संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने ऐलान किया है कि वह एक बार फिर एमएसपी कानून की गारंटी, ऋण मुक्ति, फसल बीमा, किसानों और खेतिहर मजदूरों के पेंशन, बिजली के निजीकरण को वापस लेने और अन्य लंबित मांगों को लेकर आंदोलन की शुरूआत करेगा. यह ऐलान एसकेएम ने 11 जुलाई 2024 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, रायसीना रोड, नई दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर किया.
10 जुलाई 2024 को दिल्ली में आयोजित संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की आम सभा की बैठक ने भारत के किसानों और श्रमिकों को भाजपा के सांप्रदायिक और कॉर्पोरेट समर्थक आख्यान का मुकाबला करने के लिए आजीविका के ज्वलंत मुद्दों को सफलतापूर्वक सामने लाने और भाजपा के ‘400 पार’ के लक्ष्य को विफल करने के लिए बधाई दी. भाजपा को 63 सीटों का नुकसान हुआ और वह मात्र 240 सीटों पर सिमट गई, जिससे वह दस वर्षों में पहली बार लोकसभा में साधारण बहुमत नहीं पा सकी.
एसकेएम के ‘भाजपा को बेनकाब करो, विरोध करो और दंडित करो’ अभियान ने उन सभी जगहों पर व्यापक प्रभाव डाला, जहां किसान आंदोलन व्यापक और सक्रिय था. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र की 38 ग्रामीण लोक सभा सीटों पर भाजपा की हार और उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी (किसानों का हत्यारा) और झारखंड के खूंटी में अर्जुन मुंडा (कृषि मंत्री) की हार से किसानों के संघर्ष का असर पता चलता है. भाजपा को 159 ग्रामीण बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा है.
आजीविका के मुद्दों पर आधारित संघर्ष की निरंतरता और तीव्रता ने आम लोगों के एक बड़े वर्ग में आत्मविश्वास भरा, मीडिया को प्रभावित किया, विपक्षी राजनीतिक दलों को एकजुट किया और भारत के संविधान में निहित लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और संघीय सिद्धांतों और आरक्षण की रक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाने में मदद की. आम सभा ने सांसद चुने गए राजस्थान के सीकर से किसान नेता अमरा राम, बिहार के काराकाट से राजाराम सिंह, बिहार के आरा से सुदामा प्रसाद और तमिलनाडु के डिंडीगुल से आर. सचिदनाथम की जीत की सराहना की.
आम सभा के अध्यक्ष मंडल में डॉ. अशोक धावले, डॉ. दर्शन पाल, युद्धवीर सिंह, बलबीर सिंह राजेवाल, रेवुला वेंकैया, मेधा पाटकर, सत्यवान, रुलदू सिंह मानसा, डॉ. सुनीलम, अविक साहा, डॉ. आशीष मित्तल, तजिंदर सिंह विर्क और कंवरजीत सिंह शामिल थे. हन्नान मोल्ला ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया. बैठक में 17 राज्यों से 143 प्रतिनिधि शामिल हुए. आम सभा इस निष्कर्ष पर पहुंची कि भाजपा-एनडीए सरकार की कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों में बदलाव के किसी भ्रम की जरूरत नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ‘हमेशा की तरह काम’ जारी रखने पर अड़े हुए हैं. किसानों और खेत मजदूरों के प्रत्यक्ष संघर्षों को तेज करना और संगठित और असंगठित मजदूरों के साथ संयुक्त संघर्ष करना समय की मांग है ताकि गंभीर दु:खों और व्यापक ऋणग्रस्तता, बेरोजगारी और महंगाई का सामना कर रहे लोगों को राहत मिल सके.
आम सभा ने 9 दिसंबर 2021 को केंद्र सरकार और एसकेएम के बीच हुआ समझौता, जिस पर भारत सरकार के कृषि विभाग के सचिव ने हस्ताक्षर किए हैं, के कार्यान्वयन की मांग और किसानों की आजीविका को प्रभावित करने वाली अन्य प्रमुख मांगों को लेकर आंदोलन को फिर से शुरू करने का फैसला किया.
विदित है कि 9 दिसंबर 2021 के समझौते में सभी फसलों की खरीद के साथ C2 + 50% की दर से कानूनी रूप से गारंटीकृत एमएसपी सुनिश्चित करना, प्रीपेड स्मार्ट मीटर और बिजली क्षेत्र का निजीकरण नहीं करना, ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी परिवारों को मुआवजा देना, किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज किए गए सभी मामलों को वापस लेना, और पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण नियंत्रण पर अधिनियम में संशोधन करके किसानों को आपराधिक दायित्व से मुक्त करना शामिल है.
