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पीयूसीएल की प्रेस कॉन्फ्रेंस : चौसा के सैकड़ों किसानों के ऊपर पुलिसिया हिंसा की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच हो !

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पीयूसीएल की प्रेस कॉन्फ्रेंस : चौसा के सैकड़ों किसानों के ऊपर पुलिसिया हिंसा की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच हो !
पीयूसीएल की प्रेस कॉन्फ्रेंस : चौसा के सैकड़ों किसानों के ऊपर पुलिसिया हिंसा की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच हो !

‘बक्सर ज़िला के चौसा थाना में किसानों के ऊपर 20 मार्च 2024 को हुई पुलिस हिंसा की जांच रिपोर्ट’ को आज पीयूसीएल के महासचिव सरफराज ने पटना के पीयूसीएल दफ्तर में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश की जनता के समक्ष सार्वजनिक किया. प्रेस कॉन्फ्रेंस को महासचिव सरफराज के अलावे किशोरी दास एवं गोपाल कृष्ण ने भी सम्बोधित किया. अपने पाठकों के लिए पीयूसीएल की ओर से जारी ‘जांच रिपोर्ट’ यहां प्रस्तुत की जा रही है.

यह जांच रिपोर्ट बताती है कि 28 अप्रैल 2024 को बिहार राज्य पीयूसीएल का एक तीन सदस्यीय जांच दल बक्सर के चौसा प्रखंड में पुलिस उत्पीड़न की जांच हेतु गया. इस जांच दल में पीयूसीएल के निम्नलिखित सदस्य शामिल थे –

  1. सरफराज – महासचिव, बिहार पीयूसीएल
  2. किशोरी दास – सदस्य, राज्य कार्यकारिणी, बिहार पीयूसीएल,
  3. प्राध्यापक डॉ. विद्यार्थी विकास – अर्थशास्त्री और भूमि अधिग्रहण मामलों के विशेषज्ञ और
  4. डॉ.गोपाल कृष्ण, एडवोकेट, भूमि अधिग्रहण, भूमि अधिकार, प्राकृतिक संशाधन और पर्यावरण मामलों के क़ानूनी विशेषज्ञ.

घटना की पृष्ठभूमि

2011 के आस पास बिहार सरकार ने बक्सर बिजली कंपनी बनाई. यह कंपनी एक संयुक्त उद्यम थी, जो बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और इन्फ्रास्ट्रक्चर लीज एंड फाइनेंस सर्विसेज लिमिटेड के संयुक्त तत्वाधान में शुरू हुई थी. मगर इसकी उद्यमिता को निजी क्षेत्र में रखा गया था.

17 जनवरी 2013 को सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएन) और बिहार सरकार के बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड (बीएसएचपीसीएल) के साथ-साथ बिहार स्टेट इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी लिमिटेड के बीच एमओयू साइन हुआ, जिसके तहत जुलाई 2013 में एसजेवीएन ने बक्सर बिजली कंपनी को अधिग्रहित कर लिया यानी उसके सारे शेयर खरीद लिए.

उस एमओयू के अंतर्गत यह तय पाया कि सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड की सहायक कंपनी एसटीपीएल (सतलुज थर्मल पावर लिमिटेड) बिहार के बक्सर जिला के चौसा में बक्सर थर्मल पाॅवर प्रोजेक्ट के अंतर्गत 660 मेगावाट की दो यूनिट यानी कुल 1320 मेगावाट विद्युत उत्पादन हेतु थर्मल पावर प्लांट लगाएगी.

परियोजना के कार्यान्वयन के लिए 2×660 मेगावाट की बक्सर थर्मल पावर परियोजना को 100% स्वामित्व के आधार पर एसजेवीएनएल को हस्तांतरित कर दिया गया है. बीएसपी एचसीएल, बीपीआईसी और एसजेवीएनएल के बीच 17.01.2013 को दो साल के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे और 20.11.2015 को अगले पांच साल यानी 16.01.2020 तक के विस्तार पर भी हस्ताक्षर किए गए.

एसजेवीएनएल ने पोखरिया पहाड़पुर कोयला ब्लॉक (झारखंड) के आवंटन के लिए दिनांक 03.10.2016 को आवेदन किया. बिहार को 85% बिजली आवंटन की व्यवस्था की बात की गई. पावर परचेज एग्रीमेंट (PPA) के लिए बिहार की डिस्ट्रीब्यूशन कम्पनीज (DISCOMs) के साथ हस्ताक्षर किया गया. परियोजना को 28.02.2017 को पर्यावरण मंजूरी प्राप्त हुई. मुख्य कार्यों के लिए परामर्श सेवाएं मैसर्स डेसीन प्रा. लिमिटेड को प्रदान की गई हैं. कार्य प्रगति पर है.

बक्सर थर्मल पाॅवर प्लांट चौसा के लिए कुल सात मौजा में 1064 एकड़ भूमि अधिग्रहीत करने हेतु 2012-13 में अधिग्रहण की शुरुआत हुई, जिसमें सिकरौला, खोरमपुर, बचनपुरवां, कोच्चाढी, मोहनपुरवां, बनारपुर एवं अखोरीपुर गोला की भूमि अर्जन का अधिसूचना जारी की गई. इस अधिसूचना द्वारा कुल 1300 रैयतों की जमीन ली गई थी. 2012-13 में करीब 300 किसानों ने अपने कुल मुआवजे का 80% राशि का भुगतान पाया. बाकी किसानों को मुआवजा की राशि बाद में दी गई. किसानों को जो राशि दी गई वह भूमि अधिग्रहण कानून के नियमों के अंतर्गत सही सही नहीं प्रतीत होते हैं.

2017 के भारत के नियंत्रक एवं लेखा महा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में 873 करोड़ रुपए किसानों को कम राशि का भुगतान का रिपोर्ट प्रकाशित हुआ. हालांकि कैग (CAG) की इस रिपोर्ट से स्पष्ट नहीं पता चलता है कि बक्सर के थर्मल पावर प्लांट के अंतर्गत जिन भूमि को अधिग्रहित किया गया है, उसमें अनियमितता हुई है कि नहीं हुई मगर कैग की रिपोर्ट यह बात बताती है कि बक्सर और अन्य चार जिलों में भूमि अधिग्रहण के दौरान अनियमितता हुई. रिपोर्ट, विभिन्न तरह की अनियमिताओं को मिलाकर 2290 करोड रुपए की अनियमितता का आकलन पेश करती है.

