पृथ्वी के निर्माण से लेकर अबतक जहां कभी रोशनी की एक किरण तक नहीं पहुंची, वहां बड़े-बड़े अर्थमूवर और खुदाई-ढुलाई के बाकी औजार पहुंचाने की भूमिका बनाई जा रही है. गहरे समुद्रों की तली तक इंसानी पहुंच की कोशिशें डेढ़ सौ साल पहले शुरू हो चुकी थीं लेकिन इनका मकसद धरती के एक अत्यंत विशाल लेकिन अनजाने क्षेत्र के बारे में जानकारी जुटाने तक सीमित था. यह सिलसिला अगले दो-चार वर्षों में बदलने जा रहा है. अप्रैल 2022 में समुद्र तल से जुड़ी गतिविधियों पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनैशनल सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) ने अगले पंद्रह महीनों के अंदर इस काम से जुड़े नियम-कानून बना लेने का लक्ष्य निर्धारित किया था. वह रेखा पार हो चुकी है.
प्रशांत महासागर के मात्र 12 हजार की आबादी वाले द्वीप नौरू की पहल पर जुलाई 2023 में कनाडा की द मेटल्स कंपनी को गहरे समुद्र में खुदाई का लाइसेंस मिल गया. 21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले छोटे से द्वीपीय देश नौरू को प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया के अमीर मुल्कों में गिना जाता रहा है। कारण यह कि नौरू और इसके इर्द-गिर्द के कुछ और छोटे टापू पूरी तरह पक्षियों की बीट से बने हुए थे. डाई अमोनियम फॉस्फेट के रासायनिक संश्लेषण से पहले यहां की प्राकृतिक खाद की मांग पूरी दुनिया में थी और यहां के नागरिकों के खाते में इससे काफी पैसा आ जाता था. यह किस्सा धीरे-धीरे कमजोर पड़ते-पड़ते एक दिन खत्म हो गया.
पिछले पचीस-तीस वर्षों से नौरू की चर्चा ग्लोबल वॉर्मिंग के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सबसे ज्यादा मुखर रहने वाले देशों में से एक के रूप में होती है. समुद्र का ऊपर उठता जल-स्तर नौरू की जमीनें निगलता जा रहा है. उसके प्रतिनिधियों का कहना है कि दुनिया या तो ग्रीनहाउस गैसों में कटौती करके इस आपदा पर लगाम लगाए, या नौरूवासियों को समय से कहीं और बसाने की व्यवस्था करे. वही नौरू जुलाई 2021 में यह विचित्र प्रस्ताव लेकर आया कि उसे अपने आर्थिक हितों वाले क्षेत्र में आने वाले गहरे समुद्र की तली में खुदाई कराने की इजाजत दी जाए.
गहरा समुद्र यानी क्या ?
अब, गहरा समुद्री क्षेत्र किसे कहा जाए ? तकनीकी तौर पर 200 मीटर से ज्यादा गहरे समुद्र को इस श्रेणी में लिया जाता है. महाद्वीपों के इर्द-गिर्द थोड़ी दूर तक समुद्र की गहराई 200 मीटर के आसपास होती है, फिर यह अचानक ज्यादा गहरा हो जाता है. उथला समुद्र मछलियों, केकड़ों और अन्य जलजीवों के अलावा मूंगे की चट्टानों और वहां मौजूद रंगबिरंगी पारिस्थितिकी का भी ठिकाना हुआ करता है. जबकि गहरे समुद्रों की तली के बारे में इतना ही पता है कि उच्च दाब, कम तापमान और निपट अंधेरे में जी लेने वाले कुछ दुर्लभ जीवों के अलावा वहां हल्की पीली कीचड़ मौजूद होती है, जिसकी मोटाई को लेकर कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता.
इसी कीचड़ के ऊपर किसी-किसी इलाके में छोटे-बड़े आलुओं जैसे आकार वाली काले कंकड़ नुमा चीजें मौजूद होती हैं, जिनमें जमीनी खदानों में कम मिलने वाली कुछ धातुएं पाई जाती हैं. ‘पॉलीमेटैलिक नॉड्यूल्स’ के रूप में चर्चित इन पिंडों में निकिल, कोबाल्ट, मैंगनीज और टाइटेनियम के अलावा तांबा, जस्ता और लोहा भी पाया जाता है. इन धातुओं में निकिल और कोबाल्ट की खदानें दुनिया में गिनी-चुनी ही हैं. देशों के आपसी टकराव के चलते बतौर कमोडिटी इनकी खरीद-बिक्री भी खुले बाजार की तरह नहीं हो पाती. सबसे बुरी बात यह कि अभी जब खासकर बैट्री चालित गाड़ियों में इनका उपयोग बड़ी तेजी से बढ़ना शुरू हुआ है, तब दोनों धातुओं की, खासकर निकिल की कुछ बड़ी खदानों के सन 2030 से पहले ही बंद हो जाने की खबरें भी आने लगी हैं.
