Home गेस्ट ब्लॉग ‘पिछले दस साल तो ट्रेलर थे’ – फिर देख तमाशा मोदी का…

‘पिछले दस साल तो ट्रेलर थे’ – फिर देख तमाशा मोदी का…

4 second read
0
0
184
'पिछले दस साल तो ट्रेलर थे' - फिर देख तमाशा मोदी का...
‘पिछले दस साल तो ट्रेलर थे’ – फिर देख तमाशा मोदी का…
हेमन्त कुमार झा, एसोसिएट प्रोफेसर, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना

संसद में एनडीए का नेता चुने जाने के बाद उन्होंने कहा, ‘पिछले दस साल तो ट्रेलर थे.’ बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले दस साल को देखें तो उनका यह कहना नई चिंताओं को जन्म देता है. हालांकि, उनका फिर से प्रधानमंत्री बनना ही चिंतित करने वाली बात है. लेकिन क्या करें, लोकतंत्र का तकाजा है. यह अलग बात है कि खुद मोदी जी लोकतंत्र को कितना सम्मान देते हैं !

बीते दस सालों में मोदी सरकार ने क्या किया जिन्हें ‘ट्रेलर’ कहा जा रहा है ? रोजगार पैदा करने के मुद्दे पर बुरी तरह असफल सरकार ने जन असंतोष को उभरने से रोकने के लिए 80-85 करोड़ लोगों के बीच मुफ्त अनाज वितरण की योजना लांच की. ये लोग देश की कुल आबादी का लगभग 60-65 प्रतिशत हिस्सा हैं.

यानी, देश की विशाल निर्धन आबादी के विकास के संदर्भ में मोदी जी के सलाहकारों की कल्पनाशून्यता सामने आ चुकी है. वे इस मुफ्त वितरण की अवधि बढ़ाते जा रहे हैं क्योंकि ऐसी किसी नई योजना की कल्पना नहीं की जा सकी जिसे धरातल पर उतार कर निर्धनों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

2014 में अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत में मोदी सरकार ने ‘कौशल विकास कार्यक्रम’ की घोषणा की थी. अपने भाषणों में मोदी जी अक्सर शान से अंग्रेजी में इसे दुहराते थे – ‘स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम.’ गुणवत्ताहीन शिक्षा प्राप्त करने वाले निर्धन नौजवानों के जीवन के लिए कौशल विकास का यह कार्यक्रम क्रांतिकारी साबित हो सकता था, लेकिन मोदी जी के भाषणों की जादूगरी और उनके मंत्रियों की अकर्मण्यता से इस कार्यक्रम की क्या दुर्गति हुई, सारे देश ने देखा. अब तो इसकी अधिक चर्चा भी नहीं होती.

बीते दस वर्षों में मोदी सरकार के जिन कदमों की चर्चा सबसे कम हुई, हालांकि जिनकी चर्चा सबसे अधिक होनी चाहिए थी, वह है श्रम कानूनों में कई तरह के बदलाव, जो श्रमिकों के हितों की कीमत पर कॉर्पोरेट हितों का पोषण करते हैं. अगर वह सब किसी ट्रेलर का हिस्सा था तो आगे आने वाले समय की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. मोदी जी के श्रमिक विरोधी सलाहकार कितने कॉर्पोरेटपरस्त हैं यह श्रम कानूनों में बदलाव का अध्ययन करके जाना जा सकता है.

बड़े ही धूमधाम से नई शिक्षा नीति का आगाज हुआ. विशेषज्ञों ने खुल कर इसे गरीब विरोधी नीति बताया और नई शिक्षा नीति को शिक्षा के कारपोरेटीकरण की नीति की संज्ञा दी. बीते एकाध वर्षों में इसका प्रतिकूल असर भी नजर आने लगा है. मोदी जी के शब्दों में वह सब ट्रेलर है तो आने वाला समय शिक्षा के प्रांगण में देश में अमीर और निर्धनों के बीच बड़ी विभाजक रेखा खींचने वाला है. देश को इसकी प्रतिकूलताएं झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए.

दस साल के मोदी राज में भारत में आर्थिक विषमता इतिहास में सबसे तेज गति से बढ़ी है. कोई कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी चाहे तो आराम से अपने दालान में बैठ कर गूगल कर सकता है और इस बारे में ऑक्सफेम सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्ट पढ़ सकता है. हाथ कंगन को आरसी क्या ? अभी मोबाइल में गूगल सर्च कर लीजिए और आंकड़ों का अध्ययन कर लीजिए.

विकास दर के लाभों का बड़ा हिस्सा जिन चंद लोगों के हाथों में सिमटता जा रहा है, जो रोजगार पैदा करने के बदले खुद की पूंजी का साम्राज्य बढ़ाते जा रहे हैं, यह प्रवृत्ति मोदी राज के अगले संस्करण में भी खूब पनपेगी. आप चार ट्रिलियन, पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का झुनझुना बजाते रहिए, ‘जॉबलेस ग्रोथ’ का यह भारतीय नवउदारवादी संस्करण आपके या आपके बाल बच्चों के रोजगार क्षेत्र के लिए बांझ ही साबित होने वाला है.

