लोकसभा में बतौर विपक्षी नेता राहुल गांधी ने शिव की मूर्ति क्या दिखाया, भाजपाइयों को एकबारगी सांप सूंघ गया. अचानक से उसे सारे नियम कायदे याद आ गये. सारे अनुच्छेद मंत्रों की तरह पढ़े जाने लगे. मोदी उठ खड़े हुए और अमित शाह संरक्षण की याचना करने लगे. और एक झटके में दिखी शिव की छवि लोकसभा के कैमरों से यूं गायब हो गया मानो भूत देख लिया हो.
शिव की इस छवि के तहों में छिपे थे इस देश के लोगों के सवाल. किसानों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों, युवाओं और छात्रों के सवाल. इस देश के सैनिकों के सवाल जिसे मोदी सत्ता ने अग्निविरों के रुप में रख कर सैनिकों को नैतिक और भौतिक दोनों रुपों में कमजोर कर दिया. नरेन्द्र मोदी जो खुद को नन-बॉयलॉजिकल प्रोडक्ट बताते हैं और परमात्मा से सीधे वार्तालाप करते हैं, लोकसभा में पूरी तरह नंगा हो गये.
लोकसभा में राहुल गांधी के सवालों से बौखलाये ‘स्पीकर’ ओम बिड़ला, जो खुद आकंठ भ्रष्टाचार में डुबे हैं (ज्ञातव्य हो कि ओम बिड़ला की मॉडल बेटी यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा को पहली ही बार क्रैक कर आईएएस बन गई, जिसके लिए देश के युवा वर्षों कठिन तैयारी करते हैं, फिर भी सफल नहीं हो पाते) को अचानक से ‘शिष्टाचार’ याद आ गया और उम्र में छोटे-बड़े का ज्ञान देने लगे, जिसका राहुल गांधी ने बेहद ही सटीक जवाब यह कहते हुए दिया कि ‘सदन में सबसे बड़े स्पीकर होता है, जिसका सम्मान हम सभी को करना चाहिए.’
सदन में राहुल गांधी ने जिस तरह शिव के सहारे नफरतों और हिंसा के सरगना नरेन्द्र मोदी, भाजपाई और आरएसएस को एक्सपोज किया है, वह आगे वर्षों तक गूंजता रहेगा. यहां एक तथ्य स्पष्ट करना बेहद जरुरी है कि जिन्हें देश आज ‘शिव’ के रुप में जानता है, दरअसल वे गौतम बुद्ध हैं, जिनकी ख्याति न केवल सम्पूर्ण भारत में बल्कि समूची दुनिया में रही है.
ब्राह्मणवादियों ने जिस तरह आज हर महत्वपूर्ण जगहों, संस्थाओं का नाम बदल रहा है, उसकी तरह सैकड़ों वर्ष पूर्व ब्राह्मणवादियों ने बुद्ध को रूपांतरित कर शिव कर दिया. बहरहाल, मनीष सिंह ने संसद में राहुल गांधी द्वारा शिव की छवि को जिस तरह प्रस्तुत किया है, उसका बेहतरीन विश्लेषण इस प्रकार किया है.
शिव देवाधिदेव हैं…वे देवो के देवता हैं. मनुष्यों के देव हैं, महादेव हैं. लेकिन वे दैत्यों के भी देवता हैं. हर असुर ने उनका पूजन किया, वरदान पाए. शिव ने भक्त भक्त में भेद नहीं किया. उसकी जाति नहीं देखी, रंग और पूजन पद्धति का भेद नहीं देखा. वे तो मानव और पशु का भी भेद नहीं देखते. तो पशुओं के भी देवता वही है, पशुपति हैं.
शिव चतुर और कुटिल चाणक्य नहीं हैं, वे तो भोलेनाथ हैं, औघड़दानी हैं. शिव की महानता उनकी इसी साधारणता में है. हीरे-मोती-सिक्के और नोट नहीं जनाब, वे बेल के पत्तों में खुश हैं. कतरा भर भांग की बूटी में खुश हैं, धतूरे के एक फूल, बेल के तीन पत्तों से खुश हैं. श्मशान की राख से खुश हैं.
क्या कीर्तन, भजन, संगीतय आराधना- शिव तो अनगढ़ डमरू की आवाज में खुश हैं. कोई विधि नहीं, नियम नहीं, शिव की आराधना कीजिए, तो बस, उनका नाम लीजिए या न भी लीजिए. क्योंकि शिव ही सत्य हैं, सुंदर हैं. तो जिसमे सत्य है, सुंदरता है, वह शिव ही है. लेकिन यहां तो सुंदरता भी बाधा नहीं. उनके गण, उनके भक्त, असुंदर भी है…चलेगा.