जुलाई 2021 में इंटरनैशनल सीबेड अथॉरिटी को भेजे गए अपने पत्र में नौरू ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग पर लगाम लगाने में बैट्री चालित गाड़ियों की बहुत बड़ी भूमिका होने जा रही है. इसके अलावा अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में काम करने वाली विंड टर्बाइनों के निर्माण में भी निकिल की जरूरत पड़ती है. ऐसे में समुद्र से पॉलीमेटैलिक नॉड्यूल्स निकालने की इजाजत उसे मिल जाए तो एक तरफ पृथ्वी के पर्यावरण पर दबाव कम होगा और उसकी जमीनें डूबने से बच जाएंगी, दूसरे खाद की जगह आय का एक बहुत जरूरी स्रोत भी उसके हाथ लगेगा।
विरोध क्यों ?
पत्र में मौजूद आग्रह से जुड़े फायदे-नुकसान के ब्यौरे में जाने से पहले हम दुनिया भर के पर्यावरणविदों की ओर से इसे लेकर जताए जा रहे एतराज पर एक नजर डालें तो सबसे पहले इसका संबंध जैव विविधता को होने वाली क्षति से है. जंतु विज्ञानियों का कहना है कि गहरे समुद्रों में रहने वाली जीवजातियों में से एक फीसदी को लेकर भी ठोस कामकाजी जानकारियां उनके पास मौजूद नहीं हैं.
नौरू का इरादा जहां खुदाई कराने का है, वह इलाका हवाई और मैक्सिको के बीच क्लैरियन क्लिपर्टन जोन (सीसीजेड) के नाम से चर्चित 45 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले गहरे समुद्री दायरे में आता है. यहां पनडुब्बियों से जब-तब दिख जाने वाले विचित्र जीवों का घर कहां है, उनके अंडे-बच्चे कहां रहते हैं, उनका खानपान कैसा है, बाकी समुद्री जीवों और वहां के पर्यावरण को वे किस तरह प्रभावित करते हैं, समुद्री फूड चेन में उनकी जगह कहां बनती है और समुद्र तल में खुदाई से निकलने वाली कीचड़ की धुंध के अलावा वहां मचने वाले प्रकाश और ध्वनि प्रदूषण को वे झेल पाएंगे या नहीं, इन सवालों का कोई जवाब फिलहाल उनके पास नहीं है.
उनका दूसरा एतराज मीथेन उत्सर्जन से जुड़ा है. आम तौर पर जैविक पदार्थों के सड़ने से बनने वाली यह गैस ग्रीनहाउस प्रभाव, यानी ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ाने में कार्बन डायॉक्साइड की तुलना में कहीं ज्यादा खतरनाक है. कम समय में इसे कार्बन डायॉक्साइड से 84 गुना और सौ साल की अवधि में 28 गुना ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करने वाली गैस माना जाता है. सागर तल की जिस पीली कीचड़ का जिक्र हमने किया है, वह मीथेन को रोककर रखने का सबसे मुफीद ठिकाना भी है.
पर्यावरणविदों का कहना है कि नौरू की चिंता अगर वाकई ग्लोबल वॉर्मिंग को थामने से जुड़ी है और इसके लिए वह द मेटल्स कंपनी को गहरे समुद्र में खुदाई का लाइसेंस दिलाना चाहता है तो उसे तत्काल अपने कदम पीछे खींच लेने चाहिए, क्योंकि इस खुदाई से जो मीथेन निकलेगी, धरती के पर्यावरण के लिए उसका नुकसान बैट्री चालित गाड़ियों से कार्बन डायॉक्साइड में होने वाली कटौती से कहीं ज्यादा होगा.
क्यों चाहिए इतना निकिल ?