चौसा थाना के अंतर्गत जिन ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहित की गई उनका कहना है कि 1000 रैयतों को वर्ष 2016 में 2012-13 के बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजे का भुगतान हुआ, पर किसानों का मानना है कि 2014 के बाजार मूल्य पर भुगतान होना चाहिए था. इसके अलावा उनका ये भी कहना है कि यह अधिग्रहण आपातित (Emergency) अधिग्रहण था, जिसके तहत अधिग्रहित जमीन का मुआवजा के साथ मुआवजा का 75% अलग से भुगतान किया जाता है, जो कि किसानों को भुगतान नहीं हुआ.

बर्ष 2016 में जिन 1000 किसानों को मुआवजे का भुगतान मिला, उन्हें भी मात्र 20% राशि का ही 3 साल का ब्याज मिला, शेष 80% राशि का कोई ब्याज किसानों को भुगतान नहीं हुआ जबकि पूरी राशि का ब्याज उन्हें मिलना चाहिए. चौसा के किसान अपनी जमीन का उचित मुआवजा, रोजगार, पुनर्वास और पुनर्स्थापन की मांगों को लेकर लम्बे समय से प्रदर्शनरत हैं. 17 अक्टूबर 2022 से किसान चौसा में अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे.

20 मार्च 2024 को एक हिंसात्मक दमन की कार्रवाई में पुलिस और प्रशासन ने चौसा के तीन गांव — बनारपुर, मोहनपुड़ा, कोचाढ़ी — में संध्या पांच बजे घरों में घुस कर महिलाओं, बच्चों, और बुजुर्गों सहित अन्य किसानों के साथ बेरहमी से मार पीट की. छोटे-छोटे बच्चे से लेकर अस्सी वर्ष के महिला बुजुर्ग तक के हाथ पांव तोड़ डाले. घरों को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर भारी लूट पाट को अंजाम दिया गया.

इसके अलावा वाटर पाइप कॉरिडोर और रेल कॉरिडोर के लिए अलग से 225 एकड़ जमीन का अधिग्रहण की अधिसूचना 2020 और अधिघोषणा 22 अक्टूबर 2021 को हुआ, जिसमें कुल 11 गांव के कुल 14 मौजा का जमीन जिसमें मोहनपुरवां, बचनपुरवां, बघेलवा, अख़ोरीपुर, माधोपुर, महादेवा, धर्मागतपुर, न्यायीपुर, चौसा, खेमराजपुर, कटघरवा, हुसैनपुर, महुआरी, सलारपुर सभी मुफस्सिल थाना बक्सर चौसा की है. किसान तथ्यों और अपने पिछले अनुभव के आधार पर बिना उचित मुआवजा के अधिग्रहण का पुरजोर विरोध कर रहे हैं.

कानूनी पहलू

साल 2013 में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम पारित हुआ. अधिग्रहित किए जाने वाले भूमि क्षेत्र का सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (SIA), संभावित रूप से प्रभावित 80% भूस्वामियों की सहमति, एक निष्पक्ष मुआवज़ा, और ज़मीन की मौजूदा बाज़ार कीमत से कम से कम चार गुना तय हुआ. भूमि अधिग्रहण में जो सारा अधिकार सरकार के पास था, उसे खत्म कर दिया गया और अधिकार किसानों को दे दिया गया.

इससे जमीन लेने में किसान की सहमति आवश्यक थी. मुआवजा भी सोशल इंपेक्ट असेस्मेंट (SIA) के आधार पर तय कर दिया गया. चौसा, बक्सर के सन्दर्भ में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 की धारा 40 ही समीचीन है क्योंकि इसके प्रावधानों की खुलेआम अनदेखी की जा रही है.

अधिनियम की धारा 40 के तहत आपातकालीन परिस्थितियों (जैसे-राष्ट्रीय सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा आदि) में सरकार को भूमि अधिग्रहण करने के लिये विशेष अधिकार प्रदान किये गए हैं, जिसके अनुसार आपात की स्थिति में सरकार संसद की मंज़ूरी से आवश्यकतानुसार भूमि अधिग्रहण कर सकती है. अधिनियम की धारा 21 में उल्लिखित नोटिस के प्रकाशन से तीस दिनों की समाप्ति पर, किसी भी आवश्यक भूमि का कब्ज़ा ले सकती है. सार्वजनिक प्रयोजन और ऐसी भूमि सभी बाधाओं से मुक्त होकर पूरी तरह से सरकार में निहित हो जाएगी.

उपर्युक्त सरकार की शक्तियां भारत की रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक न्यूनतम क्षेत्र तक या प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न होने वाली किसी भी आपात स्थिति या संसद की मंजूरी के साथ किसी अन्य आपात स्थिति तक सीमित होंगी. किसी भी भूमि का कब्जा लेने से पहले, कलेक्टर अस्सी प्रतिशत का भुगतान करेगा.
भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 के तहत गांव की जमीन के अधिग्रहण के लिए 70 प्रतिशत किसानों की सहमति जरूरी हैं.

अधिगृहीत भूमि पर अगर पांच साल में कोई विकास या काम नहीं हुआ तो वह भूमि फिर से किसानों को वापस मिलने की व्यवस्था हैं, खेती योग्य उपजाऊ भूमि का सीधे अधिग्रहण नहीं हो सकता हैं, सिर्फ बंजर भूमि का ही अधिग्रहण हो सकता हैं. सिंचित व उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण की स्थिति में इसके मालिकों व आश्रितों के लिए विस्तृत पुनर्वास पैकेज देने की व्यवस्था हैं. आजीविका खोने वाले किसानों को 12 महीने के लिए तीन हजार प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता 50 हजार रुपये तक पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर जमीन पर बना बनाया मकान देने का प्रावधान हैं.

अधिनियम की धारा 40 के तहत पचहत्तर प्रतिशत का अतिरिक्त मुआवजा प्रावधान है. अधिनियम की धारा 27 के तहत निर्धारित कुल मुआवजे का भुगतान कलेक्टर द्वारा उस भूमि और संपत्ति के संबंध में किया जाएगा, जिसके अधिग्रहण के लिए इस धारा तहत कार्यवाही शुरू की गई है; बशर्ते कि यदि परियोजना ऐसी है जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा और रणनीतिक हितों या विदेशी राज्यों के साथ संबंधों को प्रभावित करती है तो कोई अतिरिक्त मुआवजा देने की आवश्यकता नहीं होगी.