आम सभा की बैठक में एनडीए की किसान विरोधी सरकार की कड़ी निंदा की गई, जिसने 736 शहीदों के सर्वोच्च बलिदान और 384 दिनों — 26 नवंबर 2020 से 11 दिसंबर 2021 — तक दिल्ली की सीमाओं पर लगातार और जुझारू संघर्ष में भाग लेने वाले लाखों किसानों की पीड़ा के बाद किए गए समझौते का उल्लंघन किया.
संघर्ष को फिर से शुरू करने के हिस्से के रूप में, एसकेएम सभी संसद सदस्यों (लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा) को संशोधित मांग पत्र प्रस्तुत करेगा. संबंधित एसकेएम राज्य नेतृत्व का एक प्रतिनिधिमंडल 16, 17, 18 जुलाई 2024 को सीधे उनसे मिलेगा और उनसे मांगों पर तुरंत कार्रवाई करने के लिए एनडीए सरकार पर दबाव बनाने का अनुरोध करेगा. एसकेएम नेतृत्व प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता से मिलने का समय मांगेगा और उन्हें मांगों का ज्ञापन सौंपेगा.
9 अगस्त 2024 को एसकेएम भारत छोड़ो दिवस को ‘कॉरपोरेट्स भारत छोड़ो दिवस’ के रूप में मनाएगा और मांग पत्र के समर्थन में पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करेगा. किसानों के बीच भारत को डब्ल्यूटीओ से बाहर लाने और कृषि उत्पादन और व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनी पर प्रतिबंध की मांग का प्रचार किया जाएगा. एसकेएम की राज्य समन्वय समितियां अभियान का स्वरूप तय करेंगी.
17 अगस्त 2024 को एसकेएम पंजाब इकाई पंजाब की मांगों को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों के घरों पर 3 घंटे का विरोध प्रदर्शन आयोजित करेगी, जिसमें गंभीर जल संकट, कर्ज का बोझ, सड़क गलियारों के माध्यम से भारत-पाकिस्तान व्यापार खोलना और मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा सत्ता और संसाधनों के केंद्रीकरण की नीति के खिलाफ पंजाब की संघीय मांगों को शामिल किया जाएगा. इसी दिन एसकेएम सभी राज्यों में जल संकट और जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव तथा जल, भूमि, वन और खनिज सहित प्राकृतिक संसाधनों के वस्तुकरण के खिलाफ बड़े सेमिनार आयोजित करेगा.
आगामी विधानसभा चुनावों के लिए हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर की राज्य समन्वय समितियां अपनी बैठकें आयोजित करेंगी और आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को बेनकाब करने, विरोध करने और दंडित करने के लिए एसकेएम की मांगों के आधार पर किसानों के बीच एक स्वतंत्र और व्यापक अभियान सुनिश्चित करेंगी. राज्य इकाइयां ट्रेड यूनियनों और अन्य जन और वर्ग संगठनों के साथ समन्वय की संभावनाएं तलाशेंगी और वाहन जत्थे, पदयात्राएं और महापंचायतें आयोजित करेंगी.
एसकेएम की राज्य समन्वय समिति की बैठकें सभी राज्यों में तत्काल आयोजित की जाएंगी ताकि अपने राज्य में ज्वलंत किसानों के मुद्दों की पहचान की जा सके और केंद्रीय कार्रवाई कार्यक्रमों के साथ-साथ उनके आंदोलन कार्यक्रमों की योजना बनाई जा सके. आम सभा की बैठक में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और श्रमिकों, खेत मजदूरों, छात्रों, युवाओं, महिलाओं और अन्य जन वर्गों के संगठनों के साथ समन्वय बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया गया. आम सभा ने निम्नलिखित मांगें स्वीकार की –
- सभी फसलों की गारंटीकृत खरीद के साथ सी2+50% की दर से कानूनी रूप से गारंटीकृत एमएसपी.
- किसानों और कृषि श्रमिकों को ऋणग्रस्तता से मुक्त करने और कृषि आत्महत्याओं को समाप्त करने के लिए व्यापक ऋण माफी.
