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बेलगाम शिक्षा माफ़िया क्रूरता की हदें लांघ रहा है…

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बेलगाम शिक्षा माफ़िया क्रूरता की हदें लांघ रहा है...
बेलगाम शिक्षा माफ़िया क्रूरता की हदें लांघ रहा है…

स्कूल में, सभी बच्चों के सामने, अपमानित होने का ज़ख्म, मासूम बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर बहुत गहरा गुद जाता है. यह ज़ख्म कभी नहीं भरता. ख़ासतौर पर, प्राइमरी स्कूल के उन अध्यापकों को हम जीवनभर नहीं भूलते जिन्होंने, पाठ्यक्रम से बाहर जाकर, अध्यापकीय ड्यूटी की सीमा से आगे बढ़ते हुए, हमें, संवेदनशीलता से तराशा होता है, कंधे पर हाथ रखकर प्यार और स्नेह से समझाया होता है कि नज़र आते ही, हमारे हाथ, खुद-ब-खुद, उनके पैरों की ओर बढ़ जाते हैं. दूसरी ओर, कुछ ऐसे मास्टर जी भी पल्ले पड़ते हैं जिन्होंने, हमें, बिना किसी ख़ास वज़ह, पूरी क्लास के सामने, ज़लील किया होता है. वह ज़ख्म भी कभी नहीं भरता. कितना भी वक़्त गुजर जाए, जब भी वो लम्हा याद आता है, वैसी ही टीस महसूस होती है, जैसी उस दिन हुई थी.

‘दिल्ली पब्लिक स्कूल, फेज I, सेक्टर 3, द्वारका, नई दिल्ली-78’ में, शिक्षा की एक चमचमाती दुकान है. इस स्कूल में, 2021 तक, नर्सरी से कक्षा 12 तक, मासिक ट्यूशन फीस, शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित, रु 7,785/ ही थी. दिल्ली उच्च न्यायलय ने, 2016 के एक बेहतरीन फ़ैसला सुनाया था; ‘निजी स्कूल भी, दिल्ली शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित फ़ीस से ज्यादा की उगाही नहीं कर सकते, क्योंकि वे भी, स्कूल का निर्माण करने के लिए, बेशकीमती सरकारी ज़मीन, बहुत सस्ते में हांसिल करते हैं’.

इस स्कूल ने, दिल्ली उच्च न्यायलय तथा शिक्षा विभाग के आदेशों को ठुकराते हुए, इस साल अप्रैल महीने में, सभी बच्चों की मासिक टयूसन फ़ीस, 7785/ से बढ़ाकर, 14700/ कर दी. अलग-अलग नामों से जो उगाही साल भर चलती है, उसे भी बढ़ा दिया. यह बढ़ी फ़ीस, इसी साल, 2024-25 से लागू है, या दो साल पहले, 2022-23 से, यह भ्रम भी बना रहने दिया. स्कूल की घोषणा से, बच्चों के घर हड़कंप मच गया. अप्रैल महीने में ही, स्कूल ने, आगामी वर्ष, 2024-25 के लिए, बढ़ी फ़ीस की उगाही, जिस अंदाज़ में शुरू की, उससे पता चलता है कि शिक्षा के बहाने, मध्यवर्ग को बेरहमी से निचोड़कर मुनाफ़ा कूटने वाला, शिक्षा माफ़िया, कितना क्रूर और संवेदनहीन है, देश के किसी क़ायदे-क़ानून को दो कौड़ी की क़ीमत नहीं देता.

स्कूल के 21 छात्रों के मां-बाप, बढ़ी फ़ीस नहीं भर पाए. इन छात्रों को, स्कूल ने, पहले, उनकी क्लास में, सभी बच्चों के सामने अपमानित किया, प्रताड़ित किया, धमकियां दीं. उसके बाद भी जब, वे बच्चे बढ़ी हुई फ़ीस भरने में नाकाम रहे, तो मई महीने में, रजिस्टर से नाम काटकर, उन्हें स्कूल से निष्कासित कर दिया. इन 21 बच्चों में, कई ऐसे भी हैं, जिनके दूसरे भाई- बहन भी उसी स्कूल में पढ़ते हैं, और जो इस उम्मीद में थे, कि दो बच्चों में से, एक को तो कम से कम फ़ीस में कुछ रियायत मिलेगी ही. रहम की ऐसी सभी उम्मीदें, शिक्षा माफ़िया की मुनाफ़े की भूख की आग में स्वाह हो गईं.