गौरतलब हैं कि गुजरात में मूल भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 की धारा 40 में, उपधारा (2) में ‘संसद की मंजूरी’ शब्दों के बाद, ‘या केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को दिए गए निर्देशों का पालन करना’ शब्द जोड़ दिया गया हैं.

साल 2015 में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश और फिर संशोधन विधेएक लाकर पुराने कानून को बदलने का असफल प्रयास हुआ. जन विरोध के कारण भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 में संशोधन नहीं हो सका मगर चौसा, बक्सर और अन्य स्थानों पर मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग के जरिये 2015 के संशोधन के मंशे को लागू किया जा रहा हैं.

साल 2014 के बाद केंद्र सरकार की मंशा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, ग्रामीण आधारभूत संरचना, कॉरीडोर, पीपीपी आदि के लिए बिना सहमति के भी सिंचित व उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण कर लें. किसानों की सहमति जरूरी नहीं हैं. पांच साल के प्रावधान खत्म कर, इसे बढ़ा कर परियोजना पूरी करने तक कर दिया जाए. एक बार सरकार ने जमीन अधिगृहीत कर ली, तो इसे वापस लेने का कोई प्रावधान न हो.

ग्रामीणों के बयान

पीयूसीएल के जांच दल ने कई ग्रामीणों से बात की जिसमें बनारपुर के ग्रामीण की संख्या अधिक थी. जांच दल जिन ग्रामीणों से मिला उनके नाम निम्नलिखित है –

  1. सत्येंद्र सिंह, पिता शिव भजन सिंह, ग्राम बनारपुर
  2. अनिल तिवारी, पिता चंद्रशेखर तिवारी, ग्राम बनारपुर
  3. सुजीत कुमार राय, पिता स्वर्गीय आनंद राय
  4. विनोद कुमार तिवारी, पिता स्वर्गीय श्याम नारायण तिवारी
  5. मुकेश कुमार सिंह, पिता रामदल सिंह, ग्राम पवनी
  6. तेज नारायण सिंह, पिता स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह, ग्राम पवनी
  7. अश्विनी कुमार चौबे, ग्राम बनारपुर

ग्रामीणों ने बताया कि भूमि अधिग्रहण का मामला 2012-13 से शुरू हुआ. उस समय उन्हें मालूम नहीं था कि जमीन का अधिग्रहण किस कारण से हो रहा है और इसके लिए क्या मुआवजा मिलेगा.
बनारपुर के सत्येंद्र सिंह ने बताया कि 2013 में एसजीबीएन ने अपनी सब्सिडियरी कंपनी एसपीएल के जरिए सरकार के साथ एक अनुबंध किया था, जिसमें बक्सर में बिजली उत्पादन की फैक्ट्री लगाने का निर्णय लिया गया था.

उन्होंने बताया कि जुलाई 2013 में एसपीएल कंपनी ने अधिसूचना जारी की और भूमि अधिग्रहण शुरू किया. उन्होंने यह भी बताया कि भूमि अधिग्रहण के दौरान 1300 किसानों की या उससे अधिक रैयती जमीन को अधिग्रहित किया गया है या अधिग्रहित करने की योजना है. इस संबंध में भी किसानों ने अपनी लिखित आपत्ति संबंधित कार्यालय में दिया, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई और ना ही समस्या का निदान हुआ.

तत्पश्चात, 17 अक्टूबर 2022 से किसानों का लगातार अनवरत आंदोलन जारी है. किसान लगातार धरना देते रहे हैं. किसान आंदोलन को कुचलने के लिए सर्वप्रथम एसडीएम (SDM) का एक पत्र निकाला कि आंदोलनकारी किसान नहीं बल्कि असामाजिक तत्व है. उस वक्त किसानों का धरना स्थल कारखाना से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर था.

सर्वप्रथम, 30 नवंबर 2022 को प्रशासन द्वारा धरना स्थल पर हमला कर, वहां लगे टेंट एवं माइक को तोड़ डाला गया. खाने-पीने का सारा सामान और खाना बनाने का साजो-सामान सभी को तोड़कर फेंक दिया गया. धरना पर बैठे किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया, परंतु हजारों किसानों द्वारा प्रशासन का घेराव करने के बाद 24 घंटे में गिरफ्तार किसानों को रिहा कर दिया गया.

अश्विनी कुमार चौबे ने बताया – ‘कंपनी ने जिला प्रशासन की राय से उच्च न्यायालय में एक झूठा मुकदमा किया कि जिला प्रशासन उनसे सहयोग नहीं कर रही है. उच्च न्यायालय पटना ने बक्सर जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि आंदोलनकारी किसानों से वार्ता कर समस्या का अविलंब समाधान करें,

‘मगर जिला प्रशासन जनवरी 2024 से इस संदर्भ में कोई प्रयास नहीं किया बल्कि चुनाव आचार संहिता लगने का वह इंतजार कर रही थी ताकि कोई राजनीतिक दल उनके दामन पर उंगली नहीं उठा सके और एक सुनियोजित साजिश के तहत चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता लागू होते ही होली के अवसर पर न्यायालय बंद होने का शुभ अवसर देखकर कारखाना प्रबंधन से मोटी रकम लेकर किसान आंदोलन को कुचलने के लिए 20 मार्च 2024 को लगभग 500 एसटीएफ के जवानों को लेकर पूरा बक्सर जिला प्रशासन डीएम एवं एस पी के नेतृत्व में धरना स्थल और संबंधित गांव पर हमला बोल दिया.’

ब्रिटिश हुकूमत से भी ज्यादा क्रूर और अमानवीय तरीके से क्या बूढ़े, क्या बच्चे, क्या पुरुष, क्या महिला, क्या मनुष्य, क्या जानवर, सबको लाठियां से रौंद डाला. 2 साल की बच्चा, बच्ची से लेकर 90 साल की बुढी औरतों को भी नहीं बख्शा गया. घर पर बंधे पालतु मूक मवेशी गाय, भैस, कुत्ते को भी नहीं बख्शा गया. रमजान के इस पाक महीना में कुछ रोजेदार जो अपने घरों में बैठकर रोजा खोल रहे थे, उन्हें भी नहीं बक्शा गया. ढाई सौ लोगों को बुरी तरह से घायल कर अधमरा कर दिया. कुछ लोगों को मरा हुआ समझ कर खेतों में ही फेक दिया.

