Home ब्लॉग सोशल मीडिया की जनवादी व्यापकता मुख्यधारा की मीडिया पर करारा तमाचा

सोशल मीडिया की जनवादी व्यापकता मुख्यधारा की मीडिया पर करारा तमाचा

9 second read
0
0
1,045

मुख्यधारा की दलाल-बिकाऊ मीडिया पर भारी छोटी वैकल्पिक मीडिया

हरीश गिरी गोस्वामी और उनके साथ दुर्व्यहार करने वाले दवाई दुकान का तस्वीर

“आप लोगों से अनुरोध करता हूं कि लाइक या शेयर ना करें जवाब देने का कष्ट करें क्या भारत देश में इंसानियत मर चुकी है नीचे पूरा पढ़ें –

“नैनीताल के लालकुआं जिला के दुकानदारों से और जनता से पूछना चाहता हूं कि ‘क्या एक्सपायरी डेट पूछना गुनाह है ?’ मैंने भाटिया मेडिकल स्टोर से दवाई लेना चाहा लेकिन डेट पूछने पर दुकानदार ने दवाई वापस रखते हुए मुझसे बोला कि ‘मैं कपड़ा नहीं बेच रहा हूं.’ क्या कपड़े में भी डेट आने लगी है या डेट पूछना ही गुनाह था जो भाषा का प्रयोग दुकानदार ने किया वह मैं सोशल मीडिया पर भी नहीं डाल सकता हूं. मेरा लालकुआं के पत्रकार महोदय से भी अनुरोध है कि ऐसे दुकानदारों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत हैं.”

उपरोक्त उदाहरण यह बताने के लिए पर्याप्त है कि आज सोशल मीडिया आम आदमी के जीवन में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है. भारतीय मुख्यधारा की मीडिया जहां चंद पैसे के खातिर अपनी जमीर तक धन्नासेठों के चरणों में गिरवी रख चुका है, जिसे आम जनता की समस्या तभी दिखाई पड़ता है जब वह विकराल रूप धारण कर लेता है अथवा जनता सड़कों पर उतर आती है और उसे अब दबाया नहीं जा सकता. ऐसे दौर में सोशल मीडिया आम आदमी के लिए एक ऐसा हथियार बन कर आया है, जहां आम आदमी अपनी बातें खुलकर रखता है और अपनी समस्याओं को एक हद तक अपनी बुलंद आवाज में तब्दील कर देता है.

सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा बयान करते हुए हरीश गिरी गोस्वामी कहते हैं, “सप्लाई इंस्पेक्टर का नंबर होता तो मैं उनसे संपर्क कर लेता. एक कागजी कार्रवाई में 10 दिन से भी ज्यादा लग जा रहे हैं तो ऐसे में क्या करेगी जनता जिसको ज्यादा जानकारी नहीं तो वह क्या जाने सप्लाई इंस्पेक्टर को. मैं एक ₹280 कमाने वाला आम मजदूर हूं. 2:00 बजे ड्यूटी खत्म होने के बाद मेडिकल स्टोर पर दवाई लेने जाने पर दुकानदार के तरफ से गलत व्यवहार किया गया. इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? हमारे भारत देश की सरकार नहीं ? क्या एक्सपायरी डेट पूछना गुनाह है.”

सोशल मीडिया पर ही उठाये गये एक सवाल कि “बातों से लग रहा है दुकानदार साब भाजपा वाले होंगे” के जवाब में श्री गोस्वामी आगे बताते हैं कि  “भाई आप बिल्कुल सही कह रहे हैं क्योंकि उसके व्यवहार से मुझे भी लग रहा था. हो सकता है वह सोशल मीडिया में मुझे फॉलो भी करता हो  क्योंकि वह फोन पर ही लगा हुआ था. भाई मुझे एक्सपायर डेट दिख नहीं रही थी क्योंकि 40 साल की उम्र में आदमी को चश्मा लगने लग जाता है. मेरे पास चश्मा ना होने के कारण मैंने दुकानदार से केवल पूछा कि ‘भाई, इसमें एक्सपायर डेट मुझे दिख नहीं रही है. जरा बताने का कष्ट करें.’ उतने में वह दवाई पकड़ कर अंदर ले जाता है और बोलता है ‘मैं कपड़ा नहीं बेच रहा हूं.’ क्या कपड़े में एक्सपायर डेट आने लगी हो सकता है. भगवा कपड़े में एक्सपायर डेट खत्म होती होगी, हमारे कपड़े में तो एक्सपायर डेट खत्म होती ही नहीं या फिर दवाई फर्जी थी.”