शिक्षा माफ़िया की क्रूरता की इन्तेहा

स्कूल की बर्बरता की इन्तहा तो तब हुई, जब बढ़ी फ़ीस ना दे पाने वाले बच्चों को, ना सिर्फ़ क्लास में, सब बच्चों के सामने प्रताड़ित किया जाता रहा, स्कूल से निकाल देने की धमकियां दी जाती रहीं, बल्कि उन्हें बाथरूम जाने से भी रोक दिया गया. बाथरूम इस्तेमाल से रोके जाने वाले बच्चों में, वह बच्ची भी शामिल थी, जो नैसर्गिक मासिक पीरियड के दिनों से गुजर रही थी. उसने अपनी अध्यापिका से यह बात बताई भी, लेकिन उसके बाद भी, उसे बाथरूम नहीं जाने दिया गया.

इतना ही नहीं, स्कूल मालिकों ने, इन मासूम बच्चों से खुन्नस निकालते हुए, ना सिर्फ़ उनके नाम काटकर, स्कूल से बाहर कर दिया बल्कि, उनके नाम, अपनी वेबसाईट पर सार्वजनिक भी कर दिए, मानो वे अपराधी हों !! 18 साल से कम उम्र के बच्चों द्वारा, कोई जघन्य अपराध भी अगर हो गया हो, तब भी, उनके नाम सार्वजनिक करना, संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है, अपराध है. अब मामला आपराधिक हो गया, जिसकी शिकायत, 15 मई को, ‘नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) में की गई. कमीशन ने, पुलिस उपायुक्त द्वारका को लिखा कि 21 बच्चों के नाम प्रकाशित करने के लिए, स्कूल प्रबंधन (प्रिंसिपल प्रिया नारायणन तथा चेयरमैन बी. के. चतुर्वेदी) के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर, उन पर कड़ी कार्यवाही की जाए.

स्कूल द्वारा प्रताड़ित, इन 21 बच्चों के मां-बाप, एक ही शत्रु से लड़ने की प्रक्रिया में, स्वाभाविक रूप से संगठित हो गए. उन्होंने जुलाई के शुरू में, दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के सामने प्रदर्शन किया, जिसे मीडिया ने अच्छी तरह कवर किया. शिक्षा विभाग को पूरा मामला सुनना पड़ा. बढाई गई फ़ीस को अनुचित एवं अन्यायपूर्ण मानते हुए, दिल्ली राज्य शिक्षा अधिकारी ने, स्कूल प्रबंधन को आदेश दिया कि पहली फ़ीस का भुगतान करने वाले बच्चों को तुरंत वापस लिया जाए. शिक्षा विभाग ने, 19 जुलाई को स्कूल प्रबंधन को ‘कारण बताओ नोटिस’ ज़ारी करते हुए, जवाब मांगा, कि अचानक हुई, इस फ़ीस वृद्धि के कारण बताइए. यह अनुचित और अन्यायपूर्ण है, फ़ीस वृद्धि, तत्काल वापस ली जाए.

शिक्षा विभाग ने, स्कूल को यह भी याद दिलाया कि आपके स्कूल को, डीडीए द्वारा बहुत ही रियायती दर पर प्लाट का आबंटन हुआ था, जिसकी शर्तें थीं कि स्कूल, गरिब बच्चों को पढ़ाएगा. उस वक़्त आपने सभी शर्तों को मंज़ूर करते हुए हस्ताक्षर किए थे. शिक्षा विभाग के आदेश को, स्कूल प्रबंधन ने दो कौड़ी की क़ीमत नहीं दी, और बच्चों से कहा, दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग को कोई अधिकार नहीं कि हमारे मामले में दख़ल दे. वह विभाग तो सरकारी स्कूलों को देखता है. इस स्कूल में पढ़ना है, तो घर से पूरे पैसे लेकर आना.