घर पर खड़ी गाड़ी कार, बोलेरो,स्कार्पियो, मोटरसाइकिल और ट्रैक्टर सबको तोड़ दिया. घरों में घुसकर किवाड़, खिड़की तोड़ दिया. पंखा, टीवी, कूलर, वाशिंग मशीन हाथ धोने वाला बेसिन, पैखाना का सीट के साथ पूजा घर में भी तोड़फोड़ किया गया. सीसी कैमरा को भी तोड़ दिया. घरों में रखे बहुमूल्य, बेशकीमती जेवरातों को भी लूट लिया. सबसे ताज्जुब की बात थी कि सारी कार्रवाई पुलिस ने डीएम एसपी और डीआईजी एसडीओ की मौजूदगी में सारे जुल्म किए.

अनिल तिवारी ने बताया 17 अक्टूबर 2023 को डीएम, एसपी एवं एसडीओ के समक्ष थर्मल पावर प्लांट के प्रबंधन के साथ किसानों के 11 सुत्री मांगों पर लिखित समझौता हुआ और एक माह में सभी मांगों को पूरा करने का आश्वासन प्रबंधन ने दिया, मगर मांगें अभी तक पूरा नहीं हुआ. किसानों ने इसकी लिखित शिकायत जिला प्रशासन से की, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई.

ग्रामीणों ने आक्रोशित होकर जांच दल के सामने ये बात रखी कि चौसा के बनारपुर, मोहनपुरवा और कोच्चाढी में जो भयानक क्रूर दमनात्मक कार्रवाई की गई. यह ब्रिटिश हुकूमत के जलियांवाला बाग कांड की याद लोगों को ताजा कर दी. उल्टे, 56 नामजद और 350 ज्ञात लोगों पर झूठा मुकदमा पुलिस द्वारा की गई है, जिसमें अभी तक 31 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. दिन-रात पुलिस गांवों का चक्कर काट रही है. आमलोगों में दहशत फैलाने के लिए तथा प्रशासन के खिलाफ कोई मुंह नहीं खोले हड़कम्प मचाए हुए है. लगातार धड़ पकड़ हो रही है. डर के मारे लोग ईलाज के लिए भी बाहर नहीं निकल रहे हैं. अन्य ग्रामीणों ने भी उपरोक्त बात की पुष्टि की. घायल और गिरफ्तार किसानों की सूची.

उच्च न्यायालय में चल रहे परिवाद का मामला

एसटीपीएल, एसजेवीएनएल (सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड) की सहायक कंपनी ने 13 अक्टूबर 2023 को बिहार सरकार के मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस, बिहार, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, बक्सर, सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस, बक्सर, डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस, बक्सर, सब डिविशनल अफसर, बक्सर, सब डिविशनल पुलिस अफसर, बक्सर, SHO, चौसा, पुलिस और लार्सन एंड टौब्रो (Larsen and Toubro) लिमिटेड समेत 12 लोगों के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता के वकील रणजीत कुमार द्वारा याचिका दायर किया.

इन 12 लोगों के खिलाफ याचिका दायर करने के दिन ही याचिका पंजीकृत हो गयी. राज्य सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल पी.के. शाही पेश हुए. कंपनी की तरफ से सीनियर एडवोकेट ललित किशोर पेश हुए. याचिका के दायर होने के दिन ही सुनवाई शुरू हो गयी और उच्च न्यायालय ने उसी दिन अपना पहला आदेश भी दे दिया.

13 अक्टूबर 2023 के प्रथम आदेश में लिखा है ‘याचिकाकर्ता ने सूचित किया कि एल एंड टी नामक कंपनी के 5,000 श्रमिक/कर्मचारी जो आवंटित भूमि पर मुख्य संयंत्र में काम कर रहे थे, बियाडा को परिसर में ही बंधक बनाकर रखा गया. कुछ स्थानीय ग्रामीणों द्वारा कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा की गई. बड़ी संख्या में श्रमिकों/कर्मचारियों परिसर के मुख्य गेट पर ताला लगाकर अंदर बंधक बनाकर रखा गया है. उच्च न्यायालय ने श्रमिकों/कर्मचारियों की असुरक्षा से चिंतित होकर त्वरित सुनवाई किया. सुनवाई के दौरान न्यायालय को सूचित किया गया कि वास्तव में परिसर के अंदर मजदूरों/कर्मचारियों की संख्या 50-60 के बीच ही हैं.

‘ललित किशोर, याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि जिला प्रशासन को श्रमिकों को बिना किसी रुकावट के शांतिपूर्वक मुख्य संयंत्र के अंदर जाने और काम करने को सुनिश्चित करना आवश्यक है. महाधिवक्ता ने आश्वासन दिया है कि वह ऐसा करेंगे. पूरे मामले पर जिलाधिकारी, बक्सर से चर्चा करें. किसी प्रकार के समाधान पर पहुंचने का प्रयास किया जाएगा.’

17 अक्टूबर 2023 के दूसरे आदेश में लिखा है कि उच्च न्यायालय में मामले को कर्मचारियों और श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही उठाया जा रहा है. इन कर्मचारियों और श्रमिकों के बारे में कहा गया है कि उन्हें बंदी बना लिया गया है और प्लांट के अंदर और बाहर नहीं आने दिया जा रहा है. अंशुल अग्रवाल, जिलाधिकारी, बक्सर ने बताया है कि वे पुलिस अधीक्षक, बक्सर के परामर्श से वह हर उचित कदम उठाएंगे, जिसके द्वारा कर्मचारी और श्रमिक संयंत्र परिसर से अपने आवास तक आवाजाही कर सके.

प्लांट परिसर का मुख्य द्वार कल सुबह तक खोला जाएगा. इस उद्देश्य के लिए जिलाधिकारी, बक्सर प्रदर्शनकारियों से चर्चा कर यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रदर्शनकारी स्वयं को मुख्य द्वार से कुछ दूरी पर स्थानांतरित कर ले. न्यायालय ने उम्मीद जाहिर किया कि जिलाधिकारी, बक्सर मुद्दे के समाधान हेतु हर संभव प्रयास करेंगे. जिलाधिकारी, बक्सर हाइब्रिड मोड के माध्यम से सुनवाई में शामिल हुए.

