मर्द अपनी गर्मी औरत के शरीर से निकालना चाहता है, औरत अपनी चाहत मर्द के आलिंगन से. यहीं से जन्म होता है कॉरपोरेट शादी का. जी हां, आप लोगों को लग रहा होगा कि कॉरपोरेट जॉब होती थी, लेकिन समय तेज़ी से आगे बढ़ गया है, अब समय है कॉरपोरेट शादी का.
मैं बंगलोर में बतौर मैरेज काउंसलर काम करता हूं, मेरा काम लोगों की शादी करवाना है, जिसके लिए बड़ी कंपनी जैसे शादी, जीवनसाथी मुझे हाइयर करती हैं. लेकिन आज समय इतना तेज़ी से बदल रहा है कि इसके सामने मनुष्य जाति का सबसे पवित्र बंधन शादी का बंधन भी छोटा लगने लगा है, और इसकी वजह से जन्म होता है कॉर्पोरेट शादी की.
इस शादी में लड़के और लड़की की प्रोफाइल बनाई जाती है शादी वाले apps पर. पहले जहां शादी करते वक्त परिवार और लड़के का चरित्र, वो जिम्मेदार है या नहीं ये देखा जाता था. आज लड़के के बारे में देखा जाता है कि वो कमाता कितना है, किस कंपनी में कितना शेयर है, पत्नी को क्लब जाने देगा या नहीं, पत्नी के अगर लड़के दोस्त हुए तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. लड़के की पढ़ाई किसी बड़े आईआईटी या आईआईएम जैसे कॉलेज से होनी चाहिए, लड़का स्टैंडअलोन होना चाहिये, उसके मां बाप साथ में ना हो…
और लड़की ऐसी देखी जाती है जो दिखने में सुंदर हो या ना हो उसका फिगर एकदम अच्छा होना चाहिए. ना पतली हो ना मोटी हो, स्तन शरीर के हिसाब से थोड़े बड़े हो, नितंब चौड़े हो. इसके बाद बारी आती है पढ़ाई की. इंडिया के किसी अच्छे कॉलेज से पढ़ी हो, प्राइवेट जॉब हो लेकिन कंपनी अच्छी हो. पति की महिला कलीग से कोई आपत्ति ना हो, दहेज दे या ना दे पर मिलन करने से किसी तरह का परहेज नहीं होना चाहिए.
ये बातें मनगढ़ंत नहीं है बल्कि मेरे पास शादी के लिए आए 500 से अधिक लोगों के कॉमन प्रश्न हैं ये. जब लड़के और लड़की की मीटिंग होती है, उसके बाद वो फोन पर बात करते हैं तो पहला सवाल दोनों तरफ से होता है कि उन्हें मिलन करना कितना पसंद है, मानो जैसे शादी की बात नहीं बल्कि किसी वैश्य से डील चल रही हो.
आज मेरे क्लाइंट दिल्ली, बैंगलोर, गुड़गांव में हैं और अंदर ही अंदर ये खेल चल रहा है. लोगों की शादी भी होती है, लेकिन ये शादी हर तरह के मर्यादा के परे होती है. कुछ साल में जब ऐसे लोगों का संभोग से मन भर जाता है तो इनकी शादी सिर्फ नाम मात्र की रहती है.
हम ऐसे समाज में हैं जहां किसी भी ऑप्शन की कोई कमी नहीं है लेकिन आज भी मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं सबसे ज्यादा सफल शादी वही होती है जो मां बाप द्वारा लड़के और लड़की को ढूंढ के की जाती है या फिर वो प्रेम विवाह जो कम से कम 5 साल पुराना हो. माता पिता द्वारा कराई शादी में परिवार और सभ्यता सब देखी जाती है लेकिन कॉरपोरेट शादी में लड़के की सिर्फ कमाई और लड़की का फिगर देखा जाता है.
मां बाप द्वारा कराई शादी में परिवार का एक अदृश्य दबाव होता है, जिसमें किसी की गलती होने पर परिवार के सदस्य शादी को बचाने का प्रयास करते हैं. और पति पत्नी भी संकोच में अपने रिश्तों को सुधारने का प्रयास करते हैं और समय ठीक होने पर रिश्ता भी ठीक हो जाता है. लेकिन कॉरपोरेट शादी में आप आजाद हैं. थोड़ी सी भी कमी होने पर आप अपनी पत्नी या पति को छोड़ते नहीं हैं बल्कि बाहर मुंह मारने निकल पड़ते हैं. और यही कारण है की दिल्ली मुंबई बैंगलोर में काम करने वाले ज्यादातर शादी शुदा लोगो के गैर मर्द और महिला के साथ संबद्ध बढ़ रहे हैं
आज की युवा पीढ़ी वो लड़की हो या लड़का, सिर्फ इस बात पर ध्यान दें कि शादी करते समय लड़के-लड़की का चरित्र कैसा है, जिमेदारी उठा सकता है, और उसके अंदर वफादारी कितनी है, एक अच्छे शादी वाले जीवन के लिए ये 3 बिंदु पर्याप्त है. लेकिन अगर आप कॉरपोरेट शादी के चक्कर में पड़ रहे तो याद रखिए कुछ साल तो मिलन का खूब आनंद आएगा लेकिन उसके बाद मन में अकेलापन महसूस होगा और मन से आप किसी को अपना नहीं बोल पाएंगे.