स्कूल प्रबंधन के इस अन्याय से राहत पाने के लिए, बच्चों के माँ-बाप ने, दिल्ली उच्च न्यायलय का दरवाज़ा खटखटाया. अदालत ने 9 जुलाई को आदेश दिया, कि आगामी वर्ष, 2024-25 के लिए बढ़ी फ़ीस का 50% भरने वाले बच्चों को निष्कासित ना किया जाए. शिक्षा माफ़िया की हिमाक़त देखिए; स्कूल ने, 50% बढ़ी फ़ीस का भुगतान करने वाले बच्चों को, उनकी कक्षाओं में बिठा तो लिया, लेकिन, उच्च अदालत के आदेश को, अपनी जागीरदारी में अनावश्यक दख़ल मानते हुए, मामला अदालत के विचाराधीन होते हुए भी, एक अभिभावक को, ई-मेल भेजकर धमकी दी, कि अगर बढ़ी हुई फ़ीस, 15 जुलाई तक जमा नहीं की, तो आपके छोटे बच्चे को स्कूल से निष्कासित कर दिया जाएगा. अदालत का आदेश तो बड़े बच्चे के लिए है.

अदालती न्याय की भी विडम्बना देखिए. दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने, स्कूल द्वारा बेतहाशा बढाई गई फ़ीस को अन्यायपूर्ण और अनुचित मानकर, वापस लेने को कहा था. उस सबसे अहम मुद्दे पर अदालत ने कुछ नहीं बोला. अगर अदालत भी, बढ़ी फ़ीस को अन्यायपूर्ण बता देती, तो ना सिर्फ़ उन बच्चों को, दमनकारी घुटन, मनोवैज्ञानिक आघात और प्रताड़ना से मुक्ति मिलती, बल्कि दूसरे बच्चों, जिनके माँ-बाप ने, जैसे-तैसे क़र्ज़ लेकर, अपना पेट काटकर, स्कूल की फ़ीस, इस डर से जमा की, कि मेरे बच्चे को पूरी क्लास के सामने ज़लील किया जाएगा, उन्हें भी राहत मिलती. साथ ही, इस अदालती आदेश के बल पर, बाक़ी शिक्षा की दुकानों में मच रही लूट से भी कुछ राहत मिलती. वर्ष 2024-25, चूंकि अगले साल अप्रैल तक चलेगा, इसलिए अदालत ने, इंसाफ की एक छोटी सी किश्त ही ज़ारी की; आधी रक़म का भुगतान करने वाले बच्चों को स्कूल से मत निकालो. मानो स्कूल से रहम मांगा जा रहा हो !!

निजी स्कूल, दरअसल, स्कूल नहीं हैं, शिक्षा माफ़िया की उगाही के अड्डे हैं. मध्यप्रदेश में शिक्षा की ऐसी ही चमचमाती, निर्मम और क्रूर दुकानों की बेरहम उगाही के विरुद्ध, प्रताड़ित मां-बाप, जबलपुर उच्च न्यायलय में गए और अदालत ने, मध्यप्रदेश के 10 निजी स्कूलों को, 69 करोड़ रु. की नाजायज़ वसूली गई फ़ीस को लौटाने का आदेश सुनाया है. दिल्ली के कुछ ऐसे ही, उगाही अड्डों की सालाना फ़ीस इस तरह है; पाथ वेज़ स्कूल, रु 5,88,000; अमेरिकन एम्बेसी स्कूल, 20,00,000; ब्रिटिश स्कूल, 1,76,500; जी डी गोयनका स्कूल, 8,00,000; मॉडर्न स्कूल 5,00,000.

सरकारी बेशकीमती प्लाट ठगी से हथियाए जाते हैं

‘दिल्ली विकास प्राधिकरण (नज़ूल भूमि का विकास व आबंटन) अधिनियम, 1981’ के तहत, निजी शिक्षा संस्थाओं को, सरकार द्वारा, बहुत ही रियायती दर पर, बेशकीमती ज़मीन के बड़े-बड़े प्लाट आबंटन में, निम्नलिखित शर्तें होती हैं, उन्हें, यह शिक्षा माफ़िया दांत निपोरते हुए मंज़ूर करता है, और प्लाट मिलते ही भूल जाता है. प्लाट हथियाने का काम, किसी व्यक्ति के नाम पर नहीं, बल्कि शैक्षणिक सोसाइटी को, ‘सोसिएटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860’ के तहत रजिस्ट्रेशन कराकर होता है. सोसिएटी के संविधान में लिखा होता है, ‘यह सोसाइटी, समाज के वंचित और ग़रीब तबक़ों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए समर्पित है’.