16 जनवरी 2024 के अदालत के छठे और आखिरी आदेश/फैसले में लिखा है कि 16 जनवरी 2024 को ही एक पूरक हलफनामा दाखिल किया गया. पूरक शपथ पत्र के पैराग्राफ ‘9’ में कहा गया है कि जैसे ही किसानों को जल के कॉरिडोर और रेल कॉरिडोर कार्य के शुरू होने के बारे में पता चला, वे मुख्य संयंत्र क्षेत्र के मुख्य द्वार पर 26 दिसम्बर 2023 को इकट्ठे हुए और मुख्य संयंत्र क्षेत्र में अवरोध उत्पन्न किया और उन्होंने जबरदस्ती की मजदूरों ने परिसर खाली कर दिया और फिर मुख्य द्वार ताला लगा दिया.

लेकिन प्रशासन के हस्तक्षेप पर, दो घंटे बाद मुख्य गेट का ताला खुलवाया लेकिन प्रदर्शनकारियों ने मजदूरों को अंदर नहीं आने दिया. इसकी सूचना मुख्य सचिव, बिहार, पटना एवं जिलाधिकारी, बक्सर को दिनांक 2 जनवरी 2024 के पत्र के माध्यम से दे दी गयी.
न्यायालय का विचार हैं कि जिला प्रशासन द्वारा सभी सकारात्मक कदम लेना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो कि प्लांट के मुख्य द्वार, प्लांट के अंदर, वाटर कॉरिडोर और रेल कॉरिडोर के काम में कोई बाधा/रुकावट उत्पन्न न हो.

2 जनवरी 2024 की बैठक एक सकारात्मक कार्यवाही है और ऐसा लगता है कि फिलहाल समस्या का समाधान हो गया है लेकिन कोर्ट ने जिला दंडाधिकारी, बक्सर को निर्देश दिया कि वह उपरोक्त क्षेत्रों पर निरंतर निगरानी रखें और सुनिश्चित करें कि प्रदर्शनकारी संयंत्र क्षेत्र के अंदर, क्षेत्रों में एकत्र नहीं हो, जहां रेल के साथ-साथ वाटर कॉरिडोर का काम चल रहा है. ये सार्वजनिक महत्व के कार्य हैं और लाभार्थी बड़े पैमाने पर जनता हैं,

इसलिए, सभी यह सुनिश्चित करने के लिए सभी स्टैकधारकों द्वारा प्रयास किए जाने चाहिए. प्रदर्शनकारियों की ओर से बिना किसी बाधा के काम आगे बढ़ना चाहिए. इस न्यायालय का निर्देश यह ध्यान में रखते हुए जारी किया गया है कि जिलाधिकारी, बक्सर द्वारा पिछली सुनवाई में आश्वासन दिया गया कि वह संकट के समाधान के लिए इस मामले पर किसान प्रदर्शनकारियों से चर्चा करेंगे.

न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद ने याचिका की सुनवाई छह तारीखों को की और सातवें तारीख-16 जनवरी 2024 को फैसला सुना दिया. जिलाधिकारी,बक्सर द्वारा दिया गया आश्वासन दर्ज हैं. भविष्य में उनके आश्वासन पर अदालत शायद ही कभी भरोसा करेगी.
अदालत में दिए गए आश्वासन के विपरीत जिला प्रशासन ने कंपनी के पक्ष में किसान प्रदर्शनकारियों का अमानवीय दमन कर किसान प्रदर्शनकारियों का लोकतान्त्रिक और संवैधानिक धरना भंग कर तानाशाही का प्रदर्शन किया.

इससे प्रतीत होता है कि जब भी कंपनी के हित और किसानों के हित में द्वंद होगा, जिलाधिकारी, बक्सर ने यह तय कर लिया है कि वे किसके हित में खड़े होंगे. ऐसा बर्बर रवैया बक्सर प्रशासन का कंपनी से मिलीभगत की तरफ इशारा करता है. इस रवैये का वीडियो सबूत उपलब्ध हैं और अनंत काल तक उपलब्ध रहेगा. देश के लगभग सभी किसान संगठनों और उसके नेताओं बक्सर प्रशासन की करतूत की आलोचना की है. अपने साथी देशवासियों के प्रति ऐसी अक्ष्म्य क्रूरता से देश की लोकतांत्रिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा है. देशव्यापी आक्रोश अकारण नहीं हैं.

ऐसा प्रतीत होता है कि किसानों और उनके नेताओं को उचित कानून सलाह नहीं मिला. उच्च न्यायालय का दरवाजा उनके लिए भी खुला था. अक्टूबर 2023 से जनवरी 2024 तक सुनवाई चलती रही मगर उनके तरफ से कोई याचिका दायर नहीं की गयी. इस सम्बन्ध में न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद अपने सभी आदेशों और अंतिम फैसले में भी किसान प्रदर्शनकारियों के प्रति संवेदनशील थे और वार्ता और संवाद के रास्ते को चिन्हित कर रहे थे.

ज्ञात हो कि सही कानून सलाह नहीं मिलने के कारण झारखण्ड के मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और उचित क़ानूनी सलाह के कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री को जेल जाने के बाद भी इस्तीफा नहीं देना पड़ा. लोकतान्त्रिक और मौलिक अधिकारों के संघर्ष में साधारण वकीलों के स्थान पर विद्वान् कानूनविदों की सलाह बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. किसानों के नेताओं को बताना चाहिए कि उन्होंने न्यायालय अक्टूबर 2023 से जनवरी 2024 के बीच हुए सुनवाई के दौरान हस्तक्षेप क्यों नहीं किया.

भूमि मुआवजा वितरण से संबंधित मामला LARRA कोर्ट, पटना के अधीन है. LARRA कोर्ट, पटना के दिनांक 28.12.2023 के सामान्य आदेश के अनुसार, LARRA कोर्ट ने जिला प्रशासन को भूमि की प्रकृति और NH/SH से इसकी दूरी के साथ-साथ अन्य कारकों के आधार पर मुआवजे की राशि को फिर से तैयार करने का निर्देश दिया. एलएआरआर कोर्ट में 34 सुनवाई हुई और 112 भूमि मालिकों को मुआवजा मिला. अधिक मुआवजे की मांग को लेकर स्थानीय लोगों के आंदोलन के कारण 10.01.2023 से काम बंद था.

