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कॉमरेड किसलय दा के जीवन-आदर्श हमारी राह रौशन करते रहें !

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अत्यंत खेद के साथ मैं इस श्रद्धांजलि सभा को बताना चाहता हूं कि कुछ अनिवार्य कारणों से व्यक्तिगत रूप से मैं इसमें शामिल नहीं हो पा रहा हूं. मैं कॉमरेड किसलय दा के प्रति अपनी संवेदनाएं लिखित रूप में आप सबों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं.

मैं बिहार के अपने पुराने साथियों और सहयोद्धाओं की ओर से पिछले महीने शहीद हुए हमारे नेता और अत्यंत घनिष्ठ कॉमरेड किसलय ब्रह्म (कॉमरेड काजल दा, अशोक दा) को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें लाल सलाम पेश करता हूं. साथ ही उनके शोकसंतप्त परिवारजनों, कॉमरेडों और दोस्तों के प्रति भी अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं. मैं उनको जानने वाले और अन्यान्य साथियों, खासकर नयी युवा पीढ़ी से अपील करता हूं कि वे उनके जीवन-आदर्शों, मूल्यों और व्यवाहरिक जीवन को आत्मसात करने और उन्हें अपने जीवन में उतारने की दिशा में आगे बढ़ें.

उनकी इस श्रद्धांजलि सभा के समक्ष मैं यह प्रस्ताव रखता हूं कि उनसे नजदीकी सम्बन्ध रखने वाले और उन्हें आत्मीय रूप से जानने वाले साथियों द्वारा उनकी जीवनी और उनसे जुड़े संस्मरण लिखे जाएं तथा उन्हें एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया जाए ताकि उनके जीवन और उनके विचारों को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत और प्रचारित किया जा सके और नई पीढ़ी उनसे शिक्षा ले सके.

मेरा उनसे पहला परिचय, जहां तक मुझे याद है, 1978 में हुआ था और तब से 92-93 तक हम साथ-साथ काम करते रहे. फिर राजनीतिक मतभेद आये, कुछ दूरियां बढ़ीं. पर तब भी हमारी घनिष्ठता बनी रही. हमने साथ-साथ दशकों तक काम किया. इस दौरान उन्हें मैंने जिस रूप में देखा, इस अवसर पर उसे आपसे साझा करना जरूरी समझता हूं.

चुपचाप कठोर और अथक परिश्रम करने वाले एक कम्युनिस्ट के रूप में

मैंने अपने राजनीतिक जीवन में उनकी तरह 15 घंटे से 17 घंटे तक लगातार काम करने वाले कॉमरेड बहुत कम देखे. इतनी मेहनत के बाद भी मैंने उनके चहरे पर कभी थकान नहीं देखी. परिवेश कितना भी प्रतिकूल रहा हो, वे उन्हें कभी खुद पर हावी नहीं होने देते थे. मैंने उन्हें भीषण गर्मी में भी पसीने से तरबतर मोमबत्ती की मद्धिम रोशनी में काम करते हुए देखा है. कठिनतर परिस्थितियों में भी उनका हमेशा हंसता-मुस्कुराता चेहरा साथियों को प्रेरित करता रहता.

प्रसिद्धि की कोई ख्वाहिश नहीं और न ही खुद को हर जगह जाहिर करने की कोई प्रवृत्ति

उनकी दुबली-पतली काया, सीधे-साधे चेहरे और बात करने के बिलकुल मामूली-से अंदाज से उनके बारे में यह अनुमान लगाना किसी के लिए भी संभव नहीं हो पाता था कि क्रांतिकारी आन्दोलन में इस साधारण-से शख्स का कद क्या है. उनको बेहद नजदीक से जानने वाले साथी भी यह नहीं जानते थे कि वे अपने छात्र जीवन से बेहद मेधावी रहे थे और MBBS की फाइनल परीक्षा में अव्वल आये विद्यार्थियों में से एक थे.

ऐतिहासिक नक्सलबाड़ी के उभार के बाद हुए क्रूर दमन और प्रतिक्रिया के दौर में गिरफ्तार साथियों पर जो बेहद अमानवीय यातनाएं ढाई गयी, उसकी मिसाल बहुत कम मिलती है. कॉ. किसलय दा ने उस दौर में खूनी राज्य मशीनरी द्वारा दी गयी बेहद क्रूर और बर्बर यातनाएं झेलीं. यहां तक कि उस समय के एक कुख्यात ख़ुफ़िया अधिकारी ने ‘साले राजा बनोगे, चलो तुम्हारा राजतिलक अभी कर देते हैं’ कहते हुए उनके ललाट के बीचों-बीच जलती हुई सिगार लगा दी थी.

इससे उनका माथा बुरी तरह जल गया था उसके बीचोबीच एक तिलक-सा गोल जले का निशान बन गया था. उस ‘मामूली-से’ शख्स को देखकर किसी के लिए यह समझना मुश्किल था कि 1975 के बाद आये क्रांतिकारी आन्दोलन के भाटे के दौर में प्रेसिडेंसी जेल में बंद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों ने जो जेल ब्रेक किया था, उसमें इस कॉमरेड ने नेतृत्वकारी और अगुआ भूमिका निभाई थी. इस जेल ब्रेक में 24 कॉमरेड निकलने में कामयाब हुए थे जबकि कॉमरेड कालू और स्वदेश शहीद हुए थे.

