हिमांशु कुमार
सभी धर्मों की शुरुआत 3500 साल के अंदर-अंदर हुई है. उससे पहले के मनुष्य रेगिस्तान में भटक रहे थे, जंगलों में रह रहे थे. पशुपालन कर रहे थे. खेती की शुरुआत कर रहे थे. खेती की शुरुआत के साथ-साथ मनुष्य ने घूमना बंद करके बस्तियां गांव घर बनाकर टिक कर रहना शुरू किया. इसी के साथ दुनिया में अमीरी गरीबी बड़ा छोटा ऊंचा नीचा शुरू हुआ.
टिक कर रहना शुरू किया तो इंसान ने सोचना शुरू किया. इंसान ने प्राकृतिक घटनाओं, समाज, रिश्ते, इंसान और जिंदगी के बारे में सोचा. उसने कयास लगाए, प्रयोग किया, अनुभव प्राप्त किया. उसने आग का इस्तेमाल पहले ही सीख लिया था. पहिया बनाया, खेती के औजार बनाए, गाड़ियां बनाई, पशुओं को उसमें जोत गति बढ़ाई, तारों के बारे में सोचा, क्या खाना है क्या नहीं खाना यह सीखा.
बहुत सी चीज़ें उसकी समझ से अभी भी बाहर थीं. इंसान मरता क्यों है ? मरने के बाद भी कुछ होता है क्या ? जन्म से पहले हम कहां होते हैं ? दुनिया किसने बनाई ? भविष्य में क्या होगा ? यह सारे सवाल उसके मन में उठते थे. लेकिन उसके पास उनके जवाब जानने का कुछ तरीका नहीं था. इसलिए उसे जो भी समझ में आया उसने वह मानना शुरू कर दिया.
तो किसी ने कल्पना की कि हम मरने के बाद दोबारा पैदा होते हैं. किसी ने कल्पना की कि नहीं, हम कब्र में कयामत तक सोते रहेंगे. किसी ने एक ईश्वर की कल्पना की तो किसी ने कहा नहीं अलग-अलग बातों के लिए अलग-अलग देवता है. लेकिन यह सब इंसान के दिमाग में ही पैदा होने वाली बातें थी. इनका ना कोई आधार था, ना कोई सबूत था. क्योंकि यह सत्य नहीं थी इसलिए अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग समय में अलग-अलग कल्पनाएं पैदा हुई.
लेकिन यह कल्पनायें उस समय पैदा हुई जब मनुष्य के पास सृष्टि के शुरू होने के बारे में जांच करने या मृत्यु के बाद क्या होता है, इसके बारे में वैज्ञानिक शोध करने की समझ नहीं थी. दुनिया में अलग जगह पर कौन से जानवर होते हैं, इसके बारे में भी उसे जानकारी नहीं थी. इसलिए धर्म ग्रंथों में उसी तरह के जानवरों का वर्णन है जो धर्म ग्रंथ लिखने वाले स्थान पर स्थानीय तौर पर पाए जाते हैं.
धर्मों में मरने के बाद की जिंदगी के बारे में जो वर्णन किया है, वह उस इलाके की जलवायु के हिसाब से लिख मारा गया है. उत्तर भारत और अरब की जलवायु गरम है. इसलिए नर्क और जहन्नुम में आग का ज़िक्र किया गया है ताकि गर्मी से परेशान लोग नरक या जहन्नुम के बारे में सोचें तो डर महसूस करें. लेकिन तिब्बत में ठंड बहुत होती है और बर्फ लगभग साल भर जमी रहती है. वहां नर्क में गर्मी की बात की जाती तो लोग खुश हो जाते इसलिए तिब्बत में धर्मगुरु बताते हैं कि नर्क में बर्फ जैसी ठंड है ताकि ठंड से परेशान लोग नरक से डरें.
