किसी पाश्चात्य दार्शनिक ने
कहा था –
जो जैसा होता है
वैसे ही ईश्वर की
कल्पना/निर्माण करता है
मुर्ग़ा ईश्वर बनाएगा
तो मुर्ग़े जैसा
सूअर
सूअर जैसे ईश्वर की
कल्पना करेगा
वैसे ही मनुष्य
अपने जैसे ही ईश्वर का
निर्माण करेगा
संत का ईश्वर
संत जैसा
दुष्ट का ईश्वर
महादुष्ट
कमीने का ईश्वर
परम कमीना
लोभी का ईश्वर
घोर लालची
क्रूर का ईश्वर
अति क्रूर
धूर्त का ईश्वर
महाधूर्त
और सभी
अपने ईश्वर को सर्वश्रेष्ठ
बताने के लिए
गढ़ेंगे कथाएं
जुटाएंगे प्रमाण
जड़ेंगे आस्थाएं
और खोल लेंगे
बढ़िया सी एक भव्य दुकान
जिसे अलग अलग
संज्ञाओं से विभूषित करेंगे
दुकानों के होते हैं
सेल्समैन और दलाल
जो वह भी बेच लेते हैं
जो दरअसल होता ही नहीं
इस तरह
पूरी दुनिया में
लग जाती है भारी भीड़
तरह तरह के ईश्वरों की
और खेल का
सबसे मज़ेदार हिस्सा वह
जहां सारे एक साथ कहते हैं
सबका मालिक एक
और अपने अपने मालिक की
ग़ुलामी में जुट जाते हैं
जैसा कहा था
उस पाश्चात्य दार्शनिक ने
ठीक वैसा ही कहा
वैदिक ऋषियों ने
महात्मा बुद्ध ने
महावीर स्वामी ने
कबीर नानक तुकाराम ने
पर सुनता कौन है तब
जब ठीक कान के पास
ज़ोरों से लाउडस्पीकर में
बज रही हो
मनुष्य के बनाए
ईश्वर की स्तुतियां
- हूबनाथ
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]