एक ओजस्वी वक्ता, एक जमीन से जुड़े बुद्धिजीवी और कुशल संगठक के रूप में

मैंने उन्हें इन तीनों भूमिकाओं में देखा है. छात्र-नौजवानों, मजदूर-किसानों और हर तरह के बुद्धिजीवियों की बैठकों में जटिल से जटिल विषय पर सरलतम भाषा में उन्हें सुनना एक संतोषजनक अनुभव देता था. तथ्य, तर्क, विश्लेषण, संश्लेषण और फिर ठोस निष्कर्षों को वे जिस रूप में रख पाते थे और हर वर्ग व तबके के लोगों को वे जिस ढंग से कन्विंस कर पाते थे, वह खुद में एक मिसाल था. उनके वक्तव्य युवा सथियों में जोश भर देते थे.

हमने ऐसे दर्जनों साथी देखे जो उनसे कभी एक बार मिले थे और जीवन भर के लिए उनके कायल हो चुके थे और अभी भी हैं. छोटी-बड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से लेकर दर्शन, इतिहास और साहित्य-संस्कृति पर वे सामान अधिकार के साथ बोलते थे और वह भी इस तरह कि अल्पशिक्षित मजदूर-किसानों से लेकर विद्वान-बुद्धिजीवी तक उनसे प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाते.

जब हमारे संगठन ने उस समय अपने भीतर के संकीर्णतावादी रुझानों के खिलाफ संघर्ष शुरू किया और जनदिशा की राह पर कदम आगे बढ़ाए तो इस पूरे दौर में हमारे इस प्रिय नेता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इन्हीं की पहल पर उस समय हमारी हिंदी जन-पत्रिका (पहले ‘लाल रोशनी और फिर ‘अग्रगामी’) शुरू हुई और लम्बे दिनों तक चलती रही.

जहां तक कुशल संगठक की भूमिका का सवाल है, वे तकरीबन 1983-84 से बिहार राज्य कमिटी के सचिव और संभवतः 1987 से केन्द्रीय कमेटी सदस्य रहे. 1982 के बाद बिहार में संगठन और संघर्ष को लगे धक्के को संभालकर वहां पुनः संगठन और संघर्ष को रिवाइव करने में उनकी भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण रही. उन्हीं की बदौलत उस समय हमें बिहार में एक मजबूत और लोकप्रिय छात्र-युवा संगठन खड़ा करने में सफलता मिली थी.

हमारा तब का वह छात्र-युवा संगठन पूरे देश के छात्र-युवा संगठनों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता था. जहां तक मुझे याद है, एक समय उसमें काम करने वाले होलटाइमर कार्यकर्ताओं की संख्या 70-80 के करीब हुआ करती थी.

सचमुच ही कम्युनिस्ट मूल्य, गुण और आदर्शों वाले ऐसे नेता हमने बहुत कम ही देखे हैं. उनके रोजमर्रे के जीवन में हम सब यह देख पाते थे. वे हमेशा, हर परिस्थति में अपने किसी भी व्यक्तिगत हित को छोड़ने के लिए तैयार रहते, संगठन का हित उनके लिए हमेशा सर्वोपरि रहता और वे हमेशा खुद से ज्यादा औरों का खयाल रखते. इसके अलावा हम उनमें विनम्रतापूर्वक कार्यकर्ताओं और जनता से सीखने की ललक देखते थे. वे एक तरफ जहां विनम्र छात्र हुआ करते थे, वहां धैर्यशील शिक्षक भी. उन्हें किसी भी मीटिंग या बातचीत में खीजते या फिर किसी भी सवाल पर उत्तेजित होते कम ही देखा जाता था.

एक तरह से कहें तो उनका समूचा जीवन ही एक सच्चे कम्युनिस्ट का जीवन था. आज वे हमारे बीच नहीं रहे पर उनकी याद, उनकी शिक्षाएं और उनके आदर्श आज और आगे भी हम सबकी राह रौशन करते रहेंगे.

निस्संदेह आज हमारा कम्युनिस्ट क्रांतिकारी आन्दोलन एक गहरे संकट के दौर से गुजर रहा है, कठिन चुनौतियों का समाना कर रहा है. हमें पूरी उम्मीद है कि क्रांतिकारी नेताओं की फसल पैदा करने के मामले में हमेशा से बेहद उर्वर रही बंगाल की मिट्टी से कॉमरेड किसलय दा के जीवन-आदर्श से प्रेरित सैकड़ों किसलय भविष्य में उठ खड़े होंगे, जिनके बल पर सामने की चुनौतियों का सामना करते हुए एक नया क्रांतिकारी उभार सृजित किया जा सकेगा. अंत में कम्युनिस्ट क्रांतिकारी आन्दोलन के इस कर्मठ नेता को पुनः हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि व लाल सलाम !

  • बच्चा प्रसाद सिंह (कमल)
    8 जून, 2024

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