आदमी के खून में
डुबोकर अपने पैने नाखून से
शेर ने लिखी है कविता
आदमी की पीठ पर
कविता में है आक्रोश
दुनाली बन्दूकों के खिलाफ
अभिमान अपनी ऐतिहासिकता पर
गर्व अपनी परम्पराओं के प्रति
संस्कृति का पिटता ढोल
आदमी का खून सस्ता
अपना खून अनमोल
लकड़ी काटने वाले लकड़हारे का
भेजा फाड़ने में लगी मेहनत
अपनी बुद्धि का बखान
शेर की इस महान उपलब्धि पर
जंगल में आयोजित किया है
लकड़बग्घों, तेन्दुओं और भेड़ियों ने
शेर का अभिनन्दन समारोह.
- शरद कोकस
(कविता संकलन ‘गुनगुनी धूप में बैठकर’ से)
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