चचा ग़ालिब लिख भी गए हैं – हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है. जो धर्म ग्रंथ अरब में लिखा गया उसमें अरब में पाए जाने वाले जानवरों का वर्णन है. जो धर्म ग्रंथ भारत में लिखे गए उसमें भारत में पाए जाने वाले जानवरों का वर्णन है. बाद में यातायात के साधनों का विकास होने दूरसंचार क्रांति होने के बाद हम सारी दुनिया में घूमने लगे. हमें पूरी दुनिया में पाए जाने वाले जानवरों के बारे में पता चला.
बीमारी क्यों होती है ? बैक्टीरिया वायरस क्या होते हैं ? सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई ? पदार्थ कैसे बने ? दो या अधिक पदार्थ को मिलाने से क्या होता है ? वैज्ञानिक खोजो के कारण हम यह जान गए हैं. जैसे कोई बच्चा बचपन में परियों की या भूतों की कल्पना करता है लेकिन बड़ा होने के बाद वह इस तरह की बातें करें तो लोग हंसते हैं.
हमारे धर्म ग्रंथ उस समय लिखे गए जब हम बच्चों जैसे थे. आज नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से ज्यादा जानती हैं. इसलिए अगर हम अभी भी बच्चों जैसी कल्पनाएं सच मानकर उसके अनुसार आज की दुनिया को देखने की नजर बनायेंगे तो हमें समस्या की सही वजह का पता नहीं चलेगा. और हम उसके समाधान तक भी नहीं पहुंच पाएंगे.
(मसलन) यहां डाल डाल पर सोने की चिडियां करती हैं बसेरा, और बाकी के मुल्कों में हाड़ मांस की चिडियां बसेरा करती हैं. ये देश है वीर जवानों का, बाकी के देश डरपोक बुड्ढों के हैं. मेरे देश की धरती सोना उगले, बाकी के देशों की धरती सिर्फ अनाज उगलती है. यहां राम अभी तक है नर में नारी में अभी तक सीता है, बाकी के देश में नर और नारी तुच्छ जीव हैं.
होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफ़ाई रहती है, बाकी के देशों के लोगों के होठों पे झूठ और दिल में गंदगी रहती है. काले-गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है, बाकी के देशों के लोगों के बीच में जात पात का नाता है.
आज दुनिया में खाना बहुत है, जमीन बहुत है, कपड़े बहुत हैं, दवाइयां बहुत है लेकिन फिर भी लोग बिना मकान के हैं, भूखे हैं, बिना कपड़े के हैं, बीमारी से मर रहे हैं. गुंडे, बदमाश, अपराधी, तानाशाह सत्ता पर कब्जा कर रहे हैं. लेकिन इंसानी समाज इन समस्याओं का समाधान नहीं खोज पा रहा है.
क्योंकि वह अभी भी इन समस्याओं का कारण अपने धर्म ग्रंथों में बताये गए सिद्धांतों के अनुसार देखने की कोशिश कर रहा है. इसलिए इंसानियत जब तक वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण ढंग से सोचना शुरू नहीं करेगी. दुनिया इसी तरह तानाशाहों बदमाशों के चंगुल में रहेगी और इंसानियत इसी तरह दु:ख में डूबी रहेगी.
अब इन बच्चों वाली बातों से बाहर निकलो यार. सारी दुनिया में तुम्हारे जैसे ही इंसान रहते हैं. कब तक खुद को धोखा देते रहोगे, कब तक भ्रम में रहोगे ? हमारे देश में भयानक जाति का भेदभाव है, हम लोगों की बस्तियां जला देते हैं, हम अपने जंगलों को नष्ट कर रहे हैं, और जंगलों की रक्षा करने वालों को पुलिस से मरवा रहे हैं,
हम औरतों को पेट में मार रहे हैं, सड़कों पर बेइज्ज़त कर रहे हैं, नौजवानों की बेरोज़गारी सबसे अधिक है, बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, इन सब कमियों को स्वीकार करो, और इन्हें ठीक करने की कोशिश करो, झूठे घमंड से कोई फायदा नहीं होता.
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