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आंखें खोलिये, अपने आसपास होने वाले आंदोलनों से जुड़ जाईये

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हिमांशु कुमार

अगर मोदी सरकार कहीं सबसे ज्यादा अत्याचार कर रही है और सबसे ज्यादा लूट कर रही है तो वह आदिवासी इलाके हैं. सबसे ज्यादा अर्धसैनिक बल अगर कहीं है तो वह आदिवासी इलाकों में है. यह सैनिक आदिवासी इलाकों में क्या करने गए हैं ? क्या यह सैनिक आदिवासियों को सुरक्षा देने गए हैं ? नहीं, यह वहां की खदानों, खनिजों, जंगलों, नदियों, पहाड़ों पर कब्जा करने गए हैं.

क्या सैनिकों की मदद से जिन खदानों, खनिज और जंगलों, नदियों और पहाड़ों पर कब्जा किया जाएगा उसका इस्तेमाल भारत की गरीब जनता की गरीबी मिटाने के लिए किया जाएगा ? नहीं, इन खनिज, खदानों, जंगलों, नदियों और पहाड़ों का इस्तेमाल पूंजीपतियों की तिजोरी भरने के लिए किया जाएगा.

सैनिक गरीब का, किसान का बच्चा है. जिसे मार कर वह खनिज, खदान, जंगल और नदी पर कब्जा करेगा वह भी गरीब है. गरीब, गरीब को मार रहा है और मुनाफा पूंजीपति कमा रहा है. खेल पूरा साफ है. इसमें ना कोई छिपी हुई बात है, ना कोई रहस्य है और सरकारें भी इसे छुपाती नहीं है.

आदिवासी इलाकों में सारी अशांति पूंजीपतियों के लिए सरकार की मदद से की जाने वाली लूट का नतीजा है. आप अपनी जनता को लूटेंगे, जुल्म करेंगे, उसे मारेंगे, औरतों से बलात्कार करेंगे और फिर आप उम्मीद करेंगे कि शांति हो जाएगी ? कोई मूर्ख ही होगा जो इस बात पर यकीन करेगा कि आपने इन सिपाहियों को शांति स्थापना के लिए जंगलों में भेजा है.

यह लूट अंग्रेजों के वक्त से चल रही है. सिद्धू कानू, बिरसा मुंडा और सैकड़ों ऐसे आदिवासी लड़ाके रहे हैं जिन्होंने इस लूट के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी जान दे दी. लड़ाई आज भी जारी है. हमारे ही टैक्स के पैसे से बंदूकें खरीद कर, गोलियां खरीद कर, हमारे ही टैक्स के पैसे से सिपाही की तनखा देकर हमारे ही देशवासियों की हत्या की जा रही है, और हमसे कहा जाता है यह सुरक्षा बल है !

किस की सुरक्षा और किसके खिलाफ लड़ाई ? पूंजीपतियों की सुरक्षा और जनता के खिलाफ लड़ाई. यही वह पूंजीवाद का खूनी खेल है जिसका हम विरोध करते हैं. ना हम विकास के खिलाफ हैं, ना हम सिपाहियों के खिलाफ है. हम लूट के खिलाफ हैं, झूठ के खिलाफ हैं, हिंसा और बलात्कार के खिलाफ हैं. हम इस मुल्क की मिट्टी, जंगल, पानी और लोगों को बचाना चाहते हैं. हम ऑक्सीजन, साफ हवा, पानी इस सब को बचाने वाली कोशिशों की तरफ है.

सरकारी बंदूकें इस देश के पर्यावरण को नष्ट करने वाले लाखो एकड़ जमीनों पर कब्जा करके मुनाफा कमाने वाले पूंजीपतियों की तरफ से आदिवासियों, दलितों, किसानों की जिंदगी तबाही रोकने वाले लोगों पर चल रही है. एनआईए, पुलिस, सरकारें इस लूट में मदद करने में लगी हुई है. सरकार की इस लूट और जुल्म के खिलाफ लिखने और बोलने वाले लोग बड़ी तादाद में जेलों में पड़े हैं. आदिवासी आज भी लड़ रहे हैं.

हम कल्पना करते हैं कि कभी कोई जन आंदोलन खड़ा होगा तो हम उसमें शामिल होंगे और भगतसिंह, गांधी और अंबेडकर की तरह हमारा भी नाम हो जाएगा. लेकिन जब आंदोलन चलते हैं तब हम उन्हें पहचान नहीं पाते. अतीत अब वापस नहीं आएगा. आज किसान आंदोलन कर रहे हैं. आदिवासी आंदोलन कर रहे हैं. देश में सीएए, एनआरसी के खिलाफ महिलाओं का बराबरी के लिए आंदोलन है, छात्रों का आंदोलन है.

यह सभी आंदोलन न सिर्फ लोकतंत्र को बचाने के लिए है, संविधान को बचाने के लिए है बल्कि यह इंसानी सभ्यता को आगे बढ़ाने की कोशिश है. आंखें खोलिये, अपने आसपास होने वाले आंदोलन को देखिए और इंसानियत को बचाने की कोशिश में जुड़ जाइए. हुल क्रान्ति दिवस की आप सबको बधाई ! आदिवासियों का महान संघर्ष जिंदाबाद !!

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