गौरतलब है कि सचिव (राजस्व), बिहार सरकार, लारा कोर्ट न्यायाधीश और जिला प्रशासन के बीच 5 मार्च, 2024 को एक बैठक हुई. सचिव (राजस्व), बिहार सरकार द्वारा भूमि मुआवजे के वितरण से संबंधित मामलों में तेजी लाने का निर्देश दिया गया.

प्रशासन से बातचीत

पीयूसीएल की जांच टीम बक्सर के एसडीओ श्री धीरेंद्र मिश्रा से भी मिली. एसडीओ साहब ने सरकार का और प्रशासन का पक्ष रखते हुए पीयूसीएल के जांच दल को बताया कि प्रशासन ने जितना संभव था आंदोलन कर रहे ग्रामीण के साथ सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत के द्वारा इस गतिरोध को समाप्त करने की कोशिश की मगर हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन मजबूर हो गया कि धरना कर रहे किसानों को धरना स्थल से हटाया जाए क्योंकि हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार थर्मल पावर प्लांट के मुख्य द्वार के सामने किसी भी प्रकार का अवरोध नहीं होना चाहिए.

एसडीओ साहब के अनुसार धरना कर रहे प्रदर्शनकारियों से अनुरोध किया गया था कि हाई कोर्ट के निर्णय के बाद अब प्रशासन भी मजबूर है इसलिए अब और अधिक धरना को चलाना कोर्ट की अवमानना माना जाएगा लिहाजा तुरंत धरना स्थल को खाली कर दिया जाए. मगर प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वालों पर पत्थर चलाया. कई पुलिसकर्मियों को जख्मी किया. पुलिस की गाड़ियों को आग लगाए जिसके कारण अंततः प्रशासन को बल का प्रयोग करना पड़ा.

जब एसडीओ साहब से पूछा गया कि पुलिस ने गांव में घुसकर घरों के अंदर महिलाओं और बच्चों पर लाठी से प्रहार क्यों किया ? तो इसका उचित उत्तर उनके पास नहीं था. इसके अलावा जांच दल ने उन्हें कई वीडियो, अखबार की कटिंग आदि साक्ष्य के रूप में दिखाए तो उन्होंने कहा कि पिछले डेढ़ साल से पुलिस बहुत अधिक प्रताड़ित और अपमानित हो रही थी, इस कारण जब धरना कर रहे प्रदर्शनकारियों ने कोई बात नहीं मानी और पुलिस पर पत्थर चलाया तो पुलिस का गुस्सा फूट गया और फिर जो भी सामने आया उसे पर लाठी पड़ गई. मगर उनके पास भी कई ऐसे वीडियो हैं जिसमें पुलिस के ऊपर आतंक मचाते हुए ग्रामीणों ने आक्रमण किया था.

जमीन के अधिग्रहण और उससे संबंधित मुआवजे के मामले में हुई अनियमित और भ्रष्टाचार के बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि किसी भी प्रकार की अनियमित नहीं हुई है और किसानों ने एक तरह का भ्रम पैदा किया है. वह स्वयं भी भ्रमित है और मीडिया को भी भ्रमित कर रहे हैं.

उनसे जब कैग की रिपोर्ट में बक्सर के भूमि अधिग्रहण के मामले में हुए भ्रष्टाचार का जिक्र किया गया और अखबार की खबर दिखाई गई तो उन्होंने बताया कि अखबार वालों ने गलत खबर बनाई है और उनके खिलाफ हम कार्रवाई कर रहे हैं. उन्होंने कैग की रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की अनियमितता होने की बात को नकार दिया.

उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि 14 मार्च 2024 को चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता लागू कर देने के कारण पुलिस के ऊपर अब यह कर्तव्य बन गया था कि धारा 144 लगाकर धरना कर रहे प्रदर्शनकारियों को कंपनी के गेट पर से हटाया जाए. इसके बावजूद भी प्रशासन ने धरना कर रहे प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने की कोशिश की.

उन्होंने बताया कि 18 मार्च 2024 को 7 घंटे तक लगातार एसडीओ, डीएसपी और कंपनी के अधिकारियों के साथ प्रदर्शनकारियों की बातचीत एसडीओ के कार्यालय में होती रही, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने धरना खत्म कर देने की बात स्वीकार की और यह लगने लगा कि अब यह मामला सुलझ जाएगा. मगर प्रदर्शनकारी अपनी बात से मुकर गए और धरना नहीं खत्म किया. इससे प्रशासन नाराज हो गया और फिर 20 मार्च 2024 को बलपूर्वक धरना को खत्म कराया गया.

20 मार्च 2024 की घटना

20 मार्च 2024 को एक हिंसात्मक दमनात्मक कार्रवाई में पुलिस और प्रशासन ने चौसा के तीन गांव — बनारपुर, मोहनपुड़ा, कोचाढ़ी — में संध्या पांच बजे घरों में घुस कर महिलाओं, बच्चों, और बुजुर्गों सहित अन्य किसानों के साथ बेरहमी से मार पीट की. छोटे छोटे बच्चे से लेकर अस्सी वर्ष के महिला बुजुर्ग तक के हाथ पांव तोड़ डाले. घरों को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर भारी लूट पाट को अंजाम दिया गया.

इस क्रूर और भीषण कार्रवाई में कई लोग गंभीर रूप से जख़्मी हुए. निर्दोष बच्चों और बुजुर्गों को भी बुरी तरह पीटा गया है. पुलिस ने घरों में घुसकर तोड़-फोड़ और गाली-गलौज की. मवेशियों (गायों, भैंस और कुत्ते तक को) को भी पीटा गया. इन पशुओं के शरीर पर अभी तक लाठी का दाग मौजूद है. गांव के लोगों ने पुलिस पर लूट-पाट का भी आरोप लगाया है.

अखबारों की रिपोर्ट से पता चलता है कि पुलिस के दमन के जवाब में धरना करने वाले किसानों ने भी पुलिस पर पत्थरबाजी की और पुलिस की गाड़ियों को नुकसान पहुंचा, इसमें एक दर्जन से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल भी हुए.

कुल 31 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वहीं 68 लोग जख्मी हैं. कई घायल पुलिस और राज्य प्रशासन द्वारा आपराधिक कार्यवाही के डर से निजी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं. पूरे क्षेत्र में भय और आतंक का माहौल है. अभी भी हर रोज रात्रि में पुलिस की छापामारी जारी है. पुरुष लोग अधिकांश रात्रि में गांव में नहीं रहते हैं. कई परिवार तो पूरा का पूरा पलायन कर चुके हैं. कई ने तो कहा कि इतनी जिल्लत कभी सपनों में भी नहीं सोचा था ,अब तो आत्महत्या कर लेने का मन करता है.
इस क्रूरतम दमन को लोगों से बातचीत के वीडीओ और तस्वीरों से महसूस किया जा सकता है.

