प्रधानमंत्री मोदी आज ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मना रहे हैं. भारत में पहली बार विभाजन को किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह याद किया है. यह बताता है कि पीएम आज तक सद्भाव के लक्ष्य तक नहीं पहुंचे हैं. वे इस बहाने भारत को जोड़ने की बजाय वोट बटोरने के एजेंडे पर लग गए हैं. आज भारत विभाजन के नहीं साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे के एजेंडे की जरूरत है – जगदीश्वर चतुर्वेदी
हिमांशु कुमार
हमें खराब घटनाओं को भूल जाना चाहिए. अच्छी बातें याद रखनी चाहिए. इस मुल्क का बंटवारा ना हिंदुओं की गलती से हुआ, ना मुसलमानों के गलती से. वह साम्राज्यवादी ताकतों की योजना के अनुसार हुआ. हिंदुत्ववादी सोच रहे थे अंग्रेज उनकी मदद कर रहे हैं. मुस्लिम समझ रहे थे अंग्रेज उनकी मदद कर रहे हैं. अंग्रेज दोनों की मदद कर रहे थे लेकिन उन्हें बांटने के लिए.
पश्चिमी ताकतों को एशिया और तेल के क्षेत्रों पर अपने कब्जे को बनाए रखने के लिए दक्षिण एशिया में अड्डा चाहिए था इसलिए उन्होंने पाकिस्तान का निर्माण करवाया. पाकिस्तान बनने में आज भारत में रहने वाले मुसलमानों का कोई अपराध नहीं है. सच्चाई यह है कि उस वक्त के दंगों में बहुत सारे मुसलमानों को मुस्लिम लीग के गुंडों ने मारा था. ठीक जिस तरह हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गुंडों ने धर्मनिरपेक्ष गांधी की हत्या की और कांग्रेसियों को मारने का षड्यंत्र बनाया था.
दिल्ली में तीन मूर्ति हाउस में बनी लाइब्रेरी में आप पुलिस रिकॉर्ड के डाक्यूमेंट्स में यह सब सच्चाई देख सकते हैं. लेकिन मैंने एक आश्चर्यजनक बात नोट की. अचानक मेरी धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में लिखी गई लेख के कमेंट में भाजपाइयों ने भारत-पाक बंटवारे के समय पाकिस्तान से लाशों से भरी आने वाली ट्रेनों का जिक्र करना शुरू किया. हालांकि सच्चाई यह है कि निर्दोष मुसलमानों की लाशों से भरी हुई ट्रेनें भारत से पाकिस्तान की तरफ भेजी जा रही थी.
लेकिन अपने पक्ष की आधी सच्चाई को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए पूरी सच्चाई को छिपाकर नफरत फैलाने का एक नया अभियान मुझे दिखाई पड़ा. आज नरेंद्र मोदी का एक ट्वीट देखा, जिसमें उसने कहा है कि हमें 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति’ के रूप में मनाना चाहिए. तब मुझे समझ में आया कि अचानक भाजपा आईटी सेल के ट्रोल भारत-पाक बंटवारे का जिक्र क्यों करने लगे हैं.
उन लोगों को इनके मुख्य ट्रोल नरेंद्र मोदी की तरफ से लाइन मिली है. इन लोगों को ना तो विभाजन के समय की सच्चाई का पता है, ना इनकी रूचि सच्चाई जानने में है. यह तो लुटेरे वर्ग के लोग हैं जो किसानों, मजदूरों, आदिवासियों, दलितों, महिलाओं, छात्रों के मुद्दों को दबाने के लिए हिंदू-मुसलमान का नफरत का खेल खेलकर सत्ता हथियाने का चालाकियों भरा काम करते हैं.
दूसरा फोटो लाल किले का है. इस बार मोदी की सुरक्षा के लिए कंटेनरों की दीवार खड़ी कर दी गई है. आखिर भारत के प्रधानमंत्री को अपनी जनता से इतना डर क्यों होना चाहिए ? इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ. असल में मोदी जनता से सबसे ज्यादा डरता है. उसने कहा था – 50 दिन बाद मुझे किसी भी चौराहे पर बुला लेना. वह अपने किसी दावे को साबित नहीं कर पाया. अब वह बुरी तरह घबराया हुआ है. इसलिए जनता से बचने के लिए चारों तरफ लोहे की दीवारें बनवा रहा है.
इन नकली धर्म रक्षकों तानाशाह जनता के दुश्मन नेताओं की हकीकत अपनी खुली आंखों से देख लीजिए. इतिहास इस दौर को बहुत प्रमुखता से लिखेगा. इतिहास ने जैसे हिटलर, मुसोलिनी, ईदी अमीन जैसे तानाशाहों को नफरत के साथ दर्ज किया है, मोदी और अमित शाह का नाम भी वैसे ही दर्ज किया जाएगा.