‘आर्थिक रूप से पिछड़े, वंचित लोगों के बच्चों को लगभग मुफ़्त शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 25% सीट, तथा केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों, जिनकी बदलियां होती रहती हैं, के बच्चों के लिए 25% सीट आरक्षित रहेंगी. शिक्षा विभाग की लिखित अनुमति के बगैर फ़ीस नहीं बढाई जाएगी’. प्लाट लेते वक़्त, एक और बहुत अहम बात, हर शैक्षणिक सोसाइटी लिखती है, “हम नो प्रॉफिट नो लोस’ सिद्धांत पर काम करेंगे !! केंद्रीय आवास मंत्रालय से प्लाट की मंजूरी, उसके बाद ही मिलती है, हालांकि मंत्रालय और मंत्री जानते हैं, असलियत में क्या होने जा रहा है.

डीडीए ने, 2005 में, एक ऑडिट, यह जानने के लिए कराया कि सरकार द्वारा, 1190-91 से 2003-04 तक, 13 साल में, विभिन्न शैक्षणिक सोसाइटीज को, स्कूल के लिए, कौड़ियों के दाम, जो प्लाट आबंटित हुए, उनकी शर्तों का अनुपालन कहां तक हुआ. ऑडिट का निचोड़ बहुत दिलचस्प है:

दिल्ली में, शैक्षणिक संस्थाओं को कुल 381 प्लाट आबंटित हुए, इनमें से 133 ने, समाज के कमज़ोर वगों को आवश्यक 25% आरक्षण नहीं किया. 343 ने बिना शिक्षा विभाग की अनुमति के, 4% से 44% तक फीस वृद्धि की. सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के लिए 25% आरक्षण तो किसी ने भी नहीं किया. शिक्षा सोसाइटीज को, प्लाट आबंटन के 2 साल के अंदर, स्कूलों का निर्माण करना होता है. इसे जांचने के लिए, 90 मामलों के सघन ऑडिट से पता चला, 46 स्कूल, तैयार ही नहीं हुए (सभी 381 मामलों में सघन ऑडिट क्यों नहीं हुआ, यह रहस्य समझ नहीं आया !!). सोसाइटीज को जो थोड़ी सी रक़म देनी थी, उसमें भी 1.88 करोड़ रु की वसूली बाक़ी थी.

2 साल की मुद्दत के बाद भी, जिन 46 प्लाट पर स्कूल बने ही नहीं, और मुद्दत बढ़ाने की अर्ज़ी भी नहीं लगी, उनका क्या हुआ ? इस ठगी के विरुद्ध एफआईआर हुई क्या ? क़सूरवार शिक्षा माफ़िया से, प्लाट की, मार्केट रेट से क़ीमत और दंड की वसूली हुई क्या ? इस बहुत अहम मुद्दे पर, ऑडिटर्स चुप हैं !! क्या ऐसा समझा जाए कि माल का हिस्सा वाटप हो गया !! ऑडिटर्स की सेवा भी हो गई ? बेशकीमती प्लाट के आबंटन में हुए फर्ज़ीवाड़े के लिए, ऑडिटर्स ने, डीडीए को क़सूरवार ठहराया. क़सूरवार अधिकारियों को क्या ‘पुरस्कार’ मिला ? कोई अपडेट उपलब्ध नहीं !! ऑडिटर्स ने यह भी नहीं बताया कि शिक्षा माफ़िया, नेता और डीडीए अधिकारी मिलकर, कुल कितना माल हज़म कर गए ?!

