Home गेस्ट ब्लॉग ब्राह्मणवाद, मूलतः शोषण की व्यवस्था है, इसे हर दिन नंगा कीजिए

ब्राह्मणवाद, मूलतः शोषण की व्यवस्था है, इसे हर दिन नंगा कीजिए

4 second read
0
0
260
ब्राह्मणवाद, मूलतः शोषण की व्यवस्था है, इसे हर दिन नंगा कीजिए
ब्राह्मणवाद, मूलतः शोषण की व्यवस्था है, इसे हर दिन नंगा कीजिए

रमन इफ़ेक्ट का सम्बंध रमन से नहीं है. यह तो प्रकाश के प्रकीर्णन की एक प्रक्रिया है. लाइट कायदे से सीधी चलती है लेकिन माध्यम के अणु उसकी वेवलेंथ बदल देते हैं. तो रमन इफेक्ट का सम्बंध, रमन के किसी निजी प्रभाव का असर नहीं, प्रकाश की स्थायी प्रकृति से है. ऐसे में नाम ‘लाइट वेवलेंथ वेरिएशन इफेक्ट’ जैसा कुछ होना था. पर खोजा रमन ने, तो नाम रमन इफेक्ट है.

ठीक इसी तरह ब्राह्मणवाद, ब्राह्मण जाति से जुड़ा नहीं है. यह एक प्रोसेस है, सोसायटी के स्तरीकरण की. ऊंच नीच की… जो ब्राह्मणों की देन है. मेरे एक मित्र के ब्याह के दौरान पता चला कि वे जाति से तेली है, मगर उच्च तेली हैं. अब भला निम्न तेली कौन होता है !

मालूम हुआ कि उनके पूर्वज जो तेल पेरा करते थे, उसके लिए मशीन और बैल का उपयोग करते थे. दूसरे निम्न तेली, स्वयं मानवीय श्रम से तेल पेरा करते थे. इन बैल वाले उच्च तेलियों के बच्चों का, मानवीय श्रम वाले निम्न तेलियों के घर ब्याह नहीं होता. तो यह बेसिकली तेलियों के बीच का आपसी मामला है, लेकिन है ब्राह्मणवाद…

ब्राह्मणवाद, आपको हर जाति के भीतर मिलेगा. मोटे तौर पर कुछ उच्च जातियां है, कुछ निम्न जाति. उच्च और निम्न के बीच दुराव है. लेकिन हर जाति के भीतर उप-उपजाति भी है, जिसमें अपने अपने स्तर हैं. ऊंच नीच और छुआछूत का भाव है. रोटी बेटी नहीं लेते देते. दूसरों की छोड़िए…खुद ब्राह्मण भी ब्राह्मणवाद के शिकार हैं.

देश का सबसे बड़ा ब्राह्मणवादी संगठन आरएसएस सिर्फ देशस्थ ब्राह्मणों को सरसंघचालक बनाता है. उनकी नजर में यूपी, बिहार, राजस्थान या कश्मीरी पंडित इस लायक नहीं हो सकते. शायद वे नीच ब्राह्मण हैं.

बल्कि पिछले दिनों एक बाबाजी खुलकर बोलते सुने गए कि उपाध्याय, चौबे, त्रिगुणायत, दीक्षित औऱ पाठक, नीच ब्राह्मण होते हैं. आज तक यह गजब बात सवर्णवादी मानसिकता के वामपन्थी इतिहासकारों ने छुपा दी थी. बाबाजी सामने लेकर आये, उनका आभार.

ब्राह्मणवाद, मूलतः शोषण की व्यवस्था है. सदियों पहले बनाई किसी भी नोबल उद्देश्य से हो, यह समय के साथ विद्रूप होकर एन्टाइटलमेन्ट और डिप्रेवेशन की व्यवस्था बन गयी है. एक गैंग, समाज पर अपने लिए अधिकार लूटता है, और दूसरों पर कर्तव्य थोपता है. इसे ही कानून में लिखता है, पारिवारिक संस्कार बना देता है. इसे ईश्वर और धर्म से जोड़ देता है. फिर शोषण का दौर अनंत काल तक चलता है.