भारत अब किसी भी बड़े जनसंहार के लिए बिल्कुल तैयार है
भारत के लोगों को वैसा ही तैयार कर लिया गया है, जैसा हिटलर ने किया था. हिटलर ने जब अपने ही देश में एक करोड़ बीस लाख लोगों की हत्या की, तब उसने जनता को कहा कि जिन्हें हम मार रहे हैं, यह हमारी श्रेष्ठता के मुक़ाबले हीन लोग हैं. यह हमारा विरोधी है, यह समलैंगिक है, ये हमारी नौकरी खाने वाले यहूदी है. ऐसा कह कर उसने एक लंबी सूची जनता के सामने रखी और जनता उन सब की हत्या करने के लिए सहमत हो गई.
अस्पताल में नर्स बच्चों को जहर के इंजेक्शन देती थी. डॉक्टर लोगों को बचाने की बजाय उनकी हत्या कर रहे थे. स्कूल की बसों को सीधा ले जाकर के बच्चों की हत्या कर दी जाती थी. हिटलर ने खुद ही संसद को आग लगाई और कम्युनिस्टों के ऊपर इल्जाम लगा दिया. उन्हें बदनाम किया और इस तरह हिटलर ने अपने ही देश के 1 करोड़ बीस लाख लोगों की हत्या कर दी.
भारत में छोटे-छोटे जनसंहार तो राष्ट्रवाद जातीय श्रेष्ठता, धार्मिक श्रेष्ठता और महान राष्ट्र के नाम पर रोज हो रहे हैं. कभी आदिवासियों को मारा जाता है, कभी नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को मारा जाता है, कभी दलितों को मारा जाता है, कभी मुसलमानों को मारा जाता है लेकिन एक बड़ा जनसंहार जिसे नस्लीय सफाया कहा जाता है, अंग्रेजी में ‘एथनिक क्लींजिंग’ कहा जाता है. वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अंतिम लक्ष्य है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम सरसंघचालक हेडगेवार के भी गुरु मुंजे जाकर मुसोलिनी से मिलकर आए थे. और वह हिटलर और मुसोलिनी दोनों के महान भक्त थे और उन्होंने उनकी तारीफ में लिखा भी है. इस समय कश्मीर में जो हालत पैदा की गई है, पूरा देश भाजपा के पक्ष में तालियां बजा रहा है. लोग कई दिन से घरों के भीतर बंद हैं, वह भूखे हैं. बच्चों को दूध नहीं मिल रहा. लोगों को खाना नहीं मिल रहा. बूढ़ों को दवाएं नहीं मिल रही. पूरा देश तालियां बजा रहा है. बिल्कुल वैसे ही माहौल की बदबू आ रही है जैसे कभी हिटलर ने अपने देश में पैदा किया था.
फासीवाद आने वाला नहीं है, वह आ चुका है. जब फासीवाद जर्मनी में आया था, तब वहां के लोगों को भी पता थोड़ी चला था कि फासीवाद आ चुका है. वह तो अगर रूस और एलाइड फोर्सज मिलकर हिटलर और मुसोलिनी को खत्म ना करती तो वहां की जनता तो आज तक फासीवादी नफरत में पागल ही रहती.
(जगदीश्वर चतुर्वेदी लिखते हैं) मौजूदा लोकतंत्र अंदर से सड़ चुका है और इसके विकल्प के रूप में रेडीकल लोकतंत्र का निर्माण करना पहली अहम जरूरत है. रेडीकल लोकतंत्र के नए कार्यभार हैं –
- पहला- बाजार आधारित कॉमनसेंस के विकल्प के तौर पर सामाजिक हितों और समूहों के अधिकारों की चेतना का निर्माण करना.
- दूसरा- शिक्षा और राजनीति में ऐसे परिवर्तनों को सामने लाना जिनसे वैकल्पिक मूल्यबोध और सामाजिक लक्ष्यों के लिए कुर्बानी का ज़ज्बा़ पैदा हो.
- तीसरा- मानवाधिकारों की चेतना और नागरिकबोध की चेतना सभी में पैदा की जाए. यूजर और उपभोक्ता की बजाय नागरिक की चेतना में सभी लोग सोचें, यह सचेतनता पैदा करने की जरूरत है.
- चौथा- लोकतंत्र का नवीकरण, नए भाबवोध और मूल्यों के साथ नए मनुष्य के निर्माण के संकल्प को प्राथमिकता दी जाय.
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