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शुभांगी

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पहाड़ियों के खुले हुए जबड़ों के अंदर
तुम बना रही हो मेरे लिए एक अदद रोटी
और आटे में जोरन डालने के लिए
तुम्हारे पास नमक नहीं है

तुम्हें मालूम है कि बिना नमक की रोटी मुझे पसंद नहीं है
इसलिए रो पड़ती हो तुम
और आटे की लोई में
मिल जाता है तुम्हारी आंखों का नमक
मुझे मालूम भी नहीं चलता शुभांगी

मेरे थके हुए हाथों में बंदूक़ है
ठीक जैसे मेरे दुश्मन के हाथों में है
हम दोनों के बीच एक अघोषित समझौता है

हम दोनों कुछ देर के लिए
प्रेम करने को स्वतंत्र हैं

हमारे जैसे और भी हैं
जो अपनी अपनी गोंफ में समाए हुए
अपनी अपनी शुभांगी को याद करते हैं

सबके झंडे के रंग अलग अलग हैं
लेकिन
सबकी शुभांगियों की आंखों के नमक का स्वाद एक जैसा है
शुभांगी कृष्ण पक्ष का शुक्ल पक्ष है मेरे दोस्त !

  • सुब्रतो चटर्जी

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