देखा देखी हर जाति में ऐसे गैंग बन जाते हैं. कोई भी अगड़म बगड़म क्राइटेरिया बनाकर अपनी सुप्रीमेसी सुरक्षित कर लेता है. ऊपर अपने बापों से हक मरवाता है, नीचे अपनी ही जाति के वंचितों का हक मारता है. फिर आप राजव्यवस्था कैसी भी बनाइये, ये लोग अपना रास्ता निकाल लेते हैं.

आरक्षण की व्यवस्था ही देखिये. इसका लाभ मुट्ठी भर क्रीमी लेयर तक सीमित रह गया है. वही वही परिवार मौज लेते हैं, सत्ता और धनपशुओं से बगलें रगड़ते हैं, और समाज के दूसरों का हाल पहले जैसा ही है. चिराग पासवान जैसे दलित, ऐसे ही नवब्राह्मण हैं.

ऊंचनीच, छुआछूत, स्पर्श न करना, छुए पानी को न पीना, बड़ा ही सांस्कृतिक बनाकर आपके संस्कारो में ऐसा घुसा दिया गया है कि बात बात पर आपका धर्म भ्रष्ट हो जाता है. और इस छुई मुई लाजवंती किस्म के धर्म को बचाने के नित नए तरीके अपनाए जा रहे है. नेम प्लेट लगाने का बायस यही है.

नग्न ब्राह्मणवाद…, इसे जस्टिफाई करने का कोई भी लॉजिक सभ्य समाज में स्वीकार नहीं होना चाहिए. तो कल से सीधे गाली दे रहा हूं. बेइज्जत कर रहा हूं, आप भी करें, यह पुण्य का कार्य है. क्योंकि अगर आपके लॉजिक सही हैं, तो बीफ बेचने वालों के प्रोडक्ट पर असल मालिक का नाम, धर्म, जाति, उपजाति, गोत्र लिखवाना शुरू कीजिए.

इलेकोट्रोल बॉन्ड देने वालों का नाम बिना कोर्ट इंटरवेंशन के जाहिर कीजिए. देश की जेलों में जरायम की कमाई खाने वालों की जातियां और धर्म बताइये. तब रेहड़ी वालों, फलवालों, छोटे दुकानदारों पर यह कानून बनाकर लागू कीजिए. और हां, कांवरियों के लिए आदेश निकले, कि वे भी अपने गले मे तख्तियां डाल, अपना नाम, जाति साफ साफ लिखकर घूमें.

ताकि मार्ग में जो भी कट्टर हिन्दू और उनसे उच्च जाति के विक्रेता है, वे अठारवीं शताब्दी की इस तस्वीर की तरह उन्हें पानी पिलाने के लिए दुकान के सामने लकड़ी की खपच्चियों वाली नालियां बना सकें. उन्हें दूर, जमीन पर बिठाने के लिए जमीन गोबर से लीप सके, और निकल जाने के बाद वह भूमि गंगाजल से धो सकें. क्योंकि धर्म तो दुकानदार का भी है. क्या वह भ्रष्ट नही हो सकता ?

  • मनीष सिंह

Read Also –

‘भारतीय इतिहास का प्रमुख अन्तर्विरोध हिन्दू-मुस्लिम नहीं, बल्कि बौद्ध धर्म और ब्राह्मणवाद है’ – अम्बेडकर
‘एकात्म मानववाद’ का ‘डिस्टोपिया’ : राजसत्ता के नकारात्मक विकास की प्रवृत्तियां यानी फासीवादी ब्राह्मणवादी राष्ट्रवाद
मुगलों ने इस देश को अपनाया, ब्राह्मणवादियों ने गुलाम बनाया
शारीरिक श्रम करने को नीच मानता ब्राह्मणवादी सनातनी
ब्राह्मणवाद का नया चोला हिन्दू धर्म ?
हिंदु, हिंदू-शब्द और हिंदू-धर्म 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…