्य कारण उत्पादन के बाद संग्रहण, भंडारण व वितरण में राजनीतिक बेईमानी के साथ साथ जिसको भी अवसर मिल रहा है लूटने का काम कर रहे हैं.
इसका एक ही उपाय है कि स्वास्थ्य राजनीतिक नेतृत्व होना जरूरी है. इसके लिए केवल संकेत से, इशारे से, व्यंग से, अप्रत्यक्ष रूप से बात करने से बात नहीं बनेगी, या किन्ही महापुरुषों के उपदेशों को बार बार दुहराने से बात नही बनेगी, हर लेखों में हर जगह हर बातों में सीधा सीधा यही लिखिए, यह बोलिये कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, आगामी हर चुनावों में भाजपा व भाजपा गठबंधन को वोट न दें, लोगों को भी समझायें कि वे भी भाजपा व भाजपा गठबंधन को वोट न दें, भाजपा सरकार के सारे कार्य, नियम, नीति, कानून, सहायता, गाय मारकर जूता दान जैसे हैं.
सोशल मीडिया पर एक अन्य लिखते हैं कि देश में योग्य एवं कुशल प्रशासनिक क्षमता वाले अधिकारियों की कोई कमी नहीं है, इसके बावजूद केंद्र सरकार ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से जो खेल खेलना चाहती है उससे देश का बच्चा बच्चा वाक़िफ़ हो चुका है. लैटरल एंट्री के नाम पर निजी क्षेत्र के अपने चहेते लोगो को इस भर्ती में शामिल करना न केवल हमारे योग्य अधिकारियों के साथ धोखा है बल्कि यह असंवैधानिक भी है और इससे सीधा नुक़सान आरक्षित वर्ग को है क्योंकि इस लेटरल एंट्री में आरक्षण का कोई प्रावधान नही रखा है.
सरकार आरक्षित वर्ग के हितों को निरंतर कुचलने का जो प्रयास कर रही है वो हमारे लिए असहनीय और निंदनीय है. देश के पीड़ित, शोषित एवं वंचित वर्ग को मुख्य धारा में लाने के बाबा साहब अंबेडकर जी के निर्णय को सरकार दरकिनार करके जो अन्याय कर रही है उसका जवाब देने के किए देश का शोषित वर्ग तैयार और तत्पर है. आख़िर देश की संवैधानिक व्यवस्थाओं को ख़त्म कर के सरकार कौनसी नयी व्यवस्था लागू करना चाहती है ?
एक अन्य लिखते हैं कि सवाल ये है कि क्या लेटरल एंट्री से आए हुए लोगों को अखिल भारतीय सेवा के अफ़सरों जैसा संविधान की धारा 141 के तहत गैरक़ानूनी सरकारी आदेश न मानने की छूट है ? इसका जवाब है नहीं. इसलिए मोदी अपने गुलामों को चुन चुन कर लैटरल एंट्री द्वारा ला रहे हैं. दूसरा कारण तो स्पष्ट है और वो है आरक्षण का उल्लंघन और इस तरह से परोक्ष रूप से संविधान की हत्या करना इनका मकसद है.
बाक़ी सब कारण, जैसे विशेष योग्यता वगैरह बकवास है. यह सोचना भी मूर्खता है कि हमारे अखिल भारतीय सेवा के अफ़सरों को विशेष ट्रेनिंग देकर किसी विशेष कार्य के लिए तैयार नहीं किया जा सकता है. लैटरल एंट्री आपको माधवी बुच देगा, जो कि मोदी के लाभ के लिए हरेक प्रकार का गैरक़ानूनी काम चुपचाप करेंगी. बिना लैटरल एंट्री के भी स्वैच्छिक गुलामों की लिस्ट बहुत बड़ी है, जैसे इतिहास में परास्नातक रिज़र्व बैंक का गवर्नर या चुनाव आयोग. न्यायपालिका में तो भाषण वीर चंद्रचूड़ का उदाहरण सबके सामने है, बोलेंगे बहुत कुछ और करेंगे कुछ नहीं.
दरअसल यह भारतीय राजनीति का संक्रमण काल है और इस कालखंड में जो जितना वाहियात है, चाटुकार है, बेईमान है और फ़ासिस्ट है, वह उतने ही बड़े पद पर बैठा है. पूंजीवादी लोकतंत्र की हदों को हम देख रहे हैं और ख़ामोश बैठे हैं. बांग्लादेश और श्रीलंका की जनता भी सड़क पर उतर आती है, हम नहीं उतरते हैं, क्योंकि हमारे यहां एक विशाल गोबर पट्टी है, जो भीख मांगने में गर्व महसूस करता है, चाहे ईश्वर से हो या सरकार के नाम पर क्रिमिनल लोगों के एक गिरोह से.
जाहिर है लैटरल के जरिए देश के महत्वपूर्ण नियंत्रण जगहों पर संघियों के ऐजेंट की बहाली का सीधा मतलब है देश में मनुवादी संविधान मनुस्मृति को लागू करने का धरातल तैयार करना. संघी ऐजेंट मोदी जिस तरह 24 के चुनाव में करारी हार मिली है, उससे उसके समझ में यह अच्छी तरह आ गया है कि मनुस्मृति को लागू करने की ‘तपस्या’ में अभी और कमी है. इस कमी को पूरा करने के लिए वह लगातार नये-नये तरीके आजमा रही है, जिसमें एक ब्रॉडकास्ट बिल भी था, जिसे जबरदस्त विरोध के बाद वापस लेना पड़ा था और संभव है इस लैटरल तरीकों से भर्ती का तरीका भी उसे वापस लेना पड़ेगा.
नोट : इस लेख लिखे जाने तक यह पुख्ता खबर आ गई है कि मोदी सरकार ने भारी विरोध को देखते हुए इह लैटरल भर्ती को वापस ले लिया है. जगदीश्वर चतुर्वेदी कहते हैं – ‘जिस तरह से इस बार लैटरल एंट्री वाला आदेश केन्द्र ने दवाब में आकर वापस लिया है, उसका साफ संदेश है, भारत के लिए मनुवाद अप्रासंदिक हो गया है और मनुवाद की विदाई की शुरुआत हो गयी है.’ हलांकि ऐसा कहना जल्दबाजी होगा कि मोदी सरकार मनुवाद को स्थापित करने का अपना प्रयास रोकेगी. वह लगातार प्रयासरत रहेगी, बस देशवासियों को भी जागते रहना होगा और अपने लड़ने के हथियार को पैना करते रहना होगा.
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