योगी सरकार की उपलब्धि और कुछ हो ना हो मगर लोगों के घर उजाड़ने की उपलब्धि अवश्य है. हर कुछ दिन बाद किसी ना किसी का घर उजाड़ने का खेल खेला जा रहा है. कभी अपराध के नाम पर किसी का घर उजाड़ा जा रहा है तो कभी ग्रीन बेल्ट के नाम पर तो कभी भव्यता के नाम पर तो कभी हाईवे और सड़क चौड़ीकरण के नाम पर…, यद्यपि कि उनके पास फ्लाईओवर का भी विकल्प होता है.
अब उत्तर प्रदेश की ‘नज़ूल’ ज़मीन पर पट्टे पर घर बनाकर रह रहे लोगों का घर उजाड़ने की साज़िश हो रही है और इसे विधेयक के रूप में कानून बनाने के लिए विधानसभा में पास भी करा दिया गया है, जिससे पट्टेधारियों से ज़मीनें खाली कराई जा सकें, उनके घरों पर भी बुल्डोजर चलाया जा सके. यद्यपि उत्तर प्रदेश सरकार में ही इसे लेकर विरोध शुरू हुआ और विधान परिषद में 100 में से 89 सदस्यों ने ही इसका विरोध कर दिया, जिसके कारण इस बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेज दिया गया.
दरअसल ‘नज़ूल’ ज़मीन होता क्या है, पहले इसे समझिए. उर्दू का शब्द ‘नज़ूल’ दरअसल ‘नाज़िल’ शब्द से बना है. नाज़िल शब्द का अर्थ होता है – ‘उतरना’ या ‘प्रवास करना.’ मीडिया बता रही है कि जिन राजा रजवाड़ों ने अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई लड़ी, उनकी हार के बाद अंग्रेजों ने उनकी ज़मीनें हड़प ली.
मीडिया बता रही है कि 1947 में ब्रिटिश हुकूमत खत्म होने के बाद इस ज़मीन पर राजा रजवाड़ों के वंशजों ने दावा किया, मगर उनके पास कोई कागज़ और दस्तावेज नहीं थे. भारत की आजादी के बाद इस जमीन और ऐसी संपत्तियों का अधिकार राज्य सरकार के पास चला गया, जिसे सरकार द्वारा लोगों को 15 साल से 99 साल की लीज पर दिया जाने लगा. यह मीडिया का गढ़ा जा रहा आधा झूठ है.
मीडिया को यह भी बताना चाहिए कि कौन से राजा ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी ? इतिहास में देखें तो एक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के अतिरिक्त देश के सारे राजा-रजवाड़े पहले मुगलों के सामने नतमस्तक हुए, खुद की राजशाही और राज बचाने के लिए उनके साथ बहन बेटी ब्याही और फिर ब्रिटिश हुकूमत के सामने भी वह नतमस्तक हो गये.
ऐसे राजाओं में सैकड़ों नाम हैं, ग्वालियर का सिंधिया, मैसूर का वाडियार, जयपुर का जय सिंह, जोधपुर का उम्मेद सिंह , जाम नगर के जडेजा, बड़ोदरा के गायकवाड़ इत्यादि इत्यादि इत्यादि. यूं समझिए कि जिनके पास आज आलीशान महल हैं, ज़मीन-जायदाद हैं, सोने के हौदे हैं, और वह आज भी श्रीमंत या महाराज कहलाते हैं. उनके पुर्वज अंग्रेजी हुकूमत के आगे नतमस्तक होकर अपना सबकुछ बचा ले गए.
जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत से लड़ाई लड़ी, उनके वंशज आज रिक्शा चला रहे हैं, गुमटी में चाय पकौड़े बनाकर बेच रहें है. ऐसे लोगों में, टीपू सुल्तान, बहादुर शाह ज़फ़र, बेगम हज़रत महल, अवध के नवाब वाजिद अली शाह और शाह आलम द्वितीय, बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला, मुर्शिद कुली खान और शाह नवाब जैसे लोग थे. अधिकांश लोग 1857 की गदर में अपना सबकुछ बर्बाद कर गये, उनकी ज़मीनें ही आज नज़ूल की ज़मीनें कहीं जा रही हैं. नज़ूल अर्थात नाज़िल अर्थात किसी को यहां उतारा या बसाया गया.
दरअसल 1947 में जब भारत ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद हुआ तब भारत में 565 स्वतन्त्र रियासतें थीं. इनमें से सिन्ध, भावलपुर, दिल्ली, अवध, रुहेलखण्ड, बंगाल, कर्नाटक मैसूर, हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ़ और सूरत में मुस्लिम शासक थे.
पंजाब तथा सरहिन्द में अधिकांश सिक्खों के राज्य थे. आसाम, मनीपुर, कछार, त्रिपुरा, जयंतिया, तंजोर, कुर्ग, ट्रावनकोर, सतारा, कोल्हापुर, नागपुर, ग्वालियर, इंदौर, बड़ौदा तथा राजपूताना, बुंदेलखण्ड, बघेलखण्ड, छत्तीसगढ़, ओड़िसा, काठियावाड़, मध्य भारत और हिमांचल प्रदेश के राज्यों में हिन्दू शासक थे.
आज पता कर लीजिए कौन कहां हैं, जो जिस क्षेत्र में आज भी ‘राजा साहेब’ कहलाता है और अपने पुर्वजों के महल में रहता है, वह ब्रिटिश हुकूमत के वफादार थे. जिनके वंशज मज़दूरी कर रहे हैं, उनके पुर्वज देश के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़े थे और अपना सबकुछ बर्बाद कर गये.
ऐसे लोगों की ज़मीनें ही आज नज़ूल की ज़मीनें हैं और जहां मुस्लिम रियासतें जितनी बड़ी थीं वहां उतना अधिक नज़ूल की ज़मीनें हैं. सरकार की नज़र अब ऐसी ज़मीनों पर है जिसके स्वामित्व का अधिकार तो उसके पास है, मगर कब्ज़ा उसके पास नहीं है. इन ज़मीनों पर लोगों के मकान बने हैं, दुकान और झोपडी बनी है.
योगी जी अब नये बिल के माध्यम से उनकी ज़मीनें छीनना चाहते हैं, और इससे सबसे अधिक खुश भू-माफिया हैं. यह तो अच्छी बात यह हुई कि इलाहाबाद में लगभग सैकड़ों एकड़ की नज़ूल की ज़मीन यहां के दो भाजपाई विधायकों के पास है, जिनके कारण मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
एक उदाहरण के लिए बता दूं कि इलाहाबाद की लगभग सारी नज़ूल की ज़मीनें मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय की थी, जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बक्सर युद्ध में हार के बाद उसके हाथ से चलीं गयी.
- मो. जाहिद
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