स्त्री और पुरुष दोनों एक साथ शांति से रह ही नहीं सकते, जब तक कि वे स्वतंत्रता से न रहें. विवाह दोनों पर ही एक भारी बोझ है एक जेल में रहने जैसी यातना है. पुरुष और स्त्री शांतिपूर्वक केवल मित्र की ही भांति रह सकते हैं, पति-पत्नी के रूप में नहीं. प्रत्येक संबंध एक बंध है, लेकिन इसे संभव बनाने के लिए स्त्री को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना होगा, पुरुष के बराबर शिक्षित होना होगा. राजनीतिक, सामाजिक और हर तरह से उसे विकसित होने के लिए समान अवसर मिलने की आवश्यकता है.
मेरे लिए यही स्त्री की मुक्ति और स्वतंत्रता है और साथ ही पुरुष की भी. दोनों ने ही एक दूसरे को गुलाम बनाकर रखा हुआ है इसीलिए वे निरंतर लड़ रहे हैं. जिसने तुम्हें गुलाम बनाकर रखा है, तुम उससे प्रेम नहीं कर सकते. तुम उसे सजा देने के लिए उससे बदला जरूर लोगे. स्त्री के पास बदला लेने के लिए अपने अलग तरीके हैं. सिरदर्द उनमें से कारगर विधि है. जब भी पुरुष उससे प्रेम करना चाहता है तो या तो बहुत थकी हुई होती है वह अथवा उसका मूड नहीं होता-लेकिन सामान्य रूप् से अधिकतर उसके सिर में दर्द होता है.
सिरदर्द एक ऐसी चीज है, जिसे सिद्ध करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं. यहां तक कि एक चिकित्सक को भी तुम्हारी बात पर विश्वास करना पड़ता है, वह कोई भी निर्णय नहीं दे सकता कि वास्तव में तुम्हें सिरदर्द हो रहा है अथवा नहीं. लेकिन यह एक स्वाभाविक परिणाम है. स्त्री यह अनुभव करती है कि उसका एक वस्तु की भांति, एक सेक्स पूर्ति के खिलौने के रूप में प्रयोग किया जा रहा है और उसे एक मनुष्य जैसा सम्मान नहीं दिया जा रहा है.
चीन में तो सदियों से यह विश्वास किया जाता है कि स्त्री के पास कोई आत्मा होती ही नहीं. इसलिए चीन के कानून के अनुसार यदि पति अपनी पत्नी को जान से मार दे तो यह कोई अपराध नहीं है, क्योंकि उसके पास कोई आत्मा ही नहीं. वह मात्र एक फर्नीचर या एक वस्तु मात्र है और यदि कुर्सी का मालिक अपनी कुर्सी को तोड़ सकता है तो अपनी पत्नी को भी नष्ट कर सकता हैं. वहां सदियों से स्त्री को बाजार में ठीक दूसरी वस्तुओं की भांति बेचा जाता था.
पुरुषों और स्त्रियों को जब तक वे साथ रहना चाहें, एक दूसरे के मित्र बनकर रहना चाहिए. जिस दिन वे महसूस करें कि चीजें तल्ख बनती जा रही हैं तो बिना किसी शिकायत-शिकवे के उन लोगों को अलग हो जाना चाहिए, लेकिन उनमें एक दूसरे के प्रति महान कृतज्ञता और अहोभाव होना चाहिए, उन सुंदर क्षणों और उस समय के लिए, जो उन्होंने साथ-साथ व्यतीत किया. यह न केवल सम्भव है, बल्कि यही होने जा रहा है, क्योंकि पुरुष और स्त्री अब और अधिक बरदाश्त नहीं कर सकते. यही सदी पुराने सड़े हुए ढांचे का अंत देखेगी और एक नये मनुष्य तथा नई मनुष्यता का शुभारम्भ होगा.
- रमेश प्रजापति
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