गंजेड़ी, भंगेड़ी, शराबी भी बिना अपराध बोध के, भरपूर नशे में प्रभु को याद करता है, तो जै भोलेनाथ ही कहता है. तो क्या आश्चर्य की शिव सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले देव हैं. विश्वास नहीं ??? तो जरा आंख बंद कीजिए, अपने घर से पांच किलोमीटर के दायरे में सारे छोटे देवस्थलों को याद कीजिए. मेरा दावा है आपको, सत्तर प्रतिशत सिर्फ शिव के स्थान मिलेंगे, 20 प्रतिशत हनुमान हैं, और बाकी तमाम देवता मिलकर शायद 10% भी आराध्य नहीं.
कारण उनकी सरलता है. शिव को मंदिर नहीं चाहिए. तालाब के किनारे, वृक्ष के नीचे, घने वन में, सड़क के किनारे, खुले में शिव बैठे हैं, और मस्त हैं. उसी लोटे से तालाब में खुद नहाइये, और फिर उसी तालाब का पानी, उसी लोटे में भरकर, तालाब के किनारे शिवलिंग पर चढ़ा आइये. शिवा इज मोर देन हैप्पी !!!
तो ईश्वर अगर सर्वव्यापी है, तो शिव को इस कसौटी में 100 में से 100 नम्बर हैं. वे कण कण में हैं, गण गण में, घट घट में हैं. स्फटिक नहीं, सोना नहीं, हीरा नहीं, संगमरमर नहीं. हर मामूली पत्थर, बर्फ का टुकड़ा, मिट्टी की लोई, शिव बन सकती है, महादेव हो सकती है. मगर जब भाजपा जब शिव को खोजती है, राम को खोजती है- तो जाने क्यूं, मस्जिदों में, फवारो ही खोजती है. पुलिस और न्यायालय से सर्वे करवाती है.
शिव बेशक उस फवारे में भी है। वे किसी मस्जिद में भी धूनी रमाये हुए हैं. यह मानने के लिए कोर्ट से सर्वे करवाने की जरूरत सिर्फ उन्हें है, जिन्होंने शिव को लिंग में, शिवालयों में, महालयों में कैद करने का षड्यंत्र किया है. वही लोग, जिन्होंने हर-हर और घर-घर के नारे से महादेव को हटाकर, किसी मलिन को स्थापित कर दिया है.
आज शिव संसद में दिखे. उनकी निडरता, उनकी सरलता, उनकी अभय मुद्रा पर बात हुई, तो सबने देखा, सत्ता पक्ष कैसा भयभीत हो गया…राम के नाम पर राजनीति करने वालो को, सदन में शिव की तस्वीर असंसदीय लगी. वे जानते हैं, कि शिव तो सत्ता नहीं देखते, पक्ष और विपक्ष नहीं देखते. उन्हें अपने गण प्रिय है. अपने जन प्रिय है. जन गण मन की वे जाति नहीं देखते, धर्म नहीं देखते. बस पीड़ा देखते हैं और उनकी आर्तनाद पर त्रिशूल उठाये दौड़े चले आते हैं.
और जिस सदन की दरो दीवार पर जन गण मन पर अत्याचार के जोशीले नारे गूंज चुके हैं, वहां शिव के पदार्पण से मैं भी डरता हूं. जाने किसकी अनकही आर्तनाद शिव सुन लें. दौड़े आयें. त्रिशूल से वज्रपात हो, मृत्यु का तांडव हो, और तीसरा नेत्र, तिनकों से बने साम्राज्य को भस्म कर दे.
डरता हूं मैं…तुम भी डरो. हम सब डरें क्योंकि तिनकों से बने अत्याचार के साम्राज्य के बीच ही कहीं तुम्हारा और मेरा घरौंदा भी है और शिव का ज्वाल रोकना कठिन है. शिव का क्रोध असीमित है. शिव से बड़ा काल अभी तक कल्पित नहीं हुआ. दौर पलट रहा है. शिव करीब हैं तो अपने कर्म से डरो, उसके फल से डरो. काल के क्रम से डरो. महाकाल के न्याय से डरो.
निश्चित तौर पर भारत के संसद पर कब्जा जमाये ब्राह्मणवादियों के झुंडों पर संसद में शिव के रुप में राहुल गांधी के हाथों जिस तरह बुद्ध का दर्शन – समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता – का नारा बुलंद हुआ है, वह एक लम्बे डग के तौर पर याद किया जायेगा.
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