18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. भाजपा बहुमत हासिल करने में विफल रही है. एक समय के धूर विरोधी रहे नेताओं सहित पल्टूराम के रूप में कुख्यात नेता को लेकर किसी तरह जोड़-तोड़ से राजग सरकार बनाने जा रही है. उधर कांग्रेस 52 से 99 तक गई है और इंडिया गठबंधन एक मजबूत विपक्ष के रूप में सामने आया है.
2019 के चुनाव में 303 सीटें पा चुकी भाजपा के लिए यह परिणाम अप्रत्याशित था. दावे तो 370 से 400 तक के किये गए थे. जैसे भी हो, वे हर हाल में कम-से-कम दो तिहाई बहुमत हासिल करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने कौन-कौन सी जुगत नहीं भिड़ाई. देश के विभिन्न हिस्सों, जनता के विभिन्न वर्गों और तबको तथा तरह-तरह के जनसंगठनों की ओर से उठने वाले हर तरह के विरोध सहित संसदीय विपक्ष को कुचलने के लिए उन्होंने सारी ताकत लगा दी थी. ईडी, सीबीआई, एनआईए, इनकम टैक्स से लेकर अन्यान्य केन्द्रीय एजेंसियों और मनी लॉन्डरिंग एक्ट जैसे कानूनों के जरिये इन्होंने संसदीय विपक्ष को नकेल डालने की हर संभव कोशिश की. किसी के फंड जाम कर दिए, तो किसी के नेताओं को जेल में ठूस दिया.
इससे भी क्रूर तरीके से उन्होंने जनता के विभिन्न वर्गों और तबकों के बीच से उठ रहे विरोध को कुचला. किसानों और मजदूरों के संगठनों सहित सभी तरह के जनपक्षीय संगठनों का भी उन्होंने बुरी तरह दमन किया. जन सुरक्षा कानून से लेकर युएपीए जैसे कुख्यात जनविरोधी कानूनों के इस्तेमाल में कहीं कोई कोताही नहीं बरती गयी. किसानों के जुलूसों पर लाठियां बरसाई गयीं, सैकड़ों कार्यकर्ताओं को जेलों में डाला गया और पंजाब में दो किसान साथी शहीद भी हुए.
सिर्फ इतना ही नहीं, सात चरणों में आयोजित इस चुनाव में लाखों-लाख अर्धसैनिक बलों की तैनाती इस तरह की गयी कि एक-एक लोकसभा क्षेत्र में दस से लेकर पंद्रह हजार बल कवायद करते दिखे. चुनाव आयोग से लेकर, विभिन्न केन्द्रीय संस्थाओं तक को अपने हिसाब से ढाला और इस्तेमाल किया गया. समूची नौकरशाही और विभिन्न पदों पर बैठे प्रशासनिक अधिकारियों और जजों तक को बिना किसी शर्म के अपने तरीके से इस्तेमाल किया गया.
सरकारी मशीनरी से लेकर संघ गिरोह की पूरी ताकत झोंक दी गयी. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस दौरान प्रिंट मीडिया से लेकर विजुअल मीडिया तक सबों को चारण की भूमिका में उतार दिया गया था. इन सबके अलावा इस चुनाव में भाजपा-संघ गिरोह ने जितने पैसे झोंके, यह पिछले सभी रिकॉर्डों को तोड़ने वाला था. और इतनी जद्दोजहद, इतनी तिकड़म के बाद, सही में कहें तो उन्हें ऐसे नतीजों की उम्मीद कहीं से भी नहीं थी.
यही कारण है कि भाजपा किसी तरह सरकार बनाने की स्थिति में आने के बावजूद इस परिणाम को जीत के रूप में नहीं बल्कि एक हार के रूप में ही देख रही है.
इस लोकसभा चुनाव को गहराई से देखें तो यह कहीं से भी कोई आम और मामूली लोकसभा चुनाव नहीं था. इस चुनाव का आकलन सिर्फ चुनावी पार्टियों की भूमिका से नहीं की जा सकती. ठीक ठीक कहें तो यह चुनाव देशी-विदेशी कारपोरेट और साम्राज्यवादी ताकतों की लूट-खसोट के खिलाफ खड़ी जनता की विभिन्न शक्तियों के बीच का टकराव था.
इतना ही नहीं, हमने इस दौरान फासीवाद की ताकतों के खिलाफ जनवाद की ताकतों को, धर्मान्धता और सांप्रदायिक धुवीकरण के खिलाफ तर्कशील और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को, इस देश को यूनिटेरी राज्य की दिशा में ले जाने वाली ताकतों के खिलाफ संघवाद की ताकतों को और सत्ता के चरम केन्द्रीकरण के खिलाफ खड़ी विकेंद्रीकरण की ताकतों को साफ़-साफ़ और सीधे टकराते हुए देखा.
हमने देखा कि किस तरह संयुक्त किसान मोर्चा से लेकर तरह-तरह के किसान संगठन और केन्द्रीय और स्थानीय मजदूर संगठनों के विभिन्न मोर्चे ‘कारपोरेटपक्षीय और फासिस्ट भाजपा को दंडित करो’, ‘भाजपा को परास्त करो’ जैसे नारों के साथ पूरी ताकत से जंग-ए-मैदान में डंटे खड़े थे और जिनके पीछे थी जागरूक और जुझारू जनता की एक बड़ी जमात.
पंजाब-हरियाणा से लेकर उत्तरप्रदेश तक, बिहार-बंगाल से लेकर पूर्वोत्तर तक तथा दक्षिण में केरल, कर्णाटक से लेकर तमिलनाडू तक, भाजपा-संघ गिरोह के खिलाफ दर्जनों जन-अभियान चलाये जा रहे थे. इस चुनाव में जंगल, जमीन, जीविका और जनवाद के सवाल इस ताकत के साथ उभरे कि उनके सामने हिंदुत्व के कार्ड से लेकर राममंदिर का कार्ड तक, सब के सब धराशायी हो गए.
कुल मिलाकर इस 18वीं लोकसभा चुनाव ने तत्काल के लिए ही सही हिंदुत्व फासीवाद की ताकतों पर एक लगाम लगाई है और जनता की ताकतों के सामने इस कारपोरेटपक्षीय हिंदुत्व फासीवाद के खिलाफ एक देशव्यापी जनज्वार लाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है. हमें किसी भी हालत में इस सच्चाई को और अबतक के फासीवाद विरोधी संघर्षों के इस सबक को नहीं भूलना चाहिए कि एक मात्र वर्ग-संघर्ष और जनसंघर्ष की राह पर खटने-कमाने वाली व्यापक जनता को लामबंद कर ही हम इन प्रतिक्रिया की ताकतों को निर्णायक शिकस्त दे सकते हैं.
- बच्चा प्रसाद सिंह
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