यहां आकर नरेंद्र मोदी इतने असफल साबित हुए हैं कि इस ट्रेलर को देखने के बाद आने वाला समय भी कतई उत्साहित नहीं करता, बल्कि डरावनी संभावनाएं पैदा करता है. अल्पसंख्यकों के प्रति सत्ता प्रतिष्ठान और उसके द्वारा पोषित मीडिया, जिसे आजकल ‘गोदी मीडिया’ कहा जाता है, के दुष्प्रचार ट्रेलर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. बावजूद इसके कि नीतीश और नायडू का अंकुश रहेगा, जब ट्रेलर वैसा रहा है तो फिल्म का अंदाजा लगा सकते हैं

हालांकि, इस आम चुनाव में भाजपा की विभाजनकारी राजनीति को अपेक्षानुरूप प्रोत्साहन नहीं मिला, लेकिन राजनीति का यही रूप तो भाजपा की पूंजी है. वह इस संदर्भ में तरह तरह के करतब करती ही कहेगी और माहौल में कोई न कोई जहर घोलती ही रहेगी.

सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले हमारे भाई बंधु, जिनमें ‘हर हर मोदी घर घर मोदी’ का गीत गाने वालों की बहुतायत है, अपने संस्थानों के भविष्य को लेकर चिंतित नहीं हैं तो या तो यह उनकी मूढ़ता है या उनका भोलापन है. यही बात सरकारी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के उन विद्वान प्रोफेसरों और कर्मचारियों पर भी लागू होती है जो ‘भज गोविंदम’ की जगह ‘भज मोदीयम’ की मुद्रा में रहे हैं, और हैं भी. वे जरा अपने बगल में स्वायत्त घोषित हो चुके सरकारी संस्थान की ओर झांक लें, अपने भविष्य का कुछ अंदाजा शायद उन्हें हो सके.

मिडिल क्लास, जिसका बड़ा हिस्सा लुट पिट कर भी मोदी भक्ति संगीत में डूबा आंखें मूंदे मुग्ध भाव से मुंडी हिला रहा है, अपने भविष्य को लेकर सोचे. मोदी राज में निर्धनों की विराट संख्या के लिए कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनने वाली क्योंकि वे इसके लिए सत्ता में हैं ही नहीं. रोजगार विहीन विकास के अग्रदूत नरेंद्र मोदी किसान सम्मान निधि, मुफ्त अनाज, मुफ्त ये, मुफ्त वो वाली अनुर्वर नीति पर ही चलने वाले हैं और इसके लिए वे कामकाजी मिडिल क्लास से ही टैक्स की रिकर्डतोड वसूली करेंगे.

कोई भी गूगल कर ले या टैक्स विशेषज्ञों से जानकारी हासिल कर ले, मोदी राज में जिस अनुपात में इनकम टैक्स की वसूली की गई है, अन्य कई तरह के टैक्स की जिस दर से वसूली की गई है, वह इतिहास में सर्वाधिक है. आने वाले समय में करदाताओं के इस वर्ग को इसी तरह चूसे जाने के लिए तैयार रहना चाहिए और अगर थोड़ा समय निकाल सकें तो इस अवधि में अरबपति कॉर्पोरेट घरानों को मिलने वाली टैक्स सुविधाओं पर भी एक नजर डाल लेनी चाहिए.

‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ की तर्ज पर ‘मोदी महात्म्य’ भी किसी एक आलेख या पोस्ट में समा पाए, यह कैसे संभव है. इसलिए आने वाले समय में ‘देख तमाशा मोदी का…’ और अपनी राय निर्धारित करें. हमारे जैसे लोग तो दिलजले हैं, दिल जलाने वाली बातें ही करते हैं. अपना दिल और दिमाग लगाएं और मोदी महात्म्य के अगले अध्यायों का पारायण करें.

Read Also –

नरेंद्र मोदी भारत का प्रधानमंत्री बने रहने का नैतिक हक खो चुके हैं
मोदी ‘परमात्मा’ के एजेंट है, तो उसी का रहे, हमारा पीछा छोड़ें, हमें अपना प्रधानमंत्री चुनने दें
मोदी सिर्फ अडानी अम्बानी ही नहीं, राजे-रजवाड़ों और उनकी पतित संस्कृति और जीवनशैली तक को पुनर्प्रतिष्ठित कर रहा है
एक वोट लेने की भी हक़दार नहीं है, मज़दूर-विरोधी मोदी सरकार
यदुरप्पा की डायरी से बदनाम मोदी से एलन मस्क का मिलने से इंकार
18वीं लोकसभा चुनाव : मोदी सरकार के 10 साल, वादे और हक़ीक़त
मिलार्ड, अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन जेल में और नरेन्द्र मोदी बाहर क्यों है ?
नरेन्द्र मोदी के सामने नीतीश की घिघियाहट

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…