2005 के बाद, डीडीए में इस मुद्दे पर कोई ऑडिट हुआ या नहीं, वेबसाईट पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं. उसके बाद तो, वैसे भी, विशालकाय घोटालों, फर्ज़िवाड़ों का युग शुरू हो गया, जो पिछले 10 सालों में इतना विकराल हो चुका है कि ऐसे-ऐसे फुटकर फर्जीवाड़ों के ऑडिट पर वक़्त जाया नहीं होता. घपलों-घोटालों का पर्दाफ़ाश करने वालों को ही विकास का दुश्मन, ‘अर्बन नक्सल’ बताकर, ईडी, सीबीआई को उनके पीछे छोड़ा जाने लगा, जेलों में डाला जाने लगा है.

फर्ज़ीवाड़े करने वालों को बचाओ, उन्हें उजागर करने वालों को पकड़ो !!

करोड़ों के वारे-न्यारे करने वाले, सरकारी फ़ैसलों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, फ़ैसलों का ऑडिट होने, ज़िम्मेदारी तय करने के विचार की ही, मोदी सरकार ने हत्या कर डाली है. हिन्डेनबर्ग कंपनी द्वारा, अडानी महाघोटालों के, एक के बाद खुलासों, खोजी पत्रकारों की प्रतिष्ठित संस्था द्वारा सामने लाए गए, दस्तावेज़ी सबूतों के बाद भी, मोदी सरकार द्वारा उसके बेशर्म बचाव, जांच भी ना होने देने से, समूचे प्रशासनिक तंत्र में एक संदेश गया है; ‘घोटालेबाजों को बचाओ और घोटाले उजागर करने वालों के पीछे पड़ जाओ’ !!

शिक्षा माफ़िया को लूट की छूट तो, नई शिक्षा नीति, 2020 में ही मिल चुकी है. डीपीएस द्वारका की क्रूर उगाही से तो, इसके अलावा, दो अहम पहलू उजागर हुए हैं. पहला; दिल्ली की चुनी हुई सरकार को, फ़ासिस्ट मोदी सरकार द्वारा लगातार ज़लील किया जाना; ना सिर्फ़ दिल्ली के करोड़ों मतदाताओं का घोर अपमान है, बल्कि इसने, जन-सरोकार से जुड़े दिल्ली के प्रशासनिक विभागों के इक़बाल को भी मार डाला है. शिक्षा विभाग के उचित आदेश की ऐसी खिल्ली उड़ाने की, एक स्कूल प्रबंधन की ऐसी जुर्रत इसी वज़ह से हो पाई.

दूसरा; समाज का मौजूदा आइना यह तस्वीर प्रस्तुत करता है; एक छोर पर, 1% से भी कम लोग हैं, जिनके क़ब्ज़े में उत्पादन के सभी संसाधन इकट्ठे हो चुके हैं, जिनकी आमदनी अभूतपूर्व गति से बढ़ रही है. दूसरे छोर पर 82% लोग हैं, जो कंगाली के महासागर में डूबते जा रहे हैं. ये लोग, भूख से एक मुश्त ना मर जाएं, इसीलिए मोदी सरकार इन्हें, मुट्ठीभर दाने मुफ्त दे रही है, जिसकी एवज़ में इन्हें, ‘लाभार्थी’ कहकर ज़लील किया जाता है.

लगभग 17% (24 करोड़) लोगों की, बीच की एक परत है, जो मध्य वर्ग कहलाती है. ‘मेरा बेटा डीपीएस में पढ़ता है’, कॉलर ऊंची कर, शेखी मारने वालों की स्थिति दयनीय होती जा रही है. ये वर्ग हताश और अवसाद ग्रस्त है. इनके सपने बिखर रहे हैं, और उससे उपजी हताशा, इन्हें फ़ासिस्टों की पैदल सेना बना रही है. यही लोग हैं, जिन्हें हर वक़्त, हिन्दू धर्म ख़तरे में नज़र आता है, जबकि ख़तरे में, इनका मध्यवर्गीय स्थान है. इनकी निश्चित मंज़िल 82% वाला महा-रैला है. हिन्दू धर्म को कोई ख़तरा नहीं, लेकिन, यह अधमरी मुनाफ़ाखोर व्यवस्था ज़रूर ख़तरे में है, और वह ख़तरा आभासी नहीं, ठोस है.

  • सत्यवीर सिंह
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