गांव का भ्रमण

जांच दल ने तीन गांव का भ्रमण किया – बनारपुर मोहनपुरवा और कुछड़ी. इन तीनों गांव में दर्जनों ऐसे लोग मिले जिन्होंने 20 मार्च 2024 की घटना के बारे में विस्तार से बताया. वह सभी लोग घटना के दिन या तो घायल हुए थे या उनके घर के और दुकानों के सामानों का नुकसान हुआ था.

जांच दल ने कई ऐसे घरों के अंदर जाकर मुआयना किया, जहां घरों के दरवाजे तोड़कर पुलिस घर के अंदर घुसी थी. जैसे कि संजय तिवारी, मुन्ना तिवारी के घर आदि. पुलिस ने घरों के सारे सामानों को तहस-नहस कर दिया था. यहां तक कि पूजा घरों के अंदर घुसकर भी आतंक मचाया, मवेशियों को भी मारा और गाड़ियों के शीशे तोड़ दिए, मोटरसाइकिल बर्बाद कर दिया आदि इत्यादि. केवल आंदोलनकारियों को खदेड़ने के लिए इतना बल प्रयोग करना, इतना जुल्म करना कहीं से भी उचित नहीं मालूम पड़ता है.

गांव में हमने निम्नलिखित लोगों से मुलाकात की –

  1. प्रिया तिवारी पुत्री संजय तिवारी उम्र साढ़े 17 साल – 20 मार्च 2024 को पुलिस ने इन्हें खूब मारा. इनके बदन पर मार के निशान मौजूद हैं. इन्हें अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था. इनके भाई दीपू तिवारी जिसकी उम्र 15 साल है, उसे तो पुलिस ने इतनी बेरहमी से मारा कि उसके हाथ की कई हड्डियां टूट गई. इसका वीडियो भी जांच टीम को उपलब्ध कराया गया.
  2. बृजवासी देवी पति मुन्ना तिवारी – उन्होंने बताया कि पुलिस वाले 20 मार्च 2024 की शाम को 6:00 बजे के आसपास फायरिंग करते हुए उनके घर की तरफ आए. बहुत सारे पुलिस वाले थे. उनमें कोई महिला पुलिस नहीं थी. घर में कोई नहीं था और वह घर में जबरदस्ती घुस गए. घर की सारी चीज को तोड़फोड़ दिया, यहां तक के मवेशी को भी इतना मारा कि मवेशी भी डर गए. गाड़ी लगी हुई थी, गाड़ी का सारा शीशा तोड़ दिया. मोटरसाइकिल आदि को बर्बाद कर दिया. घर में लाखों लाख रुपए का नुकसान कर दिया और बेटी की शादी के लिए रखे गए जेवर जेवरात भी उठा कर ले गए.
  3. महंत चंद्र चौधरी, पिता राम सकल चौधरी – इनके ऊपर 150 लाठियां मारी गई. उनकी माता दहशत में बीमार पड़ गई और एक हफ्ते के बाद स्वर्ग सिधार गई.
  4. बनारपुर के ही समीप एक मुस्लिम टोला है वहां भी जांच दल गया और वहां भी लोगों से मिला, जिसमें शमशेर पिता आसिम खान ने बताया कि यहां पुलिस वाले आए थे. गंदी-गंदी गाली बक रहे थे. दरवाजा तोड़ने की कोशिश की लेकिन दरवाजा नहीं तोड़ पाए इसलिए अंदर नहीं घुसे और किसी को शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचा. वह रमजान का महीना था. सब लोग रोजा रखे हुए थे और अफ्तार का टाइम था इसलिए सारे लोग बहुत ज्यादा डर गए.
  5. रामप्रसाद सिंह पिता स्वर्गीय किशोरी सिंह ग्राम कोचारी – इन्होंने बताया कि 20 मार्च 2024 को प्रशासन के लोग और पुलिस के लोग गांव में घुस गए. इतना उपद्रव मचाया कि सारी तरफ दहशत मच गई. उनकी एक दुकान बिल्कुल रोड पर हैं जो कि फैक्ट्री के गेट से लगभग 200 मीटर की दूरी पर होगा. उन्होंने बताया कि आंदोलनकारी और पुलिस के बीच में झड़प हुई. पुलिस वालों ने लाठी मार मार के सबको भगा दिया और फिर आसपास जो भी मिला सबको मारना शुरू कर दिया. उनकी दुकान में भी पुलिस वाले घुस गए और दुकान की सारी चीज तोड़ दी. फ्रीज तोड़ दिया. दुकान का सारा सामान, कोल्ड ड्रिंक वगैरह वगैरह सब तोड़ दिया, मोटरसाइकिल को भी बर्बाद कर दिया. ऐसा उपद्रव आज तक जिंदगी में नहीं देखा था. लगभग 25 – 30000 का सामान लूट लिया.

जांच के निष्कर्ष

पीयूसीएल की जांच टीम निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंची –

  1. पुलिस ने बक्सर जिला के चौसा थाने के कई गांव के किसानों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन और अन्य सामान्य किसानों और ग्रामीणों के ऊपर बर्बरता के साथ अत्याचार किया लाठियां बरसाई और घरों में घुसकर लाखों लाख रुपए का नुकसान किया. यह एक शर्मनाक, अशोभनीय और अमानवीय घटना है, जिसके लिए पूर्व में कोई नजीर ढूंढना भी मुश्किल होगा.
  2. 20 मार्च 2024 को पुलिस ने ग्रामीणों के घर में घुसकर जिस तरह से मारपीट की और चल व चल संपत्तियां एवं मवेशियों का नुकसान किया वह किसी भी प्रकार से किसी भी समाज के लिए तर्कसंगत नहीं है.
  3. 20 मार्च 2024 को पुलिस बल में महिला पुलिस की संख्या नाम मात्र की थी जबकि पुलिस ने महिलाओं पर भी लाठी चार्ज किया. घरों में घुसकर महिलाओं के साथ मारपीट, धक्का मुक्की और बदतमीजी की और यह सब पुरुष पुलिसकर्मियों ने किया. यह एक घोर अन्यायपूर्ण बात है.
  4. जांच से इस बात की पुष्टि होती है कि पुलिस के लाठीचार्ज के जवाब में (आत्मरक्षा में) ग्रामीणों ने भी पुलिस बल पर पथराव किया, गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया.
  5. 2017 के सीएजी के रिपोर्ट के अनुसार बिहार के पांच जिलों में भूमि अधिग्रहण के दौरान अनियमितता भ्रष्टाचार और नियमों के उल्लंघन के साक्ष्य मिले हैं. उन पांच जिलों में एक बक्सर जिला भी है, मगर स्पष्ट यह नहीं कहा जा सकता कि बक्सर में बना रहे थर्मल पावर प्लांट के लिए ली गई जमीन में हुई अनियमितता की बात भी इस रिपोर्ट में की जा रही है. मगर यह भी संभव है कि बक्सर में पिछले 10 सालों में जितनी भी जमीन अधिग्रहित की गई, उनमें ज्यादातर में अनियमितता और भ्रष्टाचार हुआ.
  6. कैग की रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हो जाता है कि बिहार में उद्योगों और अन्य कार्यों के लिए जो भी जमीन ली जा रही हैं, उसमें हाल के वर्षों में बहुत अधिक भ्रष्टाचार हो रहा है. यह एक नए प्रकार का रुझान है जिसके तरफ गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा इस तरह के आंदोलन और उनका अन्यायपूर्ण दमन आगे भी होता रहेगा.
  7. 2013 में केंद्र सरकार के द्वारा भूमि अधिग्रहण के जो कानून बनाए गए थे वह काफी हद तक जनता के हित में थे. उस कानून को अगर अक्षरशः पालन किया जाए तो देश के विकास और जनता के आकांक्षाओं के बीच किसी प्रकार की कटुता या टकराव का होना कठिन होगा, मगर यह पाया गया है कि सरकार 2013 के कानून का उल्लंघन सामान्यतः कर रही हैं. बल्कि यह भी कहना गलत नहीं होगा कि राज्य सत्ता उस कानून के खिलाफ खड़ी है और अपनी पूरी शक्ति के द्वारा उस कानून को खत्म करने के लिए कटिबंध है जिसके कारण देश भर में किसानों के आंदोलन भी चल रहे हैं. इसी का एक ज्वलंत उदाहरण है बक्सर के चौसा में भूमि अधिग्रहण मामला.

अनुशंसा

  1. इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच उच्च न्यायालय के किसी जज की अध्यक्षता में बनी हुई समिति से कराया जाना चाहिए.
  2. बक्सर में जितने भी प्रशासनिक अधिकारी हैं, उनका तुरंत तबादला हो जाना चाहिए, जिनमें अनुमंडल पदाधिकारी, जिला भू अर्जन अधिकारी, अंचलाधिकारी, थाना अध्यक्ष आदि प्रमुख है.
  3. कैग की रिपोर्ट के अनुसार बक्सर के जिन अधिकारियों पर उंगली उठाई गई है, उनको तत्काल निलंबित किया जाए.
  4. 25 लोग जिन पर फर्जी केस दायर करके जेल में बंद कर दिया गया है, उन्हें तुरंत रिहा किया जाए और उन के ऊपर दायर केस वापस लिया जाए.
  5. पुलिस के दमनकारी कार्यों के कारण जो लोग भी घायल हुए हैं, उनके सरकार के द्वारा समुचित इलाज का प्रबंध होना चाहिए और उनको और उनके परिवार को उचित मुआवजा सरकार की ओर से तुरंत दिया जाना चाहिए.
  6. पुलिस के द्वारा घरों में घुसकर जो नुकसान किया गया है उसकी भरपाई पुलिस अफसर एवं प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा किया जाए.
  7. दोषी अधिकारियों पर भारत के दंड संहिता के अनुसार किसी पर जानलेवा हमला करना किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की धाराओं के अंतर्गत केस चलाया जाना चाहिए.
  8. बक्सर के किसानों और उनके नेताओं को संवैधानिक व कानूनी साक्षरता और उचित कानून सलाह से लैश करने की आवश्यकता हैं. सरकारें क़ानूनी तर्क से चलती हैं, क़ानूनी तर्क के अभाव में अन्याय की भावना आधारित संघर्ष अपने उचित निष्कर्ष तक नहीं पहुंचती. कानूनी साक्षरता की धारणा इस सिद्धांत पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों और दायित्वों के बारे में जागरूक होना चाहिए. इसलिए दायित्व से बचने के लिए बचाव के रूप में कानून की अज्ञानता का दावा नहीं कर सकता है.
  9. बिहार सरकार को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013, इसके तहत बने नियमावली और सुप्रीम कोर्ट और पटना हाई कोर्ट के फैसलों के आलोक राज्य में हो रहे भूमि अधिग्रहण और मुआवजा पर श्वेतपत्र लाना चाहिए. बक्सर प्रशासन भूमि अधिग्रहण और मुआवजा पर श्वेतपत्र लाना चाहिए.
  10. भूमि अधिग्रहण से पूर्व, भूमि अधिग्रहण के दौरान और भूमि अधिग्रहण के पश्चात उभरे मामलों की पड़ताल के लिए और  भूमि अधिग्रहण विवादों से उपजे विभिन्न बिंदुओं को लेकर एक जिला स्तरीय, और एक राज्य स्तरीय एक्सपर्ट समिति गठित किया जाना चाहिए क्योंकि भूमि अधिग्रहण को लेकर गया, रोहतास, कैमूर, भभुआ, कजरा, जमालपुर, धनरुआ, फतुहा, औरंगाबाद, खगडिया, मुजफ्फरपुर, बिहटा, पटना, कोइलवर-बबुरा, भोजपुर, बेगुसराय, पूर्वी चम्पारण, कल्याणबिगहा, नालंदा से बख्तियारपुर तक के किसान भी संघर्षरत हैं.
    11. बिहार में पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन को लेकर कोई स्पष्ट नीति /SOP नहीं है, जिसके कारण पुनर्वास के मामले में हर जगह अनदेखी की जा रही है. राज्य  में  पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन को लेकर स्पष्ट नीति/SOP तत्काल बनाया जाना चाहिए.

Annexure 1 – Notification for Land Acquisition
Annexure 2 – List of arrested and wounded persons
Annexure 3 – Images

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