आगे चलें तो क्या वाकई दुनिया को निकिल और कोबाल्ट की इतनी ज्यादा जरूरत पड़ने वाली है कि जमीन पर मौजूद खानें इसके लिए कम पड़ जाएंगी ? बाजार का रुख करें तो बात में एक हद तक सच्चाई नजर आती है. 26 अप्रैल 2022, दिन मंगलवार को लंदन कमोडिटी मार्केट में निकिल की ट्रेडिंग बंद करनी पड़ी, क्योंकि तीन महीने आगे के लिए उसकी वायदा कीमत 1 लाख डॉलर प्रति टन के भी पार चली गई थी. भारतीय रुपये में बात करें तो 7679 रुपया किलो.
यह आंकड़ा इस धातु की सामान्य कीमत के देखते-देखते दोगुनी हो जाने का किस्सा बता रहा है. जाहिर है, इस अफरा-तफरी का संबंध रूस-यूक्रेन युद्ध से है. दुनिया में निकिल की सबसे बड़ी खदानें रूस में हैं, जहां से माल की आवक बंद है. खपत पर जाएं तो 90 फीसदी निकिल अभी हाई-एंड स्टील बनाने में काम आता है जबकि 10 फीसदी का इस्तेमाल लीथियम आयन बैटरियों का कैथोड बनाने में होता है. अनुमान है कि बैट्री चालित गाड़ियों पर जोर के चलते सन 2050 तक यह अनुपात बराबर-बराबर का हो जाएगा.
यहां एक तथ्य की ओर ध्यान खींचना जरूरी है कि अभी ट्विटर की खरीद से कुछ ज्यादा ही जगर-मगर दिख रहे दुनिया के सबसे अमीर आदमी ईलॉन मस्क दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुए और अपनी पढ़ाई-लिखाई उन्होंने कनाडा में पूरी की. शायद ही किसी को आश्चर्य होगा, अगर आगे चलकर कनाडा की द मेटल्स कंपनी में उनकी साझेदारी निकल आए, या पूरी कंपनी ही उनकी बनाई हुई निकल आए. ऊपरी तौर पर ईलॉन मस्क पर्यावरण प्रेमी हैं. डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद तक उनसे मस्क की काफी छनती रही लेकिन जब ट्रंप ने अमेरिका को पैरिस जलवायु समझौते से बाहर लाने का फैसला किया तो मस्क ने उनसे दूरी बना ली.
अप्रत्याशित खतरा
यह तथ्य अपनी जगह है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि ईलॉन मस्क की कंपनी टेस्ला बैट्री चालित गाड़ियों की सबसे बड़ी निर्माता है और उसकी नई बैट्रियों का डिजाइन बहुत ज्यादा निकिल की मांग कर रहा है. आंकड़े बताते हैं कि 75 किलोवॉट ऑवर वाली बैट्री से संचालित एक गाड़ी बाकी धातुओं के अलावा 85 किलो तांबा, 56 किलो निकिल, 12 किलो मैंगनीज और 7 किलो कोबाल्ट मांगती है. अगले दो-तीन साल में चलन में आने वाली टेस्ला की 4680 मार्के की बैट्री को और ज्यादा निकिल की जरूरत पड़ने वाली है.
यूक्रेन की लड़ाई खत्म होने के बाद भी रूस से अमेरिका को निकिल की सप्लाई में कुछ बाधा बनी रही और इस धातु की कई पुरानी खदानों के बंद होने का कार्यक्रम पूर्वनिर्धारित रूप में ही संपन्न हुआ तो टेस्ला के लिए धातुओं के जिस संकट की आशंका 2030 के बाद जताई जा रही थी, वह 2027 में या इसके पहले ही सामने आ खड़ा होगा. जाहिर है, समुद्र तल से पॉलीमेटैलिक नॉड्यूल्स निकालने के लिए नौरू का हड़बड़ी मचाना कोई संयोग नहीं है. इससे हमारे पर्यावरण का सामना कुछ ऐसे खतरों से हो सकता है, जिनके बारे में हम अबतक कुछ जानते भी नहीं हैं लेकिन जिन खतरों से हम भलीभांति परिचित हैं, बड़े स्वार्थों से मुकाबला होने पर उनसे भी मुंह फेर लेने के सिवाय और क्या कर पाते हैं !
- चन्द्रभूषण
(‘प्रलय का प्रतिपक्ष‘ से एक अंश)
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