- बिजली क्षेत्र का निजीकरण नहीं, प्रीपेड स्मार्ट मीटर नहीं.
- सार्वजनिक क्षेत्र के तहत सभी फसलों और पशुपालन के लिए व्यापक बीमा कवरेज, किसान विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक पीएमएफबीवाई योजना को समाप्त करना.
- सभी किसानों और कृषि श्रमिकों को प्रति माह 10,000 (दस हजार) रुपये की पेंशन.
- भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 को लागू करना, पूरे भारत में हर दूसरे वर्ष भूमि की संशोधित सर्किल दर, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के परियोजनाओं के लिए अवैध अधिग्रहण के कारण भूमि खोने वाले सभी किसानों को उचित मुआवजा प्रदान करना और पुनर्वास और पुनर्स्थापन के बिना अधिग्रहण को रोकना; बिना पूर्व पुनर्वास के स्लम और बस्तियों को ध्वस्त करने के बुलडोजर राज को समाप्त करना.
- कृषि का निगमीकरण नहीं, कृषि उत्पादन और व्यापार में कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी नहीं, भारत को कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के समझौते से बाहर निकालना.
- उर्वरक, बीज, कीटनाशक, बिजली, सिंचाई, पेट्रोलियम उत्पाद, मशीनरी और ट्रैक्टर जैसे कृषि इनपुट पर कोई जीएसटी नहीं.
- मजबूत राज्य और मजबूत संघ के सिद्धांत के साथ भारत के संविधान में निहित संघीय सिद्धांतों के आधार पर राज्य सरकारों के कराधान के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए जीएसटी अधिनियम में संशोधन करना.
- सकल घरेलू उत्पाद के पर्याप्त हिस्से के साथ कृषि के लिए अलग से केंद्रीय बजट पेश करना
- केन्द्र सरकार में सहकारिता विभाग को समाप्त करना, और सहकारिता को भारत के संविधान में निहित राज्य सूची में रखना. केंद्र सरकार को उत्पादक वर्ग — किसानों और श्रमिकों — की कीमत पर कॉर्पोरेट वर्ग के हित के लिए सत्ता के केंद्रीकरण को बढ़ावा देने के बजाय राज्यों का समर्थन करना चाहिए.
- वन्यजीवों की समस्या का स्थायी समाधान सुनिश्चित करना; जानमाल के नुकसान के लिए 1 करोड़ रुपये का मुआवजा और फसलों और मवेशियों के नुकसान के लिए पर्याप्त मुआवजा प्रदान करना.
- लखीमपुर खीरी के शहीदों सहित ऐतिहासिक किसान संघर्ष के सभी शहीदों के परिवारों को मुआवजा प्रदान करना.
- किसान आंदोलन से संबंधित सभी मामलों को वापस लेना और 736 किसान शहीदों की याद में सिंघू/टिकरी बॉर्डर पर एक शहीद स्मारक का निर्माण करना.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में हन्नान मोल्लाह, युद्धवीर सिंह, डॉ. सुनीलम, अविक साहा, पी कृष्णप्रसाद, आर वेंकैया और प्रेम सिंह गहलावत शामिल हैं. इन्होंने साफ तौर पर कृषि के लिए अलग बजट, केंद्र सरकार में सहकारिता मंत्रालय को समाप्त करने, कृषि लागत पर जीएसटी नहीं लगाने, सहकारी संघवाद के आधार पर मजबूत संघ के लिए मजबूत राज्य के उद्देश्य से कराधान पर राज्य सरकार के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए जीएसटी अधिनियम में संशोधन और राष्ट्रीय जल संसाधन नीति जैसी तमाम मांगों और मोदी सरकार की वादाखिलाफी को लेकर एक बार फिर तरह तेवर कड़े किये.हैं, मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी बज गई है.
गौरतलब हो कि संयुक्त किसान आंदोलन के 13 महीने चले आंदोलन ने न केवल पहली बार मोदी सरकार को घुटनों पर ला दिया बल्कि 18वीं लोकसभा चुनाव में भी मोदी सरकार को घुटनों पर झुका दिया और गठबंधन की सरकार बनाने पर मजबूर होना पड़ा. लेकिन अब एकबार फिर जब किसान आंदोलनकारियों ने अपने तेवर कड़े किये हैं, तब यह मानकर चलना चाहिए कि मोदी सरकार ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है. या तो सरकार बदलेगी अथवा मध्यावधि चुनाव के आसार बन जायेंगे.
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