श्री गोस्वामी इसका कारण बताते हुए आगे कहते हैं कि “पैसा हाय नहीं भैया, दिमाग हाए हो गया है क्योंकि अंधभक्ति ही भारत देश में सबसे आगे चल रही है, जैसे राम रहीम के अंधभक्त. अनेक वैसे ही राजनीतिक पार्टियों के अंधभक्त, अनेक एक-दूसरे की पार्टी को बदनाम करने के लिए अत्याचार बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है.”

श्री गोस्वामी इसी दुकान से दवाई लेने और उक्त दुकानदार द्वारा दवाई नहीं देने पर अपनी पीड़ा को जाहिर करते हुए कहते हैं कि, “हमारे यहां शहर पड़ता है लाल कुआं. दूसरा शहर 45/ 55 किलोमीटर दूर हल्द्वानी, जहां जाने का समय मेरे पास नहीं बचा था इसीलिए दुकानदार से मैंने रिक्वेस्ट भी की. उसके बावजूद भी उसने दवा नहीं दी तो मैंने उससे पूछा कि ‘क्या इंसानियत मर चुकी है.’ उसने मुझसे कहा, ‘हां इंसानियत मर चुकी है. मैं दवाई नहीं दूंगा. तूने जो उखाड़ना है उखाड़ ले.’ एक गरीब मजदूर आदमी कभी भी किसी का कुछ नहीं उखाड़ सकता है केवल लिखने के अलावा इसीलिए मैंने फोटो खींचकर Facebook पर शेयर किया है. दूसरे दुकान में मिलती जब तो फिर क्या दिक्कत थी. फिर अगर दूसरे दुकान में मिल भी रही है तो क्या एक्सपायरी डेट पूछना गुनाह है ? ऐसा मामला मेरे साथ हुआ था. मैंने कहा, ‘दवाई वापस ले ले.’ दुकानदार बोला ‘ये दवाई फेक दे. मैंने कहा लिख के दे दे.’ बडी ही मुश्किल से दवाई के पैसे वापस किये.”

श्री गोस्वामी की यह पीड़ा हर जगह फैली हुई है. अधिकांश मामले दब जाते हैं या लोग नजरअंदाज कर देते हैं और अपने अपमान का घूंट पी जाते हैं. इस देश की व्यवस्था ही इस कदर बना दी गई है कि जीवन बुनियादी जरूरत की हर चीजों को निजी हाथों के भेंट चढ़ाये जा रहे हैं, जो अपने एकाधिकार और दबंगई को कायम रखने के लिए गुंडें तक पालते हैं जो आम आदमी के साथ अपमानजनक व्यवहार करने में कोई हिचक नहीं करते.

श्री गोस्वामी की ही तरह एक अन्य उदाहरण इस बच्ची की है जिसने अपनी सुरक्षा की मांग पुलिस, प्रशासन और समाज के दबंगों से मांगने के बजाय सोशल मीडिया पर अपनी बात रोते हुए कह रही है.

श्री गोस्वामी और इस लड़की की पीड़ा को साझा करने और विरोध करने का स्वर यहां की मुख्यधारा की मीडिया में उठाने का साहस नहीं है क्योंकि वे चंद सिक्कों में खुद को बेच चुके होते हैं. यही कारण है कि सोशल मीडिया आम जनता के बीच न केवल गहरी पैठ बना ली है बल्कि इसकी व्यापकता मुख्यधारा की दलाल मीडिया के मुंह पर करारा तमाचा भी जड़ती है. विदित हो अनुसूचित जाति और जनजातियों के हितों को रौंदने की सरकार और सुप्रीम कोर्ट की साजिश के खिलाफ 2 अप्रैल के भारत बंद का व्यापक प्रभाव इसी सोशल मीडिया की ही ताकत को जाहिर किया है, जिसके खिलाफ अब केन्द्र की मोदी सरकार नये तरीके अपना रही है, जिसमें सोशल मीडिया पर गाली और जान से मारने की धमकी देने वाले गुंडे पाल रखे हैं. परन्तु इस सोशल मीडिया को खरीदना और इसके खिलाफ कदम उठाना किसी भी सरकार और गुंडें के बूते से बाहर ही होगी.

Read Also –

कोबरा पोस्ट की खोजी रिपोर्ट: पैसे के लिए कुछ भी छापने को राजी बिकाऊ भारतीय मीडिया
मुख्यधारा की दलाल-बिकाऊ मीडिया पर भारी छोटी वैकल